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भरोसा का अर्थ क्या है?

भरोसा का अर्थ

भरोसा यानि आसरा, निर्भरता या यूं कहें कि आशा का आधार। यह मन की एक स्थिति है, एक प्रकार से किसी के ऊपर आश्रित होने का भाव है। किसी को आधार मानकर उस पर आधारित हो जाना ही भरोसा है। अब प्रश्न यह है कि हम किसी को कैसे आधार मान लें ! हम उसी पर आधारित या आश्रित हो सकते हैं, जिसपर हमें विश्वास हो। और जब तक किसी बात पर हमें विश्वास ना हो, हम उसपर भरोसा नहीं कर सकते! 

भरोसा किस पर करें !

एक पुरानी कहावत है ‘जब सैयां भये कोतवाल तब डर काहे का’। एक समय की बात है, एक सामंत अपनी पत्नी को ब्याह कर अपने गांव ले जा रहा था। रास्ते में तुफान आ गया। बारातियों में भगदड़ मच गयी, सबलोग रोने चिल्लाने लगे। दुल्हन को भी घबराहट हुवी। घबराहट में उसने अपने पति की ओर नजर डाली। उसने देखा उसका सामंत दुल्हा तो एकदम शांत है। झीकझोरते हुवे उसने कहा ; तुम किस प्रकार के व्यक्ति हो ? तुफान आया है, कौन सी सांस आखिरी हो जाय। कौन सी धड़कन आखिरी हो जाय। फिर भी तुम शांत हो, थिर हो! सामंत ने यह सुनकर अपने म्यान से तलवार निकाला और दुल्हन के गर्दन पर रख दिया। दुल्हन थोड़ी देर के लिए विचलित हुवी, फिर हंसने लगी। सामंत ने कहा ; तुझे मालुम है, तलवार की धार कितनी तेज है। फिर भी तुम हंस रही हो, जरा सी मैंने दबायी और तेरी गर्दन गयी। तब भी तुम हंसती हो! तब दुल्हन ने कहा ; तलवार की धार तो तेज है, पर यह मेंरे दुल्हे के हाथों में है। और जब तक यह तुम्हारे हाथों में है, मुझे डरने की क्या जरूरत है! 

जब तक किसी वस्तु, विषय अथवा व्यक्ति पर विश्वास नहीं होता, उसपर भरोसा नहीं किया जा सकता। सामंत दुल्हन का पति है। पति पर विश्वास करने का जो आधार है, वही उसके भरोसे का आधार है। इसिलिए वह हंसती है, निर्भिक होकर। इसे ही कहते हैं भरोसा। 

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लौकिक जगत में विश्वासघात का सामना भी करना पड़ सकता है। अत: भरोसा टुटने का भय भी बना रहता है। भरोसा कैसे टुटता है! आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं। स्थिति ऐसी भी आती है कि अल्प या लम्बे समय से किसी के साथ आपका संबंध हो। तो अगले के आचरण के आधार पर कमोबेश उसपर भरोसा भी हो जाता है। खासकर जब कभी साथ निभाने और  सहायता करने जैसे आश्वासन उन संबंधो से मिल चूका हो। वैसे में व्यक्ति संकट की स्थिति में सहायता मांगने का प्रयत्न करता है। और अगर सहायता नहीं मिले तो अगले से उसका भरोसा टुट जाता है। इसलिए कहा गया है कि भरोसा उसी पर करना चाहिए, जो भरोसे के लायक हो। और इस जगत में वैसे लोग विरले होते हैं जो किसी के भरोसे को कायम रख पाते हैं।

वैसे लोग बहुत नसीब वाले होते हैं जिन्हें भरोसे लायक कोई रिश्तेदार या मित्र मिल जाता है। ऐसा कोई अपना जिसके समक्ष मन की व्यथाओं को व्यक्त कर सकें ऐसे सगे संबंधि विरले होते हैं। इसलिए तो रहीम के दोहे हमें सतर्क करते हैं। कवि रहीम कहते हैं ‘अपनी मन की व्यथा को किसी से मत बांटो, आपके दुख को कोई दुर नहीं करेगा, उल्टा आप पर हंसेगा, आपका खिल्ली उड़ाता फिरेगा’।

रहीमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय। सुनि अठिलइहैं लोग सब बांटि न लैहें कोई।।

जो भरोसा है, इसका बनना और बिगड़ना सांसारिक संबंधो में ही होता रहता है। इसिलिए ज्ञानीजन परमसत्ता पर आश्रित होने की बात समझाते हैं। अगर परमसत्ता पर भरोसा है तो जीवन में विष नहीं आस की सरिता होगी। इस संसार के संबंधों में, लोगों में ही भरोसा रखना है तो जीवन में विष तो घुलेगा ही। विश्वास में विष भी है और आस भी, यह स्वयं पर निर्भर करता है कि क्या ग्रहण करना है। 

कवि रहीम ने कहा है कि उस  मनुष्य का अंतरात्मा तो मर चूका होता है, जो किसी से कुछ मांगने जाता है। पर उससे पहले उसकी अंतरात्मा मर जाती है, जो मांगने वाले को देने से मना कर देता है। दुसरों पर निर्भर होना कहीं से भी उचित नहीं होता। परन्तु किसी के भरोसे को तोड़ देना और भी अधिक अनुचित होता है।

रहिमन वे नर मर चूके जे कहीं मांगन जाहि। तिनसे पहिले वे मुये जिन मुख निकसत नाहिं।।

