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करो या मरो।। Do or Die.

Do or Die

करो या मरो! इस कथन का आशय है  कि जीवन में अगर कुछ हासिल करना है, जो जरुरी हो, उसे पाने के लिए जान की बाजी दो। लेकिन यह विचार करना भी जरूरी है कि जरूरी क्या है? धन-दौलत, पद-प्रतिष्ठा या कुछ और। जो जरुरी है, वह कौन सी चीज है, जो न मिले तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। यह कथन हमें कर्म करने की सीख देती है। कर्म ही जीवन है, और सफलता ही जीवन का उद्देश्य है। इस कथन का आशय है कि कर्म विहिन जीवन निरर्थक है। 

करो या मरो! करो का आशय कर्म से है, और मरो का मृत्यु से। यहां मरो का आशय जान देने से नहीं है।  मृत्यु तो अवश्यंभावी है, एक न एक दिन होना ही है। जीवन है तो मृत्यु भी है। लेकिन यह जो जीवन है, कुछ करने के लिए है। अगर जीवन में कोई कर्म नहीं है, तो फिर यह मृतप्राय हो जाता है। वगैर कर्म किए कुछ भी हासिल नहीं हो पाता। ना धन, ना पद, ना प्रतिष्ठा और ना ही कुछ और। कर्महीन जीवन में विपन्नता का दंश झेलना पड़ता है, अपमान का घूंट पीना पड़ता है। कर्महीन जीवन दुखमय हो जाता है। 

अगर जीवन को सुखी बनाना है तो कर्म करना जरूरी है।

यह जो जीवन है, रो रोकर जीने के लिए नहीं है।  खुश रहकर, सुख पूर्वक जीने के लिए है। सांसारिक जीवन में अनेक दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है। इसके लिए कर्म भी करना पड़ता है। जो कर्म करते हैं, कर्म में लगे रहते हैं, वही अपनी जरुरतें पूरी कर पाते हैं। जो कर्म से विमुख होते हैं, उनका जीवन रोते विलखते गुजर जाता है। कष्ट उन्हें भी उठाना पड़ता है जो कर्म करते हैं। परन्तु सफलता की खुशी भी उन्हें ही मिलती है। 

प्रयास करने से वह सबकुछ मिल सकता है, जिसे प्राप्त करने की आकांक्षा हो। प्रयास भी ऐसा जिसमें संघर्ष का समावेश हो। प्रयास ऐसा हो, जिसमें इच्छा की शक्ति का समावेश हो। वैसी इच्छा का कोई अर्थ नहीं है, जो शक्ति विहिन हो। केवल सोचने से, केवल चाहने से कुछ नहीं होता। इच्छित को प्राप्त करने के लिए कर्म करना पड़ता है। जो कुछ भी पाने की आकांक्षा हो, उसे हर हाल में अर्जित करना है। ऐसी जो प्रबल आकांक्षा है, इस कथन में निहित है।

करो या मरो का तात्पर्य है कि सुखी जीवन के लिए कर्म महत्वपूर्ण है। परन्तु पहले यह विचार करना भी महत्वपूर्ण है कि करना क्या है? जो कुछ भी करने की आकांक्षा हो, उसका औचित्य क्या है? जो आकांक्षा उचित है, उसके लिए ही प्रयास करना भी उचित है। 

सामान्यतः मनुष्य जो चाहता है, उसी पर सोचता है। और अगर अपनी चाहत को पूरा करना चाहता है, तो उसके लिए प्रयास करता है। केवल सोचने से उसकी चाहत पूरी नहीं हो जाती। कुछ नहीं करने से अच्छा कुछ करना बेहतर है। लेकिन करो वही जो उचित है, अनुचित कर्म का परिणाम भी अनिष्टकारी होता है। कुछ नहीं करना और कुछ वैसा करना जो अनुचित है, दोनों आत्मघाती होता है। 

करो या मरो! गहनता से विचार करें तो इस कथन का अर्थ भी गहन हो जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन के विषय में जानना ही जीवन का उद्देश्य है। वास्तव में जीवन क्या है और क्यों मिला है? इसे जानने का प्रयास करना ही कर्म है। सांसारिक जीवन में जो कर्म होते हैं, सांसारिक जरुरतों को पूरा करने के लिए किए जाते हैं। और ऐसा करते हुवे एक दिन जीवन का अंत भी हो जाता है। सांसारिक बंधनों में उलझा मनुष्य अपने मूल उद्देश्य से भटक जाता है। और उसका जीवन व्यर्थ चला जाता है। 

