कोशिश करते रहिए, सफलता जरूर मिलेगी
किसी भी परिवार एवमं समाज का भविष्य युवाओं के सोच पर निर्भर करता है। आज का युवा महत्त्वाकांक्षी है और प्रतिभाशाली भी है। परन्तु इस भौतिकवादी युग में वह सब-कुछ विना कोशिश के शीघ्रता से हासिल करना चाहता है। इस आपाधापी में असफल होने पर वह निराश हो जाता है। आज का युवा धैर्यपूर्वक कोई काम नहीं करना चाहता, फलस्वरूप उसमें नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता जा रहा है।
सफलता का कोई मापदंड नहीं होता, इसे कम या अधिक करके नहीं देखा जा सकता। सफलता को पाने के लिए इसके मार्ग पर चलते जाना है। जो भी साधन उपलब्ध हो, उसी से अपने लगन और परिश्रम के साथ आगे बढ़ाते रहना होता है।
जिंदगी में नकारात्मक बिचारों का कोई स्थान नहीं है। जो मिला वह ठीक है, नहीं मिला तो भी ठीक है, परन्तु पाने का संघर्ष जारी रहना चाहिए। जैसी भी परिस्थिति हो, जब आप अपने कोशिश से सफल हो जाते हो तो यह आपकी उपलब्धि होती है।
कोशिश करते रहना ही सफलता का मूलमंत्र है !
सोहनलाल द्विवेदी जी की यह कविता से युवाओं को प्रेरणा लेनी चाहिए। युवाओं को यह समझना होगा कि किसी कार्य को करने का निरंतर कोशिश करते रहना ही सफलता का मूलमंत्र है। अपने जीवन में सकारात्मक बने रहने के लिए यह कविता अनुकरणीय है। सबकुछ समझ के स्तर पर निर्भर करता है।
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है ।
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है ॥
मन का साहस रगों में हिम्मत भरता है ।
चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है ॥
मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥
डुबकियां सिन्धु में गोताखोर लगाता है ।
जा जा कर खाली हाथ लौट कर आता है ॥
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में ।
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में ॥
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो ।
क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो ॥
जब तक न सफल हो, नींद – चैन को त्यागो तुम ।
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम ॥
कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥
असफलता का समाधान संघर्ष में खोजिए !
जीवन में कई बार ऐसा होता है कि हम मेंहनत तो करते हैं, पर हमें सफलता नहीं मिलती। जिस वजह से हमारा विश्वास टुट जाता है। हमें यह महसुस होने लगता है कि हमारा किस्मत ही खराब है। और निराश होकर हम संघर्ष से दुर हो जाते हैं।
धैर्य आनिवार्य त्तत्व है, यह ऐसा गुण है जिससे व्यक्ति, निराशा, तनाव आदि से उबरता है। आत्मविश्लेषण व प्रगतिशीलता के दम पर सफल और खुशहाल जीवन का रास्ता प्रशस्त किया जा सकता है। हमें सहनशीलता, धैर्य और उचित मार्गदर्शन के साथ असफलता का समाधान संघर्ष में रहकर खोजना चाहिए।
जीवन निरंतर चलने का नाम है और किसी भी परिस्थिति में, हमें चलना ही पढता है। जीवन में हार-जीत लगी ही रहती है! कभी तो हम जीवन में शीर्ष पर होते है और कभी निराशा की गहराइयों में डूब जाते है! परन्तु इन सब के बीच हमे कभी हार नहीं माननी चाहिए!
यदि हम हार मान लेंगे तो हम कभी जीतने के लिए प्रयास नहीं करेंगे। धैर्य और आत्मविश्वास के साथ जो संघर्ष में लगे रहते है, अन्तत: मंजिल उन्हीं को मिलती है।
असफलता ही सफलता की जननी है !
