‘गुरु’ को परिभाषित करना सरल नहीं है। संत कबीरदास ने कहा है; कि सात समन्दरों के जल को स्याही बना दी जाय, सभी वृक्षों को कलम बना दिया जाय, समुचे धरा को कागज बना दिया जाय तब भी इनकी महिमा को लिखा नहीं जा सकता है।
सात समद की मसि करो लेखनी सब बनाई। धरती सब कागद करो गुरु गुण लिखा न जाय।।
संस्कृत भाषा के अनुसार ‘गु’ का अर्थ ‘अंधकार’ और ‘रु’ का अर्थ ‘ज्ञान का प्रकाश’ होता है। अतः इस आधार पर इस शब्द का अर्थ है ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’। गुरु एक निष्ठावान, श्रद्धा से पूर्ण व्यक्ति हैं। अपने अनुभवजन्य ज्ञान से आध्यात्मिक विकास में सहायक है। वह सबकुछ है, शिक्षक भी है, मार्गदर्शक भी है, विषेशज्ञ भी है और इन सबसे बढ़कर उद्धारक भी है। वह आत्मिक ज्ञान देनेवाला शिक्षक है। वह एक निस्वार्थ मार्गदर्शक है, बाहर से कठोर है और भीतर से प्रेम से परिपूर्ण है।
गुरु की महिमा अपरम्पार है !
स्वामी तपेश्वरानंद – Swami Tapeshwaranand : biography 👈
गुरु कुम्हार शिष कुम्भ है गढ़ी गढ़ी काड़ै खोट। अन्दर हाथ सहार दे बाहर मारै चोट ।।
संत कबीरदास कहते हैं; गुरु और ईश्वर दोनों साथ खड़े हों तो पहले वंदना किनकी की जाय। किनका चरण स्पर्श पहले हो। असमंजस की स्थिति है। पर उन्होंने आगे कहा है; बलिहारी तो उनकी है जो ईश्वर का साक्षात्कार कराते हैं। यह उनके महिमा, उनके कृपा से ही संभव हो पाता है। शास्त्रों में उल्लेख किया गया है, कि गुरु ब्रम्हा, विष्णु और शिव स्वरुप है। वह साक्षात् परब्रह्म है, ऐसे महात्मा को नमन है।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पायं। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।
शिक्षक की अपनी सीमाएं होती है !
साधारणतया एक शिक्षक, मार्गदर्शक अथवा किसी विषय के विशेषज्ञ को हम गुरु से संबोधित करते हैं। परन्तु इस वास्तव में ऐसा नहीं है। एक गुरु कुशल शिक्षक होता है, लेकिन एक शिक्षक में गुरुत्व का भाव हो यह जरूरी नहीं। आज के समय में एक शिक्षक, मार्गदर्शक के लिए सीमाएं तय हो गई हैं। वह किसी खास बिषय की शिक्षा प्रदान करता है। वह व्यावसायिक है, पारिश्रमिक लेता हैं। वह ज्ञानदान के उद्देश्य से कम, अर्थोत्पारजन के लिए अधिक कार्य करता है। वह निस्वार्थ नहीं है। इनकी अपनी विवशताएं हैं, परन्तु सामाजिक, व्यावहारिक अथवा व्यासायिक जिस प्रकार का भी ज्ञान हमें जिस किसी से भी प्राप्त होता हो, वे सभी सम्मान के पात्र हैं।
एक शिक्षक की अपनी गरिमा होती है!
संसार में एक शिक्षक का अपना महत्व होता है। एक शिक्षक को महानतम बनने के लिए उसे गुरुत्व के स्तर को प्राप्त करना होता है। अपने ज्ञान, अनुभव और अपने कार्य के प्रति निष्ठा के कारण बहुतों ने शिक्षक होने के गरिमा का निर्वहन भी किया है। आज के समय में भी ऐसे शिक्षक हैं जो अपने कर्त्तव्य के प्रति समर्पित रहते हैं। संसार में जिन्होंने भी जिस प्रकार का कार्य का चयन किया हो, उन्हें अपने कर्त्वयों का निर्वहन करना पड़ता है। अपने कर्त्वयों के प्रति निष्ठावान व्यक्ति सम्मान का हकदार होता है। और उन्हें सम्मान और यश की प्राप्ति भी होती है।
जीवन में गुरु का होना अनिवार्य है!
वह जो प्रकाश का पुंज है, गहन अंधकार से आच्छादित रात्रि में पश्चात का भोर है। आत्मज्ञान की प्राप्ति जिनके परामर्श और कृपा के बिना असंभव है। वह जो आद्धयात्म की ज्योती है, सभी ग्रन्थों का सार है, वास्तविक पथ प्रदर्शक है।
स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekanand Ka Mahan Jeevan 👈
गुरु विन ज्ञान न होत है, गुरु विन दिशा अजान। गुरु विन इन्द्रिय न सधे, गुरू बिन बढ़े न ज्ञान ।।
यह तन बिष की बेलरी गुरु अमृत की खान। शीष दिये गुरु मिले तो भी सस्ता जान ।।
शिष्य का जीवन अज्ञान रुपी बिष से भरा है और गुरु अमृत की खान है, ज्ञान का स्रोत है। अतः ऐसे महामहिम को पाने के लिए शिष भी देना पड़े तो वो कम है।
योग्य शिष्य वह है जो अपने पथ-प्रदर्शक के अगाध ज्ञान को ग्रहण कर ले। अपने उद्धारक के प्रति मन में भक्तिभाव धारण कर चलता रहे। उनके विना इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर पाना असंभव है। मन को शांत और स्थिर कर पाना मुश्किल है। उनके द्वारा बताये मार्ग पर चलकर हम जीवन को सार्थक कर सकते हैं। जिसके जीवन में गुरुकृपा नहीं उसका जीवन निरर्थक है।
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आप श्रेष्ठ और आपका सोच उससे भी श्रेष्ठ ।
शत शत नमन आपको और आपके विचारों को भी
साधुवाद! बहुत बहुत धन्यवाद!