क्रोध एक शक्ति है।
क्रोध का होना स्वाभाविक है, कोई मनुष्य ऐसा नहीं, जिसके अन्दर यह ना हो। अगर क्रोध ना हो तो आदमी नपुंसक हो जायेगा। जरूरत है अपने क्रोध को जानने की, परन्तु क्या आप अपने इसे जान.पाते हैं ? बिल्कुल नहीं जान पाते, क्योंकि जब आप क्रोध में होते हैं तो पागल हो जाते हैं। उस वक्त आप अपने आप में नहीं होते और जब अपने में लौटते हैं, तो क्रोध जा चूका होता है। तब तक तो नुकसान हो चुका होता है और आपके पास पछताने के अलावा कोई उपाय नहीं होता।
क्रोधी का जीवन शक्ति का दुरुपयोग है। आप से जब भी क्रोधवश किसी का नुकसान होता है, बाद में पछतावा होता है और कहते हो, ये मैंने नहीं किया। मतलब साफ है यह आपके नियंत्रण में नहीं है। क्रोध पर नियंत्रण आवश्यक है। हर किसी को अपने क्रोध को नियंत्रित करना सीखना होगा।
क्रोध पर कुछ अनमोल वचन :
“क्रोध मुर्खों के हृदय में ही बसता है,”_अल्बर्ट आइंस्टीन
“क्रोध में आदमी अपने मन की बात नहीं करता, वह केवल दुसरे का दिल दुखाना चाहता है।”_ मुंशी प्रेमचंद
“तुम अपने क्रोध के लिए दंड नहीं पावोगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा दंड पावोगे।” _महात्मा बुद्ध
“मूर्ख मनुष्य क्रोध को जोर-शोर से प्रकट करता है, किंतु बुद्धिमान शांति से उसे वश में करता है। ” ~ बाइबिल
“क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है, मूढ़ता से स्मृति भ्रांत हो जाती है, स्मृति भ्रांत हो जाने से बुद्धि का नाश हो जाता है और बुद्धि नष्ट होने पर प्राणी स्वयं नष्ट हो जाता है।” ~ भगवान कृष्ण
क्रोध के एक कारण है ईर्ष्या :
ईर्ष्या एक भावना है, यह असुरक्षा की भावना के कारण पनपती है। यह किसी को अधिक सुखी-संपन्न देखकर मन में होने वाला कष्ट है। ईर्ष्या एक मान्सिक रोग है। ईर्ष्या की भावना मन में आक्रोश उत्पन्न करता है। अगर यह भावना प्रबल हो जाय तो विनाशकारी हो सकता है।
क्रोध के तरह ही ईर्ष्या हमारे नियंत्रण में नहीं होता। परन्तु यह मनुष्य के स्वभाव में नहीं है। मनुष्य का जीवन तो भीतर से आनंद से भरा हुआ है, फिर उसके भीतर ईर्ष्या कैसे हो सकती है। जब कोई असंतुष्ट होता है तभी उसके अन्दर ईर्ष्या जन्म लेती है। साधारण व्यक्ति अपना दुख तो किसी तरह बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन वो दुसरों का सुख कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।
ईर्ष्या पर उपयोगी विचार !
जो ईर्ष्या रहित है वो नित्य दुखी नहीं रहता। __कल्हण
ईर्ष्या की सबसे अच्छी दवा है आशा। __रामचन्द्र शुक्ल
बुद्धिहीन लोग बुद्धिमानों से ईर्ष्या करते हैं। __चाणक्य
ईर्ष्या विवेक की विरोधी है। __सोमदेव भट्ट
अगर तुम्हारे दिल में ईर्ष्या का ज्वालामुखी धधक रहा हो, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो। __खलील जिब्रान
क्रोधित का एक कारण है असंतोष भी !
असंतोष जहां है वहां वेसब्री है। असंतोष धैर्य की विपन्नता है। जहां असंतोष है वहां सुख नहीं मिलता, वहां अप्रसन्नता का भाव है। जीवन में प्रसन्नता का अभाव हो जाय तो चलना मुश्किल है। प्रसन्नता का होना जीवन के लिए संजीवनी की तरह है। असंतोष से ईर्ष्या, जलन, वैमनस्यता उत्पन्न होता है। इन भावनाओं के प्रभाव में मनुष्य क्रोध के अग्नि में जलता रहता है।
असंतोष पर जानकारों के कथन !
बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो उन चीजों के लिए परेशान नहीं रहता जो उसके पास नहीं है। वह उन चीजों से खुश रहता है जो उसके पास है। __Epictetus
जो हमें पसंद है अगर वह हमारे पास नहीं है तो उसे पसंद किजिए जो उपलब्ध है। __French proverb
जो आपके पास नहीं है उसकी इच्छा करके जो आपके पास है उसे बरबाद मत किजिए। __Ann P. Shares
मैं हर अच्छी चीज से संतुष्ट हो जाता हूं। __Winston Churchill
क्रोध पर नियंत्रण !
अब सवाल यह उठता है, कि इस क्रोध की अग्नि से हम अपनी रक्षा कैसे करें ? किसी भी शक्ति का दमन करने का परिणाम खतरनाक होता है। हम गुस्सा से लड़कर जीत नहीं सकते। हाँ जब गुस्सा आवे तो हम अपना ध्यान को किसी दुसरे कार्य में लगा सकते हैं। जब गुस्सा आवे तुरन्त वहाँ से हट जायें। दो चार ग्लास पानी पीयें, संगीत सूने, अपने घर के साफ सफाई में लग जायें। कुछ ना कुछ अलग करें ताकि आपका ध्यान दुसरी ओर चला जाय। कुछ देर बाद आप शांत हो जायेंगे, आपके अन्दर का ताकत जो क्रोध के कारण उत्पन्न हुवा था कहीं और लग जायगा। इन उपायों द्वारा क्रोध से बचा जा सकता है, परन्तु यह स्थायी समाधान नहीं है।
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क्रोध का रूपांतरण :
स्थायी समाधान के लिए हमें अपने अन्दर के क्रोध का रूपांतरण सकारात्मक ऊर्जा में करना सीखना होगा। अगर हम ऐसा कर पाएं, तो इस ऊर्जा का सदुपयोग करना सीख जाएंगे और हमारा जीवन सार्थक हो जायेगा। क्रोध को दमन से नहीं रूपान्तरण से , लड़कर नहीं जानकर जीता जा सकता है। जब क्रोध हो, तब ध्यान का क्षण समझें। आँख बन्द कर लें। कौन सी ऊर्जा आपके भीतर इतना धक्का दे रही है कि आप पागल हुवे जा रहे है ? ठहर जाए और ध्यान करें उस पर। धीरे धीरे प्रयास करते रहने से आप इससे मुक्त हो सकते हैं।
परन्तु यह प्रक्रिया थोड़ा बारीक है और कठिन भी। ऐसा करने से पहले आप अपने अन्तर्मन को शुद्ध करने की आवश्यकता पड़ेगी। जब तक आप ऐसा नहीं कर पाते हैं, आप ध्यान की अवस्था को प्राप्त नहीं कर सकते। और ध्यान की अवस्था के अभाव में ना आप अपने अन्दर के क्रोध को जान सकते ना वासना को। विना साधन को अपनाये हम साध्य तक नहीं पहुंच सकते। हमें ध्यान की अवस्था को प्राप्त करने के लिए योग को अपनाना होगा।
योग द्वारा क्रोध का रूपांतरण :
शुरुआत में हमें यम और नियम के द्वारा अपने को अनुशासित करना होगा, खुद को अन्दर बाहर दोनो ओर से शुद्ध करना होगा। तत्पश्चात ही हम सफल हो पायेंगे और फिर गुस्सा, वासना, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक ऊर्जा का रूपांतरण सकारात्मक ऊर्जा में कर पायेंगे।
योग सरल नहीं तो कठिन भी नहीं है, पुरे दृढ़निश्चय के साथ अभ्यास के द्वारा इस प्रक्रिया में सफल हुवा जा सकता है। खास कर आज के आपाधापी के दौर में योग हमारे लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकता है। यम-नियम से सम्बन्धित चर्चा बाद में विस्तार से करूंगा। अगर यम-नियम के संबंध में स्वयं जानने को उत्सुक हैं तो स्वामी विवेकानंद द्वारा लिखित पुस्तक “राजयोग” अवश्य पढें। राजयोग क्या है जानिए ! Know about Raja Yoga! 👈
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