सफलता और विफलता : Failure on the way to success ! अनेक चुनावों में असफलता के वावजुद नई सोच, नई ऊर्जा के साथ फिर से जुट जाना! और अन्तत: अमेंरिका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर लेना! अब्राहम लिंकन के धैर्यवान, सहनशील व साहसी व्यक्तित्व का परिणाम है।
एक बार की बात है, किसी ने लिंकन से प्रश्न कर दिया कि आप इतने सफल कैसे हो गये? लिंकन ने कहा, कि मैं हर रोज अनेकों असफल लोगों से मिला करता और उनसे उनकी असफलता का कारण जानने का प्रयास करता। फिर आत्म विश्लेषण कर उन कारणों को अपने जीवन से दुर कर लेता, यही मेंरे सफलता का राज है। इसिलिए तो कहते है; असफलता ही सफलता की जननी है। समय जब खराब चल रहा हो, वैसी परिस्थिति में धैर्य की प्रबल आवश्यकता होती है।
बुरे दौर में धैर्य की आवश्यकता होती है !
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जब मुंबई आये थे तो उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिला था। वे गुजारा करने के लिए रेडियो स्टेशन में काम करने लगे। परन्तु भारी आवाज के कारण उन्हें वहाँ से भी निकाल दिया गया। उनके पास रहने का ठिकाना नहीं था, जिस कारण से कई रातें उन्होंने फुटपात में सोकर गुजारी थी।
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बाद में उन्हें फिल्में मिली भी तो एक के बाद एक सात फिल्में फ्लोप हो गयीं। लेकिन उन्होने अपना धैर्य नहीं खोया। फलस्वरुप किस्मत ने उनका दरवाजा खटखटाया और उनकी मुलाकात प्रकाश मेंहरा से हुवी। उन्हें फिल्म जंजीर में काम करने का अवसर मिला और फिल्म सुपरहिट हो गयी। फिल्म जंजीर से अमिताभ बॉलीवुड में छा गये।
जहाँ चाह है वहाँ राह भी है !
एशिया के सबसे बड़े सुपरस्टार रजनीकान्त के बचपन के दिनों में ही उनके माताजी का देहान्त हो गया था। किसी तरह से उन्होंने अपनी पढ़ाई पुरी की। परन्तु पढ़ाई पुरी करने के पश्चात भी उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वे कुली का काम करने लगे। बाद में मंगलूर ट्रान्सपोर्ट सर्विश में कन्डक्टर का काम करने लगे।
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फिल्मों में काम करना उनका सपना था, अत: नौकरी करते हुवे वे एक इंस्टीट्युट में अभिनय कला सीखने लगे। कोर्स पुरा करने के बाद उन्हें फिल्मों में छोटे छोटे रोल मिलने शुरू हो गये। फिर अपने अभिनय प्रतिभा से उन्होंने सभी को प्रभावित किया और उन्हें बड़ी बड़ी फिल्में मिलने लगी।
कोशिश के दम पर खुद को सामान्य से ऊपर उठाया जा सकता है !
कुछ साल पहले तक भारतीय क्रिकेट का उभरता हुवा सितारा हार्दिक एक साधारण सा खिलाड़ी था। वह गुजरात के गांवों में किसी भी टीम से खेलने के लिए चार सौ रूपये में तैयार हो जाता था। एक वक्त था जब हार्दिक के घर की हालत बहुत खराब थी।
गुजरात के सूरत में इनके पिता का कार फाइनेंस का व्यवसाय था। हार्दिक एवम् कुणाल की क्रिकेट ट्रेनिंग के लिए वे अच्छा खासा चलता हुवा व्यनसाय को बंदकर सूरत से बरोदरा आ गये। परन्तु यहाँ उनका व्यवसाय नहीं चला, बाद में पिता छोटा छोटा काम कर घर चलाने लगे।
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इसी दौरान इनके पिता को हार्ट अटैक आ गया, दो साल में तीन हार्ट अटैक आए। ऐसे मुश्किल वक्त में हार्दिक और उनके भाई ने लोकल टुर्नामेंट से पैसे कमाकर घर चलाया। 2014 तक तो हार्दिक के पास खुद का बैट भी नहीं था।
