अनुशासन का आशय नियम से बंधा हुआ आचरण से है। अपने शारीरिक, मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। और इन नियमों को स्वेच्छा से अंगीकार किया जाता है। अगर खुद को अनुशासित करना चाहते हैं, तो नियमों के अनुसार चलना सीखना ही होगा।
जीवन में व्यक्तिगत एवम् संस्थागत, इन दो स्वरुपों में नियमों का पालन करना होता है। व्यक्ति को परिवार, संस्था, समाज एवम् राज्य के द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना होता है। इन नियमों को मानने और इनके अनुसार चलने की बाध्यता होती है। जिन नियमों का पालन करने को बाध्यता हो वह शासन है। परन्तु व्यक्तिगत अनुशासन का निर्वहन स्वेच्छापूर्वक किया जाता है।
सामान्यतः अनुशासन के द्वारा हम अपने आचरण में सुधार करते हैं। आत्मनियंत्रण के द्वारा अपने ऊपर शासन करना और उस शासन के अनुसार जीवन को चलाना ही अनुशासन है। परन्तु गहनता से विचार करें तो यह मनुष्य जीवन के उद्देश्य और उपलब्धि के बीच की कड़ी है। अनुशासन के द्वारा हम स्वयं पर विजय प्राप्त करते हैं।
अनुशासन धारण करने योग्य एक गुण है। और सर्वप्रथम यह गुण हमें हमारे परिवार से प्राप्त होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन निर्वाह के लिए जो आवश्यक गुण होते हैं, अपने परिवार से सीख सकता है। एक अर्थपूर्ण और लोकप्रिय पंक्ति है, “घर ही है पहली पाठशाला, माता ही है प्रथम गुरु।” विगत समय में अनेक माताओं ने बच्चों को उत्तम संस्कार एवम् सदाचार की शिक्षा दी है। अगर घर में ही उत्तम संस्कार सीखने को मिले, तो बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सकता है। भविष्य में वे परिवार एवम् समाज के साथ चलते हुवे अच्छी जिंदगी जीने में सफल हो सकते हैं।
जिन घरों में नित्य की पूजा में धर्म, अर्थ, काम एवम् मोक्ष जैसी पुरुषार्थों की प्राप्ति की कामना की जाती है। उस घर का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है। ऐसे घरों में पल रहे बच्चों का चरित्र उत्तम होगा, इसमें संशय नहीं किया जा सकता। घर का निर्माण घर में रह रहे लोगों के आचरण से होता है। समाज ऐसे ही घरों का एक वृहत रुप होता है।
नियम क्या है !
अब प्रश्न यह है कि नियम क्या है? कौन से ऐसे नियम हैं, जिनको स्वीकार करना एवम पालन करना अनिवार्य है! संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए जो जरूरी हैं, उन आदतों, गतिविधियों को नियम कहते हैं।
भारतीय दर्शन के अनुसार अनुशासन का संबंध भीतर से है, अर्थात् वही व्यक्ति अनुशासित माना जाता है, जो जीवन में आत्मनियमन एवम् आत्मनियंत्रण का सहारा लेता है। रामायण, भगवतगीता, उपनिषद आदि ग्रन्थों के उपदेशानुसार चलने का प्रयत्न हो स्वयं को अनुशासित किया जा सकता है।
‘योगसूत्र’ नामक ग्रन्थ में शारिरीक, मान्सिक एवम् आत्मिक विकास के लिए अष्टांग योग का मार्ग बताया गया है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि इस मार्ग पर चलने के आठ आयाम हैं। यम का अर्थ है संयम, जो पांच प्रकार का होते हैं, सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
शौचसन्तोषतप: स्वाध्याय ईश्वरप्राणिधानि नियमा।”
इसी प्रकार शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्राणिधान नियम के अंतर्गत आते हैं। इनका अभ्यास करके स्वयं को अनुशासित किया जाता है।
आसन से तात्पर्य है, सुखपूर्वक बैठने का तरीका, जो शरीर को स्थिर रखने की साधना है। श्वास-प्रश्वास की गति विच्छेद प्राणायाम कहलाता है। इन्द्रियां अपने बाहरी बिषयों से हटकर अन्तर्मुखी हो जाती हैं, इसी का नाम प्रत्याहार है। शरीर के किसी अंग पर अथवा बाह्य पदार्थ पर मन को लगाना धारणा कहलाता है। मान्सिक शांति, एकाग्रता और मन को निर्विकार करने के लिए ध्यान किया जाता है। और ध्यान के परिपक्व अवस्था को समाधि कहा जाता है। इन आयामों में प्रवेश कर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। •विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें — राजयोग क्या है जानिए ! Know about Raja Yoga!
