भारतीय सिनेमा जगत में कुछ ऐसे गीतकार हुवे हैं, जिनके गीतों में उत्कृष्ट काव्य की झलक मिलती है। उन्हीं गीतकारों में से एक हुवे श्यायलाल बाबु राय, जिन्हें इन्दीवर के नाम से जाना जाता है। जिनके गीतों में ऋंगार रस की मधुरता भी है और जीवन दर्शन भी छिपा हुआ है। 1 जनवरी 1924 को झांसी के समीपवर्ती बरुआ सागर नामक कस्बे में एक बालक का जन्म हुआ। कालान्तर में वह भारतीय सिनेजगत में इन्दीवर के नाम से जाना गया। बालपन से ही उनमें लेखन में रुचि थी। युवावस्था में वे मुंबई चले आए और एक गीतकार के रूप में सिनेजगत में खुद को स्थापित करने का प्रयास किया और सफल भी हुवे।
इन्दीवर को अपनी पहचान बनाने में लगभग एक दशक तक संघर्ष करना पड़ा। आखिरकार उनकी प्रतिभा को पहचान मिलनी शुरू हो गई। फिल्म पारस का गीत ‘रोशन तुम्हीं से दुनिया’ के लोकप्रियता के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गीतों के सागर का नीलकमल
इन्दीवर का पर्यायवाची शब्द है नीलकमल। गीतकार इंन्दीवर को उनके नाम के अनुरूप ‘गीतों के सागर का नीलकमल’ कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
1960 के दशक के वे प्रमुख गीतकारों में से एक थे। अपने चार दशक के कार्यावधि में उन्होंने 300 से ज्यादा फिल्मों में लगभग 1000 गीत लिखे।
इन्दीवर के गीतों को किशोर कुमार, मो. रफी, मुकेश, आशा भोंसले और लता मंगेशकर जैसे फनकारों का स्वर मिला। उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के साथ उनकी खुब जमती थी। इन्दीवर के अधिकतर गीत इस प्रतिष्ठित जोड़ी के संगीत से सजे हुए हैं।
“होंठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है’ , ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’ , जैसे लोकप्रिय गीतों को शब्द उन्होंने ही दिया है। 27 फरवरी 1997 को उनका देहावसान हो गया। आज वह हमारे बीच नहीं हैं। पर उनके भावपूर्ण एवम् अर्थपूर्ण गीतों के लिए उन्हें सम्मान पूर्वक याद किया जाता है।
इन्दीवर के गीतों में जो काव्य है, ऋंगार रस एवम् जीवन दर्शन का सुन्दर समावेश है। उनके गीत जीवन को समझने की दृष्टि प्रदान करते हैं। निराशा भरे जीवन में आशा का संचार करते हैं। प्रस्तुत है दार्शनिक अंदाज में उनके कुछ भावपूर्ण अर्थपूर्ण, प्रेरक एवम् लोकप्रिय गीत।
समझौता गमों से कर लो !
दुख और सुख जीवन के दो पहलू हैं। सुख दुख के बाद है और दुख सुख के पहले है। अगर दुख से मित्रता हो गई तो जीवन में सुख ही सुख है। उचित समझ का न होना ही दुख का कारण है। फिल्म – समझौता के इस गीत में उन्होंने यही संदेश दिया है।
समझौता गमों से कर लो !
