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लोग क्या कहेंगे ..!

लोग क्या कहेंगे..! भाई, अच्छा या बुरा कुछ तो लोग कहेंगे ही! लोग या तो आपकी निंदा करेंगे या प्रशंसा करेंगे। या तो आपको उत्साहित करेंगे या हतोत्साहित करेंगे। जो भी करेंगे या तो अपने मतलब के हिसाब से करेंगे या फिर अपने समझ के हिसाब से करेंगे।

लोग क्या कहेंगे! एक अधोगामी, संशयात्मक सोच है। यह ऐसा मानसिक रोग है, जिससे अच्छे से अच्छे लोग भी ग्रसित हो जाते हैं। यहां अच्छे लोग से तात्पर्य है, जो लोग कुछ अच्छा करना चाहते हैं। परन्तु अकसर यह देखा जाता है कि जब कभी उनके मन में कुछ अलग करने का विचार आता है तो वे उलझन पड़ जाते हैं।

ऐसा हमेशा अधिकांश अच्छे लोगों के साथ ही होता है। क्योंकि जो अच्छा करने का सोचते ही नहीं, वो तो अच्छा कर ही नहीं सकते। और उन्हे इस बात से कोई मतलब ही नहीं होता कि लोग क्या कहेंगे! भाई! कुछ अलग करनेवाले की, अलग सोच रखने वाले की चर्चा तो होगी ही। लोग क्या कहेंगे, इस बात से जो डर गया, वह कुछ भी अलग कर ही नहीं सकता।

जहां तक बात लोगों के सोच की है। तो कुछ लोग आदतन ही दुसरों के मामलों में टांग अड़ाते रहते हैं। हम में से हर किसी के आसपास ऐसे लोग मौजूद होते हैं, जो हमें हतोत्साहित करने में लगे रहते हैं। हमें नीचा दिखानेवाले, हमारी निंदा करनेवाले, हमसे जलनेवाले लोगों की कमी नहीं है। अगर उनके बातों पर ध्यान दिया जाए तो फिर गये काम से!

कुछ तो लोग कहेंगे ..!

इस बात को इंगित करता हुवा एक लघुकथा है, जो मैंने पढ़ी है। एक दम्पति अपने एक बालक के साथ सागर के तटपर घुमने गये। टहलने के क्रम में बालक के हाथ से उसका खिलौना नीचे सतह पर गिर गया। इतने में सागर की एक लहर उस खिलौने को बहाकर ले गई। निराश बालक रेत पर अंगुली से लिख देता है कि सागर चोर है! 

वहीं कुछ दुरी पर एक बुजुर्ग टहल रहे थे। लहर जब आयी तो उनके सामने एक सीप को बहाकर ले आयी। उन्होंने उसे उठा लिया, उस सीप में से मोती निकला। उन्होंने उसी रेत पर लिखा – समुद्र दानी है!

वहीं कुछ दुरी पर एक मछुवारा भी टहल रहा है जो अपनी जुगत में है। लहर के साथ कुछ मछलियां भी किनारे तक आ गयीं। मछुवारे ने उन्हें पकड़ लिया। उसने उसी रेत पर लिखा – सागर पालनहार है!

अचानक एक बड़ी लहर आती है और सारे लिखे को मिटाकर चली जाती है। सागर पर इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता कि कौन उसके विषय में क्या कहता है। वह हमेंशा अपने लहरों के साथ खेलता है। अपने कर्म में लगा रहता है। और और तल में पूर्ण स्थिरता को बनाये रखता है। 

लोगों का क्या है – वो अपनी राय अपने मतलब के हिसाब से बदलते रहते हैं। एक मक्खी अगर चाय में गिरे तो चाय को फेंक देते हैं। वहीं अगर शहद में गिर जाए तो मक्खी को निकालकर फेंक देते हैं। आप अपने विचारों को कर्म में परिवर्तित किजिए। भीतर से शांत और स्थिर रहकर पुरे लगन के साथ कार्य करते रहिए। सागर से सीख लेकर – वह अपने उफान और अपनी स्थिरता को अपने हिसाब से तय करता है। 

कुछ रीत जगत की ऐसी है
हर एक सुबह की शाम हुवी
तू कौन है तेरा नाम है क्या
सीता भी यहां बदनाम हुवी!
फिर क्यों संसार की बातों से
भींग गये तेरे नैना ..!
कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में
कहीं बीत न जाए रैना..!

