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समय के महत्व की जानकारी — The Importance of Time

समय का अर्थ और उपयोगिता..!

समय को किसी एक मापदंड के अनुसार परिभाषित नहीं किया जा सकता। यह एक सामान्य शब्द है, किन्तु इसका आशय अपरिमित है। यह एक अवधारणा है, दो लगातार घटनाओं के घटित होने के बीच के अंतराल को समय समझा जाता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक भौतिक त्तत्व है। यह गति और बलों की क्रियाओं से उत्पन्न होता है। जब किसी वस्तु या पिंड के ऊपर बल या बलों का प्रयोग होता है तो वह गतिमान हो जाता है। फलस्वरूप उसके स्थिति में परिवर्तन होता है। इस कार्य के घटित होने के अंतराल को समय समझा जाता है।

विभिन्न विधियों, मापदंडों के आधार इसकी गणना की जाती है। वैदिक मापदंड के अनुसार एक सुर्योदय से दुसरे सुर्योदय के बीच के अंतराल को दिवस या दिन कहा जाता है। एक दिवस में साठ घड़ी होते हैं और एक घड़ी में साठ पल होते हैं।

पल दो पल ..! Life is a moment ..! 👈

समय के वर्तमान मानक के अनुसार एक पल चौबिस सेकेंड के बराबर होता है। साठ सेकेंड में एक मिनट और साठ मिनट में एक घंटा होता है। इस आधार पर एक दिवस में चौबिस घंटे होते हैं। दिनों के समुच्चय महीना और महीनों का समुच्चय साल या वर्ष होता है। एक वर्ष बारह महीनों का बताया गया है।

दार्शनिक दृष्टि से  जिसे हम समय कहते हैं, वह हमारे मस्तिष्क की समझ मात्र है। ओशो ने चेतना को ही समय के बोध का कारण बताया है। ओशो के अनुसार ; “पदार्थ के तीन आयाम हैं, लम्बाई, चौड़ाई और ऊंचाई। ये तीन दिशायें हैं जिनमें सभी वस्तुएं आ जाती हैं। लेकिन आत्मा की एक और दिशा है, जो वस्तुओं में नहीं है। वह जो दिशा है, चेतना की दिशा है, वह समय है। यह जो समय है अस्तित्व का चौथा आयाम हैं। अगर हम चेतना को अलग कर लें तो दुनिया में सब-कुछ होगा, सिर्फ समय नहीं होगा। सुरज निकलेगा, चांद निकलेगा, लेकिन समय जैसी कोई चीज नहीं होगी। क्योंकि समय का बोध ही चेतना है।”

इन वाक्यों पर विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि हमारे जीवन में समय का गहन प्रभाव पड़ता है। जो मनुष्य अचेतावस्था में हो उसे समय का बोध कैसे हो सकेगा।  समय ईश्वर का एक ऐसा विधान है जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, बहुमूल्य है। यह एक ऐसी चीज है जो कभी स्थिर नहीं होती, निरंतर गतिशील बनी रहती है। समय कभी किसी के वश में नहीं होता, यह कभी किसी के लिए नहीं रुकता।

समय जिसे हम काल, वक्त, Time भी कहते हैं, इसके तीन अवस्थाएं होती हैं। जो बीत गया हो  वह भुतकाल, जो चल रहा है वह वर्तमान और आनेवाला वक्त भविष्य कहलाता है। जो काल गुजर जाता है वह अतीत है, और अतीत से अनुभव आता है। कल क्या होगा, कौन सी घटना घटित होगी यह कोई नहीं जानता। भविष्य अनिश्चितताओं से भरा होता है। अतः: जो चल रहा होता है वही महत्त्वपूर्ण है। विवेकवान व्यक्ति सदैव समय का कद्र करता है। वह समय का सदुपयोग करना जानता है। वह वर्तमान के साथ चलते हुए भविष्य की ओर अग्रसर रहता है। वैसे समय प्रत्येक को समान अवसर देता है। जीवन में सफल होना समय के सदुपयोग में ही निहित है।

काल करे सो आज कर !

यह जो वक्त है बहुमूल्य है, पर इसका मोल इसके वीत जाने पर ही पता चलता है। इसका दुरुपयोग करने वाले को दुख और पछतावा के सिवा कुछ नहीं मिलता। निम्नांकित गीत की पंक्तियां हमें यही सीख देती हैं।

जो कल करना है जो आज करले जो आज करना है सो अब करले। जब चिड़िया ने चुग खेत लिया तो पछतावे क्या होत है..! उठ जाग मुसाफिर भोर भयो अब रैन कहां जो सोवत है । जो सोवत है वो खोवत है जो जागत है वो पावत है।

वर्तमान को जाया करने वाले और भविष्य के सदुपयोग का योजना बनाने वाले टाल मटोल के अभ्यस्त हो जाते हैं। उनका आज कल में बदल जाता है और फिर आने वाला कल फिर कभी आता ही नहीं। आज का काम कल पर छोड़ना सर्वथा अनुचित होता है। ऐसा करने वाला आलसी और अकर्मन्य व्यक्ति का जीवन व्यर्थ हो जाता है।

