दोस्तों यह जो मोहब्बत है, यह क्या चीज है? आइए इसे समझने के लिए थोड़ी माथा-पच्ची करते हैं। कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनका एक सामान्य अर्थ होता है, जो सामान्यतः लोग समझते हैं। और एक मूल अर्थ भी होता है, जो सामान्य व्यक्ति को आसानी से समझ में नहीं आता है। इसे समझने के लिए शब्द की गहराइयों में उतरना पड़तां है। सामान्य अर्थों में जब कोई किसी विषय-वस्तु में रुची रखता है, कोई किसी व्यक्ति के लगाव में होता है, जब कोई किसी का ख्याल रखता है, किसी से अच्छा व्यवहार करता है, तो इसे मोहब्बत समझा जाता है।
मोहब्बत उर्दु भाषा का एक शब्द है! उर्दु भाषा में इसके समानार्थी एक और शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह शब्द है ‘उल्फत’। उल्फत का अर्थ ऐसे मनोभाव से है जो किसी को भी हमेशा उसके साथ और पास रहने को प्रेरित करता है। हिन्दी भाषा में मोहब्बत का समानार्थी शब्द है स्नेह, प्यार, प्रीत, प्रेम आदि। और अंग्रेजी भाषा में इसे ‘love’ कहते हैं।
अब जरा सोचिए क्या किसी के प्रति आज जो लगाव है, वह हमेशा बना रहता है? साधारण मन तो चीजों के प्रति कभी आसक्त कभी विरक्त होता रहता है। सामान्य व्यक्ति का मन अस्थिर होता है, उसके विचार बदलते रहते हैं। मन इच्छाओं से, अपेक्षाओं से पूर्ण होता है। जब यह किसी से तृप्त नहीं होता तो वहां से हट जाता है। अब जरा सोचिए! सामान्य जीवन में हम अपने चारों ओर मौजूद विषय-वस्तुओं, जीवों के साथ जो व्यवहार कर रहे होते हैं! क्या ये सभी कार्य, व्यवहार निस्वार्थ भाव से किया जाता है? ये सभी कार्य-व्यवहार मन के बाहरी तल से उठ रहे विचारों के कारण ही होता है। तो क्या वास्तव में मन के बाहरी तल से जो व्यवहार किया जाता है! वह मोहब्बत है? नहीं गहनता से विचार करें तो ऐसा मनोभाव जो स्वार्थ में लिप्त हो मोह-माया, लगाव जैसा कुछ है।
जानकारों का कहना है कि प्यार विषम परिस्थितियों में भी मन को संतुलित बनाये रखता है। जो भीतर निरंतर सुख का अनुभव करे उसे प्यार कहते हैं। जिसे यह दौलत प्राप्त हो जाता है, उसे सबकुछ प्राप्त हो जाता है। ज्ञानीजन यह समझा गये हैं कि प्रेम के मार्ग पर चलकर ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। मोहब्बत का वास्ता दिल से है! और मन जब तक साफ न हो, स्थिर न हो, शांत न हो! दिल की आवाज उस तक नहीं पहुंच पाती।
ओशो कहते हैं कि ‘हर बच्चा प्रेम को लेकर पैदा होता है, लेकिन बड़े होने की प्रक्रिया में प्रेम कहीं खो जाता है। अगर प्रेम मिल जाए तो परमात्मा के मिलने का द्वार खुल जाता है। प्रेम का अर्थ है अनुभव करने की क्षमता।’
शायरों, गीतकारों ने भी इस शब्द के विषय में लिखा है। वैसे कवि, लेखक, विचारक संवेदनशील होते ही हैं।और उनके विचार, उनके गीत एक प्रकार से उनकी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है। इस आलेख में कुछ ऐसे गीतों की पंक्तियों का उल्लेख कर किया जा रहा है। इन पंक्तियों के भाव को समझ कर, इस प्रश्न का समाधान खोजा जा सकता है कि ‘मोहब्बत क्या है ?’ तो आइये मोहब्बत के लिए थोड़ी माथा-पच्ची कर लेते हैं।
नशा होता है ये कैसा
बहकते हैं बदन कैसे
नजर कुछ भी नहीं आता
ये मस्ती कैसी होती है !
एक मयकश जा रहा था
मय से रिश्ता जोड़ के
हमने पूछा किसलिए तू
उम्र भर पीता रहा !
कुछ न बोला, कुछ न बोला
अपने धुन में बस यही गाता रहा…
मोहब्बत है क्या चीज हमको बताओ !
इस गीत के गीतकार हैं संतोष आनंद। गीत की इस पंक्ति में उनकी कल्पना में एक व्यक्ति जिसने मय से यानि शराब से रिश्ता जोड़ रखा है और जीवन भर पीता रहा है। गीतकार उससे प्रश्न करता है, इस मय में रखा क्या है? क्यों तू इसे उम्र भर पीता रहा है? इस प्रश्न का उसके पास कोई जवाब नहीं है। उल्टा वह नशे में धुत गाता जा रहा है, ‘मोहब्वत है क्या चीज हमको बताओ ?’ गीतकार की जो यह कल्पना है, वह क्या कहना चाह रहे हैं? यह विचारणीय है।
यह जो नशा है दुनियादारी का है या मय का है या कुछ और है? जब कोई मोह-माया के नशे में होता है तो उसे कुछ और नहीं दिखता। पर फिर भी उसे किसी चीज की तलाश है, वह चीज जिसका उसे आभास नहीं हो पाया है। जिसे उसने सिर्फ सुना है, जाना नहीं है। वह जीवन भर जिस नशे में जी रहा है, उससे वह तृप्त नहीं है। उसे वह मिला ही नहीं जो उसे चाहिए! शायद गीतकार इसी बात को बतलाना चाह रहे हैं।
ऐ गमें जिंदगी कुछ तो दे मशवरा
ऐ गमें जिंदगी
कुछ तो दे मशवरा
मैं कहां जाऊं
होता नहीं फैसला
एक तरफ उसका घर
एक तरफ मयकदा !
जिंदगी एक है
और तलबदार दो
जां अकेली मगर
जां के हकदार दो
दिल बता पहले किसका करुं हक अदा..!
इस ताल्लुक को मैं
कैसे तोड़ुं जफर
किसको अपनाऊं मैं
किसको छोड़ुं जफर
मेंरा तो दोनों से रिश्ता है नजदीक का !
जफर गोरखपुरी की संवेदना थोड़ी भिन्न है। गीतकार व्यथीत है, उसके मन और दिल में द्वंद चल रहा है, वह असमंजस में है। संवेदनशील व्यक्ति यह जानता है कि यह संसार एक सराय है, सांसारिकता में वास्तविक सुख नहीं है। परन्तु उसका मन इस संसार से रिश्ता जोड़ लेता है। जब दिल की सुनता है तो इस बात का आभास होता है कि उसे जाना कहीं और है। जिसने उसे इस संसार में भेजा है, उसके पास लौटकर उसे जाना है। वह अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करें अथवा जीवन का उद्देश्य को पूर्ण करें। मोह-माया के चक्कर में फंसा रहे अथवा आऩद का अनुभव करने के लिए प्रेम के पथ पर आगे बढे। स्वयं को पाने के लिए उसे मयरुपी अहम्, मोह को छोड़ना पड़ेगा, परन्तु वह असमंजस में है।
दिल में ना हों जुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती , खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती।
निदा फाजली ने मोहब्बत को बहुत बड़ी दौलत की संज्ञा दी है। जुर्रत का अर्थ है, मन की वह दृढ़ता जो कोई बड़ा काम करने को प्रेरित करती है। इस प्रकार से निदा के कहने का तात्पर्य है कि मोहब्बत जैसी बहुमूल्य संपदा दान में नहीं मिलती, इसे पाने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं।
जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं !
इस मोहब्बत ने
कितने दिल तोड़े
कितने घर फूंके !
जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं
दिल के बदले दर्दे दिल लिया करते हैं।
तन्हाई मिलती है
महफिल नहीं मिलती
राहें मोहब्बत में कभी
मंजिल नहीं मिलती!
दिल टुट जाता है
नाकाम होता है
उल्फत में लोगों का यही अंजाम होता है !
ये जिंदगी यूंही
बरबाद होती है
हर वक्त होंठों पे
कोई फरियाद होती है
ना दवाओं का नाम चलता है
ना दुवाओं से काम चलता है!
जहर ये फिर भी सभी क्यों पीया करते हैं
जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं..!
गीत की उक्त पंक्तियां, जिसे आनंद वक्शी ने लिखा है। गीतकार के मन में भाव मोहब्बत के विषय में निराशाजनक है। मोहब्बत में किसी को मंजिल नहीं मिलती, नाकामी मिलती है। तो क्या वास्तव में मोहब्बत नाकाम होता है? जानकारों कि माने तो,मोहब्बत जीवन को संवारता है! मोहब्बत दिल को कोमल बनाता है! मोहब्बत दिलों को जोड़ता है। और इस गीत में वक्शी साहब कहते हैं कि मोहब्बत में दिल टुट जाता है। उल्फत में लोगों का बुरा अंजाम होता है, उन्हें यह जहर लगता है। संभवतः जब इस गीत को उन्होंने लिखा होगा, मोहब्बत के विषय में उनका यही अनुभव रहा होगा।
मैं शायर तो नहीं…
प्यार का नाम मैंने सुना था मगर
प्यार क्या है ये मुझको नहीं थी खबर
मैं तो उलझा रहा उलझनों की तरह
दोस्तों में रहा दुश्मनों की तरह
मैं दुश्मन तो नहीं मगर ये हंसी
जब से देखा मैंने तुझको मुझको दोस्ती आ गई !
सोचता हूं अगर मैं दुआ मांगता
हाथ अपने उठाकर मैं क्या मांगता
जब से तुझसे मोहब्बत मैं करने लगा
तब से जैसे इबादत मैं करने लगा
मैं काफिर तो नहीं मगर ये हंसी
जब से देखा मैंने तुझको, मुझको वंदगी आ गई !
मैं शायर तो नहीं…
अब मजे की बात यह है कि उपरोक्त गीत की पंक्तियां भी आनन्द वक्शी साहब द्वारा ही लिखित है। अपने इस गीत में वो खुद उल्टी बांसी बजा रहे हैं। इस गीत के माध्यम से उन्होंने कहा है कि अब तक उन्होंने केवल मोहब्बत का नाम ही सुना था। और कहते हैं कि अब वे मोहब्बत के अर्थ को समझ गये हैं। अब मोहब्बत उन्हें इबादत लगने लगा है।
प्यार दिवाना होता है !
प्यार दिवाना होता है मस्ताना होता है
हर खुशी पे हर गम पे बेगाना होता है
सुनो किसी ने ये कहा बहुत खुब
मना करे दुनिया लेकिन मेंरे मेहबूब
वो छलक जाता है जो पैमाना होता है
प्यार दिवाना होता है…
प्यार दिवाना होता है, प्यार मस्तान होता है। वक्शी साहब से अब रहा नहीं गया। संभवतः उंन्हें सच में प्यार का अहसास हो गया लगता है। तभी तो प्रेम का प्याला छलक उठा है। संवेदनशील लोग विकासशील होते ही हैं। और समय के साथ उसकी मानसिक स्थिति विकसित होता चला जाता है।
आशिकी इंतिहान लेती है !
उस वेखबर को कोई खबर दे
ये प्यार हमको पागल न कर दे
प्रीत भी इंतिहान लेती है !
दिल की गली से बचके गुजरना
ये सोच लेना फिर प्यार करना
ये सोच लेना फिर प्यार करना
आशिकी इंतिहान लेती है ! आशिकों की जान लेती है !
यह जो मोहब्बत है आशिकी है, इस राह पर चलते हुए जीवन में अनेक परीक्षाओं में गुजरना पड़ता है। यह सफर कायरों के लिए नहीं है। इस रास्ते पर चलने से पूर्व सोचना जरूरी है। यह सोचना जरूरी है कि आपमें कितनी जुर्रत है इसे पाने की। शायद इस गीत के माध्यम से आनंद वक्शी ने इसी बात को दर्शाया है। प्रेम के पथ में आगे बढने के लिए मोह-माया, अहंकार जैसे त्तत्वों को मिटाना पड़ता है। इसी को खुद को मिटाना समझा गया है, और इस के लिए जीवन में परीक्षाओं से गुजरना होता है।
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो..!
ना उम्र की सीमा हो
ना जन्म का हो बंधन
जब प्यार करे कोई
तो देखे केवल मन
नई रीत जगा कर तुम
मेंरा प्रीत अमर कर दो !
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो..!
आकाश का सुनापन
मेंरे तन्हा मन में
पायल छनकाती तुम
आ जाओ जीवन में
सांसें देकर अपनी
संगीत अमर कर दो !
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो..!
जग ने छीना मुझसे
मुझे जो भी लगा प्यारा
सब जीत गए मुझसे
मैं हर दम ही हारा
तुम हार के दिल अपना
मेंरी जीत अमर कर दो!
होंठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो..!
इंदिवर की संवेदना निराला है। मोहब्बत में इबादत है! बंदगी है! यह व्यक्ति को बंधनों से मुक्त करता है। और मोहब्बत में करने के लिए कोई बंधन नहीं होता, न जन्म का न उम्र का। जिसके दिल में जुर्रत है उसके लिए मोहब्बत का द्वार हमेशा खुला है। जो भौतिकता में लिप्त है, वह कभी तृप्त नहीं हो सकता। जब हृदय में दर्द उभरता है तो वह आनंद की तलाश करता है। उसके भीतर पीड़ा से मुक्त होने की आकंठा जग जाती है। और फिर मुक्त होने के लिए, तृप्त होने के लिए बंदगी में लग जाता है। और जब कोई वास्तव में बंदगी कर रहा होता है तो खुद को भूल जाता है।
प्रेम ही परमात्मा है!
जीसस जिन्हें ईश्वर का पुत्र माना जाता है, उन्होंने स्वयं यह बात कही है ‘love is GOD !’ प्रेम ही परमात्मा है! साधारण मन को जीसस की बातें, बुद्ध की बातें समझ में ही नहीं आती! ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए कि उन्होंने जो कहा; अपने अनुभव से कहा है। साधारण मनुष्य को इन बातों का कोई अनुभव ही नहीं है। और जब तक किसी को प्रेम का, मोहब्बत का अनुभव नहीं हो जाता, वह सत्य से अनभिज्ञ ही रहेगा।
आवारा मन असाधारण होता है ! A stray mind is extraordinary
मोहब्बत ही खुदा है! इन वाक्यों को सभी पढ़ते सुनते हैं और दुसरों को भी सुनाते हैं। परन्तु कोई इसे जीवन में अपनाता नहीं है। सामान्यतः व्यक्ति सांसारिक विषयों, बंधनों में सुख खोजता रहता है। और ऐसा करते हुवे कभी तृप्त नहीं हो पाता। जब किसी वस्तु को पाने में असफल रहता है, तो पीड़ा का अनुभव करता है। और अगर वह वस्तु उसे मिल भी जाता है, तो उससे प्राप्त सुख क्षणिक ही होता है। यह सिलसिला चलता रहता है और अतृप्त मन हमेशा पीड़ा का अनुभव करता है। एक पीड़ित व्यक्ति से अगर कोई पूछे कि मोहब्बत क्या है? तो क्या वह कह सकेगा कि मोहब्बत खुशी देता है? वह ऐसा कह सकेगा कि प्रेम ही परमात्मा है?अगर वह ऐसा कहता है तो ढ़ोग कर रहा होता है।
प्रेम ही परमात्मा है! मोहब्बत ही खुदा है! परन्तु कितने लोग यह जान पाते हैं। जानना तो दुर की बात है, कितने लोग इसे मानते हैं। महान विचारक ओशो के शब्दों में : लोग कहते हैं कि परमात्मा है! इसका प्रमाण क्या है? उन्हें पता ही नहीं कि वे क्या कह रहे हैं। क्योंकि परमात्मा को खोजने का एक ही ढंग है; स्वयं को खोना। जब तक तुम बचोगे, तुम्हें उसका प्रतीति नहीं होगी, जब तुम न रहोगे तब प्रतीति होगी। इसलिए तुम तो कभी प्रमाण न जुटा पावोगे कि वह है! तुम्हारे मिटने पर ही प्रमाण मिलेगा, जो खोया उसने पाया! जो प्रमाण खोजता रहा उसने पाया कि परमात्मा नहीं है।
सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी..!
इस संसार को ही सच मानकर, सांसारिकता में ही मोहब्बत ढ़ुढने का नतीजा क्या होता है। इस जगत में ही प्यार ढ़ुंढने का हस्र क्या होता है , शैलेंद्र के इस गीत से पता चलता है।
दुनिया ने कितना समझाया
कौन है अपना कौन पराया
फिर भी दिल की चोट छुपाकर
हमने आपका दिल बहलाया
खुद पे मर मिटने की ये जिद है हमारी
सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी !
असली नकली चेहरे देखे
दिल पे सौ सौ पहरे देखें
मेंरे दुखते दिल से पूछो
क्या क्या ख्वाब सुनहरे देखे
टुटा जिस तारे पे नजर थी हमारी
सच है दुनिया वालों की हम हैं अनाड़ी!
सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी..!
गीतकार शैलेंद्र कहते हैं कि इस जीवन-यात्रा की दास्तां ही कुछ अजीब है। इस भौतिक संसार में यह समझ से परे है, इसकी शुरुआत कहां से होती है, क्यों होती है? और जाना कहां है, इसका अंत कहां है? इसे वही जान सकता है, जो मोहब्बत करता है।
अजीब दास्तां है ये कहां शुरू कहां खतम, ये मंजिलें हैं प्यार की न वो समझ सके न हम।
जो प्यार कर गये वो लोग और थे !
जिन्होंने दिल की आवाज सुनी ( दिल की बात सुनो ! ) जिन्होंने खुद पर विश्वास किया। जिन्होंने मन में संतोष को धारण किया। जिन्होंने खुद को जानने का प्रयास किया, उन्होंने ही खुदा को जाना। ऐसे पुरुषार्थ करने वाले लोग ही वास्तव में यह जान पाये कि मोहब्बत क्या है। ‘मोहब्बत क्या चीज है ?’ संतोष आनंद का गीत हमें यही बात बताती है कि काश जीवन में मोहब्बत होता ..!
हाथों में हाथ बांध के संतोष रह गया
कुछ कर गुजर गये वो लोग और थे
दिल में उतर गये वो लोग और थे
जो प्यार कर गये वो लोग और थे।