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राही वही कहलाता है !

जिसे राह में चलना आता है ! रे मन राही वही कहलाता है !! जीवन में परेशानियां आती हैं। परेशानियों से पार पाने का उपाय ढ़ुढ़ना पड़ता है। चिंता करने से छुटकारा नहीं मिलता, और बढ़ जाता है। कभी ऐसा भी होता है कि ये विकराल रूप धारण कर लेती हैं। इन परिस्थितियों में शान्तचित्त होकर, सब्र के साथ इनका सामना करना चाहिए। धीरे-धीरे ये कम हो जाती हैं और फिर समाधान भी मिल जाता है। प्रस्तुत है इसी बात को इंगित करती एक कविता :

राही वही कहलाता है !

ओ राही चलना है तेरा करम
चलते जाना ही है तेरा धरम !
जिसे राह में चलना आता है
रे मन राही वही कहलाता है !

संकरी हो या हो पथरीली
या हो कांटो की चुभन !
हो बर्फीली लहर शीत की
या हो सुलगती धुप की तपन !

संकरी हो या हो पथरीली
या हो कांटो की चुभन !
हो बर्फीली लहर शीत की
या हो सुलगती धुप की तपन !

जिसे राह में चलना आता है
रे मन राही वही कहलाता है !

राह में रोड़े मिलते ही रहेंगे
आती ही रहेंगी परेशानियां !
चिंता का चादर गर ओढ़े तो
ना होंगी कम ये कठिनाइयां !

राह में रोड़े मिलते ही रहेंगे
आती ही रहेंगी परेशानियां !
चिंता का चादर गर ओढ़े तो
ना होंगी कम ये कठिनाइयां !

जिसे राह में चलना आता है
रे मन राही वही कहलाता है !

खामोशी का सेहरा बांधकर
तू बाधाओं को हटाता चल !
सब्र की लकुटी थामकर
बढ़ता चल तू चलता चल !

खामोशी का सेहरा बांधकर
तू बाधाओं को हटाता चल !
सब्र की लकुटी थामकर
बढ़ता चल तू चलता चल !

जिसे राह में चलना आता है
रे मन राही वही कहलाता है !

जाना जो चलने का मरम
रे मन ना रख तू कोई भरम !
मंजिल को तभी छू पायेगा
फिर सुख होगा जीवन में परम !

जाना जो चलने का मरम
रे मन ना रख तू कोई भरम !
मंजिल को तभी छू पायेगा
फिर सुख होगा जीवन में परम !

ओ राही चलना है तेरा करम
चलते जाना ही है तेरा धरम !
जिसे राह में चलना आता है
रे मन राही वही कहलाता है !!

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