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एकला चलो रे — Ekla Chalo Re

यदि तोर डाक सुने केऊ ना आसे तोबे एकला चलो रे !

इस कालजयी, मनोरम गीत ‘एकला चलो रे’ का आशय है, कि जीवन पथ पर आगे बढ़ने के लिए किसी का साथ ना मिले तब भी आगे बढ़ते रहना है। अपने मंजिल की ओर हर किसी को हरेक परिस्थितियों से लड़ते हुए, राह में आने वाले हरेक कठिनाइयों से जूझते हुए अकेला आगे चलते हुए रहना है। मन के कलेश के विरुद्ध, शारिरीक व्यथा के विरुद्ध, सामाजिक ग्लानि के विरुद्ध, किसी भी परिस्थिति में कठिनाइयों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करना है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित यह प्रेरणा से ओतप्रोत गीत जन साधारण को संघर्षशील होने को प्रेरित करता है। गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्ला साहित्य को एक नई दिशा दी है। उन्होंने बांग्ला साहित्य के जरिए मानवीय मूल्यों एवं सांस्कृतिक चेतना को विकसित करने का सार्थक पहल किया है। उनकी अप्रतिम रचना ‘गीतांजलि’ के लिए उन्हें सन 1913 ई° में साहित्य का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

गुरुदेव के विचार भावपूर्ण और तर्कसंगत हुवा करते थे, उनकी कविताओं का आशय को समझ पाना सरल नहीं है। लेकिन अगर ध्यानपूर्वक अध्ययन किया जाय, तो जीवन को सरल और सकारात्मक बनाना आसान हो जाता है। प्रस्तुत लेख अपने समझ के अनुसार उनके इस प्रेरणादायक गीत के आशय को पाठकों के समक्ष रखने का प्रयास भर है।

यदि केऊ कथा ना कोय! ओरे ओरे ओ अभागा, केऊ कथा ना कोय। सबाय थाके मुंह फिराये, सबाय कोरे भोय। तबे परान खुले ओ, तुई मुख फूटे तोर मोनेर कथा एकला बोलो रे!यदि तोर डाक सुने केऊ ना आसे तोबे एकला चलो रे !

यदि सबाय फिरे जाय! ओरे ओरे ओ अभागा सबाय फिरे जाय। यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे ना जाय। तबे पथेर कांटा ओ, तुई रक्तमांजा चरण तले एकल दलो रे!

यदि आलो ना धरे! ओरे ओरे ओ अभागा आलो ना धरे। यदि झड़ बादले आंधार राते दुवार देय धरे। तबे वज्रानले आपुन बुकेर पांजरा जालिये निजे एकला जलो रे!

गुरुदेव के इस गीत का सरल अनुवाद यह है, कि जब आपसे बात करने से सब मना कर दें, आपको देखकर मुंह छिपाने लगें, लोग आपसे भय करने लगें, फिर भी आपको विचलित नहीं होना है। ऐसी परिस्थिति में भी गुरूदेव ने कहा है; अपने मन के भावों को, मन के विचारों को  दिल खोलकर, जोर लगाकर मुक्तकंठ से अकेला बोलो रे। यदि गहन पथ पर चलते समय सब साथ छोड़ दें, राह चलते हुए पैरों में कांटे चुभे, कोई गौर ना करे, तब भी पथ के कांटो को तू लहुलुहान पैरों तले अकेला दलो रे। अगर रोशनी न हो, बादलों से घिरी अंधेरी रात में सब दरवाजा बंद हों, तो बज्रशिखा से तुम हृदय पंजर जलाकर अकेला जलो रे। यदि तुम्हारे पुकारने से कोई आवाज ना दे तब तब भी तुम अकेला चलो रे। एकला चलो रे!

सफर भी आपका और इसे तय करने का संकल्प भी आपका !

जीवन में आपने जो लक्ष्य तय किया है, उसकी प्राप्ती यूं हीं नहीं हो सकता। आसानी से किसी को मंजिल नहीं मिलती। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी जो संघर्ष करते हैं, मंजिल उन्हीं को मिलती है। राह में चलते वक्त कड़ी धुप को सहना पड़ता है। और इस कड़ी धुप से लोग बचना चाहते हैं। छांव की तलाश करने वालों को छांव भी मिल जाता है। बहुतेरे छांव में ठहर कर गहरी नींद में सो जाते हैं। ऐसे में मंजिल तक कैसे पहुंचा जा सकता है। पश्चाताप की अग्नि में वही जला करते हैं, जो सफल नहीं होते हैं। जिन्हें लक्ष्य की प्राप्ति होती है, वे कभी पश्चाताप नहीं करते। जिन्दगी एक सफर है और लक्ष्य तक जाना इसका ध्येय है। विना कठिन परिश्रम किये कुछ भी पाना असंभव है। परिश्रम के अलावा कोई और मार्ग नहीं है।

👉 पल दो पल ..! Life is a moment ..!

चलते रहो; चलने का नाम जिन्दगी है !

जीवन के सफर में उतार-चढ़ाव आते रहते है।  जिन्दगी के सफर में ऐसे मोड़ भी आते हैं, जो पथिक को विचलित कर देते है। अगर ऐसी विषम परिस्थिति से आपको गुजरना पड़े, तो शान्त भाव से इस गीत को सुनने से, इस पर चिंतन करने से आप में एक नई उर्जा का संचार हो जायेगा। जीवन है तो संघर्ष है। जीवन में विपरीतताओं का सामना पुरे धैर्य के साथ डटकर किजिए। सारे विघ्न बाधाओं का सामना करने के लिए खुद पर भरोसा बनाए रखिए। 

👉 मुसाफिर हूं मैं : traveller of Life

चलते रहने का नाम ही जिंदगी है। कुछ पल अगर ठहरना पड़े तो बीते हुवे पल से सीखना है, अनुभव प्राप्त करना है। लेकिन हार मान कर कदम को किसी भी परिस्थिति में पीछे नहीं करना है। जिन्दगी के किसी भी मोड़ पर रुक जाने का मतलब कामयाबी के उम्मीद को छोड़ देना है। हर हाल में कदम कदम आगे की ओर बढ़ाते चलो, यही कामयाबी का मूलमंत्र है। यह जीवन आपका है, यह सफर भी आपका है और इसे तय भी आपको ही करना है। तो फिर मंजिल तक पहुंचने का निर्णय भी आपका ही होना चाहिए। सबकुछ समझ के स्तर पर निर्भर है।

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