मूर्खता मूर्ख होने की अवस्था है। इसके मूल में मूल ‘मूर्ख’ शब्द है। बुद्धहीनता इसका समानार्थी शब्द हैं। अर्थात् यह माना जाता है कि मूर्खता में बुद्धि का अभाव होता है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वास्तव में मूर्ख बुद्धिहीन होते हैं? चूंकि यह मन का विषय है, मन का भाव है। अतः स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि मूर्खता में बौद्धिकता नहीं है।
बुद्धि हमेशा मन का ही अनुसरण करती है। मन में अनेकों तरह के विचार चलते रहते हैं। और ये विचार सही हों यह जरूरी नहीं है। क्योंकि मन कामनाओं से प्रभावित रहता है। मन जिन विचारों को पकड़ कर चलता है, बुद्धि उसी का अनुसरण करने लगती है। बुद्धि जब गलत सोच के साथ चलती है तो कुबुद्धि कहलाती है। और उतम विचारों के साथ चलती है तो सुबुद्धि कहलाती है।
कुछ ऐसे मनोभाव हैं, जो मूर्खता को प्रगट करते हैं। क्रोध, अहंकार, वाणी में कठोरता, जिद अथवा हठ, दुसरों का कद्र न करना आदि मूर्ख होने के भाव हैं। यह जो क्रोध, अहंकार,आसक्ति जैसे भावों का समावेश मन में होता है। इनसे प्रभावित विचारों के साथ चलनेवाली बुद्धि भी मूर्खता में परिवर्तित हो जाती है।
मूर्खता को नासमझी भी कहा जाता है। नासमझी का आशय मन की उस अवस्था से है जहां समझ का अभाव हो। मूर्खता मूर्ख होने का भाव है और नासमझी नासमझ होने का भाव है। सामान्यतः मूर्खता एवम् नासमझी को समानार्थी समझा जाता है। पर गहराई से विचार करें तो मूर्ख होने में और नासमझ होने में फर्क नजर आता है।
विचारक गाल्टन के अनुसार “बुद्धि विभेद करने और चयन करने की शक्ति है।” इनके कथन से यह प्रगट होता है कि बुद्धि में खुद को समझ में ढालने की शक्ति है। बुद्धि जब सही और गलत का भेदकर सही का चयन करती है तो समझ में परिवर्तित हो जाती है। सोच की दिशा को बदलने के लिए एक शब्द, एक व्यक्ति, एक घटना काफी होता है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि मूर्खता समझ की जननी है।
महान कवि कालिदास को कौन नहीं जानता। अपने प्रारंभिक जीवन में वे मूर्ख थे। उनके संबंध में एक बात है जो प्रचलित है। वह जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे। अगर यह सही है तो यह ज्ञात होता है कि वे कितने बड़े मूर्ख थे। कालांतर में परिस्थितियां ऐसी उत्पन्न होती हैं कि उनका विवाह एक विदुषी कन्या से हो जाती है। वह विदुषी कन्या का नाम विद्योतमा था, जो एक राजकन्या थी। विवाह के उपरांत उसे कालिदास के मूर्खता का आभास हो गया। फिर उसने कालिदास को घर से निकाल दिया। यह कहते हुए कि बुद्धिमान होकर ही लौटकर आना, अन्यथा अपना मुख मत दिखाना। यह बात कालिदास के मन को चुभ गयी। कालांतर में इस घटना ने मूर्ख कालिदास को महान कवि कालिदास में परिवर्तित कर दिया।
महाकवि तुलसीदास के संबंध में भी एक बात प्रचलित है। कहा जाता है कि उनकी पत्नी रत्नावली कुछ दिनो के लिए मायके गई हुई थी। वह अपनी पत्नी के प्रति इतना आसक्त थे कि रात के अंधेरे में उनसे मिलने चले गए थे। और सांप को रस्सी समझ पकड़ लिया और छत पर चढ़ गए थे। पति के मूर्खतापूर्ण गतिविधि को देख रत्नावली लज्जित हो गई थी। और उन्होंने दुत्कार लगाते हुए तुलसी से वहां से चले जाने को कहा। उन्होंने दुत्कारते हुए यह कहा था कि मेंरी देह से जो आसक्ति है, इतना अगर श्रीराम से करो, तो तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा। यह बात तुलसदास के मन को छू गई। फिर जो हुवा, उसका परिणाम संसार ने देखा।
एक शब्द, एक व्यक्ति, एक घटना किसी के भी जीवन को बदलने के लिए काफी होता है। मगर कोई बदलना चाहे तभी बदलाव संभव है। मूर्खता की कोई वजह नहीं होती, मूर्खता होती है, हो जाती है। लेकिन मूर्खता में बने रहने के वजह होते हैं। ऐसी मूर्खता को मूढ़ता कहा जा सकता है। मूढ़मति वाले अपनी सोच, अपने बनाए संसार में बने रहते हैं। उनपर किसी के विचारों का, किसी भी घटना का प्रभाव नहीं पड़ता। और अपने बचाव में कुतर्कों का सहारा लेकर चलते रहते हैं। मूढ़ता अल्पबुद्धि का परिचायक है, अधोगामी है। मूढ़ता में अहंकार है, अपने बात पर अड़े रहने का हठ है।
