Adhyatmpedia

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ — Pothi Padh-Padh Jag Mua

पोथी एक संस्कृत शब्द है, अन्य भाषाओं में इसे पुस्तक, किताब, book आदि नामों से जाना जाता है।  छोटी-छोटी पुस्तकों को पोथी कहा जाता है, जिसके पन्नों में नैतिक, धार्मिक बातों का उल्लेख होता है, यानि ज्ञान की बातें लिखी होती हैं। अपने वृहत स्वरुप में, अर्थात् मोटी-मोटी धार्मिक पुस्तकों को ग्रन्थ, शास्त्र, संहिता आदि की संज्ञा दी गई है। 

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

कबीर कहते हैं कि इस संसार में बहुत से लोग पोथी, पुस्तकों को पढ़ने में लगे रहे। ऐसा करते हुवे वे मृत्यु के द्वार तक पहुंच गये। परन्तु वास्तव में कोई पंडित ना हो सका। पंडित बनने के लिए तो केवल ढ़ाई अक्षर के शब्द प्रेम को  ठीक प्रकार से जानने की जरूरत है। जिसने इस ढ़ाई अक्षर को जान लिया वह पंडित हो गया।

पंडित से आशय है जो ज्ञानी हो। दोहे का भावार्थ है कि ज्ञान पुस्तकों में नहीं होता, ज्ञान अनुभव से आता है। और ढ़ाई आखर के प्रेम को पढ़ने के लिए पुस्तकों में कोई व्यवस्था नहीं है। प्रेम, प्यार पुस्तकों से सीखने का विषय नहीं है। जितनी भी पुस्तकें आपको उपलब्ध हो जाएं, इन सारे पुस्तकों के एक-एक पृष्ठ को आप भली भांति पढ़ भी लें, पर इसका कोई लाभ नहीं होता।  पुस्तकें विचारों से भरे पड़े हैं। इनमें जो लिखित है, लिखने वालों के विचार हैं। पुस्तकों को पढ़ने से आपके मस्तिष्क में उन विचारों का संग्रह तो हो जाता है। पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता, हां यह भ्रम अवश्य हो जाता है कि आप पंडित हो गये हैं। 

सामान्यतः ज्ञान लोगों के भौतिक एवम् सामाजिक क्रिया-कलाप से उत्पन्न विचारों की अभिव्यक्ति है। इसका विभाजन रुप, रस, गंध, स्पर्श एवम् शब्द के आधार पर होता है। अर्थात् भौतिक जगत के विषय में जो अनुभव किया जाता है, वह इंद्रियों का विषय है।

जबकि वास्तविक रुप में ज्ञान का संबंध आत्मा से है। गहन दृष्टि में ज्ञान का आशय निरपेक्ष सत्य की अनुभूति से है। निरपेक्ष यानि इन्द्रियों द्वारा अनुभव किये गये ज्ञान से परे की अवस्था। सुख-दुख, लाभ-हानि, यश-अपयश, प्रिय-अप्रिय आदि भावों से परे की अवस्था। 

Osho के शब्दों में : कबीर के लिए पांडित्य की परिभाषा ज्ञान की परिभाषा है, जिसने प्रेम के ढ़ाई अक्षर पढ़ लिए हैं। और प्रेम के ढ़ाई अक्षर को पढ़ने के उपाय पोथी में नहीं है, जीवन के पोथी में पढ़ना पड़ेगा। जीवन के विद्यालय में ही पढ़ना पड़ेगा। 

प्रेम के ढ़ाई अक्षर को ओशो इस प्रकार परिभाषित करते हैं:  प्रेम कभी पुरा नहीं होता। जब कोई व्यक्ति प्रेम में पड़ता है तो वहां ढ़ाई आखर प्रेम के होते हैं। एक अक्षर करने वाला और दुसरा अक्षर पाने वाला। तीसरा जो आधा है, अज्ञात है। उसे कबीर आधा कहते हैं, आधा का कारण है, प्रेम कभी पुरा नहीं हो सकता। यह कितना भी हो जाय अधुरा रहता है। 

ओशो कहते हैं: परमात्मा के अनुठे ढंग हैं। वह वेद-भेद की फिकर नहीं करता। तुम कितना वेद जानते हो, इसकी चिंता नहीं करता। तुम्हारे भीतर कितना प्रेम है, वहां उतर जाता है। परमात्मा प्रेम का भुखा है ज्ञान का नहीं।

श्री श्री रविशंकर कहते हैं: ज्ञान एक बोझ है यदि यह आपकी सादगी छीन लेता है, ज्ञान पीड़ा है यदि आप इसे जीवन में नहीं उतारते हैं। ज्ञान बोझ है यदि यह आनंद नहीं लाता है, ज्ञान एक बोझ है यदि यह आपको मुक्त नहीं करता। ज्ञान एक बोझ है यदि यह आपको महसूस कराता है कि आप विशेष है।

वैरागी मन क्या है जानिए ! Know what is the recluse mind

भीतर तो भेदा नहीं बाहिर करै अनेक।
जो पाई भीतर लखी परै भीतर बाहर एक।।

कबीर कहते हैं कि सभी के भीतर एक ही ईश्वर का वास है, बाहरी दृष्टि में लोगों ने इनके विषय में भिन्न भिन्न विचार बना लिया है। जिसने अपने ह‌दय के भीतर ईश्वर का दर्शन कर लिया, उसके लिए तो भीतर बाहर ईश्वर एक ही है। जिसका हृदय प्रेम से भर गया उसके लिए सारा जगत प्रेममय हो जाता है।  

कहता हूं कहि जात हूं, कहूं बजायै ढोल। श्वासा खाली जात है, तीन लोक का मोल।।

कबीर कहते हैं: मैं कहता हूं! कहते हुवे जाता हूं। और ढ़ोल बजाकर कह रहा हूं कि परमात्मा के सुमिरन के विना हर सांस व्यर्थ है। यह सांस तीनों लोकों में अनमोल है। प्रत्येक सांस के साथ उसका सुमिरन करो जिसके कारण यह सांस है।

नाम रसायन प्रेम रस पीवत अधिक रसाल। कबीर जीवन दुर्लभ है, मांगै सीस कलाल।।

आवारा मन असाधारण होता है ! A stray mind is extraordinary

कबीर के इस दोहे का भावार्थ हैं: यह जो प्रेमरस नाम का रसायन है, इसे पीओ तो अत्यधिक मीठास का अनुभव होता है। परन्तु यह प्रेम रस सभी को प्राप्त नहीं होता, इस रस को प्राप्त करना कठिन है। और अगर पोथी, ग्रन्थ के पढ़ने से, ज्ञानियों के उपदेश के स्रवण से अथवा और कोई उपाय से प्राप्त हो भी जाए तो लोग इसे पी नहीं पाते। इसे पीने के लिए अहंकार को त्यागना पड़ता है। जहां अहंकार है वहां प्रेम नहीं होता।

ऐसा भी नहीं है कि पोथी, पुस्तकों की कोई उपयोगिता नहीं है। पोथी, पुस्तकों में महती विचारों का उल्लेख रहता है। ऐसे पुस्तक भरे पड़े हैं जिसमें आपको ज्ञान के भंडार मिल जायेंगे। कबीर के दोहे भी हमें पुस्तकों में ही पढ़ने को मिलते हैं। पोथी-पुस्तकों से प्रेरणा अवश्य ही मिलती है। पुस्तकें हमें बताती हैं कि क्या सही है ओर क्या गलत है, इनके लिखे जाने का एक यह भी उद्देश्य होता है। अगर इनका कोई महत्व नहीं हो, तो लिखने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। परन्तु जब तक पोथी में, पुस्तक में, ग्रन्थ-शास्त्र में उद्धृत बातों काको व्यवहार में न लाया जाय, तो फिर सब बेकार है। प्रेम क्या है इसका वर्णन पोथी में मिलता है, पर पोथी पढ़ने भर से हम प्रेम सीख नहीं लेते। प्रेम भीतर का चीज है, ह्दय के अन्तर्तम की अवस्था है। इसलिए ही कहा गया है कि ज्ञान अनुभव से आता है।

चतुराई क्या किजिए जो नहीं शबद समाय। कोटिन गुण सुवा पढ़ै, अंत बिआय खाय।।

कबीर के कहने का तात्पर्य यही है कि ऐसे बाहरी ज्ञान से क्या लाभ जो हमें उन्नतिशील नहीं करता हो। हृदय के भीतर तक प्रवेश ना कर सके! पोथी पढ़ने से, ज्ञानियों के उपदेश सुनने से प्राप्त ज्ञान को अगर आत्मसात न किया जाय तो इसका कोई असर नहीं होता। ज्ञानियों के शब्द अगर ह्दय के भीतर तक की यात्रा न करे तो तो ये बातें हमें चतुर बना सकती हैं, पर ज्ञानी नहीं। ज्ञानी होने का भ्रम अवश्य हो सकता है, पर ज्ञान नहीं होता। 

मन के मते न चलिये – Man Ke Mate mat Chaliye

कबीर पढ़े लिखे नहीं थे, यह बात सर्वविदित है। पर साधारण बोलचाल की भाषा में उनके एक-एक दोहे असाधारण अर्थ रखते हैं। उनकी बातों में जो दर्शन छुपा है। बड़े बड़े पंडित इस पर तर्क वितर्क करते हैं, पर असत्य नहीं ठहरा पाते। बड़े बड़े ग्रन्थ, शास्त्र की महती बातें उनके दोहों में सिमट कर रह गया है। 

मसि कागद छुऔं नहीं कलम गहौं नहि हाथ।
चारो जुग कै महातम कबीरा मुखहि जनाई बात।।

कबीर ने स्वयं यह बात कही है कि उन्होंने अपने जीवन में कभी कागज, कलम छुवा ही नहीं है। पोथी, पुस्तक आदि वस्तुओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी सारे जगत के महात्मय की कथा वह मुंहजबानी व्यक्त करते हैं। कबीर के हृदय में प्रेम उतर आया है।  उन्होंने जो कहा है, अपने अनुभव से कहा है,’ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।’

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *