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सुमति है तो सम्पति है —

जहां सुमति तहां सम्पति नाना !

सुमति और कुमति एक दुसरे के विलोम शब्द हैं। सुमति का आशय सद्बुद्धि से है, सद्भभाव से है।। सुमति अर्थात् अच्छे विचारों से युक्त, यह ऐसी बुद्धि है जो विवेक को धारण करता है। यह  ऐसी मान्सिक स्थिति है जो किसी व्यक्ति को अच्छे कर्म, अच्छे व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है। विवेकशील व्यक्ति हमेशा अच्छा सोचता है। वह जीवन में प्रत्येक कार्य सोच समझकर करता है। 

कुमति का आशय कुविचार से है। यह एक ऐसी भावना है जो अहितकर विचारों से आवृत्त होता है। यह एक दुर्बुद्धि है और दुसरों को पीड़ा पहुंचाने वाली है। कुमति अन्याय का समर्थन करता है। यह स्वयं के लिए भी और दुसरों के लिए भी विनाशकारी होता है। 

सम्पति का आशय धन-दौलत, सम्पदा से  है। जिसका मूल्य हो, जीवन-यापन में जिसकी उपयोगिता हो। यह मूर्त औंर अमूर्त दोनों रुप में होता है। यह मुख्यत: दो प्रकार का होता है। भौतिक संपदा और बौद्धिक संपदा। साधारण मनुष्य धन-दौलत, जायदाद यानि भौतिक संपदा को ही सम्पति समझता है। वह उसी को पाने और खोने के चक्र में अपना सारा जीवन लगा देता है।

सम्पति होने का अर्थ सिर्फ धन या पैसा होना जरूरी नहीं है। आपके पास धन का भंडार हो, लेकिन आपके जीवन में तनाव है, तो आपको समृद्ध नहीं कहा जा सकता। समृद्धि का तात्पर्य होता है, जीवन के तथ्य को समझकर उसका सम्मान करना। सम्पति आपके जीवन में सुख का वाहक है, लेकिन यदि यह आपके जीवन को अशान्त करता है तो व्यर्थ है। समय,  विद्या, वुद्धि और आत्मविश्वास भी सम्पति है। बुद्धिमान मनुष्य के लिए धन-दौलत केवल जीवन-यापन का साधन मात्र होता है। 

बौद्धिक संपदा ही वास्तविक संपति है।

धन, वैभव से सुख प्राप्त होता है, परन्तु यह क्षणिक होता है। भौतिक संपदाओं से प्राप्त सुख, वैभव, मान-प्रतिष्ठा अस्थायी होता है। भौतिक संपदाओं के खोने का डर हमेंशा बना रहता है। अगर ना मिले अथवा खो जाय तो अत्यंत कष्टकारी होता है।

हम चीजो को उस तरह से नही देखते जिस तरह से वे है बल्कि हम चीजो को उस तरह से देखते है जिस तरह के हम है। _Talmud

अगर आपने अपने जीवन के महत्व को समझ लिया! समय के महत्व को समझ लिया तो आप विवेकशील हो जाते हैं। अगर आपमें आत्मविश्वास है तो किसी भी परिस्थिति को संभाल सकते हैं। शास्त्रों में विद्या को सबसे बड़ा धन बताया गया है। अगर आपने इसे अर्जित कर लिया तो कभी नष्ट नहीं होता। बांटने से घटता नहीं बढ़ता है, इसे आपसे कोई बलपूर्वक क्षीण नहीं सकता।

बौद्धिक संपदा मनुष्य के पात्रता को विकसित करता है, उसे यशस्वी बनाता है। बौद्धिक संपदाओं के स्वामी मनुष्य का जीवन आनंद से भरा होता है।

आदर्श का अर्थ -Meaning of Ideal.

जहां सुमति है वहां सुख है, आनंद है।! जहां सुमति है वहां संतोष है, शान्ति है, उन्नति है। इसके ठीक विपरीत जहां कुमति है वहां दुख है, असंतोष है, अशान्ति है, अवनति है। जहां सुमति है वहां सहनशीलता है और जहां कुमति है वहां असहिष्णुता है। अत: जीवन में सदैव अच्छे विचारों पर चिन्तन मनन करते रहना चाहिए। 

महाकवि तुलसीदास ने कहा है; जहां सुमति तहां सम्पति नाना। जहां कुमति तहां विपति निधाना।।

आप क्या चाहते हैं, यह आप पर निर्भर है!

