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कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।।

कारज धीरे होत है – प्रकृति अपने नियम से चलती है, इसके अनेक कार्य निर्धारित समय पर पूर्ण होते हैं। जब समय आता है, वृक्ष में फल लगते हैं। अधिक सींचने से वृक्ष शीघ्र ही फल देने लगें, ऐसा नहीं होता है। वृक्ष के बीज को बोने से लेकर, उसके विकसित होने तक नियमित देखभाल की जरूरत होती है। और फल लगने तक धैर्यपूर्वक प्रतिक्षा करना उचित होता है। कवि वृंद की यह सुक्ति हमें यही संदेश देता है। 

कारज धीरे होत है काहे होत अधीर।
समय आय तरुवर फलै कौतुक सींचों नीर।।

सकारात्मक विचारों के साथ निरंतर कार्य करते रहने से उत्तम परिणाम की संभावना प्रबल होती है। किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए अगर अपना श्रेष्ठ योगदान दिया जाय, तो उत्तम परिणाम अवश्य मिलता है। परन्तु विडम्बना यह है कि यह जो समय है सबसे महत्वपूर्ण है! यह जानते हुवे भी अधिकांश लोग इसे बरबाद कर दिया करते हैं।

समय वो है जिसे हम सबसे अधिक चाहते हैं, परन्तु जिसे हम हमेशा गलत तरीके से उपयोग करते हैं। _ विलियम पेन

समय बहुत मूल्यवान है। अपने समय को क्रोध, पश्चाताप, चिंता, आलस्य एवम् पराश्रित होने जैसे विचारों के कारण नष्ट करना मुर्खता है। सिर्फ एक ही चीज हैं जो समय से भी अधिक महत्वपूर्ण है, और वह है कि हम इसे किन कार्यों में लगा रहे हैं। अतः यह सुनिश्चित करना अनिवार्य है कि हम अपना समय उचित कार्यकलापों में व्यतीत करें।

कर्म ही पूजा है !

शास्त्रों में कहा गया है कि कर्म ही पूजा है, कर्म साधना है, कर्म पर ही सबकुछ निर्भर करता है। विचार करने योग्य यह है कि हमसे जो कार्य हो रहा है, वह क्रिया वास्तव में कर्म है ? हम जो भी करते हैं अपने मन के अनुसार करते हैं। हमारे विचार ही हमें उचित-अनुचित कार्यों की ओर ले जाता है। 

वस्तुत: ऐसी क्रिया जो साधना के स्तर को प्राप्त कर ले वही कर्म है। पारिवारिक एवम् सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के लिए हो, अथवा मोक्ष की प्राप्ति के लिए हो कर्म को साधना समझकर करते रहना चाहिए। कठिन परिश्रम, लगन, धैर्य, संतोष, आस्था और आत्म विश्वास साधना के अभिन्न अंग हैं।

उद्यम कबहूॅं ना छाड़िये पर आसा के मोद। गागरि कैसे फोरियै उनयौ देखि पयोद।।

वृन्द

कवि वृन्द ने यह भी कहा है कि पराश्रित होकर अर्थात् दुसरों के भरोसे किसी भी काम को नहीं करना चाहिए। क्योंकि बादलों की उमड़ती घटा को देखकर पानी से भरा हुवा घड़ा को फोड़ देना सर्वथा अनुचित है।

कर्मयोग हमें यही सिखाता है! गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है ; “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषू कदाचन।।” कर्म करो परिणाम की चिंता मत करो ! ( कर्मयोग का रहस्य : secret of Karma yoga ) परिणाम की चिंता किए बगैर सकारात्मक विचारों के साथ कार्य में लगे रहना ही पुरुषार्थ है। प्रारब्ध और पुरुषार्थ : destiny and efforts..!

धैर्य साधना का प्राण है !

