युवाशक्ति किसी भी राष्ट्र और समाज का रीढ़ होता है।
किसी भी राज्य, राष्ट्र और समाज के निर्माण, सुधार अथवा उत्थान में युवाओं का अहम् योगदान होता है। युवाशक्ति किसी भी राष्ट्र और समाज का वर्तमान होता है। युवाशक्ति में देश व समाज को शिखर पर ले जाने की क्षमता होती है। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्त्वाकांक्षाओं से भरे हुवे होते हैं। परन्तु युवाओं में उच्च महत्त्वाकांक्षाओं के साथ साथ उच्च नैतिकता एवम् दृढ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है।
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने युवावस्था पर कहा है “आयु सोचती है और जवानी करती है”।
महादेवी वर्मा के शब्दों में “बलवान राष्ट्र वही होता है जिसकी तरुणाई सबल होती है , जिसमें मृत्यु को वरण करने की क्षमता होती है, जिसमें भविष्य के सपने होते हैं, और कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है, वही तरुणाई है”।
युवाओं में सकारात्मक सोच का होना जरूरी है!
आज समय बदल चूका है। समय के साथ साथ आज युवाओं के सोच बदल रहे हैं, अब वह टेक्नोफ्रेंडली हो गया है। आज का युवा नई-नई तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है। नये नये तरीके के सहारे अपने जीवन स्तरको बेहतर बनाने में लगा हुआ है। वह बड़े सपने देख रहा है, उनकी इच्छाएं गहरी हैं।
किन्तु सम्पूर्ण युवाओं के साथ ऐसा नहीं है। अधिकांश युवाओं का सोच स्वयं के सुख सुविधाओं तक सीमित होता जा रहा है। आज के समय में युवाओं के सोचने का तरीका आत्मकेंद्रित होता जा रहा है।आज का युवा धीरज खोता जा रहा है। वह किसी कार्य को अतिशीघ्र पुर्ण कर लेना चाहता है। हरेक वस्तु को अतिशीघ्र प्राप्त कर लेना चाहता है। आधुनिकता की चकाचौंध आज के युवाओं को प्रभावित कर रही है। फलस्वरूप अधिकांश युवाओं वो में नकारात्मकता जन्म ले रही है।
“युवा आसानी से धोखा खा जाता है, क्योंकि वह उम्मीद करने में बहुत तेज होता है”
अरस्तु
विवेकानंद ने युवाओें के सम्पुर्ण जीवनचरित्र के निर्माण पर बल दिया है। स्वामीजी ने युवाओं को आह्वान करते हुए कहा था “जो कुछ भी तुम्हें कमजोर बनाता हो, शारिरीक, मानसिक या बौद्धिक उसे जहर की तरह त्याग दो”
युवाओं को व्यवहारिक शिक्षा की जरूरत है।
महान वैज्ञानिक एवम् पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम के शब्दों में “युवा वर्ग को नौकरी खोजने वाले के जगह नौकरी देनेवाला बनने की जरुरत है”।
महात्मा गांधी महात्मा गांधी हमेशा युवाशक्ति को सही दिशा देने की बात किया करते थे। गांधीजी ने युवाओं को ध्यान में रख कर वर्धा शिक्षा योजना की नींव रखी थी। इसे डा. जाकिर हुसैन ने गांधीजी के निर्देश पर तैयार किया था। यह योजना हस्तशिल्प, सात बर्ष तक अनिवार्य शिक्षा एवम् अच्छे लेखन पर आधारित थी। हमने इसे छोड़ दिया पर चीन इसी के आधार पर पुरी दुनिया में अपना योगदान दे रहा है।
शिक्षण कर्तव्य का, कर्म का आनुषंगिक फल है।
मैने बचपन में आचार्य विनोबा भावे का लिखा एक निबंध “जीवन और शिक्षण” पढ़ा था। इस लेख में विद्यार्थी जीवन से यथार्थ के यात्रा को हनुमान कुद की संज्ञा दी गयी है।
आचार्य के शब्दों में; सम्पुर्ण गैर जिम्मेदारी से सम्पुर्ण जिम्मेदारी में कुदना तो एक हनुमान कूद ही हुवी। ऐसी कुद की कोशिश में हाथ पैर टुट जाय तो क्या अचरज ?