कौन हितैषी है, कौन मित्र है, किस पर विश्वास किया जा सकता है। कौन भरोसे पर खरा उतरने लायक है, इसकी पहचान भी संकट के समय में ही होता है। रहीम के दोहे हमें बतलाते हैं कि संकट की स्थिति में अपने पराये की पहचान होती है। कवि रहीम कहते हैं ; जीवन में थोड़े समय के लिए आया दुख,  संकट की स्थिति अच्छा ही होता है। क्योंकि इन्हीं परिस्थितियों में हमें हित और अनहित से परिचय होता है। हमें यह मालुम हो पाता है कि कौन हितैषी है और कौन इस अवस्था में हमारा तिरस्कार कर रहा होता है।

रहिमन विपदा हू भली जो थोड़े दिन होय। हित अनहित या जगत में जान पड़त सब कोय।।

जहां तक अलौकिक जगत की बात है, जिसे ईश्वर पर विश्वास है। और अपने दृढ़विश्वास के आधार पर जिसे ईश्वर पर भरोसा है, उसका हमेशा भला ही होता है। डर विश्वास के विपरीत है, जब हम डरते हैं तो ईश्वर को यह संदेश देते हैं, कि हमें उन पर विश्वास नहीं है। और जहां विश्वास नहीं होता, वहां भरोसा ठहर नहीं पाता। 

तुफान आया है, अफरातफरी मची है। सामंत हंस रहा है। उसे विश्वास है, उस शक्ति पर जो सब-कुछ का नियंता है। इसलिए उसे भरोसा है कि जो होना है वो होकर रहेगा। पर जो होगा अच्छा ही होगा। अपने इसी भरोसे के कारण वह शांत है, थिर है। और इसी बात को समझने के लिए वह दुल्हन के गर्दन पर तलवार रख देता है। वह यह बताना चाहता है कि जिस प्रकार तुम्हें मुझपर भरोसा है। ठीक उसी प्रकार से मुझे उसपर भरोसा है, जिसके कारण हम हैं, हमारा अस्तित्व है। इसलिए निर्भर रहना है, भरोसा करना है,तो वहां करो जहां से भरोसा कभी टुटता नहीं। आस का आधार अगर मजबुत हो तो टुटकर कभी विखरता नहीं। 

जीवन में विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़े, कोई सहारा नहीं दे रहा हो। सहारा मांगने पर तिरस्कार मिलता हो। संकट की घड़ी में धीरता धारण करना चाहिए। और भरोसा ईश्वर पर बनाये रखना चाहिए। इस घड़ी में रोना, मांगना, प्रार्थना जो भी करना आता हो। ईश्वर पर भरोसा कर उनसे ही करना चाहिए। दुख के समय में ही क्यों,  सुख के समय में भी जीवन में प्रार्थना होना ही चाहिए। कहते हैं कि जिसका कोई सहारा नहीं होता उसका ईश्वर सहारा होता है। और जिसे ईश्वर पर भरोसा होता है वह कभी बेसहारा नहीं हो सकता। 

रहीम के दोहे भी हमें इस बात को समझाते हैं। दुख की घड़ी में तो सभी ईश्वर की सुमिरन करते हैं। अपनी अपनी भावनाओं, स्थितियों के अनुसार सभी परमात्मा को अपनी व्यथा सुनाते हैं। रहीम कहते हैं कि यदि सुख के समय भी सूमिरन किया जाय तो दुख तो होगा ही नहीं। सुमिरन से मन शांत होता है। शांत मन में विवेक का प्रादुर्भाव होता है। विवेकवान व्यक्ति आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा होता है। अर्थात् ईश्वर का सदा सुमिरन वही कर सकता है, जिसे ईश्वर पर भरोसा हो। और ईश्वर के भरोसे जीवन व्यतीत करने वाले ईश्वर पर निर्भर होते हैं। यही आत्मनिर्भरता है, अर्थात ईश्वर पर भरोसा से ही खुद पर भरोसा आ जाता है। और जो इस अवस्था को जी रहा होता है, उसे दुख का आभास ही नहीं होता।

दुख में सुमिरन सब करै सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करै तो दुख काहे को होय।।

जीवन में आपदा हो, संपदा हो, सब दैव योग से अपने समय पर आती है। सब विधि का विधान है। ऐसा मानकर, ऐसा जानकर जो जीवन को जीता हैं। वह शोक नहीं करता, वह चिंता नहीं करता। 

पवित्र गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है! जो हुवा वह अच्छा हुवा, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। 

सब गोविन्द का खेल है। जीवन में जो भी चल रहा है, उसका कोई ना कोई कारण है। निर्माता और निर्देशक तो गोविन्द है। वह जो अभिनय हमसे करवाना चाहते हैं, करवा लेते हैं। जो होगा अच्छा ही होगा ऐसा मानकर चलना ही गोविन्द पर भरोसा रखना है। 

गीतकार निर्दोष का यह गीत जिसे हरि ओम शरण ने अपना स्वर दिया है। इस मरम को मार्मिक ढंग से समझाया है।

नैया तेरी राम हवाले, लहर लहर हरी आप संभाले। हरि आप ही उठाये तेरा भार ! उदासी मन काहे को करे। काबु में मंझधार उसी के, हाथों में पतवार उसी के। तेरी हार भी नहीं है तेरी हार उदासी मन काहे को करे। तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार उदासी मन काहे को करे। 

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