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उन्नति क्या है? — What Is Improvement?

उन्नति का अर्थ है विकसित होने की अवस्था। इसका संबंध गति से है। पूर्व की स्थिति से उत्तम स्थिति की ओर अग्रसर होना उन्नति समझा जाता है। विकास, उत्थान, प्रगति, तरक्की आदि इसके समानार्थी शब्द हैं। उन्नति का विपरीत है अवनति। अवनति का अर्थ है पतन, अर्थात् पूर्व की स्थिति से निम्न स्तिथि में जाना। उत्थान और पतन की स्थिति किसी न किसी रूप में हरेक के जीवन में उपस्थित होता है। 

सामान्यतः उत्थान-पतन को शारिरीक, मानसिक एवम् भौतिक इन तीन स्थितियों में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है। उम्र के साथ-साथ शरीर  विकसित होता है, इसे शारीरिक उन्नति समझा जाता है। बाल्यावस्था से युवावस्था, फिर वृद्धावस्था और अंत में मृत्यु के घटित होते ही शरीर का पतन हो जाता है।

इस पुरे जीवन यात्रा में शरीर के साथ साथ व्यक्ति के मान्सिक गतिविधियों में भी परिवर्तन आता है। सामान्यतः भौतिक संसाधनों को पाने में जो सफल होते हैं, वे स्वयं को प्रगतिशील समझते हैं और अन्य के दृष्टि में भी वे प्रगतिशील समझे जाते हैं। यही कारण है अपने जीवन काल में अधिकांश मनुष्य अपनी समस्त शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का उपयोग भौतिक सुखों को प्राप्त करने में लगाता है। प्रगति करना सभी को अच्छा लगता है। लेकिन मान, पद, प्रतिष्ठा एवम् भौतिक सुखों की प्राप्ति उन्नति है अथवा बौद्धिक स्तर को उत्तमता की ओर ले जाना उन्नति है। इस बात को समझने का प्रयास बहुत कम लोग करतें हैं।

प्रगतिशील होने का अर्थ क्या है !

संसार में समय समय पर अनेक प्रगतिशील व्तक्तियों का अवतरण हुवा है। बुद्ध, महावीर, जीसस, नानक, कबीर आदि अनेक महापुरुष हुवे, जो अपने अपने समय में प्रगतिशील हुवे। इन्होंने प्रगति के उच्चतम शीखर को छुवा और संसार के लिए पूज्य हुवे। उन्होंने ने जो कहा; लोगों ने उनके विचारों का अर्थ अपने अपने तरीके से लगाया। जबकि सबने आत्मसुधार पर बल दिया और प्रत्येक मनुष्य के लिए इसे महत्त्वपूर्ण कहा है। हम ज्ञानियों के कथनों को यदा कदा पढ़ते हैं, पर गुणते नहीं। हम किसी शब्द के गहराई तक क्यों नहीं जा पाते? इसका कारण यह है कि हमारे जीवन में चिंतन नहीं है।

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अपने जीवन यात्रा में कौन क्या प्राप्त कर पाता है, वही उसकी उपलब्धि होती है। जब कोई व्यक्ति अपने बौद्धिक अवस्था को विकसित कर लेता है तो वह प्रगतिशील हो जाता है। ज्ञानियों की मानें तो प्रगतिशील होने का अर्थ बौद्धिक संपदा को प्राप्त कर आनंद की अवस्था में प्रवेश करना है।

जीवन का आनंद कैसे उठाएं – Jeevan Ka Anand Kaise Uthayein

वर्तमान समय में सदगुरु जग्गी वासुदेव क्रान्तिकारी विचारक के रूप में उभरकर प्रगट हुवे हैं। उन्होंने जीवन को सहज और प्रगतिशील बनाने के लिए बहुत ही सरल ढंग से अपने विचारों को व्यक्त किया है। 

सदगुरु के शब्दों में : “मैं तुम्हें बदलना चाहता हूं- यह क्रांति नहीं है! मैं बदलना चाहता हूं यह क्रांति है..!”

