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उड़ना तुझे अकेला है …

दुख से मत घबराना पंक्षी ये जग दुख का मेंला है
चाहे भीड़ बहुत अंबर पर उड़ना तुझे अकेला है

उड़ना तुझे अकेला है – इस गीत की पंक्तियां हमें विपरीत परिस्थितियों में स्थिर रहने एवम् संघर्षशील होने की प्रेरणा देती है। उड़ने की इच्छा तो सबमें होती है, उड़ना सभी चाहते हैं। सुख सबको चाहिए, सफलता सबको चाहिए। परन्तु इसके लिए अपनी सोच के वर्तमान धरातल से उपर उठकर कर्म में प्रवृत होना होता है। गंन्तव्य की ओर बढ़ने के लिए मार्ग की तलाश करनी होती है। और अपने चयनित मार्ग पर पुरी लगन के साथ अग्रसर होना होता है। मार्ग में अनेकानेक बाधाओं से गुजरना होता है, अनेकानेक संकटों का सामना करना पड़ता है, दुख झेलने पड़़ते हैं।

दुख के होने का कारण क्या है ?

दुख एक अस्थायी मनःस्थिति है ! दुख प्राकृतिक नहीं होता है और ना ही स्थायी होता है। यह जीवन में आता जाता रहता है। दुख एक मानसिक अवस्था है जो मानव द्वारा स्वयं निर्मित होता है। यह शब्द साधारण मानव के मन को सर्वाधिक पीड़ित करता है। दुख एक ऐसा मनोभाव है जिसका मन और शरीर पर विपरीत असर पड़ता है।

जीवन में दुख क्यों है? – Jeevan Me Dukh Kyun Hai?

हम सभी को जीवन में भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है, इस क्रम में अनेकानेक विघ्न-बाधाओं का सामना भी करना पड़ता है। यह जो कठिनाइयां आती हैं, कुछ से हम निबटने में सफल होते हैं तो कुछ से हम परेशान हो जाते हैं। हम जीवन में आये इन परेशानियों को ही दुख समझ लेते हैं। हम जो चाहते हैं वो हमें नहीं मिलता तो हमें दुख होता है। हमारी इच्छाओं की पूर्ति ना होना दुख का प्रमुख कारण होता है।

दुख को एक अवसर के रूप में लिजिए !

जीवन में कठिनाईयों को चुनौती के रूप में स्वीकार करना चाहिए। जीवन में परेशानियां तो आयेंगी ही, परेशानियों के कारण कष्ट होना स्वाभाविक है। अगर जीवन में लम्बे समय तक दुख झेलना पड़े तो व्यक्ति का मनोबल गिर जाता है और वह अवसादग्रस्त हो जाता है। दुख से लोग घबरा जाते हैं और खुद का जीवन बरबाद कर डालते हैं।

जब तक सुरज आसमान पर चढता चल तू बढता चल
घिर जायेगा अंधकार जब बड़ा कठिन होगा पल पल
किसे पता कि उड़ जाने की आ जाती कब बेला है
चाहे भीड़ बहुत अंबर पर उड़ना तुझे अकेला है ..!

जीवन में गतिशीलता बनाये रखिये !

जिन्दगी चलने का नाम है, जो चलते हैं वही गिरते है। इस बात को स्वीकार कर लिजिए कि गिरने वाले ही सम्हलते हैं। जो हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते है, बिन कुछ किए सुख और सफलता का इंतजार करते रहते है, वे खुद को दुखों के दलदल में फँसा लेते है। वैसे लोग अपनी अहम् को तुष्ट करने के लिए तरह तरह के स्वांग रचाते रहते हैं। अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के लिए नाना प्रकार के तर्कों का सहारा लेते रहते हैं। उनके जीवन में व्यवहारिकता का कोई स्थान नहीं होता। उनका जीवन खोखला हो जाता है और सिर्फ दिखावा भर रह जाता है। वैसे लोगों के जीवन में सुधार की संभावनायें खत्म जाती हैं।

दुख से छुटकारा पाने के लिए क्या करें ?   

जैसा कि कहा जा चुका है कि साधारण मनुष्य का दुख का कारण उसकी इच्छाओं का पुर्ण नहीं होना होता है। जब उसे वांछित वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है तो उसे सुख महसुस होता है। आपकी हर इच्छा पूरी हो यह आवश्यक नहीं है। इसलिए हर हाल में संतुष्ट रहने की आदत डालिए। संतुष्ट रहने का मतलब यह नहीं होता कि कुछ किया नहीं जाय। संतुष्टि का मतलब होता है, हम जो हैं, जैसे हैं, जिस हाल में हैं, ठीक हैं। हमें जो चाहिए उसके लिए परिश्रम करें, प्रयास करें। कर्म किजिए और परिणाम की चिंता मत किजिए।

दुखी मन मेंरे ! Don’t live where there is no happiness.

