रिश्ते समझदारी से बनते हैं !
रिश्ते; अर्थात् व्यक्तियों के बीच आपस में होने वाले लगाव, संबंध या संपर्क। यह व्यक्तियों में होने वाला पारस्परिक संबंध है। यह ऐसा संबंध है जो एक ही कुल में जन्म लेने अथवा विवाह आदि करने से होता है। कुछ रिश्ते व्यक्ति के जन्म लेने के साथ ही बन जाते हैं। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिसे व्यक्ति अपनी समझ बुझ और जरुरतों के आधार पर बनाता है। कुछेक रिश्ते शारीरिक आकर्षण और जरुरतों के आधार पर चल रहे होते हैं, तो कुछ आदर्शवादी और भावनात्मक होते हैं।
साधारणतया व्यक्ति का हर संबंध उसके जरुरत और मतलब के नींव पर टिका होता है। यह बुनियाद खत्म तो संपर्क भी खत्म। रिश्तों का यह नींव आत्मिक, आर्थिक, मान्सिक या फिर भावनात्मक हो सकता है, परन्तु इनमें से एक के विना दो व्यक्तियों के बीच कोई रिश्ता नहीं बन सकता।
रिश्ते व्यक्तियों के बीच विभिन्न नाम, रूप और भाव को लेकर प्रगट होता है। लोग इसे अपनी समझ के अनुसार अपने तरीके से बनाते, बिगाड़ते रहते हैं। लोग अपनी जरुरतों, सिद्धांतों और भावनाओं के आधार पर रिश्ते बना लेते हैं। कुछ लोग अपनी समझदारी से अच्छे रिश्ते बनाते हैं और इसे सरलता से निभाते हैं। कुछ समाज की मान्यताओं और परम्पराओं पर चल कर रिश्ते बनाते हैं और पसंद ना हो फिर भी निभाते हैं । कुछ लोग रिश्तों की परिभाषा अपने मन में रचते हैं और कभी उसे पुरा कभी अधुरा बनाकर छोड़ देते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो बहुत कोशिश के बावजूद रिश्ते बना नहीं पाते। वहीं कुछ खुद तो रिश्ते बना नहीं पाते, दूसरों के बने बनाए रिश्तों को नष्ट करने में लगे रहते रहते हैं।
अहम् रिश्ते को बिगाड़ता है!
व्यक्ति से अपने रिश्तों में कई प्रकार की गलतियां भी हो जाती है। लेकिन जिन गलतियों के कारण रिश्तों में दरार पड़ जाती है, उसे देखने और समझने की कोशिश होनी चाहिए। कई बार रिश्ते इसलिए टुट जाते हैं कि दो में से एक अपनी गलती मानना नहीं चाहता। इसका सबसे बड़ा कारण व्यक्ति का अहम् होता है। अहम् के कारण वो आपस में बात नहीं करते और दुरियां बढ़ा लेते हैं। हांलांकि बाद में उन्हें इसका अफसोस होता है, लेकिन तब तक बात बिगड़ गई होती है। अगर समय रहते अपने अहम् का त्याग कर बातचीत कर हल निकाल लिया जाय तो टुटते रिश्ते को बचाया जा सकता है। अतः हर रिश्ते को बेहतर तरीके से निभाने का प्रयास होना चाहिए।https://adhyatmapedia.com/jaisa-nazariya-waisa-sansar/
व्यक्ति के जीवन में रिश्तों का बड़ा महत्व होता है। वह रिश्ते ही होते हैं जो मुश्किल समय में सहायक होते हैं। अगर आपके जीवन में अच्छे रिश्ते हों तो आपका जीवन सहज हो जाता है। रिश्तों में अगर घनिष्टता हो, तो उसमें एक दुसरे को बांधने की शक्ति होती है। अतः हर रिश्ते को बेहतर बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
वैसे किसी से कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। रिश्तों में कल्पना दीमक की तरह होती है। रिश्तों को बेहतर बनाने का एक ही तरीका है, आप रिश्तों में कुछ लेने के बजाय देने की कोशिश करें। रिश्ते हमारे जीवन की वो फसलें हैं जिसे जिस तरह से सींचा जाता है, वो वैसा ही पैदावार देती है।
पारस्परिक संबंध पर विचारकों के कथन!
जो आप कभी अपने लिए नहीं करना चाहते वो दुसरों के लिए भी मत करें। _ _ कन्फ्युसियस
अगर आप दुसरों की आलोचना करने की बजाय दुसरों का मनोबल बढ़ाते हो तो आप अपने रिश्तों का निश्चित तौर पर सुधार कर सकते हो। __जुसी मेंयर
कभी भी एक दूसरे को दबाने की कोशिश ना करें, क्योंकि परछाई में कोई भी बड़ा नहीं हो सकता। __अज्ञात
आंख के बदले आंख यह पुरी दुनिया को अंधा बना देगी।__महात्मा गांधी
नया इक रिश्ता पैदा क्यूं करे हम। जब विछड़ना है तो झगड़ा क्युं करें हम।। __जोन आलिया
पीड़ादायक संपर्क से मुक्त होकर रहेेंं!
सच्चे रिश्ते हमेशा वहां होती है जहां दो लोगों के बीच की खामोशी भी आरामदायक होती है। अगर प्रयास करने के बाद भी रिश्तों में सुधार की गुंजाइश नहीं हो, तो इससे मुक्त हो जाना चाहिए। जब आप किसी दुसरे के प्रति गुस्से को पकड़ कर रखते हो तो आप उस इंसान से जुड़े हुए हो, इससे निकलने का एक ही तरीका है _ उसे क्षमा कर दें और स्वयं को मुक्त कर लें। अगर कोई रिश्ता लम्बे समय तक पीड़ा देने लगे तो उसे तोड़ देने में ही भलाई है। उन लोगों से हमेशा दुर रहें जो आपको नजरअंदाज करते हैं। किसी ना किसी बहाने आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयास किया करते हैं।
जीवन में रिश्तों का महत्व ….!
एक बार अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा- माधव! ये ‘सफल जीवन’ क्या होता है ? कृष्ण अर्जुन को पतंग उड़ाने ले गए। अर्जुन कृष्ण को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था। थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला-माधव! ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है, क्या हम इसे तोड़ दें ? ये और ऊपर चली जाएगी। कृष्ण ने धागा तोड़ दिया ..
पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई। तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया। पार्थ! ‘जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं। हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं; जैसे घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता, गुरु और समाज। और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं। वास्तव में यही वो धागे होते हैं, जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ! अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना।
धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही ‘सफल जीवन कहते हैं।
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