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एक राधा एक मीरा: दोनों श्याम की दीवानी।।

एक राधा एक मीरा: एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी। एक को मिला कान्हा का संग, तो एक को गिरधर नागर का रंग। एक ने प्रेम को और एक ने भक्ति को परिभाषित किया है। एक उत्कृष्ट प्रेम का प्रतीक है,और एक भक्ति की मिसाल। दोनों का चरित्र अपने आप में अप्रतीम है, अद्वितीय है।

एक राधा एक मीरा: एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी।।

एक राधा एक मीरा, एक की दीवानगी में प्रेम है और एक की दीवानगी में भक्ति है। एक ने कान्हा संग रास रचाई, वो सजती थी कान्हा के लिए, नाचती थी कान्हा के लिए। एक ने कृष्ण को वैराग्य से पाया। कृष्ण की सखी राधा के चरित्र में प्रेम की अद्भुत महक है। इसमें ऋंगार, हास-परिहास, गीत-संगीत, मिलन-विरह सबकुछ का मेंल है। 

मीरा की साधना सहज है। उन्होंने कोई योग नहीं किया, कुछ तो नहीं किया। केवल एक विचार कि कृष्ण उनके पति हैं। बालपन से ही उन्होंने इस विचार को मन में पनपने दिया। श्रीकृष्ण की मुर्ति को निहारती रही, पूजती रही। वैराग्य ही मीरा का ऋंगार है, मीरा का प्रेम एक आध्यात्मिक संवाद है।

ओशो के शब्दों में “एक दिन अचानक मीरा नाच उठी! किसी ने न जाना, कैसे यह नाच पैदा हुवा। इस नाच के आगे पीछे कोई हिसाब नहीं है। इसलिए मीरा को समझना बिल्कुल ही कठिन हो जाता है। इसलिए भक्त पागल लगता है, क्योंकि गणित में बैठता नहीं।”

एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा। एक दीवानगी में प्रेम की महक, तो एक की दीवानगी में भक्ति की धारा। 

मीरा के प्रभु गिरधर नागर, राधा के मनमोहन।

राधा नित श्रृंगार करे, और मीरा बन गई योगन।

गहन अर्थों में प्रेम एक आनंदमय भावना है। प्रेम वह अनुभूति है, जिसमें साथ रहने का आभास निरंतर होता है। अपने शुद्ध स्वरूप में प्रेम कभी भी शारीरिक सौंदर्य पर टिका नहीं रह सकता। इसमें दिव्यता या परमात्मा के प्रति एकत्व भाव का अनुभव समाहित है। राधा का प्रेम में श्रीकृष्ण के प्रति एकत्व भाव है। राधा की दीवानगी हर बंधन से मुक्त है।

किसी के साथ लगाव को, किसी के लिए चाहत को तीन प्रकार से देखा जा सकता है। लगाव हो, संबंध हो अथवा चाहत, इसके तीन तल होते हैं। पहला शरीर, दुसरा मन और तीसरा आत्मा का तल। पहला शारीरिक सौंदर्य और दुसरा मनोभावनाओं पर टिका होता है। शरीर हमेशा एक जैसा नहीं रहता और मन एक जगह नहीं टिक सकता। इसलिए अगर शारिरिक अथवा मानसिक रूप से किसी के प्रति चाहत हो, तो वह निरंतर कायम नहीं रह सकता है।

राधा का प्रेम शरीर और मन के विषय से परे है। राधा और कृष्ण के बीच वैवाहिक संबंध नहीं था। का प्रेम आत्मिक है, रूहानी है। जहां आत्म है, वहां दुजा कोई नहीं है, एकत्व भाव है। आत्मिक संबंध अध्यात्म का विषय है। यह शरीर और मन के विषय से परे है।

अपने शुद्ध स्वरूप में प्रेम बंधनमुक्त हो जाता है। यह आनंद की अवस्था है। राधा के जीवन में विरह है, पर विरह की वेदना नहीं है। श्याम की दीवानी राधा और राधा के दीवाने मनमोहन, यही एकत्व है, यही प्रेम है, यही असली चाहत है। जिसे राधाकृष्ण ने परिभाषित किया है।

भक्ति का अर्थ है, पूर्ण रूप से समर्पित होने की अवस्था! भक्ति के मूल में प्रेम है। क्योंकि समर्पण वहीं है जहां प्रेम है। जहां जहां आसक्ति है, अर्थात् शरीर और मन के स्तर पर लगाव है, वहां भक्ति नहीं हो सकता है। भक्ति में रमनेवाले ही भक्त कहलाते हैं।

