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धर्म का अर्थ क्या है? — What Is The Meaning of Religion?

धर्म जीवन का मूल तत्त्व है !

ज्ञानियों ने कहा है कि धर्म एक धारणा है, जिसे सबको धारण करना चाहिए। धर्म एक आधार है जिसे धारण कर मानविय नैतिक गुणों को विकसित किया जाता है। धर्म क्या है जानिए ! Know what is religion …धर्म वह अनुशासित जीवन पद्धति है, जिसमें लौकिक उन्नति तथा आध्यात्मिक परम गति दोनोें की प्राप्ति होती है। यतोऽभ्युदयानि:: श्रेयसिद्धि: स धर्म

मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं:

धृति: क्षमा दमोस्तेयं शौचयिन्द्रिय निग्रह। धी र्विद्या सत्यमक्रोध दशकों धर्मलक्षणं।। _मनुस्मृति ६.९१

अर्थ – धृति (धैर्य ), क्षमा (अपना अपकार करने वाले का भी उपकार करना ), दम (हमेशा संयम से धर्म में लगे रहना ), अस्तेय (चोरी न करना ), शौच ( भीतर और बाहर की पवित्रता ), इन्द्रिय निग्रह (इन्द्रियों को हमेशा धर्माचरण में लगाना ), धी ( सत्कर्मों से बुद्धि को बढ़ाना ), विद्या (यथार्थ ज्ञान लेना ). सत्यम ( हमेशा सत्य का आचरण करना ) और अक्रोध ( क्रोध को छोड़कर हमेशा शांत रहना )।

याज्ञवल्क्य ने धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:

अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:। दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌।। याज्ञवलक्य स्मृति १.१२२

(अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति)

जहां तक बात हिन्दु धर्म की है, यह एक व्यापक अवधारणा है। स्वामी विवेकानंद ने कहा कि हिंदू धर्म का असली संदेश लोगों को अलग-अलग धर्म संप्रदायों के खांचों में बांटना नहीं, बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में पिरोना है। उन्होंने कहा है कि गीता में भगवान कृष्ण ने भी यही संदेश दिया था कि अलग-अलग कांच से होकर हम तक पहुंचने वाला प्रकाश एक ही है। ईश्वर ने भगवान कृष्ण के रूप में अवतार लेकर हिंदुओं को बताया: मोतियों की माला को पिरोने वाले धागे की तरह मैं हर धर्म में समाया हुआ हूं… तुम्हें जब भी कहीं ऐसी असाधारण पवित्रता और असामान्य शक्ति दिखाई दे, जो मानवता को ऊंचा उठाने और उसे सही रास्ते पर ले जाने का काम कर रही हो, तो समझ लेना मैं वहां मौजूद हूं।

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। उन्होंने आगे कहा था कि हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है।

धर्म सभा में स्वामीजी ने किसी भी धर्म की निंदा या समालोचना नहीं की अपितु उन्होंने कहा- ‘ईसाई को हिन्दू या बौद्ध नहीं बनना होगा, और न हिन्दू अथवा बौद्ध को ईसाई ही। पर हां प्रत्येक धर्म को अपनी स्वतंत्रता और वैशिष्टय को बनाए रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते हुए क्रमशः उन्नत होना होगा। उन्नति या विकास का यही एकमात्र नियम है।

कुछ बातें ऐसी हैं जो हिंदू धर्म की विशेषता को दर्शाती हैं! 

• ईश्वर में विश्वास करो! तो आप आस्तिक और विश्वास नहीं करो! तो आप नास्तिक के रूप में स्वीकार किए जाते हैं।

• आप मूर्तियों की पूजा करना चाहते हैं – आप मूर्तिपूजक हैं। आप मूर्तियों की पूजा नहीं करना चाहते हैं- कोई भी समस्या नहीं है!  आप निराकार,  निर्गुण ब्रम्ह पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।

• आप इस धर्म में किसी चीज की आलोचना करना चाहते हैं, तो कर सकते हैं। आप मान्यताओं को वैसे ही स्वीकार करना चाहते हैं जैसा वह है, आप ऐसा कर सकते हैं।

• भगवत गीता पढ़कर आप अपनी यात्रा शुरू करना चाहते हैं! आप उपनिषद पढ़कर अपनी यात्रा शुरू करना चाहते हैं! आप पुराण पढ़कर अपनी यात्रा शुरू करना चाहते हैं! आप स्वतंत्र हैं!

