क्षमा का क्या अर्थ होता है !
क्षमा का अर्थ है ; अगर कोई आपके प्रति किसी प्रकार का अपराध करे तो आपके मन में उसके प्रति क्रोध को शांत कर लेना। क्षमा शब्द क्षम का अपभ्रंश है, जिससे एक और शब्द क्षमता भी बना है। क्षमता का अभिप्राय शक्ति है, बल से है। वास्तविक रुप में क्षमा का अर्थ सहनशीलता है।
अनेक धर्मों के धर्मग्रन्थों में क्षमा के महत्व को दर्शाया गया है। शास्त्रों में कहा गया है ‘क्षमा वीरस्य भुषणम्’ अर्थात् क्षमा वीरों का आभुषण है। वाणभट्ट के हर्षचरित में उल्लेख किया गया है ‘क्षमा हि मूलं सर्वतपमास’ अर्थात् क्षमा सभी तपस्याओं का मूल है । महाभारत में कहा गया है ‘क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण और समर्थ मनुष्यों का आभुषण है’। महाभारत में यह भी कहा गया है कि ‘दुष्टों का बल हिंसा है, राजाओं का बल दंड है और गुणवानों का बल क्षमा है’।
पूजन प्रक्रिया में क्षमा मांगने का नियम है। दैनिक जीवन में जाने अनजाने अनेक गलतियां होती रहती हैं। पूजा में क्षमा प्रार्थना का संदेश यही है कि दैनिक जीवन में हमसे जब भी कोई अपराध हो जाय, तो हमें तुरंत ही क्षमा मांग लेनी चाहिए।
बौद्ध ग्रंथ संयुक्तनिकाय में लिखा है ‘दो तरह के मुर्ख होते हैं, एक वे जो अपने कृत्यों को अपराध के रूप में नहीं देखते। और दुसरे वे जो दुसरों के अपराध स्वीकार कर लेने पर भी क्षमा नहीं करते’।
बाइबिल में प्रभु ईशु के शब्दों में उल्लेख किया गया है ‘ हे पिता इन्हें क्षमा कर देना ; क्योंकि इन्हें नहीं पता ये क्या करने जा रहे हैं’।
इस्लामिक ग्रन्थ कुरआन शरीफ में उल्लेखित है ‘जो धैर्य रखे और माफ कर दे ; तो यह उसके लिए बहुत हिम्मत का काम है’।
गुरु ग्रन्थ साहिब का वचन है ; क्षमाशील को रोग नहीं नसताता है और न यमराज डराता है।
क्षमा मांगने और क्षमा करने से वास्तव में खुद का ही भला होता है। ऐसा करना सकारात्मक पहल होता है। क्षमा के भाव मनुष्य के भीतर से अहंकार के भाव को नष्ट कर देता है। किसी ने कितना सुन्दर वर्णन किया है कि ‘क्षमा वो खुशबु है जो एक फूल उन्हीं हाथों में छोड़ जाता है, जिन हाथों ने उसे तोड़ा है’।
क्षमा भाव के महत्ता को इस घटना से समझा जा सकता है। एक समय की बात है, भगवान बुद् एक गांव के पास से गुजर रहे थे। उस गांव के कुछ लोग पहले से ही उनके शत्रु थे। गांव वालों ने उन्हें जाते देख लिया और रास्ते पर उन्हें घेर लिया। उन्हें बहुत गालियां दी और अपमानित भी किया।
बुद्ध ने सुना और फिर उनसे कहा, “मेरे मित्रों तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो मैं जाऊं, मुझे दूसरे गांव जल्दी पहुंचना है”। वे लोग थोड़े हैरान हुए होंगे। और उन्होंने कहा, “हमने क्या कोई मीठी बातें कहीं हैं, हमने तो गालियां दी हैं सीधी और स्पष्ट। तुम क्रोध क्यों नहीं करते, प्रतिक्रिया क्यों नहीं देते?”
