जिन्दगी के सफर अनिश्चितताओं से भरे होते है।
साथियों ! जिन्दगी के सफर में लोग मिलते हैं बिछड़ते है! सांसारिक मोह के प्रभाव में हमारा मन सुख-दुख, हर्ष-विषाद के भावनाओं से प्रभावित होता रहता है। भावनारूपी समुद्र में जब लहरें उठती हैं तो इस उफान का कोई ओर छोर नहीं होता। ऊपर से स्थिर लगने वाले इस उफान के अन्दर ना जाने कितनी संवेदनायें उमड़ती रहती हैं जो दिखती नहीं। भावनाओं को शब्दों में व्यक्त कर पाना कठिन होता है! इन परिस्थितियों में साहित्य, गीत और संगीत से लगाव साधारण मनुष्य को कुछ हद तक दिलासा दे जाता है।
अगर साहित्य से, शास्त्र से लगाव हो! हृदय में किसी आदर्श व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा हो, तो इस पावन श्रद्धा से सृजित उर्जा से एक कुशल व्यक्तित्व का निर्माण किया जा सकता है…! अगर ऐसा हो सके तो जीवन जीना सरल हो जायगा। अपनी समझ को विकसित करने की इच्छा होनी चाहिए।https://adhyatmapedia.com/meaning-of-life/
शाहिद लुधियानवी के शब्दों में !
गीतकारों ने जीवन के सफर में मिलन और विछोह पर अपने अपने अंदाज में भाव व्यक्त किया है। शाहिद लुधियानवी ने इस विषय पर कुछ इस तरह लिखा है!
जिन्दगी के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को
और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तड़पाने को
जिन्दगी के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को
अब न साथ गुजरेंगे हम लेकिन ये फिजा रातों की
दोहराया करेंगी हरदम इन प्यार के अफसानों को
जिन्दगी के सफर में राही मिलते हैं बिछड़ जाने को
आनंद बक्शी का अंदाजेबयां !
साहित्य जीवन के विभिन्न रंग, लय एवम् भावनाओं का प्रतिबिंब होता है। कविताओं के पठन से दुखी मन को समझा पाना सरल हो जाता है। गीतकार आनंद बक्शी का अंदाजेबयां कुछ ऐसा है!
फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
लोग जो सफर में बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
ज़िन्दगी के सफर में गुजर जाते हैं
जो मुकाम वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते !
इंदीवर ने कुछ इस तरह लिखा है..!
जिन्दगी एक पहेली ही तो है। जीवन के सफर को समझ पाना कठिन है, यह अनिश्चिताओं से भरा होता है। गीतकार इंदीवर ने लिखा है!
जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
रोते रोते जमाने में आये मगर
हंसते हंसते जमाने से जायेंगे हम
जायेंगे पर किधर है ये किसको खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं !
बिछड़े हुए लोग कभी लौटकर नहीं आते !
बिछड़े हुए लोग और गुजरा हुवा वक्त कभी लौटकर नहीं आता। इसलिए सबके साथ खुलकर मिलने और जीवन के हर पल का आनंद उठाने का प्रयास करना चाहिए। प्रसिद्ध गीतकार नीरज के शब्दों में!
कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का
कल रुके डोला बहार का
चार पल मिले जो आज, प्यार में गुजार दे
खिलते हैं गुल यहां खिल के बिखरने को
मिलते हैं दिल यहां मिल के बिछड़ने को !
जीवन को सरलता से लें !
गीतकार शैलेन्द्र जीवन को सरलता से लेने की सीख देते हैं! जीवन के सफर में कब कौन सा मोड़ आ जाय, कोई नहीं जानता। कभी मिलन तो कभी बिछोह, कभी सुख तो कभी दुख के छण आते ही रहेंगे। गीतकार शैलेन्द्र जीवन को सरलता से लेने और हंसते मुस्कुराते जीने की बात करते हैं!
जिन्दगी एक सफर है सुहाना
कहां कल क्या हो किसने जाना
हंसते गाते जहां से गुजर
दुनिया की तू परवाह न कर
मुस्कुराते हुवे दिन बिताना
कहां कल क्या हो किसने जाना
जिन्दगी पर “बच्चन” की अभिव्यक्ति :
अप्रतिम रचना “जो बीत गई वो बात गई” महाकवि हरिवंशराय “बच्चन” के द्वारा लिखी गई है। यह कविता जीवन के सफर के यथार्थ को बहुत ही निराले अंदाज में दर्शाती है।
जीवन में एक सितारा था
माना वो बेहद प्यारा था
वह डुब गया तो डुब गया!
