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व्यक्ति और व्यक्तित्व!

व्यक्तित्व व्यक्ति का विशेषण है। व्यक्ति संज्ञा है, व्यक्तित्व विशेषण और व्यक्त क्रिया है। व्यक्त से बना है व्यक्ति! और व्यक्त का आशय प्रगट होने से है। व्यक्ति का शाब्दिक अर्थ है, जो व्यक्त होता हो। जिसके पास व्यक्त होने के लिए बुद्धि, विचार, व्यवहार जैसी कुछ विशेषताएं हों। व्यक्ति से जो व्यक्त होता है, उसी से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

व्यक्ति शब्द का प्रयोग मनुष्य के लिए किया जाता है। और जो व्यक्त होता है, वह व्यक्ति है! यह बात समझने की है। हम सभी मनुष्य हैं, व्यक्ति हैं, तो किसी न किसी प्रकार से व्यक्त होते ही रहते हैं। विना कार्य किए कोई रहता नहीं है, कोई जीता नहीं है। जीवन निर्वाह के लिए कार्य तो करना ही पड़ता है। परन्तु अपने दायित्वों का निर्वहन हम किस प्रकार करते हैं, यह महत्वपूर्ण है। हम किन विचारों के साथ जीते हैं, यह महत्वपूर्ण है।

हम खुद को व्यक्त कैसे करते हैं? यह महत्वपूर्ण है। व्यक्तित्व किसी मनुष्य की विशेषता है, जो पूर्णतया व्यक्तिगत मामला है। क्योंकि व्यक्तित्व के विकास के लिए किए जानेवाले प्रयास भी व्यक्तिगत होते हैं।

व्यक्तित्व ही व्यक्ति को
उत्तम बनाता है।
व्यक्तित्व है एक शक्ति
जो श्रेष्ठता का बीज है।
भीतर मन की गहराई में
सबमें जो छुपा होता है।

खोज कर निज प्रयत्न से
जो इसे सींच पाता है।
उसी के जीवन वृक्ष में
व्यक्तित्व का पुष्प निखरता है।

हर कोई जीवन की राह पर
अपने तरीके से चलता है।
सुन्दर व्यक्तित्व के गुण
उसी के जीवन में संवरता है।
कठिन संघर्षों से जो
इसे हर पल संवारता है‌।

ये जो अवयव हैं, जिनसे व्यक्तित्व का निर्माण होता है, किसी व्यक्ति में दो तरह से आते हैं। इनमें से कुछ जन्मजात होते हैं, और कुछ अर्जित किए जाते हैं।

किसी व्यक्ति को उसमें निहित विशेषताओं के अनुसार ही जाना जाता है।

हमारे प्रत्येक गतिविधियों का छाप हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। जो हमारे भीतर संस्कार का निर्माण करते हैं। और हमारे व्यक्तित्व का निर्माण हमारे संस्कारों के द्वारा ही होता है। कुछ जो संस्कार हैं, हम सबमें जन्मजात होते हैं। जिनमें कुछ आनुवंशिक होते हैं, और कुछ दैविक होते हैं। दैविक को पूर्व जन्म के संस्कारों का चिन्ह अथवा प्रभाव माना गया है। और कुछ ऐसे संस्कार होते हैं, जो जन्म के पश्चात हम अर्जित करते हैं। हम जो सीखते हैं, इन्हें भौतिक संस्कार कहा गया है।

गहन अर्थों में खुद को व्यक्त करने के लिए खुद को जानना महत्वपूर्ण है। लेकिन इसके लिए हमें उस शक्ति के मूल प्रकृति को समझना होगा, जो हमें व्यक्त करती है। हमे यह जानना होगा कि व्यक्ति का मूल स्वभाव क्या है? व्यक्ति का अर्थ ही यही है, जो व्यक्त होता हो। तो हमारे व्यक्त होने का मूल स्वरूप क्या है? अर्थात् मनुष्य का आचरण, चरित्र कैसा होना चाहिए, यह जानना जरूरी है। वास्तव में हमारा व्यक्तित्व कैसा होना चाहिए, यह जानना महत्वपूर्ण है। 

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