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भक्ति की शक्ति

भक्ति की शक्ति अनूपम है, अपरिमित है। जिसके जीवन में इस ऊर्जा का उद्भव हो जाता है, उसका जीवन सार्थक हो जाता है। भक्ति वह भाव है, जिसमें प्रेम है, समर्पण है। और यह जो प्रेम और समर्पण निहित है भक्ति में, यह परमात्मा के प्रति है। परमात्मा की स्तुति से भीतर  जो ऊर्जा प्रस्फुटित होती है, वह भक्ति की शक्ति है। 

भक्ति में लीन मनुष्य को भक्त कहा जाता है। भक्त का मन सेवा और करुणा के भाव से भर जाता है। 

भक्ति की शक्ति मनुष्य को जीवन में सुख और शांति का अनुभव कराती है। भक्ति से जो शक्ति अंतर्मन में प्रस्फुटित होती है, अंतर्मन को शुद्ध कर देती है। भक्ति के द्वारा मनुष्य राग, द्वेष एवम् अहंकार आदि अवगुणों से मुक्त होकर अपने आत्म स्वरूप का साक्षात्कार कर सकता है। और अपने जीवन को सार्थक कर सकता है।

अद्भुत है भक्ति की शक्ति,
अनुपम है इसकी ज्वाला,
मिटाकर मन की कालिमा को,
जीवन में उजियारा लाती है।

दुखों से राहत, सुख का उद्भव,
मन को शांति, हृदय में प्रेम,
नित्य करुणा की अविरल धारा,
सबके अंतर्मन में जगाती है।

भक्ति ही है जीवन का सार,
अगर भक्ति न हो जीवन में,
तो फिर होगा कैसे नैया पार।
भक्ति ही है सबका आधार
अद्भुत है भक्ति का यह संसार।

सुन्दर है यह भक्ति की शक्ति,
मिटा देती है सबका अंधकार।
भक्ति विना यह जीवन अधुरा,
यह शक्ति है प्रकृति का आधार।

भक्ति की शक्ति परम सुखदायी,
करो स्वीकार इस पावन त्तत्व को।
सुख के इस धारा का अनुभव कर
सार्थक करो निज जीवन को।

इस शक्ति का हो जिसे आभास,
उसके जीवन में ना कोई पाश।
मुक्त हो राग, द्वेष और चिंता से,
जाता है ज्ञान के सागर के पास।

भक्ति निष्ठापूर्वक की जानेवाली क्रिया है। यह का एक विशेष क्रिया है, जिसमें कर्ता का ध्यान किसी एक विषय,वस्तु अथवा स्थान पर निरंतर लगा रहता है। अगर कोई निरंतर किसी एक चीज पर ध्यान केंद्रित कर सके। उसके विचार, उसकी भावनाएं एक ही दिशा में क्रियान्वित होने लगे, तो उसके जीवन में अद्भुत घटना घटित हो सकती है।  

सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार “भक्ति की शक्ति ऐसी है कि वो सृष्टिकर्ता को भी बना सकती है। हम जिसे भक्ति कहते हैं, उसकी गहराई ऐसी है कि चाहे ईश्वर का अस्तित्व न हो, तो भक्ति ईश्वर का अस्तित्व बना भी सकती है।”

मीरा की भक्ति इसका एक अप्रतिम उदाहरण है। इतिहास के पन्नों में ऐसा उल्लेख किया गया है कि बालपन में उनसे यह कहा गया कि श्रीकृष्ण ही उनके पति हैं। उन्होंने यह भी सुना कि पति ही परमेश्वर होता है। मीरा ने बालपन से ही इस बात को मन में बसा लिया और श्रीकृष्ण को भजने लगी। उनका ध्यान श्रीकृष्ण पर केंद्रित हो गया। आगे जाकर मीरा के जीवन में क्या क्या घटित हुवा, यह सर्वविदित है। 

भक्ति की शक्ति का अनुभव उसे नहीं हो पाता, जो केवल सांसारिकता के प्रति आसक्त होता है। वास्तव में भक्ति सांसारिकता से परे है। भक्ति का संबंध सत्य से है, परमात्मा से है। शास्त्रों में कहा गया है कि ईश्वर ही सत्य है। और अगर जीवन में भक्ति का समावेश हो, तो इस सत्य को जाना जा सकता है।

परन्तु वास्तव में इस सत्य को स्वीकार कितने लोग कर पाते हैं? लोग मंदिर में, मस्जिद में, गिरिजाघर में अथवा किसी आश्रम में जाते हैं। लेकिन केवल मतलब के साथ जाते हैं। कुछ ऐसा हो जाए, जिससे उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाए। कोई ऐसा मिल जाए, जो उन्हें कुछ दे। उनको लाभान्वित कर सके। परन्तु वास्तव में जो सत्य का खोज कर रहा है, उसे कोई वस्तु प्राप्त नहीं होता,कुछ भी प्राप्त नहीं होता। सत्यार्थी को तो सत्य से ही साक्षात्कार होता है। 

वह सत्य जो अपरिवर्तित है, अविरल धारा है, जो प्रकृति का आधार है। जिन्होंने इस सत्य का संधान किया, उन्होंने पाया है। इस संसार में ऐसे अनेक व्यक्तित्व का अवतरण हुआ है, जिन्होंने भक्ति की शक्ति से भगवान का साक्षात्कार किया है। 

भक्ति की शक्ति अपरिमित है, इसमें अत्यंत शक्ति निहित है। परम ऊर्जा से, परमात्मा से जुड़ने की जो प्रवृति है, भक्ति है। ईश्वर को जानने के लिए भक्ति सर्वोत्तम उपाय है। भक्ति की शक्ति ऐसी है, जो भक्त को भगवान से मिला देती है। अगर मीरा को श्रीकृष्ण मिल सकते हैं, तो हर किसी के जीवन में यह संभव है। लेकिन इसके लिए मीरा के जैसी दिवानगी भी होना जरूरी है।

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