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विचारों का प्रवाह ..!

‘विचारों का प्रवाह’ का आशय क्या है? इस पर विचार की जरूरत है। विचार का संबंध मनोभाव से है।
यह भाव भी है, और इसमें क्रिया भी है। विचार सोचने की क्रिया है। यह किसी विषय पर केवल सोचना ही नहीं, सोचकर निर्णय लेने की भी क्रिया है। प्रवाह का आशय है बहाव। प्रवाह में गतिशीलता है, यह बहने की क्रिया है। ‘विचार’ सोचने की क्रिया है, और ‘प्रवाह में बहने की क्रिया है। इस प्रकार ‘विचारों का प्रवाह’ का शाब्दिक आशय विचारों का प्रवाहित होने से है। मन में विचारों का प्रवाह होता रहता है। विचार आते हैं और जाते हैं, वे आते जाते रहते हैं।

विचारों का संबंध मन की भावनाओं से हैं। मन में इच्छा निहीत होती है, जिसके अनेक स्वरूप होते हैं। और विभिन्न प्रकार की इच्छाओं को पुरी करने की लालसा भी होती है। ये जो इच्छाएं होती हैं, बलवती होती हैं। और इच्छाओं को पुरी करने की जो भाव है, और अधिक प्रबल होता है। मन अपने इच्छाओं की पुर्ति करना चाहता है, यह अपने आप में एक विचार है। और इच्छाओं की पुर्ति के लिए सोचना शुरू करता है, तो विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न होने लगते हैं।

कुछ विचार ऐसे होते हैं जो उत्पन्न होते हैं और मिट जाते हैं। कुछ विचार परिलक्षित हो जाते हैं, अर्थात् कार्य में परिणत हो जाते हैं। कार्य में सफलता मिलने पर मन में खुशी का भाव उत्पन्न होता है। यह जो भाव है, नए विचारों को उत्पन्न करता है। और असफलता से मन निराश हो जाता है। निराशा का भाव अलग तरह के विचारों का उद्भव होता है। और किसी इच्छा की पुर्ति अगर हो भी जाए, तो वह दुसरे को पुरा करने में लग जाता है। मन की इच्छाएं कभी मिटती नहीं हैं। इसलिए विचारों का प्रवाह भी होता रहता है।

मन में इच्छा भी है, इच्छाओं की पुर्ति की लालसा भी है। इच्छाओं का एक रुप वासना भी है। भौतिक वस्तुओं को पाने की इच्छा तो है ही। महत्व पाने की इच्छा भी है, और वासना की पुर्ति की इच्छा भी है। इस इच्छाधारी के पास जो एक त्तत्व है, वह है उसकी बुद्धि। बुद्धि के अनुसार ही विचारों का प्रवाह होता है। और मन की जो बुद्धि है, मन के अनुसार ही विचार, व्यवहार और कार्य करती है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि विचारों का प्रवाह मन का खेल है।

अब जरा सोचिए कि यह जो बुद्धि है मन के पास। यह मन का सृजन है या मन बुद्धि को कहीं से ग्रहण करता है। बुद्धि तो मन में होता ही है, जन्म के साथ ही यह मन में निहित होता है। परन्तु यह जो बुद्धि है, इसमें सरलता होती है। जन्म लेते के साथ स्तन पान करने की बुद्धि आ जाती है। मनुष्य ही नहीं, सभी प्राणियों में जन्म के साथ ही कुछ ऐसे लक्षण होते है, जो नैसर्गिक होते हैं। लेकिन इसे मन की बुद्धि कहना सही नहीं होगा। बुद्धि तो बाहर से ग्राह्य होती है। बाहरी दुनिया के सम्पर्क से, संसर्ग से बुद्धि निर्मित होती है। लेकिन यह कार्य मन के अनुसार ही करती है।

मन की जो चाहत है, मन को जो रुचि होती है, बुद्धि उस दिशा में कार्य करती है। मन की दशा के अनुसार ही सोच की दिशा का निर्धारण होता है। और सोचने की क्रिया जिस विषय के लिए होता है, विचारों का प्रवाह उसी विषय पर होने लगता है।

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