तुलसीदासजी ने यह भी कहा हैं, कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में अच्छे और बूरे दोनों तरह के विचार होते हैं। शास्त्र, पुराण भी यही कहते हैं। 

सुमति कुमति सब के उर रहही। नाथ पुराण निगम अस कहही।।

यह आप पर निर्भर करता है, कि आप किन विचारों का समर्थन करते हैं, आपको क्या चाहिए। आप स्वयं को कैसा बनाना चाहते हैं। आपकी जरुरतें क्या हैं, आपके जीवन का लक्ष्य क्या है। 

कर्म वो आईना है, जो हमारा स्वरूप हमें दिखा देता है। अत: हमें कर्म का एहसानमंद होना चाहिए।” – विनोबा भावे

आपको धन-दौलत, पद, सम्मान चाहिए अथवा  यश और कीर्ति। आपको जीवन में सुख और दुख के अवस्थाओं से गुजरना है अथवा चिरस्थाई आनंद को प्राप्त करना है। इन बातों पर विचार खुद आपको ही करना है। प्रत्येक मनुष्य अपने विचारों से ही निर्मित होता है। सब कुछ समझ के स्तर पर निर्भर करता है।

सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना करें!

मन की चंचलता को शान्त करने के लिए प्रार्थना, उपासना को जीवन में स्थान दें। मन में जो भी चल रहा हो, अपनी आस्था के अनुसार अपने आराध्य के संमुख रखें। साधारण मनुष्य अपनी इच्छाओं के पुर्ति के लिए ही प्रार्थना भी करता है। वास्तव में जब आप प्रार्थना कर रहे होते हो तो स्वयं से ही बात कर रहे होते हैं।

चरित्र का निर्माण जरूरी क्यों है —

प्रार्थना सद्बुद्धि के लिए हो!

असतो मा सदगमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योंमाऽमृतंगमय’  इस मंत्र का उद्देश्य किसी संस्कृति को स्थापित करना नहीं है। असतो मा सदगमय – एक आह्वान है जो याद दिलाता है कि आप जो कर रहे हैं, वह काम हरेक के कल्याण के लिए है या नहीं। यह हर उस चीज पर लागू होता है, जो हम रच रहे हैं, फिर चाहे वह हमारे भीतर पैदा होने वाले विचार हों या फिर बाहरी तौर पर पैसा कमाने के लिए किए गए काम हों। हालात चाहें जो भी हों, लेकिन सभी में यह बुनियादी सवाल आता है कि हम जो भी कर रहे हैं, वह हरेक के कल्याण के लिए काम कर रहा है या नहीं? अगर आप चाहते हैं कुछ इस तरह से चीजें की जाएं, जो कारगर हों, तो आपको अपनी भीतरी प्रकृति और अपने आसपास की दुनिया से जुड़े जीवन के उस पहलू से जुड़े सत्य को खोजना होगा।’ Sadguru

संसार में जितने भी धर्म-पंथों की स्थापना हुवी है, सभी में हमें ईश्वर से सद्वबुद्धि, सद्वविचार मांगने की बात कही गयी है। धर्म का उद्दैश्य अच्छे विचारों को धारण करना है। जहां प्रकाश है वहां अंधकार नहीं ठहर सकता, जहां सद्भभा्वना है वहां कलेष नहीं ठहरता। मन मस्तिष्क में अच्छे विचारों को धारण करने से सबकुछ ठीक होता है। आप जड़ को सींचते हैं तो आपको फल की चिंता करने की जरूरत नहीं है, यह अपने आप आएगा। जीवन में प्रार्थना होनी चाहिए और प्रार्थना बुद्धि,सुख-शांति के लिए होनी चाहिए, संसार के कल्याण के भावों के साथ होनी चाहिए।

2 thoughts on “सुमति है तो सम्पति है —”

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