आस निरास भई- इस उक्ति का भावार्थ क्या है? जब किसी की आशा पूरी नहीं होती, तो वह निराश हो जाता है। निराशा विपरीत की स्थिति है। हमारी आस पूरी नहीं होती, तो मन व्यथित हो जाता है। यही निराशा की स्थिति है, आशा के विपरीत की स्थिति। सामान्यतः इस उक्ति में जो भाव है, इसमें उलझन की स्थिति है, जो निष्क्रियता को आवाहन देती प्रतीत होती है।
जैसे कि एक व्यक्ति, जो किसी कार्य में असफल हो गया है। उसकी आस पूरी हो नहीं पायी है, उसे लगता है कि उसका कोई काम नहीं हो रहा है। उसका प्रत्येक प्रयास विफल हो रहा है। वह अपने हालात से व्यथित हैं। और वह कुछ समझ नहीं पा रहा है। यह जो स्थिति है, अनिर्णय की, उसे निष्क्रियता की ओर ले जा रही है।
करुं क्या आस निरास भई!
यह जो उक्ति है, आरजू लखनवी के एक गीत की पंक्ति है। सामान्यतः इस उक्ति का आशय यह है कि हमारी मनःस्थिति हमारे कार्यों और उनके परिणामों पर निर्भर है। अगर हम अपने कार्य में सफल होते हैं, तो हमें संतुष्टि का अनुभव होता है। अन्यथा हम असंतुष्ट हो जाते हैं, निरास हो जाते हैं।
व्यथित मन की आहट
अंतर में छुपी बेचैनी बनी
उदासी के बादल छा गए
भर गया दुख की बूंदों से
निराशा में जीवन का ताल।
उलझा मन चिंता की जाल में
भावनाओं के कोपल मुरझा गए
विचारों से सुन हुवे सीने में
परेशानी के बादल छा गए।
आँखों में नींद नहीं,
चेहरे पर मुस्कान नहीं
व्यथित मन की आहट
बेगाना कर गई राहों में।
उपरोक्त पंक्तियां, जो कि स्वरचित हैं, व्यथित मन के भाव को व्यक्त करती हैं। निराशा में मन व्यथित हो जाता है, बैचेनी एवम् चिंता के भाव उभरने लगता है। और हम दुखी हो जाते हैं, इस असमंजस की स्थिति में हम निष्क्रियता की ओर अग्रसर हो जाते हैं।
लेकिन ऐसा क्यों होता है? इस पर विचार जरुरी है। ऐसा होने का मुख्य कारण है कि हम किसी कार्य को अपनी अपेक्षाओं के आधार पर करते हैं। जबकि परिणाम हमारे हाथ में नहीं होता। अत: हमें कामना से रहित होकर काम करना चाहिए। अगर परिणाम अनुकूल मिला तो ठीक, नहीं तो पुनः प्रयास करना चाहिए। इस बात को समझ लेना चाहिए कि परिणाम पर हमारा नियंत्रण नहीं हो सकता।
अब प्रश्न यह है कि अगर कामना ही नहीं हो तो कार्य होगा कैसे? हर कोई अपनी-अपनी इच्छाओं को, जरुरतों को पूरा करने के लिए ही तो कार्य करता है। तो इसका जवाब है कि इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसने रोका है। कोई रोक नहीं है, अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए कार्य करना ही पड़ेगा। परन्तु उस कार्य का परिणाम कर्ता के मापदंड के अनुसार मिले, यह जरूरी नहीं है। इसी बात को समझना जरूरी है।
करुं क्या आस निरास भई – यह सोचना ही गलत है। सोचना यह है कि जो हुवा, जो कुछ भी हो रहा है, वह सब ठीक है। और आगे जो भी होगा, ठीक ही होगा। हमें इस बात को समझना होगा, स्वीकार करना सीखना होगा। कामना रहित होने का आशय कर्म से विमुख होना नहीं है, बल्कि केवल परिणाम के प्रति आसक्त नहीं होना है।
हमें निराश नहीं होना चाहिए। हमें अपने कामों में लगे रहने की जरूरत है। कार्य करने वाले अवश्य ही सफल होते हैं, चाहे देर से ही सही। हो सकता है कि इसके लिए अनेक बार प्रयास करना पड़े। हमें अपने उद्देश्यों के प्रति संकल्पित रहना चाहिए और सफलता के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