आधुनिक विचारक सदगुरु ने  आत्मानुशासन के माध्यम से आत्मसुधार को क्रांति कहा है। क्रांति का अर्थ बदलाव होता है, और जो स्वयं को पूर्व के स्थिति से उत्तम स्थिति में बदलने के लिए सज्ज होते हैं, वही प्रगतिशील होते हैं। 

ज्यादातर लोग पंछी की तरह पिंजरे में रहते हैं। पिंजरे का दरवाजा खुला है! लेकिन वे पिंजरे में इतने व्यस्त हैं कि कोई और संभावना उन्हें दिखती ही नहीं।”

Sadguru

आखिर हम उन्नति, प्रगति के सही अर्थ को समझ क्यों नहीं पाते! प्रत्येक शब्द के गर्भ में उसका अर्थ छुपा हुवा है, और गहनता से विचार करने पर ही उसका आशय परत दर परत समझ में आता है। किसी शब्द विशेष के सही अर्थ को समझने के लिए जो आधार त्तत्व है, वह है आत्मज्ञान! और यह जो ज्ञान है वह कहां है? प्रत्येक के भीतर एक चेतन तत्त्व विद्यमान है। जिसके भीतर चेतना का विकास हो जाता है, वह जागरुक हो जाता है, उन्नतिशील हो जाता है। जो  तर्क-वितर्क एवम् अतीत के भंवर में उलझा रहता है, वह पतनशील हो जाता है। 

जीवन में दुख क्यों है? – Jeevan Me Dukh Kyun Hai?

“सांसारिक चीजों से निबटने के लिए आपका तार्किक दिमाग काफी है। पर अगर आप उस आयाम में प्रवेश करना चाहते हैं जो आध्यात्मिक है, तो यह किसी काम का नहीं है। चैतन्य को छुने, अनुभव करने और जानने में जिस सबसे बड़ी बाधा का इंसान सामना करता, वह है तर्क से ऊपर उठने की उसकी अनिच्छा। आत्मज्ञान का मतलब यह एहसास होना है कि आप अब तक कितने बड़े मुर्ख थे। हर चीज यहीं ठीक आपके भीतर थी और आपको इसकी खबर तक नहीं थी।”

Sadguru

क्रान्तिकारी दार्शनिक ओशो के शब्दों में; प्रगतशील होने के लिए अनिवार्य है कि अतीत के ज्ञान को न पकड़ें। जिसने अतीत को जोर से पकड़ लिया, वह भविष्य के प्रति बंद हो जाता है। वह प्रगतिशील नहीं रह जाता है। प्रगतशील होने का अर्थ है कि जिसका संबंध अतीत से नहीं है, भविष्य से है। भविष्य अभी पैदा नहीं हुवा। जो पैदा हो गया है उसके संबंध में निश्चित हुवा जा सकता है कि वह क्या है, और जिसका संबंध भविष्य से है उसके संबंध में बहुत निश्चित नहीं हुवा जा सकता है कि वह क्या है।

“हमारा मन अतीत से निर्मित होता है – पास्ट ओरियेंटेड होता है। हम जो भी जानते हैं! वह अतीत से आता है और जो भी जीवन है वह भविष्य से आता है। इसिलिए जीवन और जानने में तालमेल नहीं होता।”

Osho

जीवन को उन्नत बनाने के लिए स्वामी विवेकानंद का एक एक वचन किसी के भी जीवन को सार्थक करने का सामर्थ्य रखता है। विवेकानंद ने कहा है कि “आदर्श अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा मानविय मूल्यों के विना किसी का जीवन महान नहीं हो सकता।” 

स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekanand Ka Mahan Jeevan

 “जो कुछ भी तुम्हें कमजोर बनाता है, शारिरीक, मानसिक या बौद्धिक, उसे जहर समझकर त्याग दो। चिंतन करो चिन्ता नहीं, नये विचारों को जन्म दो।”

