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प्रेम ना बाड़ी ऊपजै — Love Doesn’t Grow In The Garden

प्रेम ना बाड़ी ऊपजै प्रेम ना हाट विकाय। राजा रंक जेही रूचै सीस दिये ले जाय।।

कबीर के दोहे दोहे में प्रेम के विषय में जो अभिव्यक्ति है! उसके अनुसार प्रेम कोई वस्तु नहीं है, जिसका पैदावार खेतों, बगीचों में  किया जा सके। और ना ही यह बिकाऊ है, जिसे हाट-बाजार से मोल अथवा उधार लिया जा सके। प्रेम अनमोल है, फिर भी यह सबके लिए समान रुप से उपलब्ध है। प्रीत के जगत में गरीब और अमीर में कोई भेदभाव नहीं है। राजा हो या रंक, जिसे भी इसे पाने की इच्छा हो, अपना सीस देकर पा सकता है। सीस देने का तात्पर्य है, नम्रता से है। विस्तृत रुप में यह मस्तिष्क में चल रहे विचारों को मिटा देने की क्रिया है। 

काम क्रोध मद मोह भय लोभ द्रोह मात्सर्य। इन सबहीं ते प्रेम परे कहत मुनिवर्य।।

मस्तिष्क मन के विकारों से भरा रहता है, मोह, क्रोध, घृणा, संदेह, अहंकार इन सबका कारण मनुष्य का मन ही है। प्रेम मन के अन्तर्तल में है, मन का बाहरी तल मनोविकार से ग्रसित है। इसलिए मन-मस्तिष्क की स्वच्छता का अत्यधिक महत्व है।

आचार्य रजनीश ‘ओशो‘ के शब्दों में : “सीस खोने के दो आयाम हैं। एक आयाम तुम्हारा अहंकार मिटे! तुम्हारा अहंकार तुम्हारे खोपड़ी में समाया हुआ है। इसलिए तुम लोगों से कहते हो, सिर ऊंचा रखो। सिर अहंकार का प्रतीक हो गया है। इसलिए तो तुम समर्पण करते हो तो किसी के चरणों में सिर रखते हो। और जब तुम किसी के प्रति क्रोध में होते हो तो अपना जुता निकालकर उसके सिर में रख देते हो। जब अहंकार किसी को प्रेम करने का बहाना भी बनाता है तो  मिटा डालता है। अहंकार मानता है स्वयं को, सारी दुनिया मिट जाए तो भी वह बचा रहे। अहंकार विध्वंसक है। प्रेम का अर्थ है अपने अहंकार को विसर्जित करने की कला। जहां प्रेम है वहां अहंकार झुक जाता है।

सीस का दुसरा आयाम है विचार। क्योंकि तुम्हारे सिर में सारे विचारों का संग्रह है। तुम सोचते ही रहते हो, तुम्हारे मन में विचारों की भीड़ चलती रहती है। इन विचारों की भीड़ के कारण तुम्हारी सारी ऊर्जा खो जाती है, प्रेम करने को कुछ बचता ही नहीं। हृदय के पास तक रस की धार पहुंच नहीं पाती। तुम्हारी सारी ऊर्जा तुम्हारे विचारों में नष्ट हुवी जा रही है।”

प्रेम जिसे प्यार और प्रीत से भी संबोधित किया जाता है। वास्तव में यह हृदय का त्तत्व है? सांसारिक मोह-माया से लगाव रखने में प्यार नहीं है। इसके अर्थ में विशालता है! भरोसा, विश्वास, श्रद्धा, भक्ति सब प्रीत के ही रुप हैं। प्रीत के विना पूजा-अर्चना, प्रार्थना-आराधना सब व्यर्थ है। 

दम्पति सुख और विषय रस पूजा निष्ठा ध्यान। इनते परे बखानिये शुद्ध प्रेम रसखान।।

कवि रसखान ने कहा है : काम-वासना, मोह-माया से उत्पन्न मनोभाव प्यार नहीं होता। अपने शुद्धतम स्वरुप में प्यार पूजा, निष्ठा, ध्यान आदि श्रेष्ठ क्रिया-भाव से भी ऊपर की अवस्था है।

ईश्वर तक केवल प्रेम की आवाज ही पहुंचती है। मन जब विकारों से मुक्त हो जाता है तो मस्तिष्क हृदय के भावों से भर जाता है। और दिल की पुकार आराध्य के पास पहुंचने लगता है। ऐसी अवस्था में कोई शब्द, कोई मन्त्र के उच्चारण की भी जरूरत नहीं पड़ती। अगर प्रीत हों तो मौन भी उन तक पहुंच जाता है।

कबीर बादल प्रेम का हम पर बरसा आई। अंतरि भीगी आतमा हरी भई वनराई।।

प्रीत का अनुभव जब होता है तो जीवन खुशियों से भर जाता है। कबीर कहते हैं : जब प्रेम का बादल मेंरे ऊपर बरस गया, तो मेंरी अन्तरात्मा को भी भीगो दिया। मेंरे आस पास का वातावरण हरा भरा हो गया। चारों दिशाओं में हरियाली छा गई। ऐसा है प्रेम का प्रभाव! फिर हम इस प्रेम में क्यों नहीं जीते।

कबीरा मन पंक्षी भया जहां मन तहां उड़ी जाय। जो जैसी संगति करै सो तैसी फल पाया।।

आखिर संसारी व्यक्ति पर प्रेम का प्रभाव क्यों नहीं पड़ता। इसपर कबीर कहते हैं : सांसारिक कार्यों में लिप्त मनुष्य का शरीर पंक्षी की तरह हो गया है। जो मन के वश में है, जहां मन ले जाता है वहां उड़कर चला जाता है। इसमेें कोई अचरज की बात ही नहीं है, क्योंकि जो जैसी संगति करता है वह वैसा ही बन जाता है।

जो घट प्रेम न संचरे सो घट जान मसान। जैसे खाल लोहार के सांस लेत बिन प्राण।।

कबीर कहते हैं : जिस मनुष्य के जीवन में प्यार नहीं है, उसका जीवन मृतप्राय है। लोहे को गरम करने के लिए लोहार जिस खाल का उपयोग करता है, वह भी सांस लेता है और आग को सुलगाता है, उसके भीतर प्राण नहीं होता। प्रीत विहीन मनुष्य का सांस लेना केवल इस बात को दर्शाता है कि उसके भीतर प्राण है, परन्तु ऐसा जीवन व्यर्थ है।

प्रेम फांस में फांसि करे सो जिए सदाहिं। प्रेम करम जाने विना मरि कोऊ जीवत नाहिं।।

रसखान के इस दोहे का भावार्थ है: प्यार के बंधन जो बंध गया, वास्तव में वही जीवन का आनंद ले पाता है, हमेशा खुश रहता है। जिसके जीवन में प्यार नहीं वह मर मर कर जी रहा होता है, उसके जीवन में दुख ही दुख है।

अकथ कहानी प्रेम की कछु कहा न जाय। गुंगे केरी शर्करा खाय और मुस्काय।।

कबीर कहते हैं : प्रेम के विषय में क्या कहा जाए, इसकी कथा अवर्णनीय है। जिसे इसकी अनुभूति होती है, वह आत्मविभोर हो जाता है। जिस प्रकार एक गुंगा अपने मुख शक्कर रखकर मीठास का आनंद लेता है और मुस्कराते रहता है। अगर उससे शक्कर के स्वाद के विषय में पूछा जाय तो वह क्या कहेगा! उसकी मुस्कराहट ही यह बता रहा होता है कि उसे कितना आनंद आ रहा है। शक्कर के मीठास का अनुभव करना हो तो शक्कर को मुख में लेकर स्वयं चबाना होगा। प्रीत अनुभव का विषय है, प्रीत का रीत यही है। जिसके हृदय में प्रेम भर जाता है, वह आनंद के स्वाद से भर जाता है।

प्रेम अगम अनुपम अमित सागर सरिस बखान। जो आनंद एहि ढ़िग बहुरि जात नाही रसखान।।

रसखान प्यार का बखान करते हुए कहते हैं कि प्यार निराला अनुपम है, अमित है, इसकी गहराई और विशालता सागर सदृश है। इसके गहराई को मापना असंभव है। प्रेम में अत्यधिक आनंद है, इसे व्यक्त नहीं किया जा सकता।

प्रेम छिपाये ना छिपे जो घट परगट होय। जो पाये मुख बोले नहीं नयन देत है रोय।।

कबीर के कहने का तात्पर्य है कि हृदय प्यार से भरा हो तो छुपाये नहीं छुपता। प्यार हृदय से बाहर निकल कर आ जाता है। जब किसी से प्यार हो जाता है, तो वह स्वत: व्यक्त हो जाता है। इस अवस्था में व्यक्ति का सुध-बुध खो जाता है, हृदय भाव-विह्वल हो जाता है और आंखे छलक पड़ती हैं।

प्रेम प्रेम सब कोई कहत प्रेम ना जानत कोई। जो जग जाने प्रेम तो मरे जगत क्यों रोय।।

इस संसार की रीत को देख कवि रसखान ने जो कहा है: भावार्थ है कि प्रेम, प्यार की गीत तो सभी गाते हैं, परन्तु प्रीत क्या है, यह कोई नहीं जानता। अगर प्रीत को सभी जान लें तो इस नश्वर संसार में रोना-धोना, चिखना-चिल्लाना क्यों मचा रहेगा। सर्वत्र खुशियां ही खुशियां दिखाई देगी, यह संसार स्वर्ग हो जायेगा।

सांसारिकता को ही सत्य समझने वालों के जीवन में भी नम्रता, उत्तम व्यवहार का होना आवश्यक है। अगर आप इसे प्यार समझ रहे हैं तो कोई बात नहीं। साधारण से ही असाधारण की यात्रा तय होती है। परन्तु किसी के लिए कुछ करने और बदले में कुछ चाहने से मन में असंतोष पनपता है। मन के मते न चलिये – Man Ke Mate mat Chaliye

आसक्ति भाव से किये गये कार्य-व्यवहार से सुख प्राप्त नहीं होता। किसी से कोई अपेक्षा रखना, किसी के प्रति मन में घृणा का भाव होना, जीवन को कभी सूखमय नहीं बनाता। प्रेम पूर्वक व्यवहार करते हुए, अपने हर कृत्य को प्रेम-भाव से करते हुवे जीवन को जीने का प्रयास हर किसी को करना चाहिए। अगर इस ढ़ग से जीवन को जीया जाय तो धीरे-धीरे प्यार का अनुभव होना संभव हो सकता है। जीवन सहज हो सकता है, जीवन खुशियों से भर सकता है। 

आनंद अनुभव होत नहीं विना प्रेम जग जान। कै वह विषयानंद के कै ब्रम्हानंद बखान।।

रसखान कवि कहते हैं : चाहे विषय-वस्तुओं के सुख भोग की बात करो अथवा ईश्वर की भक्ति की, परमाऩंद की बात हो, हृदय में अगर प्यार न हो तो आनंद की अनुभूति नहीं हो सकती। 

अपनी-अपनी समझ के आधार पर, इच्छा के आधार पर चाहे भौतिकता में लिप्त हों अथवा आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर हों, विना प्रेम ना सुख मिलता है और ना ही आनंद। वैसे भी जो साधारण से, प्रत्यक्ष से प्रेम नहीं कर सकता! वह अज्ञात् से प्रेम नही कर सकता। अतः जीवन में प्रेमपूर्ण व्यवहार के साथ लगातार चलने का प्रयास होना चाहिए।

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