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लता मंगेशकर — मेरी आवाज ही मेरी पहचान है

लता मंगेशकर! गीत-संगीत की दुनिया के आसमान का एक चमकता हुआ ध्रुव तारा। स्वर कोकिला, स्वर साम्राज्ञी, जिन्हें लोग श्रद्धा पूर्वक लता दीदी कहकर पुकारते हैं। इस भारत कोकिला की सुरमयी स्वर और सौम्य स्वभाव ने करोड़ों लोगों के मन को मोह लिया है। उनकी जादूई आवाज  से सुशोभित गीतों को समस्त संसार में पसंद किया जाता है। 

आज लता दीदी हमारे बीच सशरीर उपस्थित नहीं है। 6 फरवरी 2022 को उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया। परन्तु अपने जीवन यात्रा के दौरान उन्होंने जो मुकाम हासिल किया, वह अविस्मरणीय रहेगा। भारतरत्न! लता मंगेशकर युगों तक लोगों के मानस पटल पर जीवित रहेंगी‌। 

उनकी जादुई आवाज का जादू पूरी दुनिया में कायम है और सदियों तक रहेगा। उनके आवाज से ही उनकी पहचान है। लता मंगेशकर ऐसा नाम है जिसे लोग कभी भूला नहीं पायेंगे। हसरत जयपुरी द्वारा लिखित एक गीत, जो साल 1969 में फिल्म ‘पगला कही़ का’ के लिए लता मंगेशकर ने गायी थी। पर अब सुनने पर यही लगता है, मानो अपने करोड़ों चाहनेवालों से कह रही हों! तुम मुझे यूं भुला न पाओगे …

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे
जब कभी भी सुनोगे गीत मेंरे
संग संग तुम भी गुनगुनावोगे
हां तो मुझे यूं भुला न पाओगे ..!

सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्राप्त पार्श्वगायिका लता का जन्म उज्जैन में 28 सितंबर 1929 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुवा। नैसर्गिक प्रतिभा की धनी लता को बालपन से ही गायन में रूचि थी। गीत-संगीत और कला का वातावरण उन्हें विरासत में मिला था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर स्वयं एक गायक और ऱंगमंच के कलाकार थे। परन्तु इस मुकाम तक पहुंचने का रास्ता इतना आसान भी नहीं रहा। अन्य महान विभूतियों की भांति उन्हें भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

पहली बार लता को फिल्म ‘किर्ती हलाल’ में गाने का मौका मिला। लेकिन लता फिल्मों के लिए गायन करें, उनके पिता को यह पसंद न था। अतः इस गाने को फिल्म से निकाल दिया गया। लेकिन उनके प्रतिभा से उस फिल्म के निर्देशक बसंत जोगलेकर प्रभावित हुवे। बाद के दिनों में लता को इनका बहुत सहयोग मिला। वह महज तेरह साल की थी, जब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। उनके आकस्मिक निधन से अचानक ही पुरे परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ पड़ी। बालपन के उम्र  मे ही छोटे भाई-बहनों का लालन-पालन करना कोई आसान काम नहीं होता। इस हेतु अर्थोपार्जन के लिए उन्हें फिल्मों का रूख करना पड़ा।

उन्होंने कुछ हिन्दी और मराठी फिल्मों में अभिनय भी किया। साल 1942 में फिल्म ‘पाहिली मंगलागौर’ में सर्व प्रथम उन्हें अभिनय करने का मौका मिला। बाद में उन्हें कई और फिल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘छत्रपति शिवाजी’ उनमें से एक है।

संघर्ष के दिनों में ऐसा भी पल लता के जीवन में आया, जो सामान्य व्यक्ति को हताश कर जाता है। उस समय के दिग्गज फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी ने यह कहते हुए उन्हें अस्वीकृत कर दिया था कि उनकी आवाज बहुत पतली है। इन परिस्थितियों में बसंत जोगलेकर का साथ उन्हें मिला। वह पूर्व में ही उनके प्रतिभा को पहचान चूके थे। 1947 में बसंत जोगलेकर ने फिल्म ‘आपकी सेवा’ में लता को गाने का मौका दिया। इस फिल्म के गानों से लता चर्चा में आ गई। इसी दौरान वह हैदर अली के संपर्क में आयी। फिर बसंत जोगलेकर और हैदर अली का साथ पाकर लता निखरते चली गई। 