Vivekananda

पाश्चात्य विचारक ‘Soren Kierkegaard‘ के अनुसार अतीत से हमें सीखना चाहिए और हमेंशा जीवन में आगे की ओर बढ़ना चाहिए। यही प्रगति है, क्योकि प्रगति में गति है।

Life can be understood backwards, but it must be lived forwards”

Soren Kierkegaard

विवेकानंद ने कहा है कि “जब तक जीना है तब तक सीखना है, अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।” 

ओशो का कथन है कि ” जो जीवन चारों तरफ फैला हुवा है, उसके प्रति जागना है। जीवन के प्रति निरन्तर, सतत ऑब्जर्वेशन का, निरीक्षण का भाव रखना जरूरी है। जिस मात्रा में हम बाहर के प्रति जागेंगे उसी मात्रा में हमारे भीतर जागरण की शक्ति बड़ी होती चली जाएगी।” 

इसी बात को सदगुरु अपने तरीके से कहते हैं कि “आप जहां भी हों, आपका जिस भी चीज से सामना हो, हर परिस्थिति में जो भी उत्तम है, उसे ले लें। तब जीवन सीखने का एक सिलसिला बन जाता है।”

चिंता नहीं चिंतन करो ..!

उपरोक्त कथनों पर विचार करने पर आज के समय में जीवन के आस-पास जो साधारण विचार उभरता है! वह है कि अतीत को पकडकर रहना नहीं, अतीत से सीखना चाहिए। क्योंकि अनुभव अतीत से ही आता है। जितना अधिक हो सके उसका अध्ययन करें, उसपर चिंतन करें। अतीत में उलझना चिंता है, पर अतीत से सीखना चिंतन से ही संभव है। अपने विषय में, दुसरो के विषय में, बीते हुवे कल के हर स्थिति-परिस्थिति के विषय में चिंतन अवश्य करना चाहिए। वर्तमान महत्वपूर्ण है! यह वह समय है जब आपको उन त्रुटियों  में सुधार के लिए प्रयत्न करना चाहिए। जहां तक बात भविष्य की है, तो खुद पर विश्वास रखना चाहिए।

यह संपूर्ण संसार मनुष्य की शक्ति से, उत्साह की शक्ति से, विश्वास की शक्ति से निर्मित हुवा है। या तो हम संपूर्ण संसार पर विजय प्राप्त करेंगे या मिट जायेंगे। इसके सिवा और कोई विकल्प नहीं है।

स्वामी विवेकानंद

यह जो जीवन है, यही हमारा संसार है, विश्व है। और विश्व में आस विश्वास है। जीवन है तो संसार है! यह जो जीवन हमें मिला है, क्यों मिला है? जीवन का उद्देश्य क्या है? इसे जानना और पाना ही हमारा लक्ष्य है।

यह जन्म हुवा किस अर्थ अहो, समझो जिसमें की व्यर्थ न हो। सम्हलो की सुयोग न जाए चला, कब व्यर्थ हुवा सदुपाय भला। समझो जग को न निरा सपना, पथ आप प्रशस्त करो अपना। परमेश्वर हैं अवलम्बन को ! नर हो न निराश करो मन को ! कुछ काम करो कुछ काम करो, जग में रह कर कुछ नाम करो।

मैथिलीशरण गुप्त

सामान्य व्यक्ति को जो समझ में आता है, वह करता चला जाता हैं। और ऐसा करते हुवे एक दिन उसके जीवन का अंत हो जाता है। वह वही करता है जो परंपरा से चलता आया है। वह वही करता है जो वह सीखता है। जिन चीजों को प्राप्त कर लेने को वह उपल्ब्धि समझता है, वह अपना सारा कौशल उन चीजों को प्राप्त करने में लगाता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि खुद में निहित अवगुणों को दुर कर सदगुणों को विकसित करना उन्नति है। स्वयं में निहित त्रुटियों में संसोधन का नाम उन्नति है। और इसके लिए हर किसी को प्रयास करना चाहिए। 

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