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टुटे!
कितने इसके प्यारे छुटे!
जो टुट गये फिर कहां मिले!
पर बोलो टुटे तारों पर
कब अम्बर शोक मनाता है!
जो बीत गई वो बात गई!
वह सुख गया तो सुख गया !
प्रकृति जिससे मनुष्य को उसके स्वयम् के जीवन के हर प्रश्न का उत्तर मिल सकता है; वो भी यही सिखाती है…जो चला गया उसे भुला जा..!
जीवन में था एक कुसुम
थे उसपर नित्य न्योछावर तुम
वह सुख तो सुख गया
मधुवन की छाती को देखो..!
सूखी कितनी इसकी कलियां!
मुरझाई कितनी बल्लरियां..!
जो मुरझाईं वो कहां खिली..!
पर बोलो सुखे फुलों पर
कब मधुवन शोर मचाता है..
जो टुट गया सो टुट गया!
जो टुट गया उसे जाने दो। जानकारों का कहना है, जो चीजें खत्म हो गयी हैं, उनपर निरंतर शोक व्यक्त करना व्यर्थ है। परन्तु साधारण मनुष्य इसे कहां समझ पाता है। मोह के जाल में उलझा हुवा मन स्वयं को दुखों के भंवर में डुबो देता है।
जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टुट गया तो टुट गया!
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टुटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
मृत्य का कारण ही जन्म है !
आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाय तो प्रतीत होगा कि सांसारिक जीवन का अभिप्राय ही जन्म, कर्म और मृत्यु है। जो भी आया है इस धरा पर उसे तो जाना ही होगा! मानव जन्म लेने के साथ ही मृत्यु तक की यात्रा शुरू कर देता है। वगैर किसी कारण के कोई कार्य नहीं होता! मृत्य का कारण ही जन्म है! जन्म से मृत्यु तक का जो सफर है! इस सफर को तय करते-करते मानव के द्वारा जो कार्य होते है…यही उसके प्रतिष्ठा का मानक होता है।
मृदु मिट्टी के बने हुवे
मधुघर फटा ही करते हैं
लघु जीवन लेकर आये हैं
प्याले टुटा ही करते हैैं
फिर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घर हैं मधु के प्याले हैं
जीवन के खेल को जो समझ गया; उसका जीवन सरल हो गया !
साधारण मनुष्य तो सांसारिक उलझनों में ही उलझा रहता है! जो असाधारण होते हैं, उनके भीतर समझ होती है। उनकी बुद्धि जीवन के खेल को, जीवन के यथार्थ को समझ पाने में सक्षम हो जाता है। साधारण मानव के लिए जो असामान्य और असहनीय होता है, असाधारण मानव के लिए वो सब कुछ सामान्य हो जाता है।
जो मादकता के मारे हैं
वो मधु लुटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घर प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुवा
कब रोता कब चिल्लाता है
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स्मरण और मरण..!
यह संसार समय समय पर अनेकानेक कर्मयोगीयों के अवतरित होने का उदाहरण प्रस्तुत करता रहा है। जो कर्मयोगी होते हैं; वे विदेही होते हैं! विदेह का अर्थ शरीर विहीन होना नहीं है। विदेह का अर्थ होता है शरीर के होते हुवे भी शरीर से परे होना! विदेही का शरीर हर सांसारिक कार्य में लिप्त रहता है, परन्तु मन इनसे तनिक भी प्रभावित नहीं होता।
स्मरण और मरण! सुनने में दोनों शब्द एक जैसे प्रतीत होते हैं। इस संसार में जो भी आता है उसे एक ना एक दिन तो जाना ही पड़ता है। परन्तु जो केवल अपने लिए जीते हैं! उनका केवल मरण होता है; और जो समाज के लिए, जनकल्याण के लिए, केवल दुसरों के खुशी के लिए जीते हैं; उनका सदा केवल स्मरण होता है..! और जिनका स्मरण होता है; वे मृत्यु के बाद भी नहीं मरते! वो तो अमर होते हैं..! इस संसार में ऐसे अनेक महामानव का अवतरण हुवा है, जिन्होंने अपने कृत्यों के द्वारा अमरत्व को प्राप्त किया है।
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