दीपावली : chain of lights.
दीपावली ‘दीप’ और ‘आवली’ का युग्म शब्द है। ‘दीप’ प्रज्वलित करने से रोशनी उत्पन्न होती है, और ‘आवली’ का समानार्थी शब्द है ऋंखला। इस प्रकार दीपावली का शाब्दिक अर्थ है, दीपों की श्रृंखला। दीपों की श्रंखला प्रज्वलित करना एक उत्सव है। सामाजिक, सांस्कृतिक परंपराओं में यह दीपोत्सव है। यह दीपोत्सव उमंग का, उल्लास का, विजय का प्रतीकात्मक क्रिया है,जो सामुहिक रूप से किया जाता है। यह जो क्रिया है, यह सांसारिक गतिविधि है। और संसार में, समाज में रहते हुए सामाजिक, सांसारिक गतिविधियों, उत्सवों में भागीदार होना भी महत्वपूर्ण है।
परन्तु दीपावली का आशय केवल सांसारिकता से नहीं है। यह जो गतिविधि है, केवल सामाजिक नहीं व्यक्तिगत भी है। यह जो व्यक्तिगत है, इसलिए है कि यह स्वयं के द्वारा की जानेवाली गतिविधि है। और यह केवल एक दिन के लिए किसी विशेष स्थान अथवा मुहुर्त में की जानेवाली गतिविधि नहीं है। यह भीतर के, मन के भीतर तल के दीप को प्रज्वलित करने की क्रिया है। यह जो दीपोत्सव है, निरंतर की जानेवाली क्रिया है। नित्य और निरंतर भीतर के दीप को प्रज्वलित करने से दीपों की श्रंखला का निर्माण होता है। यह वास्तविक दीपावली है, यह दीपोत्सव जीवन का उत्सव है, जो आध्यात्मिक है।
दीप, दीपक अथवा दीया जो मिट्टी से बना होता है। इसमें प्रयुक्त बाती जो कपास के रुई से बनी होती है । और बाती को भिगोने के लिए ज्वलनशील तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है। इसे प्रज्वलित करने के लिए चिंगारी की आवश्यकता होती है। और दीपक से रोशनी प्राप्त होता रहे, इसके लिए इसे हवा के झोंके से रक्षित करने की भी आवश्यकता होती है। जब अनेक दीपों को एक साथ प्रज्वलित किया जाता है, तो दीपों की ऋंखला निर्मित होती है। जो पूर्णतः भौतिक गतिविधि है, सांसारिक है। क्योंकि यह मन का विषय है, और सामान्यत: मन सांसारिक गतिविधियों में ही लगा रहता है।
एक जो दीप प्रज्वलित करने की प्रक्रिया है, वह सांसारिकता से परे है। कहने का तात्पर्य यह है कि यह मन की कामनाओं से परे है। यह दीपोत्सव मन की कामनाओं से, आकांक्षाओं से प्रभावित नहीं है। यह भौतिक से अभौतिक तक की जाने की गतिविधि है। इस यात्रा में जो अवरोध है, उसे हटाने की गतिविधि है। मन में जो अंधकार व्याप्त है, इसे मिटाने की गतिविधि है। यह जो दीपक है, यह प्रज्वलित होता है, तो अभौतिक तक जाने का मार्ग प्रशस्त करता है। इस दीपावली से, दीपों की इस श्रंखला से अभौतिक ऊर्जा की अनुभूति होती है। यह जो दीपावली है, वास्तविक दीपोत्सव है।
दीए की बाती को तेल में डुबोया जाता है। डुबाया जाता है, लेकिन पूर्णतः नहीं। अगर बाती को पूर्णतया डुबो दिया जाए तो बाती अगर तेल में डुब जाए तो जलेगा नहीं। और जब जलेगा नहीं तो दीए से रोशनी भी प्रगट नहीं होगी। बाती के एक सिरे को तेल से बाहर रखा जाता है। तब जाकर दीए को प्रज्ज्वलित किया जा सकता है, और उससे रोशनी प्राप्त किया जा सकता है। यह जो मन है दीए की बाती के सदृश है। दीए की भांति यह शरीर भी मिट्टी से बना है। यह जो शरीर है भौतिक तत्त्वों से निर्मित है। और इस शरीर का पोषण भी जरूरी है, इसके लिए मन में आकांक्षाओं का होना भी जरूरी है। लेकिन मन रुपी बाती अगर पूर्णतः आकांक्षाओं में डुब जाए, तो यह प्रज्वलित नहीं हो सकता। लौकिकता में रहकर भी अलौकिक को पाने की आकांक्षा का मन में होना जरूरी है। यह जो आकांक्षा है, अपने प्रबल स्वरूप में ज्ञान रूपी चिंगारी को उत्पन्न करती है। ज्ञान रूपी चिंगारी से जब मन रुपी बाती प्रज्वलित होती है, तो मन में व्याप्त अंधकार मिट जाता है। यह जो दीपावली है, सांसारिक होते हुए भी आध्यात्मिक है।