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दुखी मन मेरे — Don’t Live Where There Is No Bliss

दुखी मन क्या है !

मनुष्य दुखी मन को धारण किए हुए क्यों जीता है? यह एक विडंबना नहीं तो और क्या है? किसी को दुख नहीं चाहिए!परन्तु अधिकांश के जीवन का अधिकतर पल दुख में ही गुजरता है। इसका कारण क्या है? और क्या इससे उबरने का कोई निदान भी है?

दुख मन का वह भाव है, जिसके होने से व्यक्ति विचलित हो जाता है। मन जब दुख के अवस्था में हो तो उसे दुखी मन की संज्ञा दी जाती है। ये दुखी मन, सुखी मन, आवारा मन, वैरागी मन, प्रेमी मन आदि सब इस बहुरुपी मन के ही नाम हैं। वह जब जिस अवस्था में रहता है, उस भाव विशेष की उपमा उसके साथ जोड़ दी जाती है।

दुखी मन मेंरे सुन मेंरा कहना, जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना। अपने लिए कब हैं ये मेंले,  हम हैं हर मेंले में अकेले। क्या पायेगा उसमें रहकर जो दुनिया जीवन से खेले..!

जरा सोचिए!  ‘दुखी मन मेंरे…’ गीत की उपरोक्त पंक्तियां क्या कहती हैं। जहां चैन नहीं, जहां सुख नहीं, उन क्रिया-कलापों में संलग्न रहने की जरूरत क्या है! मोह-माया के चक्कर में पड़कर मनुष्य अपने जीवन के उद्देश्य से क्यों भटक जाता है! इस मिथ्या जगत के आडंबरों को ढोते ढोते दुख के सिवा किसे क्या मिला! जो दुनिया मनुष्य के जीवन से खेल रहा हो, उसके शह-मात के चालों में क्यों उलझा रहता है यह मन। जीवन जीने के लिए है, आनंद उठाने के लिए है। साहिर लुधियानवी द्वारा रचित यह गीत जीवन के इसी दर्शन को समझाती है। हर किसी को इस बात को समझने की आवश्यकता है।

अब प्रश्न यह है कि मनुष्य दुखी मन को धारण किए हुए क्यों जीता है? जीवन में दुख क्यों है? – Jeevan Me Dukh Kyun Hai? यह एक विडंबना नहीं तो और क्या है? किसी को दुख नहीं चाहिए, परन्तु अधिकांश के जीवन का अधिकतर पल दुख में ही गुजरता है। इसका कारण क्या है? और क्या इससे उबरने का कोई निदान भी है? इसका कारण है! सिर्फ और सिर्फ सुखों की चाह रखना। और जिसे वह सुख समझता है, वह स्थायी हो नहीं सकता। 

सुख है एक छांव ढ़लती आती है जाती है दुख तो अपना साथी है। राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है, दुख तो अपना साथी है..!

दुख और सुख दिन और रात के तरह होते हैं। एक का आना और दुसरे का जाना जीवन में लगा रहता है। सुख की अवस्था का आना और जाना जीवन में लगा ही रहता है। सुख का जो विपरीत अवस्था है, वही दुख की अवस्था है। सुख की चाहत तो हर कोई के पास है, परन्तु दुख को स्वीकार करने की मंशा किसी में नहीं। यह जो अवस्था है, हर किसी के लिए अस्वीकार्य है। और अस्वीकार्य होते हुवे भी उसका आना निश्चित है। यह जानते हुए कि जीवन में दुख का आना निश्चित है तो उसके आने से कष्ट क्यों! मजरुह सुलतानपुरी की उपरोक्त पंक्तियां हमें इसी बात की ओर इशारा करती है। 

दुखी मन का कोई अस्तित्व नहीं होता, केवल उपस्थिति होती है। इसका मुख्य कारण अज्ञान है, ज्ञान का अभाव है। अज्ञान के अन्धकार में मनुष्य जो मिथ्या है, उसे ही सत्य समझ बैठा है।

साधारण मनुष्य अपने जीवन का अधिकांश समय सांसारिक क्रिया-कलापों में, भोतिक पदार्थों की प्राप्ति एवम् संचय में गुजार देता है। उस वांक्षित परिणाम नहीं मिलते तो व्यथित हुवा जाता है। और अगर मिल भी जाय तो संतुष्ट नहीं होता। वास्तव में मनुष्य जिसे सुख समझता है, वह क्षणिक होता है, अस्थायी होता है। जीवन क्या है जानिए ..! Meaning of Life ..!व्यापक अर्थों में सुख वह है जो स्थायी है। और जो स्थायी है, वह कभी जा नहीं सकता, यह तो आनंद की अवस्था है। जिसे वह सुख समझता वह मिथ्या है। यह माया के संसार का प्रभाव है, जो उसके मन को प्रभावित किए हुवे है। 

दुनिया क्या है एक तमाशा चार दिनों की झुठी आशा ! पल में तोला पल में माशा! तराजू लेके हाथ में तोल सके तो तोल! बाबा मन की आंखे खोल..! _राय चन्द वोराल