भक्ति का आधार आस्था और विश्वास है। मन में विश्वास अगर प्रबल है, तो आस्था में परिवर्तित हो जाता है। यह जो मनोभाव है, इसमें प्रेम समाहित होता है। और जिसके प्रति चाहत हो, प्रेम हो, और अगर वह प्रत्यक्ष न दिखे, तो उसके दरस के लिए मन आतुर होने लगता है। काल्पनिक ही सही, परन्तु विश्वास इतना प्रबल कि उसके न होने की बात मन स्वीकार नहीं कर पाता। सुध-बुध खो बैठता है, और अपनी चाहत को पाने को मचलने लगता है। 

अपने आराध्य को स्वीकार करते हुए उनके प्रति पूर्ण समर्पण भक्ति है। मीरा की चाहत श्रीकृष्ण के लिए था, जो उनके लिए सबकुछ थे। ऐसी जो भक्ति है, इसमें प्रेम समाहित होता है। और वैराग्य का रुप धारण कर लेता है। यही तो भक्ति का शुद्ध स्वरूप है। मीरा की भक्ति ऐसी थी, वैराग्य ही उनका ऋंगार था। 

प्रेम और भक्ति में बहुत सुक्ष्म अंतर है। प्रेम जब परिपक्व हो जाता है तो हर बंधन से मुक्त हो जाता है। वैराग्य की अवस्था को प्राप्त कर लेता है। और भक्ति में रुपान्तरित हो जाता है। भक्ति में जो वैराग्य है, उसमें प्रेम समाहित है। समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर अपने आराध्य को पाने की चाह, प्रेम ही तो है। 

प्रेम में ऋंगार है, लेकिन वह शरीर और मन के स्तर का नहीं है। यह आत्मिक है, प्रेमी कोई दुसरा नहीं है, परमात्मा है। और आत्मा परमात्मा का अंश है, यहां एकत्व भाव का रस है। जहां रस है वहींं रास है, और वहीं रास-लीला भी है। राधा और कृष्ण का रासलीला आत्मा का परमात्मा से मिलने की झलक मात्र है।

भक्ति में वैराग्य है, सांसारिक बंधनों से मुक्त है। सांसारिकता से मुक्त होने का तात्पर्य पारलौकिक शक्ति से मिलन है। जब कोई बंधनों से मुक्त हो जाता है तो उसके पास एक ही मार्ग होता है चलने के लिए। यह जो मार्ग है, परमात्मा से मिलन का मार्ग है। जब कोई भक्त अपना सुध बुध खोकर भक्ति के मार्ग पर चलता है, तो भगवान उसे आलिंगन करने को स्वयं आ जाते हैं। श्रीकृष्ण की भक्त मीरा के साथ यही घटित हुवा, आराध्य ने भक्त को स्वीकार कर लिया। आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया। 

एक राधा एक मीरा! राधा जब मनमोहन से प्रेम में लग पड़ती है, तो उसका मन हर पल उन्हें ही स्मरण करता है। जिधर देखती है, वहां सबकुछ श्याममयी है। मीरा की भक्ति ने जगजाहिर है। उन्होंने ने जो भजन गाए, वो सबके दिल में समा गए। वो पूजती थी, अपने उस आराध्य को जो दिखाई नहीं देता था। पर उनकी भक्ति से भगवान भी भावुक होकर उनके साथ फिरते थे। उनकी भक्ति सबके लिए एक उदाहरण है।

श्याम के साथ जब राधा मिलती है, तब दुनिया भूल जाती है। राधा के प्रेम की कहानी बहुत ही अनुठी है। हर कोई इसे सुनकर अपनी सोच बदल सकता है। उनके प्रेम की भावनाओं से हर कोई प्रभावित हो सकता है। उनके प्रेम की बातों से हर कोई सीख ले सकता है। 

मीरा एक ऐसी भक्त थी, जो भजन में खो गयी थी। जिससे उन्होने ढूँढा था श्रीकृष्ण को। मीरा ने जो भजन गाए, उनमें उनका जीवन व्याप्त है। उनकी आंखें बोलती थीं, जिसे दिल से वो लगातार महसूस करती थी। उनकी भक्ति ने उन्हें संतुष्ट कर दिया, उसकी भक्ति ने उसे सुखद बना दिया। उसकी भक्ति ने उन्हें  श्रीकृष्ण का प्यार दिलाया। उनकी भक्ति के कारण श्रीकृष्ण ने उन्हें अपनी शरण में ले लिया।

एक राधा एक मीरा! राधा के प्रेम में जो भाव है, उसकी महक से हर कोई अपनी आत्मा को महका सकता है। राधा का प्रेम हम सबके लिए आदर्श है। मीरा ने जीवन की सच्चाई से संसार को अवगत कराया। उनकी भक्ति ने जग में इतना छोड़ा है असर कि उसे समझने के लिए बस  एक नाम है- मीरा।

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