जीवन जिसे हम जिंदगी भी कहते हैं, इसे परिभाषित करना सरल नहीं है। कोई इसे किस तरह जीता है , यह उसका अपना दृष्टिकोण होता है। और प्रत्येक अपने अनुभव के आधार पर ही इसे समझाने का प्रयास करता है। किसी के लिए यह अवसर है, किसी के लिए खेल है। किसी के लिए सफर है, किसी के लिए संघर्ष है। किसी के लिए अमृत समान है तो किसी के लिए जहर है।
जीवन क्या है जानिए !
जीवन क्या है ? इस प्रश्न का सामान्य उतर है कि जिसके होने से किसी को जिवित समझा जाता है। कोई लक्षण, कोई ऐसी क्रिया जो प्राणियों के भीतर मौजूद होता है, जो उसके जीवित होने का कारण होता है। मनुष्य जीवन की बात करें तो सांसो का चलना, दिल का धड़कना आदि ऐसी ही क्रियाएं हैं। गौरतलब है कि इन क्रियाओं पर किसी का कोई वश नहीं होता, ये अपने आप घटित होती रहती हैं। सांसों के रुक जाने का मतलब है जीवन का अंत हो जाना। दिल अगर धड़कना बंद कर दे तो यह समझ लिया जाता है कि जीवन खत्म हो गया। और जीवन के अंत हो जाने को ही मृत्यु कहा जाता है। यानि यह जो जीवन है जन्म और मृत्यु के बीच का अंतराल है।
जीवन क्या है ! इसका सामान्य परिभाषा यही है। परन्तु इतना कह देने से ही जीवन को नहीं समझा जा सकता। सांसों का प्रवाह स्वत: कैसे हो रहा है ! कौन इसे चला रहा है ! यन्त्रों की जो क्रिया विधि है, यह कैसे काम करती है, पढ़-समझ कर जाना जा सकता है। पर जीवन को समझ पाना अत्यंत कठिन है। अनेक प्रयोगों के उपरांत भी वैज्ञानिकों को अब तक यह समझ में नहीं आया।
जैसे एक उपकरण दीए को ही लिजिए। यह तो समझ में आता है कि दीया का निर्माण किस चीज से हुवा है, कैसे हुवा है, क्यों हुवा है! वह जलता कैसे हैं, दीए को जलाने के लिए और किन किन चीजों की जरूरत होती है, उस दीए को बनाने एवं जलानेवाले की भी पहचान हो जाती है। और किस कार्य हेतू वह दिये का उपयोग कर रहा है, यह भी जाना जा सकता है।
अब अगर जीवन रूपी दीए पर विचार करें तो यह कौन सा त्तत्व से बना है, कौन इसे निर्मित करता है, इसे जलाता है और क्यों जलाता है! इस दीए में तेल किसका जलता है, वर्तिका कौन भरता है और इसे रोशन कौन करता है! यह ऐसा विचारणीय विषय है, जिसका समाधान विज्ञान आजतक नहीं दे पाया है।
जीवन क्या है ! जन्म हो जाता है, बचपन फिर जवानी और फिर बुढ़ापा और फिर मृत्यु का घटना! सामान्यत: यही जीवन है। जो पल बीत जाता है, वह तो बीत जाता है। कल के विषय में कुछ भी सटीक नहीं कहा जा सकता, कब क्या होगा कोई नहीं जानता। हां एक घटना जो निश्चित है, वह है मृत्यु। जीवन रुपी दीए का जो रहस्य है, जलना ही रहस्य है! इसका बुझना अर्थात् मरण तो नैसर्गिक है, एक न एक दिन होना है।
साधारणत: जिसे हम जीवन कहते हैं; किसी जीव मात्र के जन्म और मरण के बीच की दूरी है। एक कालावधि जिसमें जीवधारी मृत्यु तक का मार्ग तय करता है। जीवन के संबंध में रोचक तथ्य यह है, कि किसी का जन्म कब होगा, क्यों हुवा यह कोई नहीं जानता। यह जो जीवन है, ईश्वर प्रदत्त है, यह विधि का विधान है।
