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नेकी कर दरिया में डाल —

नेकी कर दरिया में डाल’ यह एक बहुप्रचलित मुहावरा है। जिसका सीधा और सरल अर्थ है, दुसरों की नेकी करो और भूल जाओ। भलाई, उपकार आदि नेकी का समानार्थी शब्द हैं। इसका विपरीत है बदी! बद यानि बुरा, जो अच्छा नहीं है। बद से बना है बदी, बुराई, अपकार आदि इसके समानार्थी शब्द हैं। किसी के प्रति बुरा सोचना, किसी का अपकार करना सर्वथा अनुचित है। लेकिन भलाई भी करनी हो तो प्रयत्न यह होना चाहिए कि भला बनकर करें। 

सामान्यतः ‘नेकी कर दरिया में डाल’ का अर्थ है दुसरों की भलाई नेक मंशा के साथ करना। और बदले में उनसे किसी पकार की अपेक्षा नहीं करना। मंशा केवल देने की हो, बदले में कुछ लेने की नहीं, इसी को कहा गया है भूल जाना। गहन अर्थों में यह उक्ति हमें यह सीख देती है कि किसी की सहायता करो, परन्तु इसे मन पर हावी मत होने दो।

परन्तु वास्तव में ‘नेकी कर दरिया में डाल’ का आशय क्या है? इसपर कितने लोग मंथन करते हैं! ‘नेकी कर दरिया में डाल’ में जीवन का उद्देश्य छुपा हुवा है। इस उक्ति का आशय परोपकार से है। ‘नेकी कर’ का अर्थ है, उपकार करो और ‘दरिया में डाल’ का अर्थ है, अहंकार मत करो। मन में यह भाव नहीं आने दो कि हमने कुछ अच्छा किया है। 

परन्तु अधिकतर लोग भलाई तो करते हैं! लेकिन इसके पीछे कोई न कोई मतलब छिपा होता है। मान-सम्मान के लिए, ऐश्र्वर्य के लिए करते हैं। या फिर किसी अन्य स्वार्थ की पूर्ति के लिए करते हैं। फलस्वरूप दुसरों पर किये गये हर उपकार को भूल नहीं पाते हैं। 

एक महत्वपूर्ण प्रश्न है! और यह जटिल प्रश्न है; ‘ईश्वर या ऐश्वर्य’ इन दोनों में क्या चाहिए? ऐसी मान्यता है कि परोपकार से पुण्य प्राप्त होता है। और पुण्य के मार्ग में चलने से ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। यानि पूण्य से परमात्मा की प्राप्ति होती है। शायद यही वजह है कि पुण्य प्राप्त करने की चाह कुछ लोगों में होती है। और लोग चलते-चलते कुछ अच्छे कार्य कर लेते हैं।

दुसरों को निस्वार्थ और निष्काम भाव से जो उपकार किया जाता है, वही परोपकार है। और वास्तविक रुप में किया गया परोपकार ही पूण्य है। ऐसे ही कर्मों के परिणाम जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त करते हैं। अर्थात् ऐसे ही निष्काम कर्म का उद्देश्य होता है ईश्वर की प्राप्ति!!

एक रोचक लघुकथा है! एक सुफी संत शिवली एक दिन लंबी सी जलती हुवी लकड़ी लेकर दौड़े जा रहे थे। लोगों ने पूछा – ऐसा किसलिए? उन्होंने कहा – जन्नत में आग लगाने जा रहा हूं!! जिसमें लोग खुदा की इबादत करने नहीं, ऐशो आराम के लालच में जाने के लिए चोर दरवाजा तलाश करते हैं। कर्तव्यों को भूल जाते हैं! स्वच्छंद आचरण करते हैं।

तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहि न पान।

कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।।

कवि रहीम के कहने का तात्पर्य है कि जिस प्रकार पेड़ में फल लगते हैं, लेकिन दुसरों के लिए! पेड़ कभी स्वयं इसे नहीं खाते। सरोवर जल का संचय तो करते हैं, लेकिन स्वयं उसे नहीं पीते। उसी प्रकार नेक व्यक्ति दुसरों की नेकी के लिए ही संपति अर्जित करते हैं और संचित करते हैं।

प्रकृति भी हमें परोपकार की सीख देती है। प्रकृति के प्रत्येक त्तत्व में हमें यह दिखता है। बस देखने की दृष्टि चाहिए! नदियों पर दृष्टि डालें तो यह दिखाई देगा कि नदियां परहित में निरंतर बहती रहती हैं। प्राणियों को ऊर्जा मिले, इसके लिए सुरत प्रत्येक दिन उगता है। प्रकृति के नियम के अनुसार चन्द्रमा समस्त संसार को शीतलता प्रदान करती है। समन्दर बादल बन समस्त धरा को सींचता है।

नेकी एक उत्तम कार्य है। नेक कार्यों से हृदय को प्रसन्नता प्राप्त होती है। भीतर के ऊर्जा का विकास होता है। उत्तम कार्य करनेवाले व्यक्ति को जीवन में वास्तविक सुख प्राप्त होता है। विचारकों, ज्ञानियों ने भी इस विषय पर अपनी बातें रखीं हैं। 

शेख शादी का कहना है कि यदि दुश्मन को दोस्त बनाना चाहते हैं तो अपकार का जबाब उपकार से दें। परन्तु उन्होंने यह भी कहा है कि दुष्ट व्यक्ति को किए गए उपकार अच्छे के साथ किए गए अपकार के समान होता है। अर्थात् उनके कहने का तात्पर्य है कि उपकार हमेशा जरुरतमंद लेकिन सही व्यक्ति को ही करना चाहिए।

दयानंद सरस्वती के अनुसार जो व्यक्ति मानवता की जितनी भलाई करेगा, वह ईश्वर के व्यवस्था में उतना ही सुख भोगेगा।

चाणक्य के अनुसार जिस व्यक्ति में हमेशा परहित का भाव होता है, उसके जीवन में आपदा नहीं आती और क़दम कदम पर सुख की प्राप्ति होती है।

शेक्सपीयर ने कहा है कि जैसे एक छोटे से दीपक की रोशनी बहुत दुर तक फैलती है, उसी प्रकार भलाई इस दुनिया में बहुत दुर तक फैलती है।

सुकरात का विचार है कि भला बनकर आप दुसरों की भलाई का कारण बन जाते हैं।

संत कबीरदास ने कहा है कि मनुष्य जब इस संसार को छोड़कर जाता है, तो भलाई या बुराई को ही साथ लेकर जाता है।

भगवान बुद्ध के शब्दों में ; मनुष्य को चाहिए कि बदी के बजाय नेकी के पथ पर चले, नेकी करनेवाले लोग लोक और परलोक दोनों ही स्थान में सुख भोग करते हैं।

भतृहरि की मानें तो उनका कहना है कि भली बातें कड़वी होती हैं, लेकिन उन बातों के कड़वेपन को स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि उनमें भलाई निहित होती है।

नेक व्यक्ति वही है, जो खुश रहता है, खुद के लिए, खुद में ही खुशी ढ़ुढ़ता है। वह नहीं जो केवल अपने विषय में सोचता है। और वही व्यक्ति अपने जीवन में खुश रहता है, जो मानवता की भलाई के लिए कार्य करता है।  जो मनुष्य होने के नाते सबका सहयोग करता है।

नेकी करने के पश्चात अगर यह अहसास हो कि हमने नेकी किया, तो समझो कि यह यह बदी करने की तैयारी है। ऐसी सोच की प्रतिक्रिया आपसे कभी भी गलत कार्य करवा सकती है। अगर कोई व्यक्ति आपको ऐसा मिल जाए, जो खुद को नेक बताने में लगा हो। और आप अगर उससे यह प्रश्न करें कि उसने किया क्या है? तो इस प्रश्न का उत्तर अधिकांश के पास नहीं होता।

बड़े बड़ाई ना करै, बड़ो ना बोले बोल।

रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल।।

रहीम कवि कह गये कि जो वास्तव में नेकदिल होते हैं, बड़े होते हैं, वे खुद की बड़ाई कभी नहीं करते। हीरा कभी यह यह नहीं कहता कि मेंरा मूल्य लाखों में है। 

आज के समय में सोच का स्तर दिनों-दिन घटता जा रहा है। अधिकांश लोग ‘नेकी कर दरिया में डाल’ के विपरीत नेकी को ही दरिया में डाल रहे हैं। अपने हित में कार्य करने को ही वे उन्नति समझ रहे हैं। बाकी सबका खुद का अनुभव सर्वोपरि है। जो जैसा सोचता है, वह वैसा ही करता है और वैसा ही बन जाता है। 

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