• आपको सिर्फ पुराण या अन्य पुस्तकें पढ़ना पसंद नहीं है। कोई समस्या नहीं है! भक्ति परंपरा से जाओ।

•आपको भक्ति का विचार पसंद नहीं है! कोई समस्या नहीं है। अपना कर्म करो। कर्मयोगी बनो। कर्मयोग का रहस्य : secret of Karma yoga

• आप जीवन का आनंद लेना चाहते हैं। बिल्कुल भी परेशानी नहीं है। यह चार्वाक दर्शन है। आप जीवन के सभी भौतिक सुखों से दूर रहना चाहते हैं और भगवान को पाना चाहते  हैं – वैरागी मन क्या है जानिए ! Know what is the recluse mindआपके लिए जप, तप, वैराग्य का मार्ग उपलब्ध है। जीवन का आनंद कैसे उठाएं – Jeevan Ka Anand Kaise Uthayein

• आप भगवान की अवधारणा को पसंद नहीं करते हैं। आप प्रकृति में ही विश्वास करते हैं तो भी सही है! पेड़ हमारे मित्र हैं और यहां प्रकृति पूजा के विधान उपलब्ध हैं।

• आप एक ईश्वर या सर्वोच्च ऊर्जा में विश्वास करते हैं! तो उत्तम। अद्वैत दर्शन का पालन करें! तब भी उत्तम।

• ज्ञान प्राप्त करने के लिए आप एक गुरु चाहते हैं, तो ठीक!गुरु की महिमा ..! Know about Glory of Guru अगर आप एक गुरु नहीं चाहते हैं तो स्वयं अपनी सहायता कर सकते हैं। ! ध्यान करके, अध्ययन करके आप स्वयं की सहायता कर सकते हैं।

• आप नारी शक्ति में विश्वास करते हैं! यहां शक्ति की पूजा की जाती है।

•आप मानते हैं कि प्रत्येक मनुष्य समान हैं! यहां आपको यह बताया गया है कि “वसुधैव कुटुम्बकम” अर्थात् यह संसार एक परिवार है।

• हिंदू धर्म जीवन जीने का एक तरीका है, जिसमें कोई बंधन नहीं है! स्वतंत्रता है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि हर चीज में ईश्वर है। इसलिए आप अपने माता, पिता, गुरु, वृक्ष, नदी, प्राणि-मात्र, पृथ्वी, ब्रह्मांड की पूजा कर सकते हैं! और यदि आपको विश्वास नहीं है कि सब कुछ इसमें उत्तम है! तो कोई समस्या नहीं है, अपने दृष्टिकोण का सम्मान करें।

स्वामी दयानंद के शब्दों में: किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है. इसलिए, इसका परिणाम होगा. यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं। 

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे।

साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।

धर्म ही इस जगत का एवम् समस्त प्राणियों के जीवन का मूल है। परन्तु कौन क्या धारण किए हुए है, इसपर विचार अवश्य करना चाहिए। आस्था क्या है ! जानिए … Know about faith.धारण करना सही भी हो सकता है और गलत भी हो सकता है। विना विचार किए धर्म के व्यापक अर्थ को नहीं समझा जा सकता है। किसी एक परम्परा को माऩने वालों का समूह संम्प्रदाय या समुदाय कहलाता है। प्रत्येक संम्प्रदाय, समूदाय, समूह या जाति के सोच की अपनी सीमाएं हो सकती हैं। आप किस संम्प्रदाय से हैं यह मायने नहीं रखता, किन विचारों को आपने धारण कर रक्खा है यह मायने रखता है। जो धारण करने योग्य है, वह धर्म है। सकारात्मक विचारों को धारण करना धर्म है और नकारात्मक विचारों को धारण करना अधर्म है। .धर्म बांटता नहीं है, धर्म मानव को मानव बनाता है। धर्म के विना प्राण ऊर्जा को विकसित करना असंभव है।

भारत के प्राचीन ग्रंथों, वेद, पुराणों में धर्म का जो मार्ग दर्शाया गया है, वास्तव में वह ध्यान, योग के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। अगर गहराई से विचार किया जाय तो यह ज्ञात होगा कि धर्म सबके अन्तर्तम में अवस्थित है। धर्म प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में व्याप्त है। अज्ञान के अन्धकार में यह ज्ञान रूपी प्रकाश मंद पड़ जाता है। इसलिए ज्ञान चाहे जिस तरीके से मिले, ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास होना चाहिए।  ऋग्वेद में इस बात का उल्लेख किया गया है जो संक्षेप में  धर्म के दर्शन को दर्शाती है – “अनो भद्रह कथावो यन्थु विश्वथाः” – ज्ञान को हर दिशा से हमारे पास आने दें।

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