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असतो मा सद्गमय — Asato Ma Sadgamaya

असतो मा सद्गमय – उपनिषद का यह मंत्र जीवन में प्रगति के लिए अत्यंत विशिष्ठ है। जीवन में सफल होने के लिए मन की शांति और सकारात्मक ऊर्जा का होना महत्त्वपूर्ण है। यह मंत्र हमें इस बात का स्मरण कराता है। हमें सचेत करता है कि हम जो भी कर रहे हैं, हमसे जो भी हो रहा है, उसका औचित्य क्या है? तीन सुत्रों में बंधा इस मंत्र में जीवन जीने का सार छिपा है। तीनों सुत्र एक दुसरे से भिन्न नहीं हैं, ये एक ही सत्य के तीन पहलू हैं। 

असतो मा सद्गमय! तमसो मा ज्योतिर्गमय!
मृत्योंमाऽमृतंगमय ! ॐ शांति शांति शांति: !!!

कहते हैं ऋषि – असतो मा सद्गमय! असत से सत की ओर ले चलो! तमसो मा ज्योतिर्गमय! अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। और मृत्योंमाऽमृतंगमय ! मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। अंततः मन को शांत करना और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना ही इस मंत्र का उद्देश्य है। गहन अर्थों में उपनिषद के इस मंत्र में भीतर के चेतना को जगाने की याचना है‌।

असतो मा सद्गमय ..! यह एक प्रार्थना है, एक याचना है, एक आवाहन है। परन्तु किससे यह स्पष्ट नहीं है, प्रगट नहीं है। इसके लिए किसी शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, शब्द गौण है। शब्द तो गौण है, परन्तु यह एक प्रार्थना है! और प्रार्थना में हम याचना करते हैं ईश्वर से! यही हमें बताता गया है। इस मंत्र का उच्चारण करते हैं हम! तो प्रार्थना करते हैं ईश्वर से कि “हे प्रभु! हमें असत से सत की ओर ले चलो! अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो! मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो!”

तमसो मा ज्योतिर्गमय! तमस यानि अंधकार और ज्योति का अर्थ है प्रकाश। कहते हैं ऋषि: जिसने रचा है इस मंत्र को,  हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। अर्थात् जो असत् है, अवांछनीय है, वह अंधकार है। और  समझ के अभाव में यह दिखता ही नहीं कि सत क्या है! वह जो कुछ घट रहा है हमारे जीवन में, वह उचित है या अनुचित! अज्ञान के अंधकार में कुछ दिखता नहीं, देखने के लिए तो प्रकाश चाहिए।

मृत्योंमाऽमृतंगमय ! कहते हैं ऋषि इस सुत्र में कि मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। असत है अंधकार! अंधकार का कोई अस्तित्व नहीं है। अंधकार वहां है जहां प्रकाश का अभाव है। अज्ञान का अंधकार तब तक है जीवन में जब तक ज्ञान का अभाव है। अज्ञानता जीवन को नष्ट करता है। अज्ञान मृत्यु है और ज्ञान अमृत है। ज्ञान हो जीवन में तो उत्कृष्टता की ओर ले जाता है। अमरता की ओर ले जाता है।

ओशो के शब्दों में: “अंधकार तो होता ही नहीं! अंधकार तो केवल अभाव है। अंधकार की कोई स्थिति नहीं है, कोई सत्ता नहीं है। अंधकार से लड़कर तुम अंधकार को मिटा नहीं सकते। तुम्हारी हार निश्चित है!

यह प्रार्थना कहती है कि हे प्रभु अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो! इतना जान लो कि अंधकार है ही नहीं, इतने जान लेने में ही प्रकाश हो जाता है।”

ओशो के कहते हैं कि ‘अंधकार है ही नहीं’  और हम हैं किअंधकार से छुटकारा पाना चाहते हैं। इस तर्क से भी भ्रांति होती है। पर गौर करें तो स्पष्ट होगा कि जो है नहीं, उसका क्या करना! अंधकार होता तो उसे दुर किया जा सकता था। पर अंधकार है ही नहीं, उसे दुर कैसे करेंगे। 

उनके कहने का तात्पर्य है कि सत्ता तो प्रकाश का है। सर्वत्र यानि बाहर-भीतर चारों ओर सत विद्यमान है। पर हम उसे जान नहीं पाते, हम उसे देख नहीं पाते। वास्तव में हमें इस बात का समझ नहीं है। 

असत यानि जो सत नहीं है। तो फिर सत क्या है? हम कहां हैं और कहां जाने की कामना करते हैं? क्या हमें इस बात की समझ है? हम जो बोलते हैं, करते हैं, इसका समझ होना महत्त्वपूर्ण है। अगर समझ ही नहीं है तो इस सारगर्भित मंत्र का कोई लाभ नहीं हो पाता। यह मंत्र हमारे जीवन में तभी सार्थक हो सकता है, जब हमारे भीतर समझ हो। 

सदगुरु के शब्दों में: “असतो मा सद्गमय एक आवाहन है तो याद दिलाता है कि आप जो कर रहे हैं, वह कार्य उत्तम है। चाहे वह विचार हो अथवा फिर कर्म। हम जो भी कर रहे हैं, उसमें किसी का कोई अहित न हो।

अगर आप चाहते हैं कि कुछ इस तरह से चीजें की जाएं, तो आपको अपने भीतरी प्रकृति और आपके आसपास की दुनिया से जुड़े जीवन के उस पहलू से जुड़े सत्य को खोजना होगा!!”

