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बीती ताहि बिसार दे।‌।

बीती ताहि बिसार दे

बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले।सामान्यतः इस उक्ति का आशय है कि जो बीत गया! उसे भूल जाओ। आगे की सुध ले – आगे की सोचो। जो कल बीत गया, अच्छा था अथवा बुरा, वह तो बीत गया। जो कल आनेवाला है, उस पर विचार करो। 

हांलांकि आनेवाला पल कैसा होगा, यह कोई नहीं जानता। आनेवाले पल को किसने देखा है! लेकिन बीते हुवे पलों का अनुभव सबको होता है। अगर इन पलों में कुछ अच्छा हुवा हो, तो याद करना सुखद होता है। और बीते हुवे पल कष्टप्रद रहे हों, तो इन्हें याद रखना कष्टप्रद होता है। किन्तु ये जो पल हैं, बीते हुवे पल हैं। इन पलों में उलझे रहे तो जो पल आनेवाला है, वह व्यर्थ हो सकता है।

बीती ताहि बिसार दे – क्योंकि बीता हुआ पल या तो खुशी या फिर गम देकर जाता है। या तो सफलता का दंभ या फिर असफलता का दंश देकर जाता है। जो भी हो, वो तो चला जाता है, लेकिन अपना असर छोड़कर जाता है। जरुरत इसी असर से, इसी मनोभाव से बाहर निकलने की है। 

बीते हुवे पल कुछ न कुछ अनुभव अवश्य देकर जाते हैं। इन पलों की यादों में उलझकर रहना नहीं है, अगर उलझना है तो सुलझने के लिए। जरुरत इनसे सीख लेने की है। न दंभ और ना दंश, किसी भी तरह के असर से स्वयं को मुक्त कर आनेवाला कल अच्छा हो, इस पर विचार करना जरूरी है।

कल चाहे जैसा भी हो, वीता हुवा अथवा आनेवाला, कल तो कल है। जो आज है, जैसा भी है, वीते कल का ही परिणाम है। और जो कल होगा, वह आज का परिणाम होगा। प्रयास ऐसा हो कि बीते हुए कल से प्रभावित न हो। आज का सार्थक सोच आनेवाले कल को सुधारने का प्रयास है। वर्तमान में जो कर्म होते हैं, भविष्य का उसी के अनुरूप में उपस्थित होने की संभावना होती है। 

यह बात भी सही है कि भविष्य के विषय में कोई कुछ नहीं जानता। लेकिन यह जो वर्तमान है, इस पल में जो कर्म होते हैं। आनेवाला कल इन कर्मों का परिणाम पर निर्भर करता है। कर्म अच्छे होते हैं तो परिणाम भी अच्छे प्राप्त होते हैं। उम्मीद से  कम अथवा ज्यादा, पर परिणाम अवश्य प्राप्त होते हैं। अतः वर्तमान ही भविष्य को गढ़ता है, इस संभावना से असहमत नहीं हुवा जा सकता है। 

बीती ताहि बिसार दे – अब गहराई से विचार करें तो जो बिसरा हुवा है, जो स्मरण में है ही नहीं, उसे बिसारने की कोई बात ही नहीं है। पूर्व के जीवन के विषय में कोई कुछ नहीं जानता। अपने पूर्व के जीवन काल में किससे कौन से कर्म हुवे हैं, यह किसी को ज्ञात ही नहीं होता। लेकिन ऐसी मान्यता है कि मनुष्य का भाग्य का निर्माण पूर्व के जीवन के कर्मो से ही होता है। अच्छे – बुरे कर्मों का फल सभी को वर्तमान जीवन में भोगना पड़ता है। 

जो विस्मरण में है, वो तो किसी को याद ही नहीं होता। अर्थात् भाग्य के विषय में किसी को कुछ ज्ञात नहीं होता। कभी ऐसा भी होता है कि कठिन परिश्रम करने पर भी कम अथवा कुछ भी प्राप्त नहीं होता। और कभी तनिक प्रयास से ही बात बन जाती है। कभी मिट्टी को छुने से सोना हो जाता है। और कभी सोने को छूने से मिट्टी हो जाता है। परिस्थितियों का अनुकुल और प्रतिकुल होना किसी के नियंत्रण में नहीं होता। इसे ही भाग्य का लेखा समझा जाता है। और किसके भाग्य में क्या लिखा है कोई नहीं जानता।

आगे की सुध ले- लेकिन जो जीवन मिला है वर्तमान में, उसे सही तरीके से जीने का प्रयास तो किया ही जा सकता है। मनुष्य अपने भाग्य को तो नहीं बदल सकता है, लेकिन कर्म के आधार पर अपने भाग्य में सुधार कर सकता है। वर्तमान में किए कर्म से अपने भविष्य को गढ़ सकता है। सुधार का प्रक्रिया भी एक तरह से निर्माण का प्रक्रिया है।

लेकिन यह होगा कैसे? क्योंकि मनुष्य अपने जीवन काल में जिन कार्यो में लगा रहता है, यह उसके पूर्व जन्म में किए गए कर्मों से ही प्रभावित होता है। बीते जन्मों के कर्मों से ही उसके भाग्य का निर्माण हुवा है। और भाग्य के अनुसार ही उसके द्वारा कर्म भी होते हैं। और फिर उससे जो कर्म होते हैं, उसके भाग्य को गढ़ते हैं। तो फिर मनुष्य क्या करे?

वास्तव में भाग्यशाली कौन है? ज्ञानियों की मानें तो भाग्यशाली मनुष्य वो है, जो अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो जाए। भाग्य का निर्माण ऐसा हो जो इस गंतव्य तक पहुंचा दे। यह गंतव्य क्या है? वास्तव में जाना कहां है? जीवन का लक्ष्य तो इस जीवन से मुक्ति है। जीवन मरण के चक्र से मुक्ति है। जब तक मनुष्य का जीवन इस चक्र में घुमता रहता है। कर्म के अनुसार भाग्य और भाग्य के अनुसार कर्म, और फिर कर्म के अनुसार भाग्य। यह अंतहीन सिलसिला चलता रहता है। यह नियति का खेल है, इसे समझाया नहीं जा सकता। ज्ञानियों के अनुसार इस अंतहीन सिलसिला से निजात पाना ही जीवन का लक्ष्य है। इसे समझने के लिए स्वयं प्रयास करना पड़ता है। और अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही इस खेल को समझा जा सकता है।

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