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मन की रिक्तता : emptiness of mind.

जानिए मन की रिक्तता का अर्थ क्या है ?

मन की रिक्तता ! रिक्तता का आशय है रिक्त होने की अवस्था, खालीपन अर्थात् जहां कुछ भी न हो। इस प्रकार मन की रिक्तता का अर्थ हुवा, मन के रिक्त होने की अवस्था। शाब्दिक अर्थ तो यही निकलता है- मन की ऐसी अवस्था जहां कुछ भी न हो! जहां कुछ भी न हो, पूर्णतः खाली होने की अवस्था। 

परन्तु यह जो मन है भावनाओं से विचारों से भरा हुआ रहता है। तो फिर इस मन के रिक्त होने, खाली होने का तात्पर्य क्या है?  दुसरे शब्दों में मन कोई वस्तु तो है नहीं, ना कोई रुप ना कोई आकार। इसका तो केवल आभास होता है, तो फिर मन की रिक्तता का अर्थ क्या है? इस जटिल बात को समझने के लिए गहनता से विचार करने की जरूरत है।

मन पर विचार जरूरी है — Man Par Vichar Jaruri Hai

मन कोई वस्तु नहीं है, यह तो विचारों का प्रवाह है। यह असंख्य विचारों का प्रवाह है, जो हमारे भीतर बहता रहता है। बिल्कुल वैसे ही जैसे नदी बहती है। और जैसे नदी का प्रवाह बदलते रहता है, वैसे ही मन के विचार बदले रहते हैं। 

एक विचारक ने कहा है कि एक नदी में दुबारा नहीं उतरा जा सकता। क्योंकि जब आप दुबारा उतरने जाएंगे तो जिस पानी में आप पहली बार उतरे थे, वह तो बहकर कहीं जा चुका होगा। मन भी वैसा ही है, इसे दुबारा नहीं पाया जा सकता, जो बह गया वह बहकर चला गया। 

जो बहता रहता है, बदलता रहता है, उसी को हम देख पाते हैं, हमें उसी का आभास होता है। मन में बह रहे, प्रतिपल बदल रहे विचारों के कारण ही हमें मन का आभास होता है। 

हमें मन का केवल आभास होता है। लेकिन यह मन ही है, जो हमसे सब करवाता है। बहुत चंचल, चतुर और चालाक है यह मन! मन की प्रकृति ही ऐसी है कि उसे हमेशा कुछ चाहिए होता है। कामनाओं से भरा यह मन, कामनाओं की पूर्ति के लिए तरह-तरह के उपाय ढुंढता रहता है। मन को हमेशा कुछ चाहिए होता है। रिक्त नहीं रहता कभी विचारों से, परन्तु हमें रिक्तता का आभास कराता रहता है। मन स्वभाव से अतृप्त है, वह तृप्त होना चाहता है! इसलिए खालीपन का आभास कराता है। मन की रिक्तता का वास्तविक अर्थ साधारण के समझ से परे है। 

सामान्य व्यक्ति दौड़ रहा है पाने के लिए, धन के लिए, पद के लिए या कुछ और के लिए। और जो मिला है, वह पर्याप्त नहीं है। अगर कुछ मिल गया तो कुछ और चाहिए। अगर नहीं मिला तो फिर निराशा का भाव उभरता है। निराशा यानि एक तरह का खालीपन जो इच्छानुसार सबकुछ ना हो तो मन में उभरता है। यह मन ही है जो खालीपन का आभास कराता है। और इस खालीपन को भरने के लिए आशा का संचार भी करता है। साधारण व्यक्ति को मन का यह खेल समझ में ही नहीं आता। वह तो वही करता है जो उसका मन कहता है।

खाली दिमाग शैतान का घर — Khali Dimag Shaitan Ka Ghar

सांसारिक विषयों में लगे रहना ही मन का विषय है। वह हमें वही दिखाता है जो वह देखना चाहता है। कामनाएं आंखो से नहीं उठती, मन में पनपती हैं। धृतराष्ट्र अन्धे थे, लेकिन उनका मन कामनाओं से भरा हुआ था। युद्ध के मैंदान में क्या हो रहा है, यह जानने को उनका मन विह्वल हो रहा था। अंततः उन्होंने उपाय भी ढुंढ ही लिया। 