इस अंतराल (जीवन-मरण) में इतना तो प्रयत्न अवश्य करना चाहिए कि जीवन सरलता से गुजर जाए। ऐसा न हो कि जीवन युं ही बेकार चला जाए। सामान्यतः खुश रहना और खुशी बांटना जीवन का उद्देश्य है। जबकि यह भी उतना आसान नहीं है, क्योंकि जिन्दगी के सफर में — पग-पग में कांटे ही बिछे मिलते हैं। परन्तु अपने समझ को विकसित कर जीवन को सरल बनाया जा सकता है।
कब क्या हो जाय यह कोई नहीं जानता! लाख जतन करने के बाद भी मनचाहा हो, यह भी जरूरी नहीं है। इसलिए हर परिस्थिति के लिए खुद को तैयार करना और हर पल खुशी ढुंढना ही जीवन है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन का अभिप्राय उस अवस्था से है, जिसमें प्राणी के अन्दर प्रयत्न, प्रगति और वृद्धि के लक्षण होते हैं। यह ऐसी अवस्था है जो प्राणियों को निर्जीव वस्तुओं से अलग करती है।
जीवन के संबंध में सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि सभी लोग मरते हैं पर वास्तव में सभी लोग जीते नहीं हैं। जिंदगी को जीना भी एक कला है! चर्चित विचारक ‘ओशो’ ने इसे इस तरह समझाया है;_
जिन्दगी मिलता नहीं, इसे निर्मित करना पड़ता है। जन्म मिलता है, जीवन का निर्माण करना पड़ता है। इसके लिए मनुष्य को शिक्षा की जरुरत है। शिक्षा का एक ही अर्थ है, कि हम जीवन का कला सीख लें। जीवन एक वीणा के समान है और सबकुछ बजाने पर निर्भर करता है जीवन हम सबको मिल जाता है, पर इस जीवन रूपी वीणा को लेकर बजाना बहुत कम लोग सीख पाते हैं। इसिलिए इतनी उदासी है, इतना दुख है, इतनी पीड़ा है। जो संगीत बन सकता था जीवन, वह विसंगीत बन गया है।
जीवन एक सरिता के समान है!
मनुष्य का जीवन नदी के बहाव की भांति है, जो अनवरत चलती रहती है। इसकी कहीं तेज तो कहीं धीमी रफ्तार जिन्दगी के उतार चढ़ाव को दर्शाती है। कहीं पर स्थिर और कहीं पर गरजती हुवी इसकी धार जिन्दगी जीने अन्तराल में संघर्ष के क्षण को दर्शाती है। यह परोपकारी है, जहां से गुजरती है, आस पास के मिट्टी को उपजाऊ बना देती है। दुसरे जीव जन्तुवों में अपने जल को बांटकर सद्भाव और सहयोग करना सीखाती है। कभी कभी इसकी धार बाढ़ बनकर तांडव मचाती है जो मनुष्य के विनाशात्मक प्रवृति को दर्शाती है। और अंत में सहायक नदियों को साथ लेकर सागर में मिल जाती है। सागर में मिलना ही नदी का अंतिम लक्ष्य है।
कुछ ऐसा कर गुजरने का अवसर, जो खुद के लिए भी अच्छा हो और दुसरो के लिए भी अच्छा हो। अवसर स्वरुप मिले इस जीवन को हम अपने विचारों से प्रभावित करते हैं। जिन्दगी लम्बी हो यह मायने नहीं रखता, जिन्दगी में गहराई हो यह मायने रखता है। जीवन की उपयोगिता इसे इस तरह से जीने में है, इस तरह के कृत्यों में लगाने में है जिसका असर जिन्दगी के बाद भी रहे।
जिंदगी को सरलता से लेना चाहिए! जिंदगी तो सभी जीते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि इसे जीने का तरीका अधिकांश को मालूम ही नहीं होता। साधारण मनुष्य को जिंदगी जीना जटिल मालुम पड़ता है। उसके लिए जीवन में हमेशा सकारात्मक बने रहना अत्यंत कठिन होता है। जीवन में बहुतेरे ऐसे पल आते हैं, जब उसके सितारे बुलंदी पर होते हैं तो कभी गर्दिश में। पहली स्थिति तो उसे अच्छी लगती है, पर दुसरी स्थिति में वह निराश और हताश हो जाता है। परन्तु जो इन परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर पाने में सफल होता है, उसका जीवन सहज हो जातावास्तव जीवन क्या है ?जीवन का कोई सटीक परिभाषा नहीं है। प्रत्येक के लिए इसके अलग अलग मायने हो सकते हैं। परन्तु जीवन है तो कर्म भी होने चाहिए, इसी में इसकी सार्थकता है।