उन्होंने कहा है कि, आज की विचित्र शिक्षा पद्धति के कारण जीवन के दो टुकड़े हो जाते हैं। पन्द्रह से बीस तक आदमी जीने के झंझट में ना पड़कर सिर्फ शिक्षा प्राप्त करे! और बाद में शिक्षण को बस्ते में लपेटकर रख, मरने तक जिये। उनका यह मानना था कि व्यवहार में लाभ करने वाले को शिक्षा मिलता ही रहता है।
इसके लिए उदाहरण राम-लक्ष्मण और गुरु विश्वामित्र का लेना चाहिए। यह बताना हो कि राम ने क्या किया तो कहना होगा कि यज्ञ रक्षा की। शिक्षण प्राप्त किया ऐसा नहीं कहा जायगा। पर, शिक्षण उन्हें मिला जो मिलना ही था।
अर्जुन के सामने प्रत्यक्ष कर्तव्य करते हुवे सवाल पैदा हुवा, उसका उत्तर देने के लिए भगवत गीता निर्मित हुवी। इसी का नाम शिक्षा है।
युवाशक्ति वांक्षित है, युवा भविष्य की आशा हैं !
युवाशक्ति पर किसी राष्ट्र या समाज का भविष्य निर्भर करता है! जो कोई भी अपनी जवानी में सीखने पर ध्यान नहीं देता, अपना अतीत खो देता है और भविष्य के लिए मर चुका होता है। इससे स्वयं के साथ-साथ राष्ट्र और समाज का भी नुकसान होता है।
महान दार्शनिक अरस्तु के शब्दों में “युवावस्था में अपनायी गयी अच्छी आदतें सारा अंतर ला देती हैं”
आइंस्टीन के अनुसार “मैं उस एकान्त में रहता हूं जो जवानी में तकलीफ देती है, लेकिन परिपक्वता के दिनों में स्वादिष्ट”
फिल्म तीसरी कशम में एक गीत है, जिसे महान गायक मुकेश ने स्वर दिया है। युवाओं को लापरवाही से बचना चाहिए। युवावस्था कर्म में लगने का सबसे उपयुक्त समय है।
लड़कपन खेल में खोया, जवानी निंद में सोया
बुढापा देख कर रोया, यही किस्सा पुराना है..!
युवाओं को आत्मनिर्भर होना चाहिए!
माहेश्वरी की यह कविता “वीर तुम बढ़े चलो” युवाओं को प्रेरित करने में सार्थक है।
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो चन्द्र से बढ़े चलो
अन्न भुमि में भरा वारि भुमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो… वीर तुम बढ़े चलो… धीर तुम बढ़े चलो
मैथिली शरण गुप्त की कविता “नर हो न निराश करो मन को”‘ से युवाओं को सीख लेनी चाहिए।
करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि “मेंरा विश्वास युवा पीढ़ी में है, आधुनिक पीढ़ी के अन्दर से मेंरे कार्यकर्त्ता बाहर आयेंगे। वे पुरी समस्याओं का हल कर देंगे, शेरों की तरह।” स्वामीजी को उस समय जो उम्मीद थी, वही देश को आज भी है।
अत: युवाओं! सचेत हो जावो। खुद को सकारात्मक बनाए रखने का प्रयास करो। आत्ममंथन करो चाहिए और नकारात्मक विचारों से खुद को दुर करो। । स्वामी विवेकानन्द के इन शब्दों पर विचार करो, इसपर अमल करो, फिर यह जमाना तुम्हारा है!
“उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक तुम लक्ष्य को प्राप्त न कर लो।”
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