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मदिरालय! House of wine.

मदिरालय! इस शब्द का विश्लेषण करें तो इसके अर्थ और भाव में भिन्नता है। यह शब्द ‘मदिरा’ और ‘आलय’ दो शब्दों का मेल है। ‘मदिरा’ एक मादकता युक्त तरल पदार्थ है। और ‘आलय’ स्थान विशेष का सुचक है। जहां मदिरा पीने-पिलाने की व्यवस्था हो, उस स्थान विशेष को मदिरालय कहा जाता है। लेकिन यह जो […]

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अभाव का अर्थ । Meaning of scarcity or lack.

अभाव का अर्थ है कम होने की स्थिति। भौतिक स्वरूप में यह मात्रा में कमी की स्थिति है, अनुपलब्धता की स्थिति है, और अस्तित्व में नहीं होने की भी स्थिति है। अभाव की स्थिति भौतिक वस्तुओं की कमी, अप्राप्य होने एवम् नष्ट होने की स्थिति है। दार्शनिक स्वरूप में अभाव अर्थात् भावरहित अवस्था है, भाव

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लघुता से प्रभुता

लघुता से प्रभुता मिलै। Zero to Hero.

लघुता से प्रभुता मिलै, प्रभुता से प्रभु दुरि।चींटी शक्कर लै चली, हाथी के सिर धुरि।। उक्त दोहा संत कबीर की वाणी है। इस उक्ति का शाब्दिक अर्थ है कि लघुता से प्रभुता की प्राप्ति होती है। और प्रभुता के कारण प्रभु से अलगाव होता है। चींटी के मुख शक्कर और हाथी के मस्तक में धुल

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जहां चाह है वहां राह है

जहां चाह वहां राह।।

जहां चाह है, वहां राह है। ‘चाह’ अर्थात् इच्छा, जो मन की भावना है। यह जो मन है, इच्छा का स्रोत है, और इच्छा मन का प्यास है। यह अपने प्यास को मिटाकर तृप्त होना चाहता है। मन तृप्त होना चाहता है, यही चाह के होने का कारण है। और ‘राह’ का प्रयोग यहां तृप्ति

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ध्यान की धारा …!

ध्यान की धारा का अर्थ क्या है? ‘ध्यान की धारा’, इस वाक्यांश में दो विपरीत प्रकृति केशब्दों का प्रयोग हुआ है। एक है ‘ध्यान और दुसरा है ‘धारा’। ध्यान एक क्रिया है, और धारा में भी क्रिया है। एक की प्रकृति में स्थिरता है, और दुसरे की प्रकृति में गतिशीलता। फिर दो विपरीत प्रकृति के

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Change your mind

सोच को बदलो …

‘सोच को बदलो’ अर्थात् अपने मनोदशा को, अपने सोचने की दिशा को बदल डालो। Change your mind, अगर आपके जीवन में कुछ सही नहीं हो रहा है। change your way of thinking, क्योंकि बदलाव से ही परिस्थितियों को बदला जा सकता है। यह एक प्रेरक कथन है। ‘बदलो’ का आशय किसी वस्तु अथवा विषय के

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करो या मरो।। Do or Die.

करो या मरो का जो मंत्र है, मानसिक एवम् आत्मिक दोनो स्वरुपों में महत्वपूर्ण है। एक स्वरुप को समझो तो भौतिक सुख प्राप्त करना संभव हो सकता है। और दुसरा स्वरूप मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

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मैं कौन हूं..?

मैं कौन हूं? खुद को संबोधित करने के लिए ‘मैं’ का प्रयोग किया जाता है। सामान्यतः ‘मैं’ का भाव मन का विषय है। यह जो भाव है, इंद्रियों के द्वारा पोषित होता है। सामान्य व्यक्ति की दृष्टि में इसका उत्तर उसके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। इन्द्रिय जनित अनुभव सामान्य व्यक्ति के दृष्टि में सत्य

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