जीवन क्या है ! इस पर दार्शनिक ओशो के शब्दों में : जीवन तो कोरी किताब है। परमात्मा तो कोरी किताब पकड़ा देता है, प्रत्येक व्यक्ति को! फिर चाहो गालियां लिखो, चाहे गीत लिखो, चाहे कांटों की तस्वीर बनाओ, चाहे फूलों को सजाव, सबकुछ तुम्हारे हाथ में छोड़ देता है। जीवन भी पुरी स्वतंत्रता तुम्हें देता है, क्षमता दे देता है, समय दे देता है! फिर कहता है; अब तुम इस जीवन से जो भी बनाना है बना लो।
प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रयत्नों से सुन्दर सा जीवन जीने का गुण सीख सकता है। जीवन देनेवाला साथ-साथ व्यक्ति को उसके भीतर सारे गुणों को देकर भेजता है। लेकिन ये जो गुण हैं, इनका उसे विस्मरण हुवा रहता है। जरुरत इन गुणों को अंतर्मुखी होकर खोजने की, विकसित करने की होती है। जिन्होंने खोजा है उन्होंने पाया भी है।
परन्तु आज के समय में मनुष्य में इसपर विचार करने का समय ही नहीं है। अपने आसपास चारों ओर अन्य जैसा करते हैं, उसी का अनुकरण हो रहा है। अंतर्मुखी होकर सही क्या है ? गलत क्या है ? इसके विषय में चिंतन करने की प्रवृत्ति का लोप होता जा रहा है। बाहर जो दिखाई पड़ता है, उसी को सत्य मानकर लोग भ्रम में पड़े हुए हैं।
सामान्यत: जिसे हम जीवन कहते हैं वह तो मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है। जिनका जन्म हुवा उनका मृत्यु भी निश्चित है। मरण तो सबका होता है, पर स्मरण कुछ का ही होता है। जीवन में सुख आये या दुख हंसते हुवे सामना करना चाहिए। जब तक सांसों का बंधन है, प्रयास होते रहना चाहिए। कुछ करने का, कुछ करते रहने का, कुछ कर गुजरने का। कुछ ऐसा जो आपके साथ भी हो और आपके बाद भी। जीवन एक ऐसी यात्रा है, जो अनिश्चितताओं से भरा होता है। हम इस सफर के यात्री होते हैं। अगर हम सकारात्मक और मजबुत होते हैं तो मंजिल की ओर बढ़ रहे होते हैं। जीत हमारी होती है और नकारात्मक और कमजोर होते हैं तो हारते हैं। जीवन में हमेंशा ईश्वर का सुमिरन करते रहना और कर्म में लगे रहना ही असली जीवन है।
जीवन एक संघर्ष है।
कर्म किजिए और सबकुछ उस पर छोड़कर चलिए, जो पालन हार है। जो आपके हाथ में नहीं, जो आपके नियंत्रण में नहीं, उस पर चिंतित न हों।अनेक विचारकों ने इस विषय पर अनेकों प्रकार से प्रकाश डाला है। अंत में कुछ लेखकों, विचारकों के द्वारा कही गई कुछ शब्दों, पंक्तियों को प्रस्तुत कर रहा हूं। उम्मीद करता हूं इन शब्दों, वाक्यों के पर चिंतन कर आप अपने जीवन को सहज बनाने में सफल होंगे।
महाकवि शेक्सपियर ने कहा है;
•एक पुरानी कहावत है जो मुझ पर भी लागू होती है, जो खेल आप नहीं खेल रहे हैं उसे आप हार नहीं सकते।
•मैंने समय को बर्बाद किया और अब समय मुझे बर्बाद कर रहा है!
