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भेदभाव : एक वैचारिक विपन्नता।

भेदभाव, अर्थात् भेद की भावना। यह एक ऐसा शब्द है, जो विभिन्न विषयों में प्रयुक्त होता है। ऊंच-नीच, छुवाछुत आदि के भाव इसमें संलग्न होते हैं। जो किसी व्यक्ति या समूह के साथ वर्ग, जाति, धर्म, लिंग आदि के कारण उनके साथ भिन्नता का विचार उत्पन्न करता है। भेदभाव विभिन्न कारणों से वैचारिक भिन्नता के आधार एक दुसरे के साथ असमान व्यवहार है।

भेदभाव अर्थात् एक दुसरे से भिन्नता का भाव है, जो कि वैचारिक विपन्नता को दर्शाता है। समस्त संसार में यह यह बहुत समय से चला रहा है। मानवता के विकास में यह एक समस्या के रूप में उभरकर प्रस्तुत हुवा है। यह जो भाव है,  नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि अनेक रूप में प्रगट होता है। इससे न केवल नैतिकता का ह्रास होता है, बल्कि सामाजिक एवम् आर्थिक विकास में भी यह बाधक है। स्थिति ऐसी बन पड़ी है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि के क्षेत्र में भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

भेदभाव के प्रभाव!

सामाजिक प्रभाव: भेदभाव के कारण समुदाय के सदस्य अपने वैचारिक मतभेदों के कारण दूसरे समुदायों के सदस्यों से अलग हो जाते हैं। इसके कारण धीरे धीरे लोग दूसरे समुदायों के साथ साथ अपने समाज में भी अलग-थलग महसूस करने लगते हैं।

सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत लोगों के अधिकारों को असमान रूप से वितरित किया जाता है। इससे लोगों को न्याय के साथ-साथ उचित विकास की संभावनाओं से वंचित होना पड़ता है। अधिकारों के असमान वितरण से उनका विकास रुक जाता है और वे अपने समाज के विकास से पीछे हट जाते हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव: भेदभाव के कारण लोगों के मनोवैज्ञानिक विकास पर भी असर पड़ता है। इस अनुचित भाव के कारण लोगों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। यह अपने आप में एक विकार है, जो मानसिक विकृति का कारण बन जाता है।

आर्थिक प्रभाव: भेदभाव का लोगों की आर्थिक स्थिति पर भी असर पड़ता है। अनुचित व्यवहार के कारण लोगों की आर्थिक विकास की संभावनाएं कम हो जाती हैं। यह समाज के विकास को धीमा करता है, जिसके कारण कुछ लोग आर्थिक विकास से वंचित रहत जाते हैं।

सामाजिक संघर्ष: भेदभाव सामाजिक संघर्ष को बढ़ाता है। यह समाज को विभाजित करता है और एक सफल समाज के लिए आवश्यक समन्वय को रोकता है।

भेदभाव के प्रभाव बहुत ही नकारात्मक होते हैं। यह समाज के विकास को रोकता है और लोगों की आर्थिक, मानसिक और सामाजिक विकास को धीमा करता है। भेदभाव से बचने के लिए समाज को सभी लोगों के साथ समानता का भाव रखना चाहिए। लोगों को एक दूसरे के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग, व्यवसाय आदि के आधार पर नहीं बल्कि मानवता के आधार पर चलना चाहिए। इसके लिए शिक्षा के माध्यम से लोगों को समानता के बारे में शिक्षित करना चाहिए। हमें सभी लोगों के साथ एक स्वच्छ, स्वस्थ और समृद्ध समाज बनाने के लिए योगदान देना चाहिए। समानता और एकता के साथ जीवन जीने की कला को सीखना प्रत्येक के लिए महत्वपूर्ण है।