दुखी मन का कोई अस्तित्व नहीं होता, केवल उपस्थिति होती है। इसका मुख्य कारण अज्ञान है, ज्ञान का अभाव है। अज्ञान के अन्धकार में मनुष्य जो मिथ्या है, उसे ही सत्य समझ बैठा है। इस असत्य से छुटकारा पाने के लिए मन की आंखे खोलनी पड़ती है। मन की आंखे खोल! Open your eyes…जब अन्तर्तम में ज्ञान के प्रकाश का उत्सर्जन होता है, अज्ञान का अंधेरा विलुप्त हो जाता है। फिर मन को जिस अवस्था का आभास होता है, वह स्थायी सुख की अवस्था होती है। यह जो अवस्था है, परमसुख की अवस्था है। और यह जो मन होता है, दुखी मन नहीं आनंदित मन कहलाता है। 

ओशो के शब्दों में; मानव का जीवन ही बाहर से अनुप्रेरित है, बाहर कुछ घटनायें घटती है और हमारा जीवन भी उनके अनुसार ही उनकी प्रतिक्रिया में संचालित हो जाता है। बिल्कुल ही छोड़ देना चाहिए कि हम विचार करते हैं। क्योकि अगर हम विचार कर रहे होते तो हमारे जीवन में दुख, चिन्ता और तनाव खोजने से भी नहीं मिलते। चिन्तायें हमें घेरे रहती हैं और हम इन्हें दुर करने में असमर्थ हैं। जो विचार करने में समर्थ हो जायगा वह स्वतंत्र हो जायगा, क्योकि स्वतंत्रता और विचार करने का सामर्थ्य एक ही चीज का नाम है। 

जब हमारी भावनाआओं में हमारा कोई वश ही नहीं है तो फिर क्या करें? क्या हमें निराश हो जाना चाहिए ? क्या हमेंं हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाना चाहिए ? नहीं अगर हमें इन सारी बातों का समझ आ जाये तो हमारे भीतर उस किरण का जन्म हो जायगा जो विचार भी कर सकती है। 

दुख की वजह से चिंतित होना किसी के नियंत्रण में नहीं है। जब हमारी भावनाआओं में हमारा कोई वश ही नहीं है तो फिर क्या करें? क्या हमें निराश हो जाना चाहिए ? क्या हमेंं हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाना चाहिए ? नहीं अगर हमें इन सारी बातों की समझ आ जाये तो हमारे भीतर उस किरण का जन्म हो जायगा जो विचार भी कर सकती है। दुख मनुष्य का सबसे बड़ा गुरु होता है, जो जीवन को सुधारता है।

क्या किसी ने विचार किया है कि जीवन में जो कुछ प्राप्त है, उसके लिए कितना प्रयास हुवा है। और वांक्षित सुखों का अथक प्रयासों के बाद भी सुलभ नहीं होने का कारण क्या है!  वह भौतिकता, वह तथाकथित उपलब्धि कदाचित उसके लिए थी ही नहीं जिसे ये सुलभ नहीं हुवे हों। उस अलभ्य को प्राप्त करने की चाह में अपनी शक्ति, श्रम, सामर्थ्य व समय सबकुछ का अपव्यय कहां तक उचित है। ऐसा करने से सिवाय निराशा, असंतोष, दुख के और क्या मिल सकता है। जब कोई विधि के विधान को चुनौती दे स्वयं के इच्छित मार्ग की ओर अग्रसर होने का प्रयास करता है! तो असफलता भी साये के तरह उसके साथ साथ चलती है। अगर सफलता मिल भी गया हो, तो उससे प्राप्त सुख भी क्षणिक ही होता है। सफलता और विफलता : Failure on the way to success !

हजारों मिल लंबे रास्ते तुझको बुलाते! यहां दुखड़े सहने के वास्ते तुझको बुलाते ! है कौन सा है इंसान यहां पर जिसने दुख ना झेला! चल अकेला…! _गीतकार प्रदीप

इसके विपरीत मानवता से जुड़े कार्यों को सम्पन्न करने में बाधाएं तो बहुत आती हैं। सत्य का मार्ग दुर्गम होता है, परन्तु ईश्वर कृपा से जटिलताएं धीरे-धीरे सहज रुप में बदलती चली जाती हैं। और व्यक्ति उस गंतव्य तक  पहुंच जाता है जहां तक पहुंचने के लिए भौतिक रूप से सर्वथा अक्षम होता है।उड़ना तुझे अकेला है : Udana tujhe akela hai..! ज्ञानियों की माने तो उनका कथन है कि, जो जीवन के सार्थकता को समझ कर सही मार्ग के राही होते हैं।  ईश्वर कृपा से उनके मार्ग की जटिलताएं सहजताओं में परिवर्तित हो जाती हैं। वैसे व्यक्ति का कृत्य स्थायी सुख और आत्मसंतोष का मार्ग प्रशस्त करता है। सकारात्मक चितन करने और सार्थक कर्म करनेवाले का  दुखी मन से दुर दुर का कोई संबंध नहीं होता। 

दुर है मंजिल दुर सही पर प्यार हमारा क्या कम है। पग में कांटे लाख सही पर ये सहारा क्या कम है। हमराह तेरे कोई अपना तो है..! राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है! दुख तो अपना साथी है..! _मजरुह सुल्तानपुरी

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