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मनोबल का अर्थ — Meaning of Morale

मनोबल का तात्पर्य मन की शक्ति से है ! यह एक ऐसी ऊर्जा है, जो असिमित होती है। मन की तीव्रता और असिमिता की भांति मनोबल की भी कोई सीमा नहीं होती। मन से ही विचार उत्पन्न होते हैं और विचारों से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है। यह समस्त  गुणों-अवगुणों के संदर्भ में मन की एक अवस्था है। 

मनोबल ऊंचा या नीचा हो सकता है! यदि मन में सकारात्मक भावों का प्रभाव अधिक हो तो यह ऊंच अवस्था में होता है। और मनःस्थिति नकारात्मक भावों के प्रभाव में हो तो निम्न अवस्था में चला जाता है। 

मनोबल का संदर्भ सीधे कार्य के निष्पादन से है। प्रयास व्यक्तिगत हो अथवा सामुहिक, कार्य-निष्पादन में मन की शक्ति एक निर्णायक भुमिका निभाने वाला अवयव है। मन की शक्ति से आशय है किसी विशेष कार्य को करने में व्यक्ति या समूह द्वारा प्रर्दशित उत्साह एवम् आत्मविश्वास की मात्रा। 

बात अगर सामूहिक मनोबल की हो तो यह सामूहिक वातावरण का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह संगठन के नितियों एवम् उद्देश्यों के लिए इसके सदस्यों के नजरिए को व्यक्त करता है। यह संगठन के प्रति इसके सदस्यों के भावनाओं को प्रगट करता है। और ये भावनाऐं सदस्यों की कार्यकुशलता एवम् संतुष्टि को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार मन की शक्ति एक व्यक्ति को अपने कार्यक्षेत्र, अपने संगठन और अपने वातावरण से प्राप्त होनेवाला कुल संतुष्टि है। मनोबल केवल व्यक्ति के कार्यक्षमता को नहीं दर्शाता है, बल्कि यह एक समूह की शक्ति भी है। समूह में किसी एक व्यक्ति का आचरण दुसरे को प्रभावित करता है। किसी एक व्यक्तित्व के प्रभाव से दुसरा नया व्यक्तित्व का उदय होता है। 

समूह अथवा संगठन में हरेक व्यक्ति या तो सामूहिक सोच की संभावना को बढ़ाता है, या फिर सामूहिक सोच की संभावना को घटाता है। समूह के मनोबल को उत्कृष्ट बनाये रखने का चिंतन प्रत्येक को करना होता है। और इसके लगातार अभ्यास से सामूहिक उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है। 

लोग समूह में कार्य करते हैं तो प्रत्येक के आचरण का समूह के दुसरे व्यक्तियों पर प्रभाव पड़ता है। सामूहिक मनोबल एक-दूसरे के लिए परस्पर सम्मान की मांग करता है। जैसे व्यक्ति के मन की शक्ति में उतार-चढ़ाव होता है, वैसे ही समूह के मनोबल भी ऊंचा या नीचा हो सकता है। 

मन का संयम महत्वपूर्ण है!

उत्साह, साहस, आशा, विश्वास, धैर्य, संतोष आदि मन के उत्तम भाव हैं। मनोबल का संबंध मन से होता है! और मन में उत्तम भावों का होना मनोबल की उत्कृष्टता के लिए आवश्यक है। मनोबल को दृढ़ एवम् उत्कृष्ट बनाये रखना तभी संभव होता है, यदि व्यक्ति का मन शांत हो, नियंत्रण में हो!

सदगुरु जग्गी वासुदेव के शब्दों में : “हमने इस धरती पर जो कुछ भी बनाया है, वह पहले से ही बनाया गया था। मनुष्य ने जो भी कार्य किया है, उत्तम और घृणित दोनों ही! वे सब मन में ही किए गए, बाद में बाहरी दुनिया के सामने प्रगट हुवे। 

सबसे पहले और महत्त्वपूर्ण बात ये है कि आपको स्पष्ट होना चाहिए कि वह क्या है, जो आप चाहते हैं? यदि आपको नहीं पता कि आप चाहते क्या हैं, तो उसे बनाने का सवाल ही नहीं उठता। प्रत्येक मनुष्य जो चाहता है, वह है सुखद अवस्था! स्वयं उसके लिए भी और उसके आसपास भी।

एक बार जब आपका मन संयोजित हो जाता है! आप वैसा ही सोचते हैं, जैसा महसूस करते हैं तो आपकी भावनाएं भी संयोजित हो जायेंगी। एक बार जब आपके विचार और आपकी भावनाएं संयोजित हो जायेंगी तो आपकी ऊर्जा भी सही दिशा में संयोजित होंगी। जब आपके विचार और आपकी भावनाएं तथा आपकी ऊर्जा संयोजित हो जायेंगी तो आपका शरीर भी संयोजित हो जाएगा। जैसे ही ऐ चारो एक ही दिशा में संयोजित हो जाऐंगे तो आप जो चाहते हैं, उसे निर्माण और प्रगट करने की आपकी योग्यता अद्भुत होगी।”

मन पर नियंत्रण कैसे करें! how to control the mind.

शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि प्राचीन समय में हमारे  ऋषि-मुनि अपने मनोबल के माध्यम से अंतरिक्ष की यात्रा किया करते थे। इस संसार के इतिहास का निरीक्षण करें तो  मन की शक्ति के अनेक चमत्कारिक घटनाओं का पता चलता है। 

पाश्चात्य देशों में दिये एक व्याख्यान में स्वामी विवेकानंद ने एक चमत्कारी घटना का उल्लेख किया है। विवेकानंद के शब्दों में : “एक बार मैंने एक चमत्कार करनेवाले महात्मा से मिलने हैदराबाद गया। मिलन के पश्चात एक दिन वो आकर हमारे कमरे में आकर बैठ गये।वे केवल एक धोती पहने हुवे थे, जिस कारण यह संदेह करना व्यर्थ था कि कोई चीज कहीं छिपी होगी। उन्होंने कहा कि कौन सी वस्तु लाकर दूं ? हम लोगों ने भिन्न-भिन्न देशों में उपजने वाले फल मांगे। देखते ही देखते उसी प्रकार के फलों का उन्होंने ढेर लगा दिया। तौले जाते तो वे फल उन सज्जन के शरीर से चौगुने होते। उन स्वादिष्ट फलों को सबने खाया। अन्त में उन्होंने ओस के बुंदों से भीगे बहुत से गुलाब के फूल दिये।

ऐसी चमत्कारिक बातें आपके यहां भी होती होंगी। कुछ बातें काल्पनिक भी की जाती हैं, पर नकल भी असल की ही होती है। यह बातें अविश्वसनीय नहीं होती, केवल हम उन बातों के वास्तविक रहस्य से अनभिज्ञ होते हैं।”

विवेकानंद के अनुसार मनोबल में बढ़ोतरी के लिए मन को संयमित करना आवश्यक है। सामान्य व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है कि उसके विचार और कार्यों में उसका वश नहीं होता। स्वामीजी ने कहा हैं कि “जब हम अपने मन पर पुरा अधिकार कर लेंगे तो दुसरों के मनों पर अधिकार कर लेना भी कठिन नहीं होगा। क्योंकि सभी मन एक ही विश्वव्यापी मन के अंश हैं। मन का संयम सबसे बड़ी विधा है! संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं है जो इसके द्वारा सिद्ध ना हो। सभी धर्मों में भीतरी और बाहरी पवित्रता एवम् निमित्तता का उपदेश इसलिए दिया गया है कि पवित्रता एवम् निमित्तता से मनुष्य मन को अपने नियंत्रण में कर सकता है। और मनोनिग्रह ही सभी सुखों का मूल है।”

महान कार्य आप भी कर सकते हैं!

स्वामी विवेकानंद – ने कहा है कि “विश्वास किजिए कि वर्तमान निम्न अवस्था में परिवर्तन करने की शक्ति प्रत्येक मानव में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। आप जो सोचते हैं विचारते है, जिन चीजों को पाने की योजनाएं बनाते हैं, आंतरिक शक्तियों को विकसित कर निश्चित ही प्राप्त कर सकते हैं।

विश्वास किजिए कि जो कुछ भी अन्य व्यक्तियों ने प्राप्त की है, वह आप भी कर सकते हैं। आपके भीतर वो सभी उत्तम त्तत्व अवस्थित हैं, जिनसे उन्नति होती है। 

विश्वास किजिए कि आपमें अद्भुत आंतरिक शक्तियां विद्यमान हैं। अज्ञानतावश आप इन अज्ञात शक्तियों के भंडार को नहीं खोल पाते। आप जिस मनोबल, आत्मबल अथवा निश्चयबल के प्रभाव को देखते हैं, यह कोई चमत्कार नहीं, बल्कि आपके द्वारा सम्पन्न होनेवाला एक दैवी नियम है। सबमें ये असाधारण एवम् चमत्कारिक शक्तियां समान रुप से विद्यमान हैं। जगत के अनेकानेक व्यक्तियों ने जो महान कार्य किये हैं, वो आप भी कर सकते हैं।”

मन के मते न चलिये – Man Ke Mate mat Chaliye

ज्ञानीजन इस बात को समझाते आये हैं कि शारिरीक बल से मनोबल बड़ा होता है। जीवन एक संघर्ष है, जिसमें सुख और दुख दोनों को झेलना पड़ता है। जीवन में उपस्थित कठिनाइयों से लड़ना पड़ता है। मन से जो हार मान लेते हैं, वे जीवन के जंग में हार जाते हैं। और जो मन से होकर परेशानियों से पार पाने का प्रयास करते हैं, उन्हें जीत हासिल होती है। निम्नांकित दोहे में इस बात को समझाया गया है !

सुख दुख सब कहं परत है पौरुष तजहूं न मीत। मन के हारे हार है मन के जीते जीत।।

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