दिल की बात’ दिल से..!
ऐसा सुनने में आता है, कि ‘दिल की बात’ दिल की धड़कनें तेज बतलाती हैं। दिल शब्द हदय का पर्याय है, अंग्रेजी में इसे Heart कहते हैं। यह दो रुपों में प्रगट होता है। इसका एक रुप भौतिक और दुसरा भावनात्मक होता है।
स्थुल रुप में यह शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, मानव जाति में यह छाती के मध्य में स्थित होता है। यह एक दिन में लगभग एक लाख बार धड़कता है। और हर धड़कन के साथ शरीर के दुषित रक्त को शोधित कर सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित करता है।
इसका दुसरा रुप भावनात्मक होता है। आम तौर पर इसका भावनात्मक रूप का प्रयोग अधिक होता है। जब कोई व्यक्ति प्रेम, दया का भाव प्रगट कर रहा होता है, तो यह समझा जाता है कि वह दिल से सोच रहा है। किसी भी व्यक्ति भावनायें ; सही गलत पर निर्णय का भाव, उसका विश्वास आदि दिल में उमड़ते हुए माने जाते हैं। जिनमें निर्णय लेने का हिम्मत होता है, जिनमें कुछ कर गुजरने का हौसलाहोता है, उनके संबंध में कहा जाता है कि उनका दिल बड़ा होता है। ज्ञानीजन भी ‘दिल की बात’ सुनने को और इसके अनुसार चलने को कहते हैं।
शेक्सपियर के शब्दों में ; “तुम मुझसे मोहब्बत करो या नफरत दोनों मेंरे पक्ष में ही है, पर तुम मुझसे मोहब्बत करते हो तो मैं तुम्हारे दिल में हूं। और अगर नफरत करते हो तो मैं तुम्हारे दिमाग में हूं।”
महाकवि शेक्सपियर के इस उक्ति पर विचार करने पर यह स्पष्ट हो जाता है, कि दिल और दिमाग दोनों का भाव भिन्न हो सकता है।
दिल की बात’ दिल ही जानें !
कहते हैं यह दिल अनाड़ी होता है, वेचारा होता है, दिवाना होता है। ‘ऐ दिल-ऐ-नादान’ यह संबोधन शायरों के कलामों में अक्सर पढ़ने को मिल जाता है। सामान्यत: दिल-ओ-दिमाग के बीच दिमाग अक्सर हावी हो जाता है। दिमाग चतुर हैं, चालाक है, होशियार है, पर दिल तो नादान है।
दिल जब तक गहराई से किसी बात को समझता है, तब तक दिमाग अपना काम कर चुका होता है। सही समय पर दिल की बात समझ में आ गई तो अधिकतर मौको पर लिया गया निर्णय सुकुन से भरा होता है।
दर्द-ए-दिल की दास्तां !
जीवन में कुछ ऐसे पल भी आते हैं, जो उस वक्त समझ में नहीं आता। इनकी यादें बाद के दिनों में या तो दर्द देती हैं या फिर सुकुन देती है। ये बीते हुवे लम्हें, दर्द से भरी होती हैं या फिर सुहानी होती हैं। यह उन पलों में घटित घटनाओं की प्रकृति पर निर्भर करता है।
जानकारों का कहना है कि जो यादें दर्द से भरी हों, उन्हें भूल जाना ही बेहतर है। गीतकार राजेंद्र कृष्ण के ‘दिल की बात’ को पढ़िए, इन्होंने क्या कहा है :
दामन में लिये बैठा हूँ टूटे हुए तारे ! कब तक मैं जियूँगा यूँही ख्वाबों के सहारे ! दीवाना हूँ, अब और ना दीवाना बनाओ ! अब चैन से रहने दो, मेरे पास न आओ।
लूटो ना मुझे इस तरह दोराहे पे लाके ! आवाज़ न दो एक नयी राह दिखाके ! संभला हूँ मैं गिर-गिरके मुझे, फिर ना गिराओ !अब चैन से रहने दो मेरे पास ना आओ। भूली हुई यादों, मुझे इतना ना सताओअब चैन से रहने दो, मेरे पास न आओ।।
पर बीते हुवे लम्हें’ जो यादें देकर जाती हैं, बड़ी जिद्दी होती हैं। भूलने की जितनी भी कोशिश करो, वो बार-बार चली आती हैं। प्रस्तुत है सलमान जयपुरी का अंदाजे बयां :
दिल मेरा डूब गया आस मेरी टूट गई ! मेरे हाथों ही से पतवार मेरी छूट गई ! अब मैं तूफ़ान में हूँ साहिल से इशारा न करो।
रौशनी हो न सकी लाख जलाया हमने ! तुझको भूला ही नहीं लाख भुलाया हमने !मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो। मुझको इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो..! जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो ।।
एक दिल और सौ अफसाने !
जब जब दर्द, प्यार, दया आदि भावों का जिक्र होता है, तो ऐसा समझा जाता है ये भावों का संबंध में दिल से होता है। जरा सोचिए अगर ये दिल ना होता तो क्या होता! ग़ीतकार हसरत जयपुरी ने लिखा है ;
एक दिल और सौ अफसाने, हाय मोहब्बत हाय जमाने। दिल ना होता तो कुछ भी न होता, आंख न रोती दर्द न होता। अपना ये दामन बोल भी गाता ? कौन किसी के युं प्यार में खोता..! मन वीणा के मधुर सुरों में गाते हैं सब प्रेम तराने।
एक दिल के टुकड़े हजार हुवे !
‘दिल की बात’ हो और शीशे की न हो, तो कुछ अधुरा सा लगता है। यह जो दिल है बातों-बातों में इसकी तुलना शीशे से कर दी जाती है। क्या दिल शीशा के समान होता है! जो ठोकर लगते ही टुट जाता है। क्या आपका दिल भी ऐसा ही है। अगर है भी तो इसे संभालना सीखना होगा।
जिनका दिल सांसारिक विषयों में लगा रहता है, वही दिल के टुटने और विखरने की बात करते हैं। रोते हैं, विलखते हैं, और लुट जाते हैं। लुट जाने से तात्पर्य है, सुख के तलाश में जीवन के आनंद को खो देना। ठेस उन्हीं को लगती है, दिल उन्हीं का टुटता है। ऐसे दिलवालों के भाव को व्यक्त करती हैं गीत की ये पंक्तियां, जिसे कमल जलालवादी ने लिखा है।
एक दिल के टुकड़े हजार हुवे कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा, बहते हुवे आंसु रुक न सके कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा। आशाओं के तिनके चुन चुनकर सपनों का महल बनाया था, तुफान से तिनके विखर गये कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा।
वो लोग विरले होते हैं जो इन विषयों का त्याग कर पाते हैं। ऐसे लोग लुटाते नहीं लूट लेते हैं, उनका दिल आनंद से भर जाता है। ऐसा करने वाला ही वास्तव में दिलवाला कहलाता है। आनंद वक्शी द्वारा रचित एक गीत के इन पंक्तियों पर गौर किजिए।
दुनिया एक तमाशा है आशा और निराशा है। थोड़े फूल हैं कांटे हैं, जो तकदीर ने बांटे हैं। अपना अपना किस्सा है, कोई लुट जाता है! कोई लूटा जाता है! शीशा हो या दिल हो आखिर टुट जाता है।
फिर भी ❤️ दिल है हिंदुस्तानी !
दिलों की भावनायें विभिन्न रुपों में प्रगट होती हैं, पर दिल तो एक ही होता है। ज्ञानियों ने कहा है सुनो सबकी करो अपने दिल की। मन भटकता है, तो दिल उसे रोकता है। ये जो दिल है, वह अंतर्मन के आवाज को महसुस करता है। जो ‘दिल की बात’ सुनते हैं, सांसारिक कार्यों में रहने के बाद भी स्वयं को इसके विपरीत प्रभाव से मुक्त रखते हैं। गीतकार शैलेंद्र द्वारा रचित गीत की ये पंक्तियां भी हमें कुछ सीखाती हैं।
नीचे ऊपर ऊपर नीचे लहर चले जीवन की ! नादान हैं जो बैठ किनारे पूछे राह वतन की ! चलना जीवन की कहानी रुकना मौत की निशानी ! मेंरा जुता है जापानी ये पतलुन इंग्लिशतानी सर पे लाल टोपी रुसी फिर भी दिल है हिंदुस्तानी !
आग मैं अपने दिल की हर दिल मैं लगता जाऊं !
जरा सोचिए, जिसका हृदय आनंद से भर गया हो, वह टुट सकता है! विखर सकता है! बीते समय में मीरा ने दिल लगाया, लोग खुब हंसे, उनका तिरस्कार हुवा। ‘सब सखियन मिल सीख दई‘ सखियों ने समझाया भी, रात रात भर किसके लिए जगती हो। कृष्ण तुम्हारी कल्पना में है, जो कहीं दिखता नहीं वह कहां से आयगा। शान्ति से सो जाव, प्रेम ही करना ही है तो यहीं किसी व्यक्ति से कर लो। लेकिन मीरा तो अपने धुन में है, उन्होंने दिल जो लगाया है। वो तो कहती हैं ‘मेंरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई’
दिल में उतर गये वो लोग और थे !
दिल की बात’ में कुछ तो ऐसा है, जो विशेष होता है। जो ‘दिल की बात’ पर चलते हैं, विशेष होते हैं। ये वो दीवाने होते हैं, जो सबके लिए जीते हैं, सबकी बात कहते हैं, सबके लिए रोते हैं। इनकी दिवानगी से परिचय कराती हैं, महरुह सुल्तानपुरी का एक अप्रतीम गीत की ये रोचक पंक्तियां :
तू कहे अगर जीवन भर मैं गीत सुनाता जाऊं ! मन बिन बजाता जाऊं! और आग मैं अपने दिल की हर दिल मैं लगता जाऊं! दुःख दर्द मिटा त जाऊं।
मैं साज़ हूँ तू सरगम है देती जा सहारे मुझको मैं राग हूँ तू बिना है इस दम जो पुकारे तुझको आवाज़ में तेरी हर दम आवाज़ मिलाता जाऊं! आकाश पे छाता जाऊ़।
युगों-युगों तक अमर होने के लिए लोगों के दिल में घर बनाना होता है। ऐसा कोई कबीर होता है! ऐसा कोई विवेकानंद होता है! इन दिलवालों के प्रति सम्मान प्रगट करती है, संतोष आनंद की यह कवितांश :
गुलशन के फूल फूल पर शबनम की बूंद से ! हंसकर बिखर गये वो लोग और थे। हाथों में हाथ बांध के संतोष रह गया कुछ कर गुजर गये वो लोग और थे। जो प्यार कर गए वो लोग और थे..! दिल में उतर गये वो लोग और थे ।।
गीतों की पंक्तियां चंद शब्दों से बनी होती हैं। और अपने भीतर गहन अर्थ भी समेंट कर रखती हैं। हम कानों को मधुर लगने वाले गीत-संगीत को सुनते हैं, गुनगुनाते हैं। साधारण को यह साधारण प्रतीत होता है, मनोरंजन का साधन मात्र प्रतीत होता है ! पर गहनता से विचार करो तो इनमें जीवन जीने सीख छुपी होती है। यही बात दिल पर भी लागु होता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन इसे किस प्रकार से लेता है। हकीकत में यह जो गीत, काव्य’ गजल लिखे जाते हैं, ये सब लेखकों के ‘दिल की बात’ ही तो हैं। गीतकार आनंद वक्शी ने लिखा है:
“दो लफ्जों की है दिल की कहानी, है ये मोहब्बत या है जवानी। दिल की बातों का मतलब ना पूछो, जिसके लिए है दुनिया दीवानी।”
सुनी-अनसुनी : बीते लम्हों की एक कहानी!
जीवन में कुछ ऐसे पल भी आते हैं, जो उस वक्त समझ में नहीं आती, परन्तु इनकी यादें बाद के दिनों में मीठी एहसास के साथ साथ बनी रहती हैं। ऐसे लम्हों पर अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति ठीक तरह से वही कर सकता है, जिसे इन पलों का अनुभव हुवा हो। फिर भी जीवन के सफर [ मुसाफिर हूं मैं : traveller of Life ] में कुछेक ऐसा पढ़ने सुनने को मिल जाता है, जो दिल को छूता है। कही-अनकही बातें सच नहीं होती। वैसे ही एक कहानी जो एक सीधा, शर्मीला और झेंपूू किस्म के युुुवक की है। युवक की उम्र लगभग चौबिस पच्चीस वर्ष की रही होगी। सामान्यतः इस उम्र में कोई प्यार, मोहब्बत आदि विषय पर परिपक्व नहीं होता। जारी…
सत्यम् शिवम् सुंदरम् !
दार्शनिक नजरिये से देखने पर यह ‘दिल की बात’ ‘गागर में सागर’ प्रतीत होता है। इसे समझने के लिए इसके गहराई में उतरना होता है। दिल में उमड़ रहे लहरों को स्पर्श करना होता है। इसकी धड़कनों को महसूस करना होता है, इसकी धड़कने क्या कहती हैं, सुनना पड़ता है।
दार्शनिक ‘ओशो’ इसे अपने तरीके से समझाते हैं ; “उस तरह मत चलिए जिस तरह डर तुम्हें चलाए, उस तरह चलिए जिस तरह खुशी तुम्हें चलाए।”
“कई वर्षों से मैं अपनी छाती में कभी कम तो कभी ज्यादा पीड़ा का अनुभव करता हूं; जब मैं प्रेम करता हूं तो यह मिट जाता है।”
“विना प्यार के इंसान एक शरीर है, एक मंदिर जिसमें देवता नहीं होते। प्यार के साथ देवता आ जाते हैं, फिर मंदिर खाली नहीं रहता।”
“यह शारीरिक नहीं है, इसका नाता कहीं विश्रांति से है, पिघलन से है, पुरा मिट जाने से है। उन पलों में यह मिट जाता है, अतः निश्चित ही यह शारीरिक नहीं है।”
मुण्डकोपनिषद में भी अंकित है कि “प्रत्येक मनुष्य को सच और झूठ में एक को चुनने का मौका देता है ! एक ईश्वर के अलावे सबकुछ असत्य है !”
पंडित नरेन्द्र नाथ रचित गीत की ये पंक्तियां सत्य के स्वरुप की ओर इशारा करती हैं। राधा और मोहन प्रेम के प्रतिक हैं। प्रेम ही ईश्वर है! प्रेम हृदय का भाव है ; नरेंद्र नाथ प्रार्थना कर रहे हैं, स्वयं के हृदय को प्रेम से सराबोर करने के लिए !
ईश्वर सत्य है! सत्य ही शिव है! शिव ही सुन्दर है..! एक सूर्य है एक गगन है एक ही धरती माता ! दया करो प्रभू एक बनें सब ! सब का एक से नाता ! राधा मोहन शरणम् ! सत्यम शिवम सुन्दरम्..!
प्रेम का बंधन ऐसा ऐसा बंधन है सब सीमाओं को तोड़ देता है। यह ‘दिल की बात’ है जो साधारण मन से परे है। पंकज उधास द्वारा गाये गये इस गीत को कभी सुनिए। इस अप्रतीम गीत के लेखक की भावनाओं को समझिये। इस गीत में लेखक प्रेम के स्वरुप का वर्णन करते हुए सारे सीमाओं को लांघ जाता है। इसिलिए तो कहते हैं कि प्रेम दीवाना होता है।
जिस रस्ते से तू गुजरे वो फूलों से भर जाये ! तेरे पैर की कोमल आहट सोते भाग जगाये ! जो पत्थर तो छू ले गोरी वो हीरा बन जाये ! तू जिसको मिल जाये वो हो जाये मालामाल ! इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल..!
घनक घटा कलियाँ और तारे सब हैं तेरा रूप ! गज़लें हों या गीत हों मेरे सब में तेरा रूप ! यूँ ही चमकती रहे हमेशा तेरे हुस्न की धूप ! तुझे नज़र ना लगे किसी की जिये हज़ारों साल ! चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल ! इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल..!
ओशो के शब्दों में ; “यह दुनिया धन के लिए राजी हो रही है। यहां अगर कोई ध्यान के लिए जियेगा, तो बड़ा अकेला पड़ जाता है। यहां पागलपन करो सांसारिक तो सब साथ हैं। इस संसार में तुम्हें जो भी सीख देने वाले हैं वे यही कहेंगे कहां के भरोसे पड़े हो। यह गीता, यह वेद, यह मीरा, यह कबीर किनकी बातों में उलझे हो। यह जिंदगी चार दिनों की है, भोग लो !”
जहां प्रेम है वहां सुख है! शान्ति है ! जहां प्रेम है वहां ईश्वर है ! “सत्यम् शिवम् सुंदरम्” का तात्पर्य यही है। विवेकानंद मानव मात्र को संबोधित करते हुए कह गये है कि ” नाम, यश और दुसरों पर शासन करने की इच्छा से काम करना! क्रोध, लोभ और मोह इस त्रिविध बंधन से मुक्त हो जावो! और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा।”
इन उक्तियों से यह सीख भी मिलती है; कि ‘दिल की बात’ का संबंध सच से होता है! प्रेम से होता है! प्रसन्नता से होता है। हमें इस बात पर जरूर विचार करना चाहिए कि हम किसकी सुनते हैं ! ‘दिल की बात’ के अनुसार चलना अर्थात् प्रेम करना, सत्य के पथ चलना, धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ते रहना है। पर साधारण से असाधारण बनने के लिए इस साधारण का त्याम करना पड़ता है। ओशो के शब्दों में ” मैं निरंतर कहता हूं कि धर्म का रास्ता जुवारी का रास्ता है। यह कोई दुकानदार का रास्ता नहीं है ; जो दो-दो पैसे का हिसाब लगाता है। वह जुवारी का रास्ता है जो सब लगा देता है। और जिस चीज के लिए लगा रहा है, मिलेगी भी या नहीं मिलेगी, कुछ भी पक्का नहीं है। सब खो जायगा ; इतनी जो हिम्मत करता है, इतना जिसका दुस्साहस है, वही इस मार्ग पर चल पाता है। कमजोरों का यह रास्ता नहीं है। बड़ी हिम्मत चाहिए..!
हिम्मतवालों की, बड़े दिलवालों की ‘दिल की बात’ बड़ी होती है। इसी ओर इशारा करते हुए मेंरे आराध्य परमपूज्य स्वामी तपेश्वरानंद ने मुझसे कहा था : “सौदागर बनो व्यवसायी नहीं।” स्वामी तपेश्वरानंद – Swami Tapeshwaranand : biography उनके कहे शब्द ‘गागर में सागर’ के समान होते थे।
मत अनेक होते हैं, किसी भी विषय-वस्तु पर विचार रखने का नजरिया अलग-अलग हो सकता है। पर सच तो सच ही होता है। स्वामी विवेकानंद – Swami Vivekanand Ka Mahan Jeevan विवेकानंद ने कहा है कि “सच को हजार तरीके से बताया जा सकता है, पर फिर भी सच एक ही होगा।”
मन के मते न चलिये – Man Ke Mate mat Chaliye
इसिलिए तो स्वामी विवेकानंद कह गये हैं कि ” जब दिल और दिमाग में संघर्ष हो तो हमेंशा दिल की सुनो।”
साथियों यह लेख आपको कैसा लगा बताइएगा जरूर। कलम को विराम देने से पहले अर्ज करता हूं ! किसी ने कहा है कि कहने को तो बहुत कुछ है ‘दिल की बात’ कहने की, पर कहें किससे, ये भी तो है बात समझने की !
दिल ❤️ की गली से बचके गुुुुुजरना ! ये सोच लेना फिर प्यार करना ! क्युंकि दिल्लगी इम्तिहान लेेेती है..!
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