समस्त संसार जिन्हें भगवान के नाम से पुकारती है, उनके जीवन काल को कलमबद्ध करना असंभव है। भगवान महावीर का समस्त जीवन नैतिकता एवं आध्यात्मिकता की ओर जाने के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने संसार में दुःख के कारणों को समझने और उन्हें दूर करने का संदेश दिया है। और समस्त संसार को आत्मकल्याण का मार्ग दिखाया है। अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर उन्होंने कहा है कि मनुष्य अपने कर्म के द्वारा भगवान बन सकता है। यह आलेख स्वयं के अध्ययन पर आधारित है। और भगवान के विषय एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करने की चेष्टा भर है।
भगवान महावीर का संक्षिप्त जीवन परिचय:
599 ईसा पूर्व आर्यावर्त (आज का भारत) के वैशाली राज्य में एक होनहार बालक ने जन्म लिया था। माता-पिता के द्वारा असीमित प्रतिभा के धनी उस बालक का नाम वर्धमान रखा गया था। बाल्यकाल से ही वर्धमान देखने में सुन्दर और स्वभाव से निर्भीक था।
बालक के पिता का नाम इश्वाकु एवम् माता का नाम तृषला था। इश्वाकु वैशाली गणतंत्र के प्रसिद्ध राजा थे। एक राजपुत्र होते हुए भी वर्धमान को सांसारिकता से लगाव नहीं हो पाया। तीस वर्ष की अवस्था में उसने वैभवपूर्ण जीवन का त्याग कर दिया। और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल पड़े। निर्जन वन में चले गए और कठिन साधना में लीन हो गए।
बारह वर्षों के कठिन तपस्या के बाद उन्हें परम ज्ञान का आभास हुवा। तत्पश्चात उन्होंने लोगों के बीच ज्ञान का प्रसार किया। उनका देहावसान 527 ईसा पूर्व में हुआ था। उनके जीवन की उपलब्धियों एवम् सिद्धांतों ने उन्हें एक महान धर्मगुरु के रूप में स्थापित किया है। उनके निर्वाण के बाद उनके शिष्यों ने उनके वचनों को लिपिबद्ध किया, जो “जैन आगम” के रूप में जाना जाता है। जो आज के समय में एक आध्यात्मिक ग्रंथ के रूप में जाना जाता है।
आज दुनिया उन्हें भगवान महावीर के नाम से जानती है। जैन धर्मावलंबियों के द्वारा चौबीसवें तीर्थंकर के रूप में उनकी आराधना की जाती है। भगवान महावीर के जन्मदिवस को जैनियों के द्वारा दीपोत्सव के रुप में धुमधाम से मनाया जाता है। एवम् उनके निर्वाण दिवस को “महावीर जयंती” के रूप में मनाया जाता है।
महावीर ने जीवन को सुखी और सफल बनाने के लिए पंच महाव्रत के पालन को महत्वपूर्ण कहा है। पंच महाव्रत का पालन करने से व्यक्ति का नैतिक दृष्टिकोण विकसित होता है। और वह आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर हो सकता है। सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रम्हचर्य और अपरिग्रह पंच महाव्रत के पांच अंग हैं।
सत्य – मिथ्या वचन और कर्म से स्वयं को मुक्त रखना। सत्य कहना और सत्य के मार्ग पर चलने का व्रत।
अहिंसा – मन, वचन और कर्म से किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाना। हिंसा से पूर्णतः मुक्त रहने का व्रत।
अस्तेय – छल-प्रपंच, लुट-खसोट,चोरी आदि भ्रष्ट कार्यों के प्रति निर्लिप्त रहना। सदाचार और सत्कर्म का व्रत। ब्रह्मचर्य – मन, वचन और कर्म से काम-वासना को नियंत्रित करने का व्रत।
अपरिग्रह – अधिक धन-संपत्ति का उपयोग नहीं करना, और आवश्यकता से अधिक चीजों का क्रय एवम् संग्रह से बचना। भौतिक सुखों के कामना से मुक्त रहने का व्रत।
इन पंच महाव्रतों के पालन से व्यक्ति के अंतर्मन में समझ विकसित होता है। उन्होंने सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र, सम्यक तप और सम्यक ध्यान को जीवन का महत्वपूर्ण त्तत्व कहा है। इन त्तत्वों को विकसित से करने से सद्गुणों का विकास होता है। संयमित मन स्थिरता, शांति और सुख की अवस्था को प्राप्त करता है। उन्होंने विवेक और ज्ञान के महत्व को समझाया है। उनके अनुसार ज्ञान ही आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाता है।
भगवान महावीर के महत्वपूर्ण विचार:
•अहिंसा परम धर्म है।
•जीवन का अर्थ अपने आप को समर्पित करना है।
•आत्मा ही परमात्मा है।
•सच्ची शिक्षा स्वयं को जानने में ही होती है।
•जब तक मनुष्य दूसरों की सहायता करता रहेगा, तब तक उसका जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा।
•धन-दौलत नहीं, शिक्षा ही वास्तविक सम्पत्ति है।
•भावना का महत्व सबसे अधिक होता है।
•समस्त जीवों के प्रति दया रखना हमारा धर्म होना चाहिए।
•सभी धर्म एक समान हैं।
•मन की शुद्धि और स्थिरता के बिना कोई भी धर्म नहीं संभव है।
•आज का कर्म कल के नतीजे को तय करता है।
•भ्रष्टाचार, असंगति और अन्याय से दूर रहना अपने कर्मों की सफलता के लिए जरूरी है।
संसार में आनंद की प्राप्ति केवल स्वयं के द्वारा ही संभव है।
•दूसरों को दुख न पहुंचाना ही अहिंसा का सच्चा अर्थ होता है।
•दूसरों के साथ सहयोग और समझौता करना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•जीवन में संतोष का महत्व है, जो कि समय-समय पर दूसरों के सहयोग और निरंतर परिश्रम से प्राप्त होता है।
•अपनी भावनाओं को समझना और उनसे निपटना मन के स्वस्थ रहने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
•जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने अध्ययन को तपस्या बनाएं।
•जीवन में सफलता के लिए आवश्यक है कि हम अपने स्वभाव को समझें और उसे अपने लाभ के लिए उपयोग में लाएं।
•महान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए विद्या, संयम, त्याग और अहिंसा की आवश्यकता होती है।
•संघर्ष की स्थिति में शांति बनाए रखना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•संसार में संघर्ष से भरा हुआ है, इसलिए अपने आप को मजबूत बनाना अत्यंत आवश्यक है।
•संघर्ष के दौरान संतुलन बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
•आत्मविश्वास, स्वस्थ मन और शरीर, और संतुलित जीवन जीना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी होती है।
•अपने अंदर की शक्ति का सही उपयोग करना हमें संघर्षों से निपटने में मदद करता है।
•जीवन में अपनी सीमाओं को बढ़ाने के बजाय उन्हें तोड़ना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•जीवन में विश्वास रखना और सकारात्मक सोचना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•संघर्ष की स्थिति में धैर्य रखना, सीखने का उत्साह रखना और नए चुनौतियों का सामना करना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•समय की कीमत को समझना और उसका सही उपयोग करना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करना और संघर्ष की स्थिति में भी हार न मानना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
•संघर्ष की स्थिति में भी स्वस्थ मन और शरीर की देखभाल करना सफलता की एक महत्वपूर्ण कुंजी है।
भगवान महावीर के सिद्धांत जीवन में उन्नति के लिए महत्वपूर्ण हैं। प्रत्येक व्यक्ति को उनके द्वारा बताए गए मूल्यों और सिद्धांतों का अनुसरण करना चाहिए। उनके जीवन की उपलब्धियों के माध्यम से हम सभी को यह संदेश मिलता है कि हमें अपने जीवन में मानवीय मूल्यों का पालन करना चाहिए। स्वयं के उत्थान के लिए काम करना चाहिए और दूसरों की भी सहायता करनी चाहिए। उनके महत्वपूर्ण विचारों से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में शांति, संतुलन, समझ और क्षमा के भाव को ग्रहण करना चाहिए।
भगवान महावीर के जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि हमें अपने जीवन में आत्मनिर्भर होना चाहिए। और इसके लिए कामना से रहित होकर कर्म करना चाहिए। निष्काम कर्म करने से हमारे जीवन में शांति और सुख का अनुभव होता है। उन्होंने अपने जीवन में इन मूल्यों का पालन करने का उदाहरण प्रस्तुत किया था। उनके विचारों व जीवन-मूल्यों का अनुसरण करने से जीवन में शांति और सुख अनुभव होता है।