अगर सरल भाव से विचार करें तो दुख का जाना ही सुख का आना है। ना दुख स्थायी होता है और ना ही सुख ही स्थायी होता है। आशावादी दृष्टिकोण से हर परिस्थिति को, हर घटना को देखिए। हर रोज सुरज निकलता है, हर रात के बाद सुबह होती है। हर दुख की स्थिति के बाद सुख को ही आना है।

परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं है !


अपने इच्छाओं की पूर्ति के लिए परिश्रम किजिए। किसी भी कार्य के शुरुआत से पहले लक्ष्य का चुनाव किजिए। फिर कार्य में लग जाइए। पुरे धैर्य के साथ सफलता के लिए प्रयास किजिए। सफलता ना मिले तो पून: प्रयत्न किजिए। सिर्फ इच्छा करने से आप अपनी इच्छाओं को पूरा नहीं कर सकते। इसके लिए इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है। परिश्रम का फल मिलता है। हर परिस्थिति में संयम बरतने की जरूरत है।

प्रार्थना से सहने की शक्ति मिलती है।


स्वयं को सकारात्मक बनाए रखिये। संतोष, धैर्य एवम् श्रद्धा जैसी पवित्र गुणों को मन में धारण करने का प्रयत्न किजिए। सकारात्मक बनें रहने के लिए जीवन में प्रार्थना का होना अनिवार्य है। प्रार्थना से मन शांत होता है, शान्त मन स्थिर होता है। सकारात्मक गुणों के प्रभाव से सहनशक्ति का विकास होता है, विवेक जागृत हो जाता है और जीवन में दुख का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो दुख का प्रभाव हमारे मन-मस्तिष्क पर ही होता है अगर हम अपने आंतरिक ऊर्जा को विकसित करने में सक्षम हो जाएं तो यह हमें छु भी नहीं पायगा। क्योकि दुख और सुख, हर्ष और विषाद ये सब बाहर की अवस्थायें हैं, आनंद भीतर अवस्थित है। जिन्होंने आनन्द को प्राप्त कर लिया उनका जीवन दुख से मुक्त हो गया। दुख के भाव आपको व्यथित न करे, इसके लिए ध्यान और प्रार्थना को जीवन में लाना अनिवार्य है।

तुफान आता है, तो छोटे छोटे दियों को बुझा देता है। और अगर जंगल में आग लगी हो, तो लपटों को बढ़ा देता है। जिन्दगी में भी तुफान आता है, जो कमजोर होते हैं, बिखर जाते है। जिन्हें सहन करना आता हो, वो निखर जाते है! सब पात्रता के अनुसार है, योग्यता के अनुसार है।

लम्बी अवधि तक दिक्कतें झेलनी पड़े और जिन्दगी में भटकाव भी आ सकता है। अगर जिन्दगी में भटकाव आ भी गया तो घबराना नहीं चाहिए। भटकने का भी कोई ना कोई मतलब होता है, जिसे हम जान नहीं पाते हैं। और भटकने के बाद का जो अनुभव होता है, जीवन को सीख दे जाती है। राह चलते ठोकरें लग सकती हैं। जिन्दगी की राह में हर-इक ठोकर जिन्दगी को सबक देती है।

दुख ही सुख की जननी है।

उसका नाम अमर है जग में जिसने संकट झेला है
चाहे भीड़ बहुत अंबर पर … उड़ना तुझे अकेला है ..!

कांटों के बिना गुलाब में कोई रस नहीं है। अगर दुख ना हो जिन्दगी में, तो सुख का मजा नहीं मिलता है। मंजिल तो उन्हीं को मिली है, जिन्होने अनेकानेक दुखों को झेला है। परेशानियों से मुक्ति तभी मिलेगी जब हम उससे निकलने का प्रयास करेंगे। असिमित दुखों से आवृत्त इस जीवन के अनंत आसमान में हमें ज्ञान रुपी पंखो को फड़फड़ाना होगा। विषम परिस्थितियों के रुप में बह रही विपरीत हवाओं को चीरकर हमें उड़ना होगा। और इस कठिन कार्य को करने का प्रयास हमें पुरे धैर्य के साथ, पुरे दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ, स्वयं करना होगा।

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6 thoughts on “उड़ना तुझे अकेला है …”

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