लेकिन हम अपने मन के द्वारा केवल उसी को जान पाते हैं, जो बदल रहा है। विचार बदलते रहते हैं, संसार में उपलब्ध सभी वस्तुएं भी बदलती रहती हैं। समस्त संसार ही परिवर्तनशील है। मन हमें सांसारिक विषयों में ही उलझाकर रखता है। मन के द्वारा हम उसे नहीं जान पाते जो शाश्वत है, जो कभी बदलता नहीं। 

मन की रिक्तता पर दार्शनिक विचार !

दार्शनिक दृष्टि में मन की रिक्तता को ऐसे समझा जा सकता है। मन की दो अवस्थाएं हैं, चेतनावस्था और सुषुप्तावस्था। चेतन भीतर की अवस्था है। चेतना का सम्बंध भीतर से है जबकि सुषुप्तावस्था का जुड़ाव बाह्य गतिविधियों से होता है। चेतना में ही ज्ञान है, विवेक है, मन जब भीतर प्रवेश करता है तो शुद्ध हो जाता है। बाहरी गतिविधियों से रिक्त हो जाता है। 

दार्शनिक ओशो के अनुसार तो मन ही रिक्त है। उन्होंने कहा है कि रिक्त है मनुष्य का मन! और उसे भरने का प्रयास जीवन की असफलता है। लेकिन हम सब भर रहे हैं, सब भर रहे हैं। सब भरने के प्रयास में लगे हैं और लगे हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मन जैसा है रिक्त वैसा ही स्वीकार कर लिया जाय। क्योंकि एक बात तो तय है कि मन कभी भरेगा नहीं! यह असंभव है कि मन भर जाय, क्योंकि मन है रिक्त।

ओशो के कहने का तात्पर्य यही है कि अपने शुद्ध स्वरुप में मन रिक्त है। चेतन अवस्था में वहां कुछ भी नहीं है, कोई प्रवाह नहीं है। कोई कामना, कोई वासना नहीं है,भीतर कुछ भी नहीं है। यह सबकुछ जो है मन के बाहरी तल में है। जिसे हम भर रहे हैं, और कभी भरता ही नहीं है। भरा तो उसे जा सकता है जिसका कोई आकार हो। इसलिए तो जिस मन का हम आभास करते हैं, वह अतृप्त है। बाहरी गतिविधियों में लिप्त मन कभी तृप्त हो भी नहीं सकता। 

जो शाश्वत है, वही चेतना का विषय है। इसका आभास तब होता है, जब मन एकाग्र हो जाता है। जब प्रवाह रुक जाता है, शांत और स्थिर हो जाता है। परन्तु इस अवस्था को पाने के लिए मन को मिटाना पड़ता है। रिक्त करना पड़ता है, समस्त कामनाओं से मुक्त करना पड़ता है।

मन पर नियंत्रण कैसे करें? — How To Control Your Mind?

अब प्रश्न है कि यह मन एकाग्र कैसे हो सकेगा? जिस मन का हमें आभास होता है, वह तो चंचल है। सांसारिक विषयों में लिप्त, अशांत और अस्थिर है। यह बिल्कुल विपरीत अवस्था है। और भीतर के अवस्था तक जाना कठिन है। परन्तु इसके लिए उपाय भी हैं, मन को एकाग्र किया जा सकता है। योगाभ्यास के द्वारा, ध्यान क्रिया के अभ्यास से मन को एकाग्र किया जा सकता है। इन उपायों का निरंतर अभ्यास कर मन को सांसारिक विषयों से मुक्त किया जा सकता है। और मन का सांसारिक गतिविधियों से मुक्त हो जाना ही मन की रिक्तता का वास्तविक अर्थ है। मन को नियंत्रित करने के लिए मन पर ही प्रयोग करना पड़ता है। 

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