परन्तु इन कठिन आयामों में प्रवेश के लिए दृढ़निश्चय की जरूरत होती है। और यह दृढ़निश्चय, दृढ़विश्वास जैसे गुण अनायास प्रगत नहीं हो जाते। अष्टांगयोग के अभ्यास से पूर्व दैनिक दिनचर्या में शामिल सामान्य क्रिया-कलापों में बदलाव का प्रयत्न करना जरूरी होता है।
पहले उन आदतों को त्यागने का अभ्यास होना चाहिए, जो प्रगति में बाधक होते हैं। कौन सी आदतें अच्छी हैं और कौन सी बुरी, यह तो सभी को मालुम है। परन्तु अच्छी आदतों के साथ जीने का प्रयत्न बहुत कम लोग ही कर पाते हैं। यही कारण है कि आज के समय में अनुशासनहीनता का बोलबाला है। लोगों में सोचने-समझने की शक्ति का ह्रास हो रहा है। किसी व्यक्ति के आसपास के लोग जैसा करते हैं, उसी का अनुकरण वह कर रहा है। सही क्या है! गलत क्या है! इस विष्य पर सोच-विचार कर उत्तम मार्ग तलाशने की प्रवृति बहुत थोड़े लोगों में ही दिखाई देती है। विना आत्म अनुशासन के कोई प्रगतिशील हो ही नहीं सकता। यह सर्वमान्य तथ्य है, कि किसी भी व्यक्ति के सफल होने का मूख्य आधार अनुशासन है। अनुशासन के विना मनुष्य का जीवन कटिपतंग की तरह है।
अनुशासन पर अनमोल वचन !
पहली और सबसे अच्छी जीत स्वयं को जीतना है ! _ प्लेटो
जो अनुशासित नहीं है उसका ना तो भुत है और ना ही भविष्य !
आचार्य चाणक्य
आत्म अनुशासन से स्वतंत्रता मिलती है !
Arastu
व्यक्ति खुद ही अपना सबसे बड़ा रक्षक हो सकता है और दुसरा कौन उसकी रक्षा कर सकता है? अगर आपका स्वयं पर पुरा नियंत्रण है तो वह क्षमता हासिल होगी जिसे बहुत कम लोग हासिल कर पाते हैं..!
एक अनुशासित मन सुख की ओर जाता है और एक अनुशासनहीन मन दुख की ओर जाता है!
दलाई लामा
Sadguruदिमाग एक शक्तिशाली साधन है, आपका हर विचार, हर भावना आपके शरीर को प्रभावित करती है। यदि आपकी सारी ऊर्जा एक दिशा में केन्द्रित है तो ज्ञान दुर नहीं है। आखिरकार आप जो खोज रहे हैं, वो पहले से आपके भीतर मौजूद हैं।
Sadguru
कुंठा, निराशा और अवसाद का मतलब है कि आप अपने खिलाफ काम कर रहे हैं। यदि आप ध्यान की स्थिति में हैं तो ऋणात्मक ऊर्जा आपको छु भी नहीं सकती।
Sadguru
अनुशासन के विना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है
संघर्ष एवम् उत्थल पुत्थल के विना जीवन विल्कुल नीरस जायगा, अतः घबरायें नहीं। लाभ की ईमारत कष्ट के धुप में ही बनती है।
विनोबा भावे
आत्मज्ञान की तलवार से काट कर अपने हृदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर दो! अनुशासित रहो ! _ गीता
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