इसलिए तो यह कहा जाता है कि एक मूर्ख को समझाया जा सकता है, लेकिन एक मूढ़ को नहीं। जो अपने बात पर अड़े रहते हों, उन्हें समझाना अत्यंत कठिन है। इस बात को दर्शाती हुवी एक कथा है। एक समय की बात है, मुगल बादशाह अकबर ने अपने मंत्री बीरबल से पूछा कि सबसे कठिन काम कौन सी है। हाजिरजवाब बीरबल ने झट से कहा कि हठी को समझाना। अकबर ने कहा कि अगर ऐसा है तो इसे साबित करो। अन्यथा हमें भ्रमित करने के आरोप में तुम्हें सजा भी मिल सकती है।
बीरबल सोच में पड़ गए, परन्तु उन्होंने इसके लिए तरकीब खोज ली। बीरबल ने बालपन के हठ का सहारा लिया। सलीम जो उस समय छोटा था, बीरबल ने अपनी योजना के अनुसार उसे तैयार कर लिया। उसने एक गन्ना बेचनेवाले को दरबार में बुलाया। जैसा कि सलीम से कहा गया था, उसने ठीक वैसा ही किया। सलीम बादशाह से गन्ना दिलाने का जिद करने लगा। बादशाह ने उसे गन्ना खरीदकर दे दिया।
अब वह गन्ने को टुकड़ने का हठ करने लगा। अकबर ने गन्ने के टुकड़े भी करवा दिए। फिर सलीम उन टुकड़ो को जोड़ने की जिद पर उतर आया। और चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा। बादशाह ने उसे समझाने का बहुत प्रयास किया, पर वह अपने जिद पर अड़ा रहा। बीरबल के चेहरे पर मुस्कान झलक रही थी, आखिर उसने अपनी बात को साबित कर दिया था। बादशाह को यह मानना पड़ा कि हठी को समझाना सबसे कठिन कार्य है।
‘खुंटा यहीं गड़ेगा’ यह एक पुरानी कहावत है, जो प्रचलित है। यह कहावत मूर्खता के अड़ियल स्वरूप मूड़ता का धोतक है। क्षेत्रमिति का सारा ज्ञान एक मूढ़ को दे दिया जाए। लेकिन उसकी बुद्धि वहीं पर अटकी रहती है, जहां पर वह खुंटे को गाड़ना चाहता है। मूढ़ व्यक्ति अपनी बात पर अड़ा रहता है। उसकी बुद्धि उसी की मूर्खता का बखान करने में लगी रहती है।
अक्सर यह देखा जाता है कि गलत विचारों में लिप्त व्यक्ति खुद को गलत नहीं कहता। वह खुद को सही साबित करने की कोशिश करता रहता है। एक मूर्ख को भी तर्कों का सहारा लेते हुए देखा जा सकता है। इस प्रकार देखा जाए तो मूर्खता भी एक गुणवत्ता है। क्योंकि यह ऐसा विचार है जो मूर्ख होने के गुणों का बखान करता है।
मूर्खता की महिमा का वर्णन करते हुए हरिशंकर परसाई का एक कथन है, जो मूर्खता के प्रति हमें सचेत करती है। उन्होंने ने कहा है कि “मूर्खता के सिवा कोई भी मान्यता शाश्वत नहीं है। मूर्खता अमर है, वह बार बार मर कर फिर जीवित हो जाती है।” मूर्ख होने का भाव है, इसके प्रति सजगता की जरूरत है। क्योंकि यह भाव है, किसी के सुखदायी नहीं होता।
किसी भी व्यक्ति को अगर मूर्खता का आभास हो जाए। उसकी बुद्धि उसके मूर्खता का समर्थन न करे। वह इस अवस्था से निजात पाने का अभ्यास करे तो बुद्धिमान बन सकता है। अपने देखने समझने की दिशा को बदलकर अपनी दशा में सुधार कर सकता है।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि “उत्तम बनने के लिए अभ्यास जरूरी है। एक बच्चा पियानो बजाना शुरू करता है. पहले तो उसे सभी बटनों पे ध्यान देना होता है जिन्हें वो उँगलियों से छू रहा होता है, और जैसे जैसे उसकी उंगलियां इस पर महीनो और सालों चलती है, बजाना लगभग सहज हो जाता है।”
ओशो का कथन है कि ” प्रसन्न होने के लिए बुद्धिमता की जरूरत है। और ध्यान तुम्हारे बुद्धिमता को अभिव्यक्त करने का उपकरण है। तुम जितना ध्यान करते हो, उतना ही बुद्धिमान बनते हो। परन्तु स्मरण रहे बुद्धिमता से मेरा मतलब बौद्धिकता से नहीं है। बौद्धिकता मूर्खता का ही एक अंग है। बुद्धिमता बिल्कुल ही एक अलग आयाम है। इसका मस्तिष्क से कोई संबंध नहीं है। बुद्धिमता ऐसी चीज है जो तुम्हारे अंतरतम से आती है।”