बुद्ध ने कहा, “तुमने थोड़ी देर कर दी। अगर तुम दस वर्ष पहले आए होते तो मजा आ गया होता। मैं भी तुम्हें गालियां देता. मैं भी क्रोधित होता। थोड़ा रस आता, बातचीत होती, मगर तुम लोग थोड़ी देर कर गये”। बुद्ध ने कहा, “अब मैं उस जगह हूं कि तुम्हारी गाली लेने में असमर्थ हूं। तुमने गालियां दीं, वह तो ठीक लेकिन तुम्हारे देने से ही क्या होता है, मुझे भी तो उन्हें लेने के लिए बराबरी का भागीदार होना चाहिए। मैं उसे लूं तभी तो उसका परिणाम हो सकता है। लेकिन मैं तुम्हारी गाली लेता नहीं। मैं दूसरे गांव से निकला था वहां के लोग मिठाइयां लाए थे भेंट करने। मैंने उनसे कहा कि मेरा पेट भरा है तो वे मिठाइयां वापस ले गए. जब मैं न लूंगा तो कोई मुझे कैसे दे पाएगा”।
बुद्ध ने उन लोगों से पूछा, “वे लोग मिठाइयां ले गए उन्होंने क्या किया होगा?” एक आदमी ने भीड़ में से कहा, “उन्होंने अपने बच्चों और परिवार में बांट दी होगी”। बुद्ध ने कहा, “मित्रों, तुम गालियां लाए हो मैं लेता नहीं। अब तुम क्या करोगे, घर ले जाओगे, बांटोगे? मुझे तुम पर बड़ी दया आती है, अब तुम इन गालियों का क्या करोगे, क्योंकि मैं इन्हें लेता नहीं? क्योंकि, जिसकी आंख खुली है वह गाली लेगा और जब मैं लेता ही नहीं तो क्रोध का सवाल ही नहीं उठता। जब मैं ले लूं तब क्रोध उठ सकता है। आंखे रहते हुए मैं कैसे कांटों पर चलूं और आंखे रहते हुए मैं कैसे गालियां लूं और होश रहते मैं कैसे क्रोधित हो जाऊं, मैं बड़ी मुश्किल में हूं। मुझे क्षमा कर दो, तुम गलत आदमी के पास आ गए।
इस कथा से यह सीख मिलती है कि हम जो किसी को देते हैं वही हम तक आता है।और दुसरों के दिए को नहीं लें तो लौटकर वह उन्हीं के पास चला जाता है। अतः अगर हम माफी मांगना और माफ करना सीख लें तो अंततः हमारा ही भला होना है।
परोपकार दिल से : Benevolence from heart 👈
मनुष्य में गुण और दोष दोनों ही होते हैं। बुरी आदतों को आत्म अनुशासन और अभ्यास से दुर किया जाता है। और अच्छी आदतों के साथ जीवन व्यतीत किया जा सकता है। क्षमा भाव जिसके भीतर विकसित हो जाता है, वह व्यक्ति यशस्वी हो जाता है।
गलतियां सभी से होती हैं और बाद में पछताना भी सभी को पड़ता है।अगर हमसे गलतियां होती हैं तो माफी मांगना भी आना चाहिए। और दुसरों की गलतियों को माफ करने का साहस भी होना चाहिए। क्षमा मांगने के लिए व्यक्ति को साहस जुटाना होना पड़ता है और एक साहसी व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है। जब कोई व्यक्ति किसी को माफ कर देता है तो वह बीते समय को तो नहीं बदल सकता है। परन्तु ऐसा करके वह आने वाले कल को सुधार सकता है।
अब प्रश्न यह है कि कोई अगर बार गलतियों का सीमा का उलंघन करे फिर भी उसे क्षमा कर देना चाहिए ! अगर आपके क्षमा भाव को कोई कमजोरी समझ ले और बार बार गलतियां करे। तो उसे दंडित करना भी आवशयक हो जाता है। ख़ासकर तब जब उसकी गलतियों का परिणाम सिर्फ आपको नहीं, समाज को भी भुगतना पड़ता हो। श्री कृष्ण ने इस प्रश्न का भी निदान कर हमें दिखाया है। उन्होंने शिशुपाल के निन्यानवे गलतियों को क्षमा कर दिया। उन्होंने उसे पूर्व में ही यह सचेत कर दिया था कि अगर सौवीं गलती करोगे तो दंड भुगतना होगा। और सौंवी गलती करते ही उसे दंडित किया गया।
शास्त्रों में यह भी लिखा गया है कि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्।।’ अर्थात् अति किसी चीज की भली नहीं होती। महर्षि वेदव्यास ने भी कहा है कि ‘न तो तेज ही सदा श्रेष्ठ है और न ही क्षमा।’
रामधारी सिंह दिनकर की कविता की ये पंक्तिया इसी बात पर इशारा करती हैं।
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ, कब हारा ?
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।
परन्तु इस दुविधा का निवारण करते हुए साहित्यकार शरतचन्द्र ने लिखा है ‘संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं, जिन्हें हम क्षमा नहीं कर सकते।’
निष्कर्ष यह है कि सर्वप्रथम हमें अपनी गलतियों पर पर्दा ना डाल कर, खुद से भी और दुसरों से भी क्षमा मांगना सीख लेना चाहिए। और दुसरों की छोटी-मोटी गलतियों को नजरंदाज कर देना चाहिए। अपने सहनशक्ति को विकसित करना चाहिए। जबतक कोई बड़ी बात ना हो, उसपर प्रतिरोध करना गलत भी हो सकता है। यह बात हमेशा याद रखने योग्य है कि क्षमा निर्बलों का गुण और वीरों का आभुषण है।
क्षमा की महत्ता पर महर्षि वेदव्यास ने कहा है कि क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा ही शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है वो वह सबकुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है।
अंत में प्रसिद्ध शायर मिर्जा गालिब के शेर का उल्लेख करना चाहूंगा। गालिब इन पंक्तियों में जो स्वर है उसकी गुंज मन के भीतरी तल तक पहुंचने में समर्थ है। उन्होंने कहा है –
कुछ इस तरह हमने जिंदगी को आसान कर लिया। किसी से माफी मांग ली किसी को माफ कर दिया।।
Good
Thanks