ओशो के शब्दों में ; सत्य प्रत्येक क्षण, प्रत्येक घटना से प्रगट होता है। उसकी अभिव्यक्ति नित्य हो रही है। केवल देखने को आंख चाहिए, प्रकाश सदैव उपस्थित हैं। एक पौधा वर्ष भर पहले रोपा था, अब उसमें फल फूल आने शुरू हुए हैं। एक वर्ष की प्रतिक्षा है, तब कहीं फल है। ऐसा ही आत्मिक जीवन के संबंध में भी है। प्रार्थना करो और प्रतिक्षा करो! बीज बोवो और फूलों के खिलने की राह देखो। धैर्य साधना का प्राण है! कुछ भी समय से पूर्व नहीं हो सकता है। प्रत्येक विकास समय लेता है, और धन्य हैं वे लोग जो धैर्य से बाट जोह सकते हैं।

ओशो ने भी तो यही समझाया है कि ‘कारज धीरे होत है। उन्होंने यह भी कहा है कि ‘धैर्य साधना का प्राण है’ अर्थात् ‘काहे होत अधीर’ धैर्य को क्यों खोते हो ? प्रत्येक कार्य को संपन्न होने में समय लगता है। हमारी सोच, हमारे जरूरतों के हिसाब से सब-कुछ नियंत्रित नहीं होता। सुरज अपने समय से निकलता है और शाम से सुबह होने में भी समय लगता है। कुछ भी समय से पहले नहीं हो सकता है ! सुर्य ग्रहण अमावस के दिन और चन्द्र ग्रहण पुर्णिमा की रात को ही लगता है। कोई भी प्रकृति के इस नियम को नहीं बदल सकता! हमारे जीवन में भी जब जो होना है, तब वह होगा। 

कथनी और करनी में फर्क है !

ज्ञानियों ने जीवन के विषय में बहुत समझाया है। कम शब्दों में ही उन्होंने जीवन के सार को समझाने का प्रयास किया है। और सभी ने अपनी बातें अपने अनुभव के आधार पर कही है। हम उन विचारों को पढ़ते हैं, सत्य भी मानते हैं, पर अनुभव करने का प्रयास नहीं करते। और जब तक व्यावहारिक रूप में अनुभव न करें, हम इन्हें असत्य भी नहीं कह सकते।

कारज धीरे होत है’ यह वाक्य अकसर लोगों के मुख से सुनने को मिलता है। यह एक लोकोक्ति का रुप ले चूका है। अक्सर जब कोई किसी समस्या से गुजर रहा होता है। तो उसे यह सलाह दी जाती है कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा। परन्तु यही बात हम अपने जीवन में अमल नहीं कर पाते। और अपने जीवन को समस्याओं में ढकेल दिया करते हैं। आइए इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं।

एक व्यक्ति जो कम पढ़ा-लिखा था और आर्थिक समस्याओं से जुझ रहा था। वह किसी तरह से अपने इकलौते पुत्र को पढ़ा रहा था। वह चाहता था कि जल्द से जल्द उसका पुत्र अच्छी कमाई करने लगे और उसका आर्थिक संकट दुर हो। उसके इस बैचेनी को देखकर कुछ लोगों ने उसे समझाया कि “समय आय तरुवर फलै” , तुम्हारे बैचेन होने से तुम्हारी स्थिति नहीं सुधरेगी।  समय आने पर तुम जो सोच रहे हो अवश्य हो सकता है। तुम परेशान रहोगे, अपने बेटे पर इस बात का दबाब बनावोगे, तो बात बिगड़ भी सकती है। बात तो उन्होंने अच्छी कही, पर उनमें से कितने लोग होंगे जो खुद इस बात पर अमल करते होंगे ? 

धैर्य रखना जरूरी क्यों है – Why it is important to be petient

कारज धीरे होत है’ कविवर के इस महत्वपूर्ण बात को हमेंशा ध्यान में रखकर, इसपर चितन करने और व्यवहार में लाने से जीवन सुखमय हो सकता है। प्रकृति के नियम को हम बदल नहीं सकते। अगर कोई ऐसा सोचता है, तो वह खुद नुकसान उठाता है। जिस प्रकार वृक्ष को अधिक सींचने पर भी शीघ्र फलित नहीं होता, उसमें नियत समय आने पर ही फल लगते हैं। ठीक उसी प्रकार हमारे जीवन में भी अनेक कार्य ऐसे होते हैं, जो नियत समय पर ही पूर्ण होते हैं। अधीर होकर चाहे जितना भी प्रयास किया जाय, समय से पूर्व किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता। अतः कर्मशील होने के साथ-साथ धैर्यपूर्वक प्रतिक्षा करना कर्ता के स्वभाव में होना अनिवार्य है।

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