संकल्पशक्ति का आशय है, श्रेष्ठ विचार को क्रियान्वित करने की शक्ति। संकल्प एक क्रियाशील चरित्र है। अगर कोई अपना सबकुछ अपने उद्देश्य के लिए दांव पर लगाने के लिए तत्पर हो, तो वह उसे प्राप्त कर लेता है। संकल्प अगर दृढ़ हो तो मुश्किलें दृढ़ नहीं हो सकती। कुछ पाने की इच्छा रखना और उसे