इस संसार को देखने का सबका अपना-अपना नजरिया होता है। गुलाब के पौधे में किसी को उसके सुगन्धित और सुन्दर फुल नजर आते हैं तो किसी को कांटे ही कांटे नजर आते हैं। जैसा आपका नजरिया होगा, दुनिया आपको वैसी ही दिखेंगी! और यह दुनिया भी आपको वैसा ही देखेगी!
नजरिया होती तो एक साधारण सी चीज है, परन्तु हमारे जिन्दगी में इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। समान परिस्थिति एवं वातावरण में रहते हुवे भी प्रत्येक का विचार अलग हो जाता है। यह जो अंतर है, यही प्रत्येक के जीवन के नजरिये को प्रर्दशित करता है।
इस संसार को हम अपने नजरिये से देखते हैं और यह संसार भी हमें हमारे नजरिये के हिसाब से देखता है। जैसा दृष्टिकोण वैसा दृश्य, जैसी सोच वैसी दुनिया। जैसा हमारा विचार होगा, हमसे कर्म भी वैसे ही होंगे। हमारा दृष्टिकोण हमारे यश-अपयश, उन्नति-अवनति एवम् सम्मान-अपमान का आधार होता है। सफल होने के लिए सही नजरिया का होना उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना की योग्यता का होना आवश्यक होता है।
जैसा नजरिया वैसा संसार !
किसी समय की बात है, एक ऋषि अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे। ठीक उसी समय एक राहगीर जो उस क्षेत्र में अभी-अभी आया ही था, उधर से गुजरता है। उसे इस नगरी के सम्बंध में कुछ भी मालुम न था। उसनेे ऋषि से पूछा; हे महात्मन, मैं इस नगरी में नया हूं, कृप्या मुझे बताने का कष्ट करें कि इस नगरी के लोग कैसे हैं? महात्मा ने उससे कहा; पहले तुम ये बताओ,कि जहां से तुम आ रहे हो वहां के लोग कैसे थे? उसने कहा; हे ऋषिवर वहां के लोग बहुत दुष्ट प्रकृति के हैं, इसिलिए मैं उस जगह को बदलने का सोंच रहा हूं। ऋषि ने कहा; यहां भी कुछ ऐसा ही है, यहां के लोग भी तुम्हें ऐसा ही मिलेंगे। ऋषि का बात सुनकर वह व्यक्ति आगे बढ़ गया।
कुछ देर बाद दुसरा राहगीर उधर से गुजरता है, वह भी इस क्षेत्र में अभी-अभी आया था। पहले राहगीर के तरह उसने भी श्रृषि से वही बात पुछा। ऋषि ने उससे भी वही बात कहा जो इन्होंने पहले से कहा था। परन्तु दुसरे राहगीर का उत्तर अलग था। दुसरे ने ऋषि से कहा; मैं जहां से आया हूं, वहां के लोग अच्छे और नेकदिल इंसान हैं। मैं यहां व्यापार के सिलसिले में आया हूं, यहां का माहौल हमें अच्छा लग रहा है। अतः मैं आपसे ऐसा पुछ रहा हूं। ऋषि ने उस व्यक्ति से कहा; तुम्हें यहां भी अच्छे लोग मिलेंगे! यह सुनकर राहगीर वहां से चला गया।
राहगीर के जाने के पश्चात् एक शिष्य ने ऋषि से कहा; हे गुरुदेव! आपने एक जैसे प्रश्न का अलग-अलग उत्तर क्यों दिया? यह सुनकर मुस्कराते हुवे उन्होंने कहा; वत्स! सामान्यतया हम अपने आसपास के चीज़ों को जैसे देखते हैं वो वैसे होते नहीं हैं। सबका अपना-अपना नजरिया होता है, हम अपने नजरिये, अपनी सोच के अनुसार चीजों को देखते और समझते हैं। उन दोनों राहगीरों का नजरिया अलग था, अतः मैंने उन्हें अलग-अलग उत्तर दिया। अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमें अच्छे लोग मिलेंगे और अगर बुराई देखना चाहें तो फिर बुरे लोग ही मिलेंगे। सबकुछ देखने के नजरिए पर निर्भर करता है।
जितने जीव उतने दिमाग !
बुद्ध की आदत थी की वे हर बात अपने शिष्यों को तीन बार समझाते थे। आनंद ने बुद्ध से एक दिन पूछ ही लिया – आप एक ही बात को तीन बार क्यों दोहराते हैं? आनंद को समझाने के लिए बुद्ध ने कहा – आज की सभा में संन्यासियों के अलावा एक वेश्या और एक चोर भी थे। कल सुबह तुम इन तीनों (संन्यासी, वेश्या और चोर) से जाकर पूछना की कल सभा में बुद्ध ने जो आखिरी वचन कहे उनसे वो क्या समझे?