जिन्दगी में गम भी मिलते हैं
पतझड़ आते ही रहते हैं
के मधुबन फिर भी खिलते हैं
समझौता …
रात कहेंगी होंगे उजाले
फिर मत गिरना वो गिरने वाले
इंसा वो खुद संभले औरों को भी संभाले
भूल सभी से होती आयी
कौन है जिसने न ठोकर खायी
भूलों से सीखे जो मंजिल उसने पायी
समझौता …
विघ्न बाधाओं से लड़ते हुवे, भयमुक्त होकर जो सफर करते हैं, मंजिल उन्हीं को मिलती हैं। फिल्म सफर के इस गीत में इन्दीवर ने इसी बात को समझाने का प्रयास किया है।
नदिया चले चले रे धारा
चन्दा चले चले रे तारा
तुझको चलना होगा
तुझको चलना होगा
जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है
आंधी से तुफां से डरता नहीं है
तू न चलेगा तो चल देगी राहें
मंजिल को तरसेगी तेरी निगाहें
तुझको चलना होगा …
पार हुवा वो रहा जो सफर में
जो भी रुका फिर गया वो वो भंवर में
नाव तो क्या बह जाए किनारा
बड़ी ही तेज है समय की है धारा
तुझको चलना होगा ..!
सबकी अपनी कुछ ना कुछ इच्छाएं होती हैं। मनोनुकूल अगर सबकुछ ना मिले, तो निराशा होती हैं। लेकिन इच्छाशक्ति प्रबल हो तो सबकुछ मिल सकता है, जो वांछित है। और जब अपने प्रयासों से सफलता हासिल होती हैं तो वह सबकुछ मिल जाता है। जीवन में नकारात्मकता का कोई अस्तित्व नहीं है। इन्दीवर के इस गीत में जीवन दर्शन छिपा है।
हर कोई चाहता है एक मुट्ठी आसमान
हर कोई ढुंढ़ता है एक मुट्ठी आसमान
जो सीने से लगा ले एक ऐसा जहां
हर कोई …
चांद सितारों का मेला है
ये दिल फिर भी अकेला है
महफिल में है शहनाई
फिर भी दिल में तन्हाई है
सांसों में है कोई तुफान
हर कोई चाहता है …
मिलता नहीं क्या यहां ऐ दिल
फिर क्यों न मिले गीतों की महफ़िल
चलते जाना यूं हीं राहों में
भर ही लेगा कोई बांहों में
हमेशा रहेगा न दिल वीरान
हर कोई चाहता है …
मुझको जीने का सहारा मिला
गम के तुफां में कोई सहारा मिला
सूनी सूनी थी जो राहें
बन गयी प्यार की बांहें
लो खुशियों से मेंरी हुवी पहचान
हर कोई चाहता है …
इस गीत में प्रकृति के अद्भुत सुन्दरता को प्रस्तुत करने का सुन्दर प्रयास है। इन्दिवर ने श्रृंगार रस और जीवन दर्शन का सुन्दर प्रस्तुति इस गीत के द्वारा देने का प्रयास किया है।
जीवन से भरी है तेरी आंखें
मजबुर करे जीने के लिए
सागर भी तरसते हैं
तेरे रुप का रस पीने के लिए
जीवन से …
तस्वीर बनाये क्या कोई
क्या कोई लिखे तुझपर कविता
रंगों छंदों में समायगी
किस तरह इतनी सुन्दरता
एक धड़कन है तू दिल के लिए
एक जान है तू जीने के लिए
जीवन से …
मधुवन की सुगंध है सांसों में
बांहों में कमल की कोमलता
किरणों का तेज है चेहरे पर
हिरनों की तुममें चंचलता
आंचल के तेरे एक तार बहुत
कोई छाक जिगर सीने के लिए
जीवन से …
प्रकृति अपने आप में एक रहस्य है। कण कण में एक ही ऊर्जा है, एक ही ऊर्जा से सबकुछ चलायमान है। हमारे भीतर भी यही मौजूद है। लेकिन अज्ञानता के कारण हम इसे जान नहीं पाते। हम सांसारिकता में उलझे हुवे रहते हैं, जो इस सत्य से परे है। इन्दीवर ने इसी बिडम्बना को इस गीत में दर्शाया है।
ताल मिले नदी के जल में नदी मिले सागर में
सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना
सुरज को धरती तरसे धरती को चन्द्रमा
पानी में सीप जैसे प्यासी हर आत्मा
बुंदे छिपी किसी बादल में कोई जाने ना