लता मंगेशकर के अनुसार हैदर अली ही सही मायने में उनके गॉडफादर थे। 1948 में फिल्म ‘मजबुर’ का गीत ‘दिल मेंरा तोड़ा, कहीं का न छोड़ा’ उनका पहला हिट माना जाता है। फिर 1949 में लता को एक ऐसा मौका मिला, जो उन्हें सफलता की ओर ले गया। फिल्म ‘महल’ का एक गीत ‘आयेगा आनेवाला’ सुपरहिट हो गया। इस गीत को उन्होंने उस समय की सबसे सुंदर और चर्चित अभिनेत्री मधुबाला के लिए गाया था। इसके बाद लता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

साल 1950 से 1970 का समय हिन्दी फिल्मों का स्वर्णिम काल माना जाता है। एक से बढ़कर एक गायक, गीतकार, संगीतकार और फिल्मकार उस समय सिनेजगत को शोभित कर रहे थे। सबने मिलकर अच्छी-अच्छी फिल्में बनायी और मधुर गीत-संगीत की रचना की। उस समय के कई बेहतरीन गीत लता के सुरों में सजकर कर्णप्रिय हो गये। स्वर साम्राज्ञी लता का माधुर्य लोगों के मानस पटल पर ऐसा छाया कि देखते ही देखते वह सबसे प्रतिष्ठित पार्श्वगायिका बन गयी। 

लता अपने संगीत के निराले सफर में तीस से अधिक भाषाओं में तीस हजार से अधिक गाने गा चुकी हैं। जो कि एक विश्व रिकॉर्ड है, अब तक उनसे अधिक गीत किसी ने नहीं गाया। लता का स्वर पाकर हर गीत कर्णप्रिय हो जाता था। चाहे वह सामान्य हो अथवा राग आधारित हो। रोमांटिक हो, देशभक्ति की भावना से प्रेरित हो अथवा भजन। लता हर गीत को अपने माधुर्य से विशेष बना देती थी। 

लगभग सात दशक तक भारतीय सिनेजगत में लता का ही जलवा रहा। अपने-अपने समय के चर्चित अभिनेत्री मधुबाला से लेकर माधुरी दीक्षित तक को उन्होंने अपनी आवाज दी। 1980 के दशक से उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया था। वे केवल चूनिंदा गीतों को ही गाती थी। सिनेजगत के लगभग सभी पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया। बाद में उन्होंने किसी भी तरह का पुरस्कार यह कहकर लेने से मना कर दिया कि ये पुरस्कार नवोदित कलाकारों को दिया जाय। 

एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है
जिन्दगी और कुछ भी नहीं, तेरी मे़री कहानी है।
कुछ पाकर खोना है, कुछ खोकर पाना है
जीवन का मतलब तो् आना और जाना है
दो पल के जीवन में एक उम्र चुरानी है ..!

इस गीत के बोल, जिसे संतोष आनंद ने लिखा है। लता ने फिल्म ‘शोर’ के लिए साल 1972 में इसे अपनी आवाज दी। आज इस गीत को सुनने से ऐसा लगता है कि यह गीत उनकी ही कहानी बयां कर रही है। अपने सौम्य स्वभाव के कारण उन्हें सबका प्यार मिला। कुछ पाने के लिए उन्हें भी कुछ खोना पड़ा। लेकिन अपने जीवन काल में वास्तव में उन्होंने एक अविस्मरणीय कहानी लिख डाली।

लता मंगेशकर द्वारा गायी गीतों में सबकुछ है। रोमांस भी है और खुशी भी है, प्रेम भी है और सौहार्द भी। संघर्ष भी है, दर्द भी है और सकारात्मकता भी । भक्ति भी है और वैराग्य भी! उनके गीतों में अद्भुत जीवन-दर्शन छिपा हुवा है। जरूरत है, उन गीतों को गौर से सुनने और समझने की! प्रस्तुत है ; उनके गीत रूपी फूलों का एक गुलदस्ता !

