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निंदक नियरे राखिए — Critics Should Be Around

निंदक नियरे राखिए , आंगन कुटी छवाय। विन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

कबीरदास कहते हैं कि ‘निंदक नियरे राखिये‘ अर्थात् जो आपका निंदा करता हो, उसे अपने आसपास रखें। क्योंकि जो निंदक होते हैं वो हमेशा आपकी कमियों को, आपके अवगुणों को दर्शाते रहते हैं। निंदक बिना पानी और साबुन के आपके मन को स्वच्छ करते रहते हैं।

साधारणतः किसी के चरित्र में बुराई खोजकर, उस बुराई को दुसरों के समक्ष रखनेवाले निंदक होते हैं। अगर निंदा झुठी हो तो उसपर गौर करने की आवश्यकता नहीं है। पर, अगर निंदा में सच्चाई हो तो उसकी उपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए। उनकी बातें ध्यान से सुनने चाहिए। वो आपका आईना बन सकते हैं। वास्तव में निंदक आपके मित्र होते हैं, निंदा करने वाले लोग आपके शुभचिंतक होते हैं।

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लोग निंदा कम प्रशंसा अधिक पसंद करते हैं !

साधारण मनुष्य ‘निंदक नियरे राखिए’ इस उक्ति को गहराई से नहीं लेते हैं। किसी को भी निंदक अच्छे थे नहीं लगते। ज्यादातर लोगों को उनका प्रसंशा करने वाले लोग ही पसंद आते हैं। आपके अन्दर विद्यमान अच्छे गुणों की प्रसंशा हो तो यह गलत नहीं है। परन्तु आपकी तारीफ करने वाले अगर हर परिस्थिति में आपका गुणगान करते हों, तो यह गलत है। दरअसल जो आपकी हर वक्त प्रसंशा करते हैं वो शुभचिंतक नहीं होते। वैसे लोग आपके अहंकार को बढ़ावा देते रहते हैं। 

जो सिर्फ आपकी प्रसंशा करते हैं, वैसे लोग किसी मतलब से ऐसा करते हैं। वैसे लोग चापलूस होते हैं। आपकी चापलूसी करनेवाले लोग आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं। इसलिए ‘निंदक नियरे राखिए’ इस बात पर चिंता नहीं चिंतन जरुरी है‌।

अपना हित साधना चापलुसों का उद्देश्य होता है।

अधिकतर लोगों को चापलुस या चाटुकार अच्छे लगते हैं और चापलुसों को खुशामद करना भली भांति आता है। चाटुकारिता करने वाले और चाटुकारों को पसंद करनेवाले, दोनों ही प्रकार के लोग समाज में अधिकांश दिखाई पड़ते हैं। चाटुकार, चापलूस या चमचे ऐसे प्राणी होते हैं जो ये ऐड़ा बन कर पेड़ा खाने का काम करते हैं।  ऐसे लोग जिनका खाते हैं, उन्हीं का बखान करते रहते हैं।

निंदक आपके शुभचिंतक हो सकते हैं

चापलूसी के विलक्षण प्रतिभा के धनी लोग नदी पार कर जाने के पश्चात् नाविक को लात मारने में भी निपुण होते हैं। चमचागिरी, खुुशामदी, चापलूसी आदि चाटुकारिता के अनेक नाम हैं। येन केन प्रकारेण अपना काम बना लेंना या अपना उल्लू सीधा करना इनका प्रमुख गुण होता है। 

किसी शायर ने कहा है, आज कल ऐसे वफादार बदल जाते हैं, जैसे हर रोज अखबार बदल जाते हैं।

चाटुकारिता एक गजब की कला है!

चाटुकारिता हर किसी को नहीं आती या यूं समझिए कि यह एक कला है। लेकिन प्रबुद्ध लोगों में यह अवगुण नहीं पाया जाता। मनुष्य को निंदकों से नहीं चाटुकारों से सावधान रहना चाहिए।

रहीम द्वारा रचित यह दोहा चाटुकारिता पर एक उचित दृष्टिकोण प्रस्तूत करता है। जिस प्रकार वर्षा ऋतु के आते ही मेंढको की आवाज चारों तरफ गूंजने लगती है, और कोयल यह सोचकर खामोश हो जाती है कि उसकी आवाज  को कौन सुनेगा! ठीक उसी प्रकार चाटुकारों की पूछ-परख अगर बढ़ने लगे तो बुद्धजीवी और प्रतिभाशाली भी मौन हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में चाटुकार प्रखर हो जाते हैं।

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन। अब दादुर वक्ता भये, हमको पूछत कोय।।

सलाहकार और चाटुकार में अंतर को समझिए!

एक  समय की बात है। एक राजा ने अपने दरबारियों से कहा कि मुझे बैंगन बहुत भाता है।  झट से एक चाटुकार ने कहा कि हाँ महाराज! बैंगन है ही ऐसा की सबको भा जाये। उसका गठीला बदन देखिए तो ऐसा लगता है मानो कोई रोबदार शूरवीर हो; नीला रंग तो जैसे बनाया ही बैंगन के लिए गया है। और तो और उसके सर पर ताज कितना सुन्दर लगता है। वाकई बैंगन तो शब्जियों का राजा है।

कुछ दिनों के बाद राजा ने पुन: उन्हीं दरबारियों को बुलाया और उनसे कहा! यार ये बैंगन बहुत ही फालतु किस्म की चीज है। यह सुनते ही चाटुकार महोदय ने फौरन कहा; आप एकदम सही बोल रहे है महाराज! देखिये तो जरा इसने सर पर काँटा लगा रख्खा है। अक्सर हाथों में चुभ जाया करता है और इसका रंग भी कितना भद्दा है। इसे तो बेगुण कहना ही अच्छा होगा।

किसी भी जाति, जमात्, वर्ग अथवा व्यवसाय से जुड़े लोगों में जब नैतिकता का ह्रास हो जाता है तो उनका निकृष्ट स्वरूप सामने आने लगता है। चाटुकारिता की उत्पत्ति भी सामाजिकता एवम् मानवता के मूल्यों में गिरावट का परिणाम है।

महात्मागांधी ने कहा था; “खुशामद और शुद्ध सेवा में उतना अन्तर है जो झूठ और सच में है।”

निंदक नियरे राखिए

बीते वक्त की बात है, राजा, महाराजाओं के दरबार में दरबारियों, सलाहकारों या यूं कहिए ज्ञानियों की मंडली हुवा करती थी। इतिहास में विक्रमादित्य- कालिदास, कृष्णदेव राय -तेनाली राम, अकबर-बीरबल एवं पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई जैसे महान राजा एवम् उनकेे प्रबुद्ध सलाहकारों का वर्णन मिलता है। ऐसे प्रबुद्धजनों के सलाह से समाज को दिशा देने में राजा महाराजाओं को सुविधा होती थी।

आज का परिवेश पूर्व के आदर्श स्थिति से भटक चुका है। अब ना किसी को सलाह चाहिए और ना ही निर्भिक होकर अपनी बात रखने वाले सलाहकार। खुशामद पसंद करनेवाले और चापलूसी करनेवाले लोगों का गठजोड़ हर क्षेत्र में पनपने लगा है। आज के समय में चाटुकारिता  हमारे समाज की एक बहुत बड़ी लाइलाज समस्या बन गई है। चाटुकारों की जमात बढ़ने लगी है जो समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

झुठी प्रसंशा से दुर रहें !

हमें ना तो किसी की झुठी प्रसंशा करनी चाहिए और ना ही किसी से अपनी सस्ती प्रसंशा लेनी चाहिए। जो लोग बिना कारण के भी खुब प्रसंशा करते रहते हैं, वो किसी ना किसी कारण से आपको खुश करना चाहते हैं। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। जब आपकी प्रसंशा हो रही हो, तब वह कौन है, कब, कैसे और क्यों आपकी तारीफ कर रहा है? इस बात पर विचार करना जरूरी है। जीहुजूरी और प्रशंसा में अंतर है, इसे समझने की जरूरत है।

प्रसिद्ध साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का कहना है; “चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं।”

मुंशी प्रेमचंद

आपकी निंदा क्यों हो रही है; अपने अवगुणों को दुर करें !

अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर लोगों के लिए प्रसंशा अधिक प्रिय है। अगर कोई निंदा करें अथवा उनके समक्ष किसी परिपेक्ष्य में सही सही बातों को रखे, तो ऐसे लोग उन्हें दुश्मन की तरह प्रतीत होते हैं। कभी कभी इर्ष्या भाव से भी पीठ पीछे आपकी निंदा होती है, ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। लेकिन कोई सामने आकर आपकी निंदा करता हो, तो उसकी बातों पर गौर करना चाहिए। आपके जीवन में उन त्तत्वों का प्रभाव होता है, जिनकी संगति में आपका ज्यादातर समय गुजरता है। अतः ‘निंदक नियरे राखिए’ , अर्थात् जो आपका निंदा करता हो, उसे हमेशा अपने आसपास रखें। आप उनके बातों पर विचार करेंगे तो फिर आपका ही भला होगा।

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