हमें यह याद रखना चाहिए कि हम सभी मानव हैं, और हम सभी ही ईश्वर के संतान हैं। क्योंकि वास्तव में निस्पृहता धर्म का अवयव नहीं है। भारतीय पौराणिक शास्त्रों में हमें ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की सीख दी गई है। हमें सभी को समान ढंग से समझना चाहिए और भेदभाव को समाप्त करने के लिए साथ मिलकर काम करना चाहिए।

भेदभाव को मिटाने के उपाय 

भेदभाव को मिटाने के उपाय के बारे में कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:

जागरूकता बढ़ाना: भेदभाव से लड़ने का पहला कदम जागरूकता है। एक समाज की जागरूकता से उसमें भेदभाव को कम किया जा सकता है। जागरूकता बढ़ाने के लिए लोगों को इस बात के बारे में शिक्षा देनी चाहिए कि सभी लोग एक जैसे होते हैं और सभी को समान अवसर मिलने चाहिए।

संवाद: लोगों के बीच संवाद का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक दूसरे के साथ बातचीत करने से लोग एक दूसरे को बेहतर जानते हैं और उनके बीच का भेदभाव कम हो जाता है। लोगों को समझाने के लिए उन्हें खुले मन से सुनने की आवश्यकता होती है।

न्याय: न्याय की शिक्षा देने से लोग अपने अन्यायपूर्ण व्यवहार से बचने लगते हैं। एक समाज में न्यायपूर्ण व्यवहार करने से उसमें भेदभाव कम होता है।

समरसता: समरसता से भी भेदभाव को कम किया जा सकता है। जब लोग एक साथ काम करते हैं तो उनके बीच समरसता बढ़ती है और उनके बीच का भेदभाव कम होता है। समुदाय के सदस्यों को समरसता के लिए एक साथ काम करना, एक दूसरे की सहायता करना और उनके बीच सहयोग बढ़ाना चाहिए।

उदारता: लोगों में उदारता बढ़ाना भेदभाव को कम करने के लिए एक और महत्वपूर्ण तरीका है। जब लोग दूसरों के साथ उदार होते हैं, तो उनके बीच का भेदभाव कम होता है। लोगों को समझाना चाहिए कि उन्हें दूसरों के साथ सहानुभूति और उदारता दिखानी चाहिए।

शिक्षा: शिक्षा भेदभाव को मिटाने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण उपाय है। जब लोगों को शिक्षा दी जाती है, तो उनके अंदर ज्ञान का स्तर बढ़ता है और वे भेदभाव से लड़ने की कला सीखते हैं। शिक्षा द्वारा लोगों को समझाया जा सकता है कि भेदभाव किस तरह से एक समाज को नुकसान पहुंचाता है और उन्हें एक साथ रहने के लाभ के बारे में बताया जा सकता है।

भेदभाव को मिटाने के लिए अभियानों को भी चलाया जाता है। इन अभियानों के माध्यम से लोगों को भेदभाव के खिलाफ लड़ना सिखाया जाता है और सामाजिक एवं राजनीतिक सुधारों के लिए जागरूकता फैलाई जाती है।

भेदभाव को मिटाने के लिए सभी समाज के सदस्यों को समझना चाहिए कि हम सभी एक जैसे हैं और हमें एक साथ रहना होगा। जब लोग सहयोग और समरसता से काम करते हैं तो समाज में भेदभाव कम होता है, और एक अधिक समरसता भरा समाज बनता है। 

भारतीय पौराणिक शास्त्रों में हमें ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का पाठ पढ़ाया गया है। निस्पृहता, छुवाछुत, एक दुसरे घृणा करना आदि धार्मिकता का अंग नहीं है। वास्तव में नैतिक मूल्यों को धारण करना ही धार्मिकता है। हम सभी मानव एक समान हैं, और एक ही ईश्वर के संतान हैं। हमें धर्म, राष्ट्रीयता, जाति और वर्ण के आधार पर भेदभाव करना छोड़ देना चाहिए। हमें को इस बात को समझाना चाहिए कि सभी मनुष्य एक समान हैं और हर किसी को एक समान अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए। सधन्यवाद!!

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