दिया बुझे फिर से जल जाए, रात अंधेरी जाए दिन आए।
हम दीपक जलाते हैं रोशनी के लिए। हवा का झोंका अगर उसे बुझा जाए, तो फिर से जलाने पर वह रोशन हो जाता है। हो सकता है कि दिया बार बार बुझे, पर बार बार जलाते रहने से वह रोशन हो ही जाता है। सफलता के विपरीत की अवस्था असफलता है। अगर कार्यों में सफलता न मिले तो निराश नहीं होना चाहिए। निरंतर प्रयास करें तो असफलता को सफलता में परिवर्तित किया जा सकता है। रात आती है, तो अंधेरा छा जाता है। परन्तु यह हमेशा स्मरण रहे कि हर अंधेरी रात के बाद दिन आता है।
हर रात जगाते एक नई आस
हर रोज करते एक नई शुरुआत
नीत नई तरंग से नए भाव से
मन में आस का दीप जलाते है।
निरंतर चलते रहते हैं वो
संघर्ष के नैया पर होकर सवार
मन में आशा का दिया जलाए
और थामे धीरज का पतवार।
ज्ञानियों ने कहा है कि आशा ही जीवन है। उपरोक्त स्वरचित पंक्तियां इसी भाव को व्यक्त करती हैं। मन में आशा का दिया जलाकर रखना महत्वपूर्ण है। जो आशावादी होते हैं, सकारात्मक सोच के साथ जीते हैं। संघर्ष के पथ पर धीरज रखकर बढते हैं। पूरे लगन के साथ परिश्रम करते हैं, और साहस के साथ कठिनाईयों का सामना करते हैं।
करना होगा खुन को पानी, देना होगा हर कुर्बानी। हिम्मत है तो इतना समझ ले, आस बंधेगी नई। कहो ना आस निरास भई।।
गीतकार के कहने का तात्पर्य है कि बिना प्रयास किए कुछ भी हासिल नहीं होता। और प्रयास भी ऐसा, जिसमें अथक परिश्रम हो, लगन और धैर्य समाहित हो। पूर्ण समर्थन का भाव हो, जब जाकर सफलता मिलेगी। इस बात को समझना जरूरी है, और इसके लिए उच्चस्तरीय मनोबल की जरूरत है। समझ के स्तर को उन्नत करने की आवश्यकता है।
हमें काम करते रहना चाहिए और उसके फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। और किसी भी हालत में निराश नहीं होना चाहिए। हमें अपने आपको उत्साहित और सक्रिय बनाए रखना चाहिए। चाहे जीवन में कुछ भी हो रहा हो, हमेशा यह याद रखना चाहिए कि सफलता के लिए निरंतर प्रयास करना होता है। और हमें पूरे लगन के साथ निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए।
इसलिए, हमें अपने कार्यों की प्रकृति को समझकर, सही ढंग से उनको पूरा करना चाहिए। और उन्हें पूरा करने के लिए हमेशा उत्साहित रहना चाहिए। इससे हमें संतुष्टि का अनुभव होगा और हमें अपनी जिंदगी को अधिक सकारात्मक बनाने में मदद मिलेगी।
करुं क्या आस निरास भई – इस पंक्ति को दोहराने का कोई अर्थ नहीं है। यह निष्क्रियता की ओर ले जाएगी। जीवन को व्यर्थ न होने दें। हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? इस पर चिंतन करना जरूरी है। अपने जीवन के उद्देश्य तक पहुंचने के लिए अथक प्रयास करना जरूरी है।
इसलिए ‘करुं क्या आस निरास भई’ और ‘कहो न आस निरास भई’ इन दोनों पंक्तियों के अर्थ पर गहराई से विचार करें। एक चिंता का परिणाम है, और दुसरा चिंतन का। इसलिए कहो न आस निराश भई- निराशा का कोई मतलब नहीं है। आशा ही आपको सफलता के मार्ग की ओर ले जाएगी। इसलिए तो कहा गया है कि आशा ही जीवन है।