लग जा गले कि फिर ये हॅंसी रात हो न हो
शायद इस जनम में मुलाकात हो न हो
लग जा गले …

फिल्म – वो कौन थी

मैं न रहूंगी लेकिन गूंजेंगे आहें मेंरे गांव में
अब न खिलेगी सरसों अब न लगेगी मेहंदी पॉंव में
अब न उगेंगे चांद सितारे
दो दिल टुटे दो दिल हारे …

_(फिल्म – हीर रॉंझा)

मेंरी सांसों में तू ही समाया
मेंरा जीवन तो है तेरा साया
तेरी पुजा करूं मैं तो हरदम
ये है तेरी करम कभी खुशी कभी गम
ना जुदा होंगे हम कभी खुशी कभी ग़म

_ (फिल्म- कभी खुशी कभी ग़म)

दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा।
गिर गिर के मुसीबत में सम्हलते ही रहेंगे
जल जायें मगर आग में चलते ही रहेंगे।
गम जिसने दिये हैं, वही गम दुर करेगा
दुनिया में …

_ (फिल्म – मदर इंडिया)

तेरे सर पे दुवाओं के साये रहे
मंजिलें पथ पर पलके बिछाए रहे
तू निराशा में आशा के दीपक जला
हो हिमालय से ऊंचा तेरा हौसला
ओ राही ओ राही …

_(फिल्म- हिमालय से ऊंचा)

ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आये तो दीन दुखी सबको गले से लगाते चलो
सारे जग के कण कण में है दिव्य अमर इक आत्मा
एक ब्रह्म है एक सत्य है एक ही है परमात्मा
प्राणों से प्राण मिलाते चलो! प्रेम की गंगा …

_ (फिल्म-संत ज्ञानेश्वर)

ऐ मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चलें और बदी से टलें, ताकि हंसते हुए निकले दम
ये अंधेरा घना छा रहा, तेरा इंसान घबरा रहा
हो रहा बेखबर, कुछ न आये नजर, सुख का सुरज छिपा जा रहा
है तेरी रोशनी में ये दम, जो अमावस को कर दे पुनम
नेकी पर चलें …

_ (फिल्म-दो आंखे बारह हाथ)

अल्लाह तेरो नाम ईश्वर तेरो नाम
सबको सम्मति दे भगवान!
इस धरती का रूप न उजड़े, प्यार की ठंढी धुप न उजड़े
सबको मिले दाता, सबको मिले सुख का
वरदान
सबको सम्मति दे भगवान! अल्लाह तेरो
नाम ईश्वर तेरो नाम!

_ (फिल्म – हम दोनों)

ईश्वर सत्य है सत्य ही शिव है शिव ही सुन्दर है
सत्यम शिवम सुंदरम…
एक सूर्य है एक गगन है एक ही धरती माता
दया करो प्रभु एक बने हम सबका एक से नाता
राधा मोहन शरणं! सत्यम शिवम सुंदरम …

लता के स्वर में कुछ ऐसे गीत भी है, जो उनके चाहने वालों को दिलासा देती है। आना और जाना यानि जन्म और मृत्यु के बीच का सफर ही तो जीवन है। लेकिन उनके जैसी शख्सियत तो हमेशा अपनी उपस्थिति दर्ज कराती ही रहेंगी।

मैं अगर बिछड़ भी जाऊं, कभी मेंरा गम न करना
मेंरा प्यार याद करके कभी आंखें नम न करना
तू जो मुड़के देख लेगा, मेंरा साया साथ होगा
तू जहां जहां चलेगा मेंरा साया साथ होगा।

लता मंगेशकर हमेशा नंगे पॉंव गाना गाती थी। गायन उनके लिए वन्दन सदृश कर्म था। ‘कर्म ही पूजा है’ इस तथ्य को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ किया। उन्हें मॉं सरस्वती का अवतार माना जाता है। यह भी एक अजीब संयोग है!बसंत पंचमी को धरा पर मॉं सरस्वती का आवाहन एवम् पूजन किया जाता है। उसके दुसरे दिन विदाई का विधान है। ठीक उसी दिन लता दीदी का देहावसान हुवा, मानो मॉं स्वयं उन्हें आलिंगन कर अपने साथ ले गयी हो।

यह जो जीवन है, इसकी दास्तां ही कुछ अजीब है। जिसे आप चाहो, वह कहीं दुर चला जाय तो दुख तो होता ही है। लता दीदी आप ही के गीत की पंक्तियों से आपको श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।

अजीब दास्तां है ये , कहां शुरू कहां खतम
ये मंजिलें हैं कौन सी , न वो समझ सके न हम
मुबारकें तुम्हें कि तुम किसी के नूर हो गये
किसी के इतने पास हो कि सबसे दुर हो गये
अजीब दास्तां है …

आज जब इस गीत की ये पंक्तियां सुनाई पड़ती है, तो ऐसा लगता है, मानो दुर कहीं अंतरिक्ष में लता दीदी का स्वर गूंज रहा है! और वो कह रही हों …

नाम गुम जायेगा, चेहरा भी बदल जायेगा
मेंरी आवाज ही पहचान है! गर याद रहे ..
!

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