अनजाने होंठों पर ये पहचाने गीत हैं
कल तक जो बेगाने थे जन्मों के मीत हैं
क्या होगा कौन से पल में कोई जाने ना
जीवन का जो सफर है, इसे समझ पाना मुश्किल है। अगर इतना भी समझ में आ जाए कि जीवन खुशी से जीने का पल है। तो हमारा जीवन सफल हो जायगा। जीवन को समझना ही तो जीवन का उद्देश्य है। इन्दीवर के इस गीत में जो दर्शन है, गहराई से विचार करें का विषय है।
जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
जिंदगी को बहुत प्यार हमने किया
मौत से भी निभाएंगे हम
रोते रोते जमाने में आये मगर
हंसते हंसते जमाने से जायेंगे हम
जायेंगे पर किधर, है ये किसको खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
सांसारिक जीवन में अगर सुख न मिले! किसी का साथ न मिले। तो निराश होकर संसार से पलायन करना अनुचित है। औरों की खुशी के लिए सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करना, और स्वयं को प्रभु के शरण में समर्पित कर देना जीवन का एक और मार्ग है। यह जो दुनिया है, इसी में रहना, इसी को खोजना जीवन का उद्देश्य है। अतः सांसारिक दुखों से विचलित नहीं होना है। फिल्म सरस्वतीचंद्र के इस गीत में इन्दीवर का यही संदेश है।
कहां चला ऐ मेंरे योगी जीवन से तू भाग के
किसी एक दिल के कारण यूं सारी दुनिया त्याग के
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी जरुरी कई काम है
प्यार सबकुछ नहीं आदमी के लिए
छोड़ दे ..
तन से तन का मिलन ना हो पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
चांद मिलता नहीं सबको संसार में
है दीया ही बहुत रोशनी के लिए
छोड़ दे ..
एक दुनिया उजड़ ही गयी है तो क्या
दुसरा तुम जहां क्यों बसाते नहीं
दिल न चाहे भी तो साथ संसार में
चलना पड़ता है सबकी खुशी के लिए
छोड़ दे सारी दुनिया …
भरोसा रखो उसपर, जो सबका हित करने वाला है। मिन्नतें करो उससे जो सबकी सुनता है। फिल्म जुर्म के इस गीत का यही भावार्थ है।
जब कोई बात बिगड़ जाए
जब कोई मुश्किल पड़ जाए
तुम देना साथ मेरा
ओ हमनवाज …
न कोई है न कोई था
जिन्दगी में तुम्हारे सिवा
ओ हमनवाज …
गीतकार के गीतों को फिल्म के कथा के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है। और फिर देखने सुनने वाले भी इनके भावों को अपने अपने तरीके से लेते हैं। अतः लेखक के वास्तविक भाव शायद ही उसमें प्रगट हो पाते हैं। गीतों में जिन शब्दों का प्रयोग होता है, उनके भाव गहराई से विचार करने पर ही समझ में आते हैं। अंत में ‘गीतों के सागर का नीलकमल’ को उन्हीं के एक गीत से श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।
सवेरे का सुरज तुम्हारे लिए है
कि बुझते दीये को ना तुम याद करना
हुवे एक बीती हुवी बात हम तो
कोई आंसू बहाकर न बरबाद करना
तुम्हारे लिए हम तुम्हारे दिए हम
लगन की अगन में अभी तक जले हैं
हमारी कमी तुझको महसुस क्यों हो
सुहानी सुबह तुम्हें दे चले हैं
जो हरदम तुम्हारी खुशी चाहते हैं
उदास होके उनको न नाशाद करना
सभी वक्त के आगे झुकते रहे हैं
किसी के लिए वक्त झुकता नहीं है
चमन से जो एक फूल बिछड़ा तो क्या है
नये गुल से गुलशन को आबाद करना
सवेरे का सुरज तुम्हारे लिए है…!
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