मदहोशी का अर्थ है होश में नहीं होना। अब जरा सोचिए कि ‘होश में होने’ का क्या मतलब है ? सामान्यतः जब कोई नशे में हो अथवा क्रोध में हो तो यह समझा जाता है कि वह होश में नहीं है। अर्थात् मदहोशी की अवस्था शरीर एवम् मन दोनों को प्रभावित करता है। परन्तु गहराई से विचार करें तो मदहोशी का मतलब है मन के ऊपरी सतह पर होना। क्योंकि यह जो होश में होने की अवस्था है, भीतर की अवस्था है। जब मन की गहराइयों में उतर कर कोई ज्ञान को उपलब्ध हो जाता है। जब कोई स्वयं की ओर दृष्टिपात करता है, और स्वयं को जानने में समर्थ हो जाता है। तो वास्तव में यह होश में आने की अवस्था है।
खुद अपनी मस्ती है जिसने मचाई है हलचल नशा शराब में होता तो नाचती बोतल।।
आरिफ जलाली
केवल मादक द्रव्यों में ही नहीं है। सांसारिक विषयों में लिप्त होना भी एक नशा है। एक नशा जो मदहोश करता है तो एक जुनून बन जाता है। मन को कुछ चाहिए! घर-मकान, धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा, मन को कुछ चाहिए। और इसे पाने का जो जुनून है, यह भी एक नशा है। मन को हमेंशा कुछ न कुछ चाहिए होता है। और अगर मिल भी जाए तो उसकी चाहत थमती नहीं। उसे फिर से कुछ और चाहिए। किसी को धन चाहिए, अगर मिल गया तो उसे इकट्ठा करने में वह लग जाता है। किसी को सम्मान की भुख है, उसे पाने और बचाने में ही वह उलझकर रह जाता है। सामान्यतः हर कोई जीवन में इसी दौड़ में व्यस्त हो जाता है। यह जो व्यस्तता है जीवन में, एक प्रकार का नशा ही तो है। नशे में तो सभी हैं, किसी को पैसे की नशा है तो किसी शराब की। और किसी को शबाब की !
किसी को हुस्न का गुरुर जवानी का नशा
किसी के दिल में मोहब्बत की रवानी का नशा
किसी को देखें सांसो से उभरता है नशा
बिना पीये भी कहीं हद से गुजरता है नशा
नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा …
नशा है सबको मगर रंग नशे का है जुदा !
किसी को धन का नशा है तो किसी को पद का। हर किसी कुछ न कुछ चाहते चाहिए। और सभी लगे रहते हैं अपनी-अपनी चाहतों को पुरा करने में। फिल्म शराबी का यह गीत जिसे अंजान ने लिखा है। गीतकार पूछता है कि नशे में कौन नहीं है, मुझे बताओ जरा? और फिर इस सवाल का जवाब भी यह कहकर देता है कि नशा है सबको मगर रंग नशे का है जुदा।
नशे में सब हैं, पर नशे में होने का, मदहोशी में जीने का जो ढ़ग है, सबका अलग अलग है।और अगर गहराई से विचार करें तो यह जो चाहतें हैं मन की। जिन विषयों में लिप्त होकर वह सुखी होना चाहता है। वह सबकुछ अगर मिल जाए, तब भी क्या वह सुखी हो पाता है? उसकी चाहतें कभी मिटती ही नहीं, और उसे जो चाहिए वो मिलता नहीं। वास्तव में उसे जो चाहिए, उसका स्मरण ही नहीं है। भूल जाते हैं सभी, जो वास्तव में सबको चाहिए। यह जो नशा है, मदहोशी है! और जो चाहिए, उसे भूल जाने का मतलब है कि होश का अभाव है।
मन को कुछ चाहिए! क्या चाहिए? इसका सीधा सा उत्तर है चैन चाहिए, सुख चाहिए, सुकुन चाहिए। लेकिन मन के चाहत के राह में तो दर्द ही दर्द है। सुकुन मिलता कहां है, मिलता है मगर टीकता नहीं। थोड़ी देर के लिए मिल भी जाए तो फिर गायब हो जाता है। तो फिर जिस सुख-चैन की, सुकुन की तलाश है, वह कहां है? किस चीज में यह छिपा है! जिसके मिल जाने से वह मिल जायगा। कौन सी वह जगह है, जहां पहूंचने से यह दौड़ खत्म होगी।
हम इसे शराब में, शबाब में, धन में, सोहरत में खोज रहे हैं। मगर इन सब में मिलता कहां है! हमारे जीवन में जो दुख है, दर्द है इसका कारण ही यही है कि जहां हम उसे खोज रहे हैं, वहां तो वह है ही नहीं। हर किसी को यह समझ लेना चाहिए कि जिस नशे में वह मस्त है, उसमें मस्ती नहीं है। और सिखाया भी यही जाता है कि व्यस्त रहो और मस्त रहो। लेकिन व्यस्त किन कार्यों में रहो, इसकी समझ ही नहीं है। तब तो यह महज छलावा है, मन को बहलाने का एक ठोंग है।
हजार दर्द शब-ए-आरजू की राह में
फैज अहमद फैज
कोई ठिकाना बताओ कि काफिला उतरे
करीब और भी आओ कि शौक-ए-दीद मिटे
शराब और पीलाओ कि कुछ नशा उतरे
शायर कहता है उक्त पंक्तियों में कि शराब और पीलाओ कि कुछ नशा उतरे! हमें जो चाहिए, वह उस शराब में नहीं है जिसे हम पी रहे हैं। इस शराब में नशा है, मदहोशी है, बेहोशी है। पीने की जरूरत है उस शराब को, जिसके पीने से नशा टुटता है। बेहोशी टुटती है, और पीनेवाले को होश आ जाता है। और इस तरह से होश में आना भी एक मदहोशी है। और यह जो मदहोशी है, यह जो खुमार है, जिस मधुरस में! वह अविरल बह रहा है सबके भीतर।
परमानन्द का अंश सबके भीतर है। आनंद में रहना उस अंश का, आत्मा का स्वभाव है। मस्ती है भीतर, होश है भीतर मौजूद, मगर कोई होश में नहीं है। और इस सुकुन से लबालब मदहोशी से हम अंजान है। वो इसलिए कि उसके मादकता का, मस्ती का स्वाद कभी मिला ही नहीं। अगर एकबार भी अल्प समय के लिए भी मिल जाए तो वह मिल जाएगा, जो चाहिए।
बिना ज्ञान का , विना ध्यान का, विना भक्ति का वह मिलता नहीं। इसके लिए थामना ही होगा उस साकी का दामन, जिसके पास वह मस्ती का जाम है।
थाम लो दामन उस साकी का
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हो हाथ जिसके कुछ ऐसा जाम
नशा हो तो कुछ ऐसा हो
जो रहे याद केवल साकी का नाम
कुछ ऐसा पीला दे साकी
कर जोडूं हूं बारम्बार
तेरे सिवा कोई होश न रहे बाकी
कर दो मुझपर इतना उपकार
धन्य हैं वे लोग, जिन्होंने इस मधुरस का पान किया। और मस्ती भरे मदहोशी से झुम उठे। जिसने भी खुद को अनुशासित करना सीख लिया। परमसत्ता को अनुभव करने के लिए अपने अहंकाररुपी होश को मिटा डाला। उनकी मदहोशी को जगत में युगों-युगों तक याद किया जाएगा।
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