पाण्ड्या ने किरण मोरे की एकाडेमी से ट्रेनिंग ली है। मोरे को जब हार्दिक के हालातों का पता चला तो उन्होंने उनसे कोई फीस नहीं ली। हार्दिक खुद कहते हैं – चार साल पहले तक तो मैं ठीक से बात नहीं कर पाता था। मैं अंग्रेजी बोल नहीं पाता था, ऐसे में लोग मेंरा मजाक उड़ाते थे।
जब मैं अंडर- 19 खेल रहा था, तो मुश्किल से डाइट मेन्टेन हो पाती थी। हार्दिक कहते हैं कि अब मैं जो चाहे खा सकता हूँ। 23 साल के हार्दिक अब भारतीय टीम की जान हैं, उनकी तुलना महान कपिलदेव से की जाने लगी है।
प्रयास! ruk jana nahi tu kahin har ke
खुद पर विश्वास हो तो परिस्थितियां मायने नहीं रखती
रिकार्ड आठवीं बार बिम्बलडन का खिताब जीतकर इतिहास रचने के बाद फेडरर का हाल कुछ ऐसा था। खिताब जीतने के बाद जब फेडरर के बच्चे सेन्ट्रल कॉर्ट में पहुँचे तो उन्हें देखकर फेडरर फुट फुटकर रोने लगे। उन्हें अपने कौशल पर यकीन था।
इसी विश्वास के दम पर वो जीवन में आये उतार चढ़ाव को झेलते हुवे आगे बढ़ते चले गये। सौलह साल पहले फेडरर ने सम्प्रास को हराकर बिम्बलडन जीता था। अब कुल उन्नीसवीं ग्रैडस्लेम फेडरर के नाम हैं।
खिताब जीतने के बाद फेडरर ने कहा कि मैने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतना कामयाब होऊँगा। मुझे लगा था कि कभी बिम्बलडन फाइनल तक पहुंंचुंगा और जीतने का कोई मौका मिलेगा। कभी सोचा न था कि आठ बिम्बलडन खिताब मेंरे नाम होगा। इसके लिए या तो आप अपार प्रतिभाशाली हों या माता-पिता और कोच तीन बरस के उम्र से आपको कोर्ट पर तैयार करने में लग जायें। मैं उन बच्चों में से नहीं था। मुझे पता था कि मैं खिताब जीतुँगा पर इस स्तर पर कभी नहीं सोचा था।
असफल होने से बुरा है सफलता की उम्मीद को खो देना
असफलता अपने साथ अनुभव भी लेकर आती है। दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ निरंतर प्रयास करनेवाले को सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। दृढ़निश्चय, परिश्रम और लगन के साथ साथ आत्मविश्वास! जिनमें ये गुण होते हैं, वे जीवन में आये विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम हो जाते हैं।
एक समय की बात है, किसी ने स्वामी विवेकानंद जी से पूछा कि सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या हो सकता है? स्वामी विवेकानंद जी ने उत्तर दिया कि सब कुछ खो देने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना होता है, जिससे हम सब कुछ प्राप्त कर सकते है” इसलिए अपने जीवन से उस उम्मीद को कभी समाप्त मत होने दे!
सफलता और विफलता : Failure on the way to success ! 👈
विपरीत परिस्थितियों में खुद को सम्हालना सीख लें !
दर्द दो तरह के होते है, एक से हम बिखर जाते हैं तो दुसरे से निखर जाते हैं। दर्द, दुख, असफलता, ये सब तो जीवन में आते जाते रहते हैं। विपरीत परिस्थितियों में जो खुद को सम्हाल पाते हैं, वे निखर जाते हैं।
सोने को शुद्धतम स्वरुप में आने के लिए आग में जलना ही पड़ता है। इसे जितना तपाया जाता है उतना अधिक उज्जवल स्वरुप को प्राप्त करता है। सोने को आभुषण का स्वरुप में आने के लिए अनेकानेक चोटों से गुजरना होता है।
रुक जाना नहीं तू कहीं हार के..! कांटों पे चलके मिलेंगे साये बहार के..! ओ राही, ओ राही, ओ राही, ओ राही..!
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