मनुष्य सांसारिक बंधनों में उलझकर रह जाता है, इसका कारण क्या है? ज्ञानी कहते हैं कि इसका कारण मनुष्य का मन है। मन अहंकारी हैं, मोह, माया, लालसा जैसे भाव उसमें निहित हैं। मनुष्य संसार को मन की आंखों से देखता है, और उसी में उलझकर रह जाता है। और एक दिन उसके शरीर का क्षय हो जाता है, लेकिन मन का क्षय नहीं होता। पुनः जन्म होता है, शरीर अस्तित्व में आता है, और मन उसी दुषित स्वरूप में उपस्थित हो जाता है। यह जो क्रम है, जन्म और मृत्यु का, यह क्रम चलता रहता है। मनुष्य न तो इस बंधन युक्त जीवन को समझ पाता है, और न उसे बंधन मुक्त होने की समझ होती है। इसी समझ की बात ज्ञानी कहते हैं। इसे समझने के लिए करो या मरो की बात करते हैं।

अजहूं तेरा सब मिटै, जो जग मानै हार।
घर में झगरा होत है, सो घर डारो जार।।

कबीर कहते हैं आज भी तेरा सब मिट सकता है। आज यानि इस जन्म में भी, बीता सो बीता, हुवा सो सुवा। आज जौ है, एक अवसर है, वह सबकुछ मिटाने के लिए, जो अब तक अर्जित हुवा है। जो संस्कार, आसक्ति, अज्ञान अर्जित हुवे हैं, सबको मिटाया जा सकता है। यह जो संसार है, मोह माया का जाल है। इससे जितना प्रयत्न करोगे मुक्त होने का, उतना उलझते चले जानोगे। क्योंकि प्रयत्न तो मन के कहे अनुसार ही होगा, और मन अपने स्वभाव के विपरीत कब तक संघर्ष कर पायेगा।

यह जो घर है, मन रुपी घर अशांत है, अस्थिर है। सबकुछ जो अशांति का, बंधन का कारण है, इस मन के कारण है। जब यह मन मिट जायगा तभी वह सबकुछ मिट सकेगा, जो बंधन का कारण है। इसलिए इस घर को ही जला डालो, इस घर को मिटा दो। कबीर के इस उक्ति में करो या मरो का आध्यात्मिक अर्थ निहित है।

मैं मेरा घर जारिया, लिया पलिता हाथ।
जो घर जारो आपना, चलो हमारे साथ।।

कबीर ने कहा है कि मैने तो अपना घर जला डाला है। अपने हाथ में पलिता लेकर जला डाला है। कहने का आशय है कि अब मन नहीं है। और जब मन नहीं है तो अहंकार भी नहीं है, मोह भी नहीं है। स्वयं के प्रयासों से यह संभव हुवा है। पलिता यानि ज्ञान की बत्ती जलाकर यह संभव हुवा है। कबीर ने ऐसा कहा है, तो सच ही कहा होगा। अर्थात् ऐसा कर पाना संभव है, और कबीर के लिए यह संभव हुवा है, तो अन्य के लिए भी असंभव नहीं है। कबीर ने कहा भी है कि जो अपने इस घर को जलाना चाहता है। जो कोई भी अपने मन को मिटाना चाहता है, मेंरे मार्ग पर चल सकता है। इस उक्ति में भी करो या मरो का मंत्र निहित है।

किसी भी शब्द का, किसी भी उक्ति का अपनी अपनी समझ के अनुसार भिन्न भिन्न अर्थ लगाया जा सकता है। अर्थ के स्वरुप सामान्य भी होते हैं और गहन भी होते हैं। करो या मरो का जो मंत्र है, मानसिक एवम् आत्मिक दोनो स्वरुपों में महत्वपूर्ण है। एक स्वरुप को समझो तो भौतिक सुख प्राप्त करना संभव हो सकता है। और दुसरा स्वरूप मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।  कुछ करो कुछ ऐसा कि मरना न पड़े। जीयो ऐसा कि जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो सको।

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