अभाव का अर्थ है कम होने की स्थिति। भौतिक स्वरूप में यह मात्रा में कमी की स्थिति है, अनुपलब्धता की स्थिति है, और अस्तित्व में नहीं होने की भी स्थिति है। अभाव की स्थिति भौतिक वस्तुओं की कमी, अप्राप्य होने एवम् नष्ट होने की स्थिति है।
दार्शनिक स्वरूप में अभाव अर्थात् भावरहित अवस्था है, भाव के नहीं होने का भाव है। यह अभाव का आभासी स्वरूप है। इस स्वरूप में यह मन का विषय है। भाव में कमी अथवा भाव का नहीं होना अभाव है।
यह सुख-सुविधाओं, धन-दौलत में कमी के उपस्थित मानसिक अवस्था है। तन-मन मन की सुन्दरता, स्वच्छता एवम् आरोग्यता की कमी के कारण उपस्थित मन की स्थिति है।
अभाव का विश्लेषण। Analysis of lack or scarcity.
अगर किसी विषय पर भाव नहीं हो, तो उस पर विचार भी नहीं होगा। लेकिन अभाव पर विचार करने के लिए भी भाव की जरूरत है। और अभाव में भी भाव है। किसी एक भाव के नहीं होने की स्थिति, किसी दुसरे भाव के होने की स्थिति है। यह जो अभाव है, विश्लेषण करने योग्य शब्द है।
मनोभाव का संबंध विचार से हैं। और विचार का संबंध सोचने की क्रिया से है। मन में भाव की अल्पता अथवा प्रबलता सोचने की क्रिया की गति को प्रभावित करता है। विचारों का प्रवाह की गति मनोभाव की अल्पता अथवा प्रबलता पर निर्भर करता है। मन की चंचलता, व्यग्रता, तीव्रता अथवा स्थिरता सब-कुछ मनोभाव पर निर्भर करता है। किसी विषय पर मनोभाव की मात्रा अथवा उस विषय पर भाव का होने पर निर्भर करता है।
यह जो सोचने की क्रिया है, कुछ पाने के लिए भी होता है, इस कुछ को पाने से भी होता है, और इस कुछ का नहीं मिल पाने से भी होता है। कुछ को खो जाने पर भी होता है, और इस कुछ के खो जाने के भय के कारण भी होता है। मनोभाव जैसा होता है, विचारों का प्रवाह उसी विषय पर होने लगता है। लेकिन विचारों की गति में अंतर होता है, यह मनोभाव के अल्प होने अथवा प्रबल होने पर निर्भर करता है।
यह जो अभाव है, इसका आभास होता है, लेकिन
और एक मनोभाव की उपस्थिति दुसरे मनोभाव में अभाव के उपस्थिति का कारण बन जाता है। अभाव को देखने का एक नजरिया वस्तुगत है। जीवन जीने के लिए जो जरुरी है, उन वस्तुओं का अभाव से मन व्यथित हो जाता है। व्यथा, दुख का भाव है, सुख का अभाव है। कुछ पाने की इच्छा हो तो पाने का प्रयास भी होता है। प्रयास के उपरांत भी अगर सफलता न मिले मन कुंठित हो जाता है। मन की कोई इच्छा पुरी होती है, उस विषय पर वह तृप्त होता है। कुछ समय के लिए ही सही, तृप्त होता है। इच्छा पुरी नहीं होने पर कुंठित होता है। कुंठा का भाव, अतृप्ति का भाव, तृप्ति का अभाव है। कुंठा के कारण सोचने-समझने की शक्ति का अभाव हो जाता है।
मन की आकांक्षा केवल तन की जरुरतों तक ही सीमित नहीं होती। तन की जरुरतें पुर्ण हो भी जाएं, फिर भी जरुरतों का अभाव नहीं मिटता है। मन की जरूरतों के लिए विचारों का प्रवाह होने लगता है। कोई भी कार्य तन की जरुरत अथवा मन की आकांक्षा को पूर्ण करने हेतु किया जाता है। सफलता में व्यवधान उत्पन्न होने पर उस कार्य के प्रति विचारों में बदलाव की आवश्यकता होती है। बदलाव के साथ सफलता के लिए संघर्ष भी करना पड़ता है। परन्तु प्रयास के उपरांत भी असफल होने से मन हतोत्साहित हो जाता है। और उस कार्य के प्रति विचारों का अभाव होने लगता है।
विचारों का प्रवाह उत्साह में भी होता है, और हतोत्साह में भी होता है। मन जब किसी कार्य के शुरुआत के लिए उत्साहित होता है, तो उस कार्य के परिणाम के प्रति आशान्वित होता है। उसी कार्य के विषय में सोचता है, और उसे पूरा करने के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग करता है। परन्तु इच्छित परिणाम प्राप्त नहीं होने पर वह हतोत्साहित हो जाता है। उत्साह से विहीन मन में निराशा का भाव उत्पन्न होने लगता है। यह जो अवस्था है, मन में आशा का अभाव है।
