चिंता एक मनोभाव है। यह किसी संभावित संकट की आशंका का परिणाम है। यह व्यक्ति के मन में भय और क्लेश उत्पन्न कर देता है। चिंताग्रस्त व्यक्ति के लिए समस्याओं से लड़ना कठिन हो जाता है। उसमें समस्याओं के समाधान के लिए उचित योग्यता का अभाव हो जाता है। अधिक सोचने के कारण व्यक्ति दुष्चिंता का शिकार हो जाता है और तनावग्रस्त हो जाता है। चिंता बुद्धि और विवेक को नष्ट कर देती है, यह मनुष्य के लिए घातक है। कबीरदास ने कहा है कि इसके कारण चतुराई का ह्रास हो जाता है।
चिंता से चतुराई घटे, दुख से घटे शरीर । पाप से लक्ष्मी घटे, कह गये दास कबीर ।
मन के चिंतित होने की स्थिति कुछ ऐसी होती है, जैसे सागर के भीतर आग लगी हो। इसमें ना धुंआ निकलता है और ना ही यह आग किसी को दिखाई देती है। इसे वही अनुभव कर सकता है जो स्वयं उससे होकर गुजरता है। कमजोर इच्छा-शक्ति वाले इस आग में जल कर खाक हो जाते हैं।
कबीरदास ने कहा है; चिंता ऐसी डाकिनी है जो कलेजा को काटकर खा जाती है। फिर वैद्य भी इसका इलाज नहीं कर पाता, दवाइयों का असर ही नहीं होता। आखिर वह कितना दवा खिलाएगा।
चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए । वैद्य वेचारा क्या करे, कहां तक दवा खिलाए ।।
चिन्ता का कारण व्यक्ति के कामनाओं पुर्ति ना होना भी है। पवित्र गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहते है; विषय वस्तुओं के संबंध में सोचते रहने से मन आसक्त हो जाता है। इस कारण कामना की उत्पत्ति होती है। और कामनाओं की पूर्ति ना होने पर मन चिंताग्रस्त हो जाता है। क्लेशित मन में क्रोध की उत्पत्ति होती है। क्रोध से मनुष्य कुमति के प्रभाव में आ जाता है, और उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाने पर व्यक्ति स्वयं को नष्ट कर देता है।
ध्यायतो विषमान्पुंस संगऽस्तेषूपजायते। संगाऽत्संजायते काम: कामात्क्रोधोऽभिजायते।।
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहान्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभंशाद्धद्धिनाशो बुद्धि नाशस्प्रणश्यति।।
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तनावमुक्त रहने का प्रयास करें !
जीवन में चिंता का, तनाव का उत्पन्न होना स्वाभाविक है। परन्तु इससे मुक्त होने का प्रयास तो किया ही जा सकता है। कुछ विशिष्ट और व्यवहारिक तरीकों को अपनाकर तनावमुक्त जीवन जीया जा सकता है। जिसके भीतर धैर्य, सहनशीलता और संघर्ष की क्षमता ह़ो, वह तनाव को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता है।
प्रत्येक मनुष्य को जीवन में अनेक पीड़ादायक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है। इन परिस्थितियों में चिंतित होना स्वाभाविक है। चिंता से जो तनाव उत्पन्न होता है, वो साधारण मनुष्य को तनाव के मकड़जाल में उलझा देता है। सामान्य मनुष्य का सारा जीवन तनाव में गुजरता है। वह रोते हुए पैदा होता है, शिकायत करते हुए जीता है और अंतत: निराश होकर मर जाता है।
जानकारों का कहना है कि “जो ऐश्र्वर्य आज है वह कल भी रहे यह जरूरी नहीं, इसलिए इस संसार को त्याग भाव से भोगना चाहिए।”
श्री कृष्ण ने कहा है; क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो, तुम क्या लेकर आये थे जो खो गया है। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का हो जाएगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो। बस यही समस्त दुखों का कारण है। जो हुवा अच्छा हुवा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। अतः तुम भूत का पश्चाताप और भविष्य की चिंता नहीं मत करो! वर्तमान चल रहा है। कर्म पर तुम्हारा अधिकार है, फल पर नहीं। यह सोचकर कर्म मत करो की तुम्हें फल प्राप्त होगा। और तेरा कर्म ना करने में भी आसक्ति ना हो।
कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।।
चिंता नहीं चिंतन किजिए !
चिंतन से विभिन्न समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त होता है। चिंतन का अर्थ यह नहीं कि आप समस्याओं को लेकर चिंतित रहें। यह स्वयं के विचारों, निर्णयों को विकसित करने की प्रक्रिया है। चिंतन करने से मस्तिष्क और बुद्धि का विकास होता है। यह प्रक्रिया संकट के समय खुद को सामान्य और सकारात्मक बनाए रखने में सहायक होता है। जब मनुष्य खुद को संकटों से, समस्याओं से घिरा होता है तो दो बातें होती हैं; संघर्ष या पलायन। परन्तु पलायन से संकट का हल नहीं हो सकता है। समस्याओं का सामना करके ही इससे निजात पाया जा सकता है। संकट से निपटने के लिए चिंतन करना चाहिए। योग और ध्यान का अभ्यास से मन शांत होता है, और चिंतन का सामर्थ्य विकसित होता है।
चिंतन से ही होगा समाधान !
चिंता अपने आप में एक संकट है और चिंतन समाधान की कुंजी है। चिंतन से हमारे विचार करने की क्षमता का विकास होता है। हमारी विचारशक्ति जितना उतकृष्ट होगा, कार्य करने स्तर उतना ही उत्तम होगा। सभी के जीवन में कठिनाइयां आती हैं, परन्तु चिंतनशील व्यक्ति हर कठिनाई का कोई ना कोई हल ढुंढ़ लेता है। कठिनाईयों से बाहर निकलने के लिए बुद्धिमता पूर्ण निर्णय चिंतन का परिणाम होता है।
विना विचारे जो करै सो पाछे पछताय। काम बिगारै आपनो जग में होत हंसाय।। __गिरिधर कविराय
चिंतन मन का केवल कार्य ही नहीं वल्कि धर्म है। चिंतन के पश्चात जो कार्य किया जाता है, उसकी सफलता में संदेह नहीं रहता। अत: किसी भी कार्य को करने से पूर्व चिंतन करना चाहिए। किसी भी समस्या पर हमें चिन्ता नहीं चिंतन करना चाहिए। जो चिंता करता है उसे दुख झेलना पड़ता है और जो चिंतन करता है वह सुखी होता है।
Bhaut accha laga mast Ekdam normal lag raha hay
धन्यवाद बन्धु…
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