प्रिय एवम् श्रद्धेय पाठकगण नशा हो तो ऐसा हो ! इस कविता के द्वारा मेंरे काव्य-यात्रा की शुरुआत हो रही है।
नशा यानी मदहोश होने की अवस्था। ऐसा व्यसन, जिससे किसी न किसी रूप में सभी ग्रस्त हैं। कुछ ऐसी वस्तुएं हैं, जिनमें मादकता होती हैं। सामान्यतः ऐसा समझा जाता है कि उन चीज़ों का सेवन करने से मस्तिष्क में जो मदहोशी (मदहोशी का अर्थ — Madhosi Ka Arth) छा जाती है, यही नशा है। लोग अक्सर एक अवस्था से दुसरे अवस्था की ओर मन को भटकाने के लिए इन चीजों का उपयोग करते हैं।
लेकिन इस नशे की जरूरत ही क्यों पड़ती है? वो इसलिए की मन को कुछ चाहिए! और फिर ऐसा भी होता है कि अगर मन की चाहत पुरी न हो, तो वह निराश हो जाता है। और फिर यह मन उलझ जाता है।
साधारणतया मन इन परिस्थितियों में बैचेन हो जाता है। और इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए वह मादकता की ओर भागता है। इससे कुछ देर के लिए उन विचारों को भुला जा सकता है, जिनके कारण मन बैचेन होता है। परन्तु बैचेनी कभी मिटती नहीं।
और फिर यह जो मन है, इसे मदहोश रहने की लत लग जाती है। ऐसी मनस्थिति में लोग मादक द्रव्यों के सेवन करने लग जाते हैं। जीवन के समस्याओं से भागने का तरकीब है यह नशा। प्रस्तुत है नशे की प्रकृति पर एक कविता —
नशा हो अगर तो ऐसा हो
जहां चाह हो जीने की
यूं ही बरबाद करके जीवन
चाह न हो मरने की।
मदहोशी का हो आलम
और न हो कोई मस्ती
गर पीते रहें कुछ ऐसा
डुबेगी जीवन की कश्ती।
मिटे न मन की पीड़ा
बेमतलब है ये मदहोशी
पीओ तो दर्द मिटाने को
मिट जाए मन की बेहोशी।
थाम लो दामन उस साकी का
हो हाथ जिसके कुछ ऐसा जाम
नशा हो अगर तो ऐसा हो
रहे याद केवल साकी का नाम।
नशा हो अगर तो ऐसा हो
मिटे सब लिप्सा बेकार
सुख-चैन का हो आलम
मिटे मन का अहंकार।
कुछ ऐसा पीला दे साकी
कर जोडूं हूं मैं बारम्बार
तेरे सिवा कोई होश रहे न बाकी
कर दो मुझपर इतना उपकार।
मित्रों! Adhyatmpediaa में प्रकाशित आलेखों को आप सभी पढ़ते आ रहे हैं। और आप सबने इसे सराहा भी है, जो मुझे उत्साहित करता है। इसी कड़ी में अब poempedia के रूप में एक काव्य-संग्रह आपके समक्ष प्रस्तुत है। Adhyatmapedia के इस नये अवतार में काव्य-रुप में अपने मनोभावों को व्यक्त करने का प्रयत्न किया जा रहा है। आशा करता हूं कि आप सबों का स्नेह रस का पान कर प्रत्येक काव्य-पुष्प सुवासित हो सकेगा। अगर अच्छा लगे तो अपना मंतव्य अवश्य प्रेषित करेंगे। सादर अभिवादन …
Pingback: होली उत्सव का महत्व। - Adhyatmpedia