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जानिए अघोरी का अर्थ क्या है — Learn the Meaning of Aghori

अघोरी एक प्रकार के साधक होते हैं। यदा-कदा  मैले-कुचैले वस्त्र धारण किए हुवे, उलझे हुवे बाल और दाढ़ी से युक्त एवम् शरीर में भस्म लगाये साधु दिख जाते हैं। वे जल्दी किसी से कुछ लेते नहीं और नाही कुछ कहते हैं। खुद में ही मस्त रहने वाले इन विचित्र प्राणियों को देखकर मन कौतूहल से भर उठता है। अपनी विचित्र रूप एवम् क्रियाओं के कारण ही लोगों के बीच यह मान्यता है कि ये रूखे स्वभाव के होते हैं। परन्तु यह भी कहा जाता है कि ज्यादातर अघौरियों के पास तांत्रिक शक्तियां होती हैं। इन साधकों की कृपादृष्टि अगर किसी पर पड़ जाय, तो अपनी सिद्धि का फल उसे सहजता से प्रदान कर देते हैं। ये अगर प्रसन्न हो जायं तो पल भर में ही किसी का भाग्य परिवर्तित करने की क्षमता रखते हैं। 

आखिर विचित्र से दिखने वाले इन साधकों का जीवन कैसा होता है! आइए संक्षेप में जानने का प्रयत्न करते हैं। अघोरी वैसे साधक को कहा जाता है, जो साधना के एक मार्ग ‘अघोरपंथ’ के अनुगामी होते हैं। साधना की एक रहस्यमयी शाखा है अघोरपंथ। इस पंथ का अपना विधान है, और अपनी विधि है। अघोर शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है उजाले की ओर। अघोरपंथ के प्रणेता स्वयं भगवान शिव माने जाते हैं। अघोरी भगवान दत्तात्रेय को अघोरपंथ का गुरु मानते हैं। दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार माना गया है। अघोरपंथ के साधक भगवान शिव के उपासक होते हैं। इनके अनुसार शिव ही सबकुछ हैं, तन और मन को नियंत्रित कर एवम् जड़ और चेतन के सभी स्थितियों का अनुभव कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। 

वाराणसी (काशी) को प्रमुख अघोर स्थल माना जाता है। भगवान शिव की नगरी होने के कारण यहां अनेक अघोर साधकों ने साधना की है। अघोरियों के पूज्य बाबा टीकाराम का स्थान यहां एक तीर्थस्वल के रूप में मौजूद है। अघोरपंथ की तीन शाखाएं प्रसिद्ध हैं; औघड़, सरभंगी और धुरे। औघड़ शाखा के कल्लु सिंह और कालुराम जो की संत किनाराम के गुरु थे। कुछ लोग इस शाखा को गुरु गोरखनाथ के भी पूर्व का मानते हैं।

काशी के अलावा गुजरात का जुनागढ़ को भगवान दत्तात्रेय के तपस्थल के रुप में जाना जाता है। अघोरपंथ में श्मसान साधना का विशेष महत्व है, यही कारण है कि अघोरी श्मशान में रहना पसंद करते हैं। इस साधना की तंत्र क्रियाएं श्मसान के सन्नाटे में की जाती है। अघोरी श्मशान घाट में तीन तरह की साधना करते हैं। श्मशान साधना, शिव साधना और शव साधना। ऐसी साधनाऐं अधिकांशतः तारापीठ के श्मशान, कामाख्यापीठ के श्मसान, त्रयम्बकेश्वरएवम् उज्जैन के चक्रतीर्थ का श्मसान होती है। 

अघोर का शाब्दिक अर्थ होता है, जो घोर नहीं हो। घोर शब्द एक विशेशण है। यह किसी स्थिति, अवस्था अथवा घटना के असामान्य रूप को इंगित करता है। अत्यधिक कठोर,  भयावह, विकराल जैसे स्थितियों को इंगित करने हेतु घोर शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे घोर अंधेरा, घोर वर्षा, घोर संकट आदि। घोर का विपरीत है अघोर! अर्थात् अघोर का संबंध सरलता है , सहजता से है । इस प्रकार से देखा जाए तो अघोरी का आशय है, जो सरल हो, सहज हो, विकराल नहीं हो, डरावना नहीं हो।

इनके विषय में एक रोचक तथ्य यह है कि अघोर शब्द के अर्थ के विपरीत अघोर साधना का रूप अत्यधिक कठिन एवम् डरावना होता है। परन्तु वास्तव में भीतर से ये सहज होते हैं और लोक कल्याण के भाव से युक्त होते हैं। अघोरी बनने की पहली शर्त ही अपने मन से घृणा को त्यागना होता है। उनका मानना है कि परमात्मा के पास पहुंचने के लिए छोटी छोटी चीज़ों के प्रति भी विकर्षण नहीं होना चाहिए। अघोर विद्या मनुष्य को प्रत्येक विषय-वस्तु के प्रति समभाव बनाये रखने की सीख देती है।

अघोरी इसी समभाव को धारण करने के लिए  नरमुंडों का माला पहनते हैं। अपने शरीर में चिता के भस्म का लेपन करते हैं और चिता की अग्नि पर भोजन पकाते हैं। कापालिक क्रिया करते हैं, नरमुंडों को पात्र के रूप में प्रयोग करते हैं। इनके मन में वस्तु भेद, स्थान भेद जैसी भावनाएं नहीं होती। अघोरी साधकों का भेष-भूषा ही ऐसा होता है कि ये देखने में भयावह होते हैं। अघोरी जिस प्रकार की तांत्रिक क्रियाएं करते हैं, उससे सामान्य व्यक्ति स्वाभाविक रूप से भयभीत हो जाता है। अगर इनके समक्ष कोई असभ्य आचरण करता है, तो इनका क्रोध भी प्रचंड हो जाता है, इसलिए भी लोग इनसे भय रखते हैं। अघोरी का आशिर्वाद जितना शीघ्र फलित होता है, इनका अभिशाप भी उतना ही शीघ्र फलित होता है। अतः इनके वाणी के प्रति सावधानी बरतना चाहिए। हांलांकि अपने आप में ही मग्न रहने वाले को साधकों जबतक छेड़ा न जाय, ये किसी का भी अहित नहीं करते।  साधना से सिद्धि मिलती है, अघोरी भी एक साधक होते हैं।

अन्य साधकों की तरह उनका भी मन वैरागी होता है। वे विचित्र दिखते हैं पर विचित्र होते नहीं हैं, उनसे भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। वैरागी मन क्या है जानिए ! Know what is the recluse mind

चाहे जिस मार्ग में चलकर साधना किया जाता हो, साधक का आदर एवम् सत्कार अवश्य करना चाहिए।  आजकल अघोरी साधकों का भेष-भूषा धारण कर अयोग्य लोग भी घुमते रहते हैं। अतः ढ़ोगी अघोरियों, पाखंडी साधु-संतों से भी सावधान रहना चाहिए। 

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