सुबह होते ही आनंद ने जो पहला संन्यासी दिखा उससे पूछा कि- कल रात बुद्ध ने जो आखिरी वचन कहे थे कि अपना-अपना काम करो, उन शब्दों से आपने क्या समझा? भिक्षु बोला – हमारा नित्य कर्म है की सोने से पहले ध्यान करो। आनंद को इसी उत्तर की अपेक्षा थी। अब वो अब तेजी से नगर की ओर चल दिया।
आनंद सीधे चोर के घर पहुंचा और उससे भी वही सवाल पूछा। चोर ने कहा – मेरा काम तो चोरी करना है। कल रात मैंने इतना तगड़ा हाथ मारा की अब मुझे चोरी नहीं करनी पड़ेगी। आनंद को बड़ा आश्चर्य हुआ और वो वहां से वेश्या के घर की तरफ चल दिया।
वेश्या के घर पहुंचते ही आनंद ने वही सवाल पूछा। वेश्या ने कहा – मेरा काम तो नाचना गाना है। कल भी मैंने वही किया। आनंद आश्चर्यचकित हो कर वहां से लौट गया। आनंद ने पूरी बात जाकर बुद्ध को बताई। बुद्ध बोले – इस संसार में जितने जीव हैं उतने ही दिमाग हैं। बात तो एक ही होती है पर हर आदमी अपनी समझ से उसके मतलब निकाल लेता है। इसका कोई उपाय नही है। ये सृष्टि ही ऐसी है।
दृष्टिकोण का आधार व्यक्ति के संस्कार होते हैं!
जैसा कि हम जानते हैं, कि प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते हैं। मनुष्य भी दो तरह के होते हैं। एक वो हैं जिनका नज़रिया संकीर्ण, संकुचित होता है एवं दुसरे वो हैं जिनका नज़रिया उदार होता है। उदार दृष्टिकोण सदैव प्रगतिशील होता है, वहीं संकुचित नज़रिया आगे चलकर चरित्र का कमजोरी बन जाता है। एक सफल व्यक्ति और एक असफल व्यक्ति के जीवन पर अगर गहराई से विचार किया जाय; तो एक स्पष्ट अंतर उभरकर सामने आता है और वह जो अंतर है! नजरिये का होता है।
संस्कार दो तरह के होते हैं; पहला जो व्यक्ति जन्म से लेकर आता है और दुसरा जो व्यक्ति इस जीवन में समाज, वातावरण और शिक्षा से ग्रहण करता है। एक संस्कार जो दैविक कहलाता है और दुसरा भौतिक कहलाता है। जो दैविक है उसे तो बदला नहीं जा सकता, पर भौतिक संस्कार को हम विस्तार दे सकते हैं।
बोये पेड़ बबूल के तो आम कहां से होय..!
संत कबीरदास ने बहुत ही सरल ढंग से इस पर प्रकाश डाला है। अगर आम का स्वाद चखना है तो पौधे आम के ही लगाने होंगे। तब जाकर आम का स्वाद का मिल पायेगा। अगर बोयेंगे बबुल तो कांटा ही चुभेगा! बबुल के पेड़ पर आम नहीं फलेगा, कांटे ही उगेंगे। अपने दृष्टिकोण को बदलिए, फिर देखिए! सारा दृश्य बदल जायेगा।
किसी शायर ने कहा है_सोच को बदलो सितारे बदल जायेंगे, नज़र को बदलो नज़ारे बदल जायेंगे। कश्तियां बदलने की जरूरत नहीं होती, दिशाओं को बदलो किनारे बदल जायेंगे।।
सोना एक मूल्यवान धातु है, पर अपने शुद्धतम स्वरूप में आने के लिए उसे तपना पड़ता है। दृष्टिकोण का विस्तार अध्ययन, मनन और स्वाध्याय से किया जा सकता है। दृष्टिकोण के प्रति चिंतन से व्यक्ति में अनेक प्रकार के गुणों का उदय होने लगता है और वह प्रगति के पथ पर अग्रसर हो जाता है।
जानकारों का कहना है कि ” समाज हमें बताता है कि हम क्या हैं और एकान्त हमें बताता है कि हमें कैसा होना चाहिए”।
अगर जीवन में बदलाव लाना है तो खुद के नजरिये पर चिंतन करो और खुद के नजरिये को बदल दो। आपके जीवन में सफलता और विफलता बहुत हद तक आपके नजरिये पर निर्भर करता है।https://adhyatmapedia.com/krodh-ko-niyantrit-kaise-karen/
अंग्रेजी में एक सुक्ति प्रचलित है “Put good in get good out”, अर्थात् आप जैसा सोचोगे, वही करोगे और वैसा ही बनोगे। जैसा आपका सोच होगा। आप अपने लिए वैसा ही दुनिया का निर्माण करोगे।
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बहुत ही अच्छा और स्पष्ट व्याख्या है
धन्यवाद महाशय
ग्रेट इंफॉर्मेशन।आपका नजरिया बेहतरीन है।काफी सही दृष्टिकोण दिया है
धन्यवाद महाशय 🙏
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