जीवन में प्रार्थना का होना जरूरी है। हम जो मांगते हैं वो मिलता अवश्य है। परन्तु हमें वास्तव में क्या चाहिए, यह समझना भी जरूरी है। और इसे समझने के लिए जीवन में अध्यात्म का होना अनिवार्य है। प्रार्थना हम सांसारिक सुखों को प्राप्त करने के लिए करते हैं या  उन्नति के लिए! शांति के लिए! यह समझना जरूरी है। 

सदगुरु के अनुसार : “योग (योग क्या है! जानिए : Know what is yoga !) का मतलब एक ऐसे जीवन की ओर आगे बढ़ना है, जहां हर चीज बेहतर तरीके से काम करती है – आपका शरीर, आपका मन, आपकी ऊर्जा, आपकी भावनाएं, यहां तक की आपके आस पास की स्थितियां भी। यदि आप सिलसिलेवार इस बात पर गौर करें कि कैसे शरीर काम करता है। फिलहाल हमने ऐसी सामाजिक स्थिति बना रखी है कि जहां आपको इस बात की परवाह नहीं है।

आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब है अपनी प्राथमिकताओं को तय कर खुद से जुड़ी हर चीज को इस तरह सीध में लाना कि हर चीज अच्छी तरह से काम करें। अगर आप अपनी प्राथमिकताओं को तय नहीं करेंगे तो आप ये भी नहीं जान पायेंगे कि शांतिपूर्वक कैसे बैठा जाए। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब सारी चीजों को सही तरह से देखने की है।”

असतो मा सद्गमय..! जिन्होंने लिखा है इस मंत्र को, उनकी बात कुछ और है। उन्होंने जान लिया था सत को! उन्होंने इस प्रार्थना में इसी सत को पा लेने का इशारा भर किया है। याचना हो सत की ओर ले जाने की, और साथ में प्रयास हो वहां तक पहुंचने की। जो ऐसा करते हुवे आगे बढ़ते हैं, वही इसे अपने जीवन में सार्थक कर पाते हैं। 

वास्तव में हम जानते ही नहीं कि सत क्या है? ईश्वर क्या है? हम केवल याचना करते हैं! और इसके लिए कर्म नहीं करते। हम चाहते हैं कि जीवन में सबकुछ अच्छा हो। और इसके लिए प्रार्थना करते हैं ईश्वर से! और अगर कोई पूछे कि प्रार्थना जिससे करते हो, उसे जानते भी हो? तो सामने असमंजस खड़ा हो जाता है। 

इस भ्रांति का निदान करते हुए ओशो कहते हैं कि “मेंरा जोर प्रार्थना पर नहीं है, मेंरा जोर ध्यान पर है, फर्क समझ लेना। प्रार्थना कहती है; ऐसा कर दो प्रभु! ध्यान अपने भीतर खोजता है कि कैसा है। और ध्यानी पाता है कि अंधकार तो है ही नहीं। प्रार्थना क्या करनी है, जाओ भीतर और देखो आलोक ही आलोक है।”

ध्यान (ध्यान क्या है जानिए ! Know what is meditation.) की एक खुबी है, उसकी वैज्ञानिकता है। ध्यान कहता है कि कुछ भी मानने की आवश्यकता नहीं है। ध्यान तो एक वैज्ञानिक विधि है। शांत होने की मौन होने की कला ही ध्यान है। इसलिए तो मैं कहूंगा जागो! और जागोगे अपने भीतर तो पावोगे अंधकार नहीं है, असत्य नहीं है, मृत्यु नहीं है।”

आध्यात्मिकता (अध्यात्म क्या है ! Know what is spirituality.) अव्यवहारिक नहीं है, परन्तु साधारण को यह समझ में ही नहीं आती। बहरहाल व्यवहार में हो अथवा कार्य में, जिस समझ की जरूरत है जीवन को जीने के लिए! समझ लिजिए यह मंत्र हमें इस बात का स्मरण दिलाता है। प्रार्थना जरुरी है, याचना जरुरी है! हो सकता है प्रभु की अनुकंपा मिल जाये और जीवन सरल हो जाय। और अगर ध्यान हो जीवन में तो उस त्तत्व को खोजा जा सकता है जो सत है। यह प्रार्थना हमारे भीतर की समझ को, चेतना को जगाने की एक प्रक्रिया है। 

असतो मा सद्गमय! तमसो मा ज्योतिर्गमय!
मृत्योंमाऽमृतंगमय ! ॐ शांति शांति शांति: !!!

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