उक्त पंक्तियां एक गीत के बोल हैं, जिसे आनंद वक्शी साहब ने लिखा है। तात्पर्य है कि हम अगर यही सोचते रहें कि लोग क्या कहेंगे! तो फिर जीवन ही बेकार हो जाएगा। यह सोच ही बेमतलब है, इस सोच को मस्तिष्क से बाहर निकाल देना ही बेहतर है। आपका जो भी लक्ष्य है, उस ओर बढ़ते चलें। बेपरवाह होकर, बेफ्रिक होकर इस बात से कि लोग क्या कहेंगे।

अगर जीवन में कुछ अलग, कुछ बेहतर करना है तो यह मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे! लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे ही। जितना बड़ा काम होगा, उंगलियां उतनी ही अधिक उठेंगी। जिन्होंने भी अपने जीवन में कुछ बड़ा किया है, उनपर उंगलियां उठी हैं।

उंगलियां तो गीता के उद्घघोषक भगवान श्रीकृष्ण पर भी उठी हैं। हस्तिनापुर की महारानी गांधारी ने उन्हें महाभारत में हुवे विनाश का जिम्मेवार ठहरा दिया था। जबकि युद्ध से पूर्व  उन्होंने शांति का प्रस्ताव भी दिया था। उस वक्त दुर्योधन ने छलपूर्वक बंदी बनाने की कोशिश भी की थी। परन्तु पुत्र शोक की व्यथा में गांधारी ने श्रीकृष्ण को शाप भी दे डाला। 

उंगलियां तो मर्यादा पुरुषोत्तम पर भी उठायी गई कि उन्होंने बाली का बध छल से किया। निंदकों को बाली का अत्याचार नहीं दिखाई देता, जो उसने सुग्रीव के साथ किया। उंगलियां तो देवी सीता पर भी उठायी गई। 

असाधारण को स्वयं को प्रमाणित करने की जरूरत ही नहीं पड़ती। संसार आज दुर्योधन को नहीं श्रीकृष्ण को पूजती है। बाली को नहीं श्रीराम को पूजती है। उत्कृष्टतम नारी चरित्र का अप्रतिम उदाहरण देवी सीता को पूजती है। जो भीतर से सही होते हैं, जो अपना हर कदम संसार के हित के लिए उठाते हैं। अंततः संसार को उनके समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ता है।

प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो ने स्वयं अपने विषय में कहा था कि शायद मुझे अबतक सबसे गलत समझा गया है, लेकिन इसका मुझपर कोई असर नहीं, कारण बस इतना है कि मुझे सही समझे जाने की जिज्ञासा नहीं है। यदि वे गलत समझते हैं तो ये मेंरी नहीं उनकी समस्या है, ये उनका दुख है, मैं अपनी नींद खराब नहीं करूंगा! यदि लाखों लोग भी मुझे गलत समझ रहे हों।

लोग क्या कहेंगे ! इस बात को लेकर हम सहमें हुवे क्यों रहते हैं! हो सकता है, हम जब किसी कार्य में आगे बढ़ें और हमसे कुछ गलतियां हो जाएं। भूल हो सकती है, मुख्य बात यह है कि हम इसे किस तरह लेते हैं। प्रत्येक भूल सुधार की ओर ले जाने का मार्ग दिखाता है। भूल से घबराना मानो काम करने से घबराना है। ध्यान यह रखना चाहिए कि जो भूल एक बार हो जाए, उसकी पुनर्रावृत्ति न हो। 

ओशो ने कहा है – असली सवाल तो यह है कि भीतर तुम क्या हो। अगर भीतर तुम गलत हो तो तुम जो भी करोगे वह गलत ही होगा। और अगर भीतर तुम सही हो तो तुम जो भी करोगे सही ही होगा।

अतः प्रयास होना चाहिए कि कुछ अच्छा हो। और किसी से अच्छा तभी होगा जब वह भीतर से अच्छा बनने का प्रयास करेगा। और ग़ौरतलब है कि भीतर अच्छा हो, इसके लिए भी अभ्यास करना पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो कि खुद को सुधारने के लिए भी जो कुछ किया जाए। जैसे योग (योग क्या है? — What Is Yoga?) , ध्यान (ध्यान क्या है? — What Is Meditation?) आदि क्रियाएं, इन्हें करने में भी संकोच हो कि लोग क्या कहेंगे ..!

आप कुछ भी करो लोग कुछ न कुछ कहेंगे। अगर कुछ ना भी करो तब भी लोग कुछ न कुछ कहेंगे ही। करना तो आपको है, लोग तो आपके लिए कुछ करने से रहे। इसलिए जो भी करना है, पुरे मन से करें। सोच सही होना चाहिए, दुसरों की बातों पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है। सबकुछ अपने आप पर ही निर्भर करता है।

2 thoughts on “लोग क्या कहेंगे ..!”

  1. लेखक महोदय इतनी सुन्दर एवं सतत प्रेरणा प्रदान करने वाले लेख को अपने पाठकों के सम्मुख रखने के लिए आप बधाई के पात्र है , आपका रारगर्भित लेख पाठकों के मन में चल रहे डर और आशंका को दूर करने में सहायता प्रदान करता है ..
    आगे भी आप इसी तरह से सुन्दरतम प्रयास करते रहें .. यही शुभकामना है ..

    धन्यवाद

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