एक भाव का आना दुसरे का अभाव है। दु:ख का आना सुख का अभाव है, निराशा का आना आशा का, उम्मीद का अभाव है। अविश्वास का होना विश्वास का अभाव है। चंचलता इसलिए है क्योंकि स्थिरता नहीं है। पतन की स्थिति इसलिए है, क्योंकि विकासशीलता नहीं है। भय इसलिए है, क्योंकि साहस का अभाव है। अज्ञानता इसलिए है, क्योंकि ज्ञान का का अभाव है। अंधेरा इसलिए है, क्योंकि प्रकाश का अभाव है।
जहां प्रकाश नहीं है, वहीं अंधेरा है। लेकिन अंधेरा का अपना कोई अस्तित्व नहीं है। किसी चीज का अस्तित्व में न होना अभाव है। परन्तु प्रकाश का अस्तित्व है, तो प्रकाश का अभाव कैसे हो सकता है ? अस्तित्व तो अंधेरा का नहीं है। अंधेरा का कोई स्रोत नहीं है, स्रोत तो प्रकाश का है। सुरज प्रकाश का अक्षय है और अपरिमित स्रोत है। अंधेरा वहां है जहां सुरज की किरणे नहीं पड़ती। और जहां किरणें नहीं पड़ती, वहां दीपक जलाया जा सकता है।
प्रकाश का स्रोत है, अ़धेरा का नहीं। इसलिए अंधेरा का कोई अस्तित्व नहीं है। ठीक इसी प्रकार अभाव का अपना कोई अस्तित्व नहीं है। शाब्दिक अर्थ तो यही है कि भाव का नहीं होना अभाव है। लेकिन भाव का अस्तित्व है, अभाव का कोई अस्तित्व नहीं है। भाव का स्रोत है, असिमित है, अपरिमित है। अभाव भी भाव है, ऐसा भाव जो मलीन है। जैसे वस्त्र मलीन हो, तो उसे धोना पड़ता है। धोने से वस्त्र साफ सो जाता है। यह जो वस्त्र है, महीन धागो से बना होता है। वस्त्र को जब धोया जाता है, तो धागे भी धुल जाते हैं। असल में धागों को ही धोया जाता है। अगर धागे ठीक तरह से नहीं धुलेंगे तो वस्त्र मलीन ही रहेगा।
मन वस्त्र के समान है, जब मलीन है तो मन: स्थिति भी मलीन है। मलीन वस्त्र का सतह भी मलीन होता है। यह जो सतह है वस्त्र का मनःस्थिति है। और जो धागे हैं, मन के भाव हैं। मन को धोना पड़ता है, स्वच्छ करने के लिए मन की भावनाओं को शुद्ध करना पड़ता है। निराशा मलीन स्वरूप है, आशा शुद्ध स्वरूप है। अभाव का अपना कोई अस्तित्व नहीं है, यह भाव का मलीन स्वरूप है। मन की निर्मलता : purity of mind. 👈 मन के निर्मल स्थिति में कोई अभाव नहीं है।
और अगर यह मानकर चला जाए कि भाव का नहीं होना अभाव है। तो इसका तात्पर्य है कि भाव की अनुपलब्धता है अथवा इसका कोई अस्तित्व नहीं है। तो अगर भाव नहीं है, तो अभाव भी नहीं रहेगा। आशा नहीं तो निराशा भी नहीं होगी। यह मन के रिक्त होने की अवस्था है। जैसे पानी का बुलबुला। यह दिखाई तो पड़ता है, लेकिन जैसे ही इसका बाहरी परत हवा के सम्पर्क में आता है, यह नष्ट हो जाता है। इसका कारण यह है कि इसके भीतर कुछ भी नहीं है। विचारों का आवरण मन को घेरे हुवे है, जब तक विचार है, तब तक मन है। जब तक इच्छा है, कामना है, तब तक मन का आभास होता है। मन में भीतर कुछ नहीं है।
मन के मिट जाना, अर्थात् समस्त भाव-विचारों से मुक्त हो जाना। पानी के बुलबुले का जो परत है , उसका मिट जाना ही बुलबुले का मिट जाना है। वैसे ही भावनाओं का मिट जाना, मन का मिट जाना है। यह मन की मुक्ति की अवस्था है। मतलब अभी भी अवस्था है, भाव है। कुछ नहीं है, फिर भी कुछ है। यह जो कुछ है, अक्षय है। इस कुछ को आत्मा कहा जाता है। यह जो अक्षय भाव है, इसका परमात्मा है। यह जो ऊर्जा है, प्राण ऊर्जा है, इसे आत्मा कहा गया है।
सुरज प्रकाश का स्रोत है। और इसमें प्रकाश की किरणों का भंडार असिमित है। सुरज की किरणें सुरज के कारण है। यह एक अक्षय भंडार का अक्षय स्रोत है। ठीक उसी प्रकार आत्मा के होने का कारण परमात्मा है। यह आत्मा है, जीवन ऊर्जा का का अक्षय भंडार का अंश है। यह कभी नष्ट नहीं होता, इसमें जो भाव हैं आत्मिक हैं, मानसिक नहीं हैं। जब आत्मिक ऊर्जा की किरणें प्रस्फुटित होती हैं, तो तमस मिट जाता है। मन जब मिट जाता है, तो समस्त भाव-विचार आत्मिक होते हैं। यह आनंद की अवस्था है, यहां कोई अभाव नहीं है, कोई दु:ख नहीं है। अभाव पर विश्लेषण का यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण है। अध्यात्म क्या है? — What Is Spirituality? जानिए।