संत कबीरदास समय के महत्व को समझाते हुए कहते हैं ; कि जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लो। और जो आज करना है उसे अभी कर लो। क्योंकि कब क्या घटित हो जायगा कोई नहीं जानता है। बहुत कुछ करना है इस छोटे से जीवन मेंमें। पल भर में जीवन खत्म हो जायगा, फिर तुम क्या कर पावोगे।

काल करे सो आज कर आज करे सो अब। पल में परलय होयगा बहुरी करेगा कब ।।

समय के सदुपयोग के लिए प्रत्येक को निश्चित दिनचर्या बना लेना चाहिए। जो जिस उम्र में है, जिस अवस्था में है, उसी के अनुरूप दिनचर्या बना लेना चाहिए। जन्म और मृत्यु के बीच का जो अन्तराल है। जिसे हम उम्र कहते हैं, यह समय ही तो है। इस बहुमूल्य संपदा का उपयोग हर हाल में करना चाहिए। “आठ, अठारह, अठाईस, अड़तीस और अड़तालिस” उम्र के इस समीकरण को ठीक तरह से समझ लेना चाहिए। जन्म लेने के पश्चात आठ के उम्र तक व्यक्ति को पुरा लाड़ प्यार का अधिकार होता है। इस अंतराल में वह दुसरों पर निर्भर होता है। इस अंतराल में उसके साथ जैसा व्यवहार होगा, वैसा ही संस्कार उसके अंदर आता है।

आठ के बाद स्वयं को अनुशासित करने का प्रयत्न का आरम्भ हो जाना चाहिए। स्वयं को भौतिक रुप से आत्मनिर्भर बनाने की तैयारी आठ से अठारह के उम्र में कर लेना चाहिए। शिक्षा-दिशा, कला-कौशल, उचित-अनुचित का अर्थ समझने और जानने के लिए यह अंतराल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। अठारह से अठाईस के अंतराल में पुर्ण रुप से आत्मनिर्भर होकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना चाहिए। जीवन यापन करने के लिए कार्य में लग जाने का यह उपयुक्त अंतराल है।

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अठाईस से अड़तीस और फिर अड़तालिस का तक का अंतराल पुरे मनोयोग से पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का है। इन दायित्वों का निर्वहन करते हुए स्वयं को जानने का प्रयास भी होना चाहिए। इसके बाद का अंतराल पुरे मनोयोग से जीवन का उद्देश्य क्या है, इसे जानने और प्राप्त करने में लगा देना चाहिए। शास्त्रों में उम्र के इसी काल को वाणप्रस्त कहा गया है। वाणप्रस्त से संन्यास यानि मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। जिसे प्राप्त करना जीवन का मूलभुत उद्देश्य है। जो पुरे मनोयोग से ऐसा कर पाते हैं उनका जीवन आनंद से भर जाता है।

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वीता हुवा वक्त कभी लौटकर नहीं आता। जो वक्त के मायने को नहीं समझते वे जीवन के दौड़ में पीछे रह जाते हैं। वक्त का सदुपयोग करने वाले उन्नति के पथ पर आगे बढ़ते रहते हैं। जो ऐसा नहीं करते वे जीवन भर पछताते हैं। वैसे अकर्मन्य व्यक्ति के लिए गीतकार शैलेंद्र की ये पंक्तियां सटीक ज्ञान देती है।

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जीवन में ऐसा भी समय आता है जब व्यक्ति को विपरितताओं से गुजरना पड़ता है। उन्हें भी विपरीत परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है, जिन्होंने हमेंशा वक्त का सदुपयोग किया है। वक्त जब अच्छा हो तो थोड़े प्रयास से ही अधिक मिलने लगता है। पुरानी कहावत है कि “समय बलवान तो गधा पहलवान।” समय अगर विपरीत चल रहा तो धैर्य नहीं खोना है। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य सबसे बड़ा मित्र है। ज्ञानियों ने कहा भी है, कि कठिन वक्त में ही धैर्य और धर्म की परीक्षा होती है। 

धैर्य रखना जरूरी क्यों है – Dhairya Rakhna Jaruri Kyun Hai 👈

कबीर कहते हैं कि “काल करे सो आज कर आज करे सो अब। पल में परलय होयगा बहुरी करेगा कब।।” इन पंक्तियों पर गहराई से विचार की जरूरत है। और अगर उल्टी बांसी बजाया जाय तो दुसरा स्वर सुनाई पड़ता है। दुसरी पंक्तियां सामने प्रगट होती हैं। “आज करे सो कल कर कल करे सो परसों। अभी करके क्या करोगे अभी तो जीना है बरसों।।” अधिकांश लोग इन पंक्तियों को ही सार्थक करने में लगे रहते हैं। ख्याली पुलाव बनाने में लगे रहते हैं। और समय का दुरुपयोग करते रहते हैं। चुनाव आपका , निर्णय भी आपका, जीवन भी आपका और समय भी आपके लिए ही है। समय का उपयोग और दुरूपयोग दोनों ही स्वयं पर ही निर्भर करता है। सब कुछ समझ के स्तर पर निर्भर करता है।