•स्वर्णिम काल हमारे सामने है, न कि पीछे!
•कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं होता बल्कि हमारे विचार ही हमें अच्छा या बुरा बनाते हैं!
•यह पूरा विश्व एक रंगमंच है और हम सभी स्त्री – पुरुष सिर्फ पात्र हैं. हमारा प्रवेश और प्रस्थान होता है और हर व्यक्ति अपने जीवनकाल में कई किरदार निभाता है।
चेतन भगत के शब्दों में :
•किसी भी चीज को गम्भीरता नहीं लेना चाहिए। Frustration कहीं ना कहीं एक इशारा है कि आप चीजों को बहुत गम्भीरता ले रहे हैं।
• कभी कभी जीवन ऐसा भी होता है जो आप करना चाहते है वो नही होता है। फिर आपको ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए। यही जीवन होता है।
सुकरात के कथनानुसार ;
•दुनिया में केवल एक ही चीज अच्छी है, ज्ञान, और केवल एक ही चीज बुरी है वो है अज्ञान। उन्होंने यह भी कहा है,कि मैं किसी को कुछ भी नहीं पढ़ा सकता मैं केवल उन्हें सोचने पर मजबुर कर सकता हूं। वैसा जीवन जिसमें परीक्षाएं न ली गयी हों जीने योग्य नहीं है
•जिंदगी हम जो चाहें उसे देने के लिए बाध्य नहीं है।_Margarel Mitchell
•सभी दिनों में सबसे अधिक बर्बाद किया गया दिन वो है, जिस दिन आप हंसे ना हों। _ E E Cummings
•जिन्दगी को केवल पीछे की तरफ देखकर समझा जाना चाहिए, पर दृष्टि आगे की रखकर निरंतर आगे बढ़ना चाहिए। _Soren Kierk gaard
•सपनों के चक्कर में जीना भूल जाना अच्छा नहीं है। _J kcrowling
•जिन्दगी साइकिल चलाने के तरह है, बैलेंस रखने के लिए आपको चलते रहना पड़ता है। _ Einstein
निदा फाजली ने इसे इस तरह समझाया है :
“कठपुतली है या जीवन है जीते जाव सोचो मत
सोच से ही सारी उलझन है जीते जाव सोचो मत!
लिखा हुवा किरदार कहानी में ही चलता फिरता है
कभी है दुरी कभी मिलन है जीते जाव सोचो मत!
नाच सको तो नाचो जब थक जावो आराम करो
टेढ़ा क्यूं घर का आंगन है जीते जाव सोचो मत!
हर मजहब का एक ही कहना जैसा मालिक रक्खे रहना जब तक सांसों का बंधन है जीते जावो सोचो मत!”
मैथिलीशरण गुप्त की कविता से;
महाकवि अपनी माध्यम से जीवन में कुछ अच्छा करने की प्रेरणा देते हैं।
•कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को.
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को।
साहिर लुधियानवी की ललकार कुछ ऐसी है;
•घटा में छुपके सितारे फ़ना नहीं होते
अँधेरी रात में दिये जला के चलो
न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो
ये ज़िंदगी किसी मंज़िल पे रुक नहीं सकती
हर इक मक़ाम पे आगे कदम बढ़ा के चलो
न मुँह छुपा के जियो और न सर झुका के जियो।
शकील बदायुनी ने कुछ ऐसा लिखा है;
•गिर गिर के मुसीबत में
संभालते ही रहेंगे
जल जाए मगर आग में
चलते ही रहेंगे
ग़म जिसने दिए
ग़म जिसने दिए है
वही ग़म दूर करेगा
दुनिया में हम आये है
तो जीना ही पड़ेगा
जीवन है अगर ज़हर
तो पीना ही पड़ेगा।
तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार :
हरि ॐ शरण के गीत कर्म करने और ईश्वर का आराधना करने, विश्वास करने की सीख देती है
•नैया तेरी राम हवाले, लहर लहर हरि आप सम्हाले,
हरि आप ही उठायें तेरा भार, उदासी मन काहे को करे।
काबू में मंझधार उसी के, हाथों में पतवार उसी के,
तेरी हार भी नहीं है तेरी हार, उदासी मन काहे को करे ..
सहज किनारा मिल जायेगा, परम सहारा मिल जायेगा,
डोरी सौंप के तो देख एक बार, उदासी मन काहे को करे
तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करे ..!
https://adhyatmapedia.com/jeevan-ka-anand-kaise-uthayein/
जीवन का लक्ष्य क्या है ?
यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका निदान खोजने का प्रयत्न हर किसी के लिए अनिवार्य है। धन-दौलत, कला-कौशल, पद-प्रतिष्ठा अर्जित करना या सुख-शांति अथवा कुछ और! वैसे इस प्रश्न का उत्तर स्वयं खोजने का विषय है। जीवन स्वयं में एक यात्रा है! बाहर और भीतर की यात्रा। बाहर यानि सांसारिक गतिविधियों में रहकर लक्ष्य निर्धारित करना और उसमें सफल होने का प्रयास करना। भीतर यानि सांसारिकता से परे स्वयं के भीतर प्रवेश करने का प्रयत्न कर जीवन पर ही शोध करना। यह जानने का प्रयास करना कि जीवन क्या है ? क्यों और कैसे मिलता है ? कौन इसे प्रदान करता है और क्यों प्रदान करता है ? वास्तव में यही जानना जीवन का उद्देश्य है।
यह स्वयं पर निर्भर करता है कि हम जीवन को किस रूप में लेते हैं। उसी अनुसार ही हम अपनी-अपनी गतिविधियों में लगे रहते हैं। हां एक बात स्पष्ट रुप से कहा जा सकता है कि सबको सुख की चाहत होती है। और अधिकांश लोग इसे सांसारिकता में ही खोज रहे होते हैं। और बाहर यानि जो केवल सांसारिकता के यात्री होते हैं, अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक जाते हैं।
सुख हो जीवन में हरदम
यह चाहत मन में होती है!
पर चांद की चांदनी से
कितनी रातें रोशन होती हैं!
वास्तव में इस संसार में उपलब्ध मनचाहा सब-कुछ मिल जाने पर भी कोई संतुष्ट होता। यदि एक वस्तु मिल जाए तो दुसरे को पाने की इच्छा प्रबल हो जाती है। दुसरा अगर मिले तो तीसरे के लिए भाग-दौड़ प्रारंभ हो जाता है। इस प्रकार पाने की ललक मन से कभी मिटती ही नहीं। कोई अगर अपने जीवन से संतुष्ट नहीं हो पाता तो समस्या कहां है ? समस्या यह है कि उसे जो चाहिए वह उसे मिल नहीं पाता। आखिर क्यों नहीं मिल पाता ? क्योंकि जिन वस्तुओं को प्राप्त कर वह सुखी होना चाहता है, वह उसमें है ही नहीं।
जीवन में हर व्यक्ति को सुख चाहिए! और इसी सुख की खोज में वह जीवन भर भटकता रहता है। सांसारिकता में लिप्त होकर वह विभिन्न कामनाओं की पूर्ति करना जीवन का उद्देश्य समझ लेता है। यह क्रम तबतक चलता ही रहता है, जबतक की उसकी सांसे थम न जाएं।
व्यवहारिक जीवन में सभी महान बनना चाहते हैं। परन्तु केवल शारीरिक, बौद्धिक एवम् आर्थिक दृष्टि कोई कितना भी संपन्न क्यों न हो, महानता के शिखर को नहीं छू सकता। महानता तो मनुष्य के भीतर छिपी हुई है, लेकिन उसे व्यक्त होने का मार्ग नहीं मिल पाता। सांसारिकता में संलग्न मनुष्य इस तथ्य से अनभिज्ञ रहता है। कामनाओं के कारण ही सबकी उत्कर्ष की राहों में बाधा उत्पन्न होती हैं।
सुख का मतलब है कि
दुख न हो जीवन में
पर सुख की चाहत ही क्यों
गर दुख न हो जीवन में …
~~ ~~~
सुख तो आता है पर
देर तक ठहरता नहीं
क्योंकि दुख वो है जो
दुर कहीं जाता नहीं …
गहराई से विचार करें तो मनुष्य के जीवन में जो व्यस्तता है, वह दुख से मुक्ति के लिए ही है। लेकिन दुख से मुक्ति पाने के लिए सुख के साधन जुटाने से दुख नहीं मिटता। जीवन भर इन साधनों का उपभोग करते रहने पर भी दुख से मुक्ति नहीं मिलती। बल्कि जीवन और भी अशांत होता चला जाता है। अंततः जब जीवन के अंत का समय आता है तो पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं बचता।
वास्तव में जीवन का लक्ष्य जीवन को ही जानना-समझना है। जिंदगी एक त्तत्व है अदृश्य! जो असीम ऊर्जा से भरा हुआ है। एक शक्ति, एक ऊर्जा जो हरेक प्राणी के भीतर निहित होता है। जिसके तन से निकलते ही तन निर्जीव हो जाता है। और इस ऊर्जा से अनभिज्ञ रहना मनुष्य का मूल स्वभाव नहीं है। यह जो विस्मृति है अज्ञानता के कारण है, सांसारिकता के संगत के कारण है।
जीवन का लक्ष्य क्या है ? मान-सम्मान, धन-संपत्ति या कुछ और! क्या यह जानना आवश्यक नहीं है कि यह जो ऊर्जा है, जिसके कारण यह जीवन है, वह क्या है ? इसके लिए हरेक को निरंतर प्रयास करना अनिवार्य है। परन्तु सांसारिक विषयों में लिप्त व्यक्ति का मन सांसारिक माया के जाल में उलझकर रह जाता है। और फिर मृत्यु के साथ ही दैहिक यात्रा का समापन हो जाता है। लेकिन मृत्यु के पश्चात भी उसका मन नहीं मरता, कामना नहीं मरती।
जीवन का उद्देश्य है ; इस बारम्बार आवागमन से मुक्त हो जाना। और जब तक प्राणत्तत्व का साक्षात्कार न हो, इस चक्र से किसी को मुक्ति नहीं मिलती। जन्म और मरण के इस चक्र से मुक्त होना ही जीवन का उद्देश्य है।
श्रीमद्भागवत गीता
में भगवान श्रीकृष्ण
ने कहा है कि मनुष्य जीवन का एकमात्र उद्देश्य आत्मसाक्षात्कार करना है।
भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा कहा है तो इसपर तर्क का कोई कारण नहीं है। केवल चिंतन किया जा सकता है। तर्क किया था अर्जुन ने! अपने मन के विकारों को मिटाने के लिए। भगवान ने समझाया और गीता का प्रादुर्भाव हुवा। श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन, चिंतन-मनन के द्वारा जीवन के रहस्य एवम् उद्देश्य को जाना जा सकता है।
जीवन का उद्देश्य है
आत्मसाक्षात्कार! यानि स्वयं को जानना, उस ऊर्जा का आभास करना जिसके कारण जीवन है। जिन्होंने जाना है, उन्होंने बताया है कि यह परम ऊर्जा का अंश है। अर्थात् इसके जान लेने से सबकुछ जाना जा सकता है। और सबकुछ जान लेने का आशय है कि यात्रा पूरी हो गई। अब जानने को कुछ शेष नहीं रहा! यही मुक्त होने की अवस्था है।
मन रे! भावनाओं से भरे हो तुम
सुख की चाह तो है तुझमें
पर शांति से क्यों डरे हो तुम !!
साधारण को ये बातें समझ में नहीं आती। क्योकि आध्यात्मिकता उसे अव्यावहारिक लगता है। कारण कि आध्यात्मिकता सांसारिकता के विपरीत दिशा में ले जाने की बात करता है। इसे समझने के लिए ज्ञान के मार्ग को चूनना होगा। अध्यात्म के मार्ग पर चलना ही होगा। अध्यात्म का मार्ग कष्टकारी है, पर परीक्षित मार्ग है, यह जीवन को मुक्त कर सकता है।
मन रे! चिंता तो तेरे आदत में है
पर चिंतन भी तेरे जरूरत मेंं है
त्याग दो अपने इस आदत को
खोजो रे मन सुख का आधार।
सुख-चैन से है जीना या
रहना है तुझको बेचैन
सबकुछ है तुम्हीं पर निर्भर
मन रे! खोलो अपने नैन ..!
जीवन का लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अध्यात्मिक होना अनिवार्य है। इस मार्ग पर चलने के लिए हर किसी को प्रयत्न करना चाहिए। इस मार्ग की ओर बढ़ने के लिए ध्यान एक उतम प्रक्रिया है। मन में आत्मसाक्षात्कार के विचार को दृढ़विश्वास के साथ धारण कर ध्यान क्रिया का अभ्यास नित्य एवम् निरंतर करना चाहिए। ध्यान क्रिया के अभ्यास से मन धीरे धीरे शांत होने लगता है।
सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करना भी अनिवार्य है, परन्तु हम बाहर से जीवन को जानने का प्रयास नहीं कर सकते। इसके लिए प्रयास भीतर ही करना होगा। ध्यान क्रिया के द्वारा मन को नियंत्रित किया जा सकता है। शांत और एकाग्र मन के साथ भौतिक जीवन में भी लगे रहने का लाभ मिलता है। और साथ साथ आध्यात्मिक प्रगति होना प्रांरभ हो जाता है। जीवन में सुख और शांति का अनुभव होने लगता है। सांसारिक जीवन जीते हुए भी आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त किया जा सकता है।
एक प्रसंग है जो मैंने पढ़ी है। एक समय की बात है। परमपूज्य रामकृष्ण परमहंस अपने कुछ शिष्यों के साथ नदी तट पर टहल रहे थे। इसी क्रम में उनकी नजर कुछ मछुवारों पर पड़ी। मछुवारे मछलियां पकड़ रहे थे। समीप पहुंचकर उन्होंने देखा कि अनेक मछलियां एक जाल में फंसी हुवी थीं। इनमें से कुछ तो जाल से निकलने का प्रयत्न ही कर रही थीं। कुछ निकलने का प्रयत्न तो कर रही थीं, लेकिन निकल नहीं पा रही थीं। उन्हीं में से कुछ ऐसी थी जो अपने प्रयत्न में सफल हो गयीं और वापस जल में तैरने लगीं।
यह देख परमहंसदेव ने शिष्यों से कहा – जिस प्रकार इस जाल में तुम सभी तीन प्रकार के मछलियों को देख रहे हो। ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी तीन प्रकार के होते हैं। पहले वो जो सांसारिकता में लिप्त होते हैं और इससे मुक्त होने का प्रयत्न तक नहीं करते। दुसरे वे जो प्रयत्न तो करते हैं, पर मुक्त नहीं हो पाते। तीसरे वे जो अथक प्रयास करते हैं और अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं।
फिर उन्होंने कहा कि एक चौथे प्रकार के लोग भी होते हैं, जो महान आत्माएं हैं! वे सांसारिकता के नजदीक आते ही नहीं। फिर इस मायाजाल में उनके फंसने का प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसे लोग संसार में विरले ही पैदा होते हैं।
सामान्य रुप से यह तो माना ही जा सकता है कि जीवन जीने और जीवन बिताने के अलग-अलग मायने हैं। जीवन बिताने का तो कोई आशय ही नहीं है, बिल्कुल निरर्थक है। जीवन का कोई न कोई उद्देश्य तो होना ही चाहिए। कम से कम जीवन में प्रसन्नता हो, इतना तो प्रयत्न किया ही जा सकता है। और हमारे प्रयासों से दुसरों को भी खुशी मिले तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है।
तनिक और विचारशील हो सकें तो धन-संपदा के अलावे कुछ और ऐसा अर्जित किया जा सकता है, जो जीवन पर्यंत भी साथ ले जा सकें। जीवन का लक्ष्य को जानने के लिए कोई न कोई सकारात्मक चिंतन तो करने ही पड़ेंगे। जीवन को सफल बनाने के लिए सार्थक प्रयत्न तो करने ही पड़ेंगे। यात्रा की शुरुआत होनी चाहिए! अपना लक्ष्य स्वयं निर्धारित किजिए, मार्ग पर चलते रहिए, बढ़ते रहिए! अगर लक्ष्य सांसारिक है तो मंजिल एक न एक दिन अवश्य मिलेगी। इस आलेख में जो विचार व्यक्त हुवा, स्वयं के अध्ययन एवम् चिंतन पर आधारित है। सारा जीवन अनुभव का विषय है! अतः मित्रों आप सभी अपनी समझ एवम् अनुभव के आधार पर ही अपना लक्ष्य निर्धारित करें और आगे बढ़ें। जहां तक आत्मसाक्षात्कार की बात है, यह तो प्रारब्ध और पुरुषार्थ — का विषय है।
जीवन क्या है ? इसका जबाब भी जीवन के ही पास है। ऐसा भी नहीं कि इस सवाल का जबाब किसी को मिला ही नहीं हो ! प्रस्तुत है अपने ‘मन के अल्फाज’ की कुछ पंक्तियां …
ऐसा भी नहीं कि
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मिला न हो किसी को
जबाब इस सवाल का..!
जिसने किया मोहब्बत
इस हसीन जिन्दगी से
मिला है उस दीवाने को
जबाब इस सवाल का..!
किया जो पूरी तबियत से
यह सवाल जिन्दगी से
मिला है उस मस्ताने को
जबाब इस सवाल का..!
खता है यह खुद उनकी
जिन्होंने ना ढ़ुंढ़ा कभी
जबाब इस सवाल का..!
उलझकर रह गये जो
बेतुक सवालों में
मिलेगा उन्हें क्यों?
जबाब इस सवाल का ..!
जीवन क्या है ? बहुत हद तक जीवन को दार्शनिक दृष्टिकोण से ही समझा जा सकता है। प्रत्येक काल में ज्ञानियों ने जीवन को समझने का प्रयत्न किया है और जाना भी है। उन्होंने संसार के समक्ष अपने विचार भी व्यक्त किए हैं। लेकिन उनकी बातों को भी समझना साधारण के लिए कठिन मालुम पड़ता है। क्योंकि वास्तव में इसे जानना अनुभव का विषय है।
साथियों जीवन के संबंध जितना भी लिखा जाय कम है। फिर भी इस लेख में आप सब प्रिय पाठकों के लिए इसे रोचक बनाने का प्रयास किया गया है। अगर आपको यह अच्छा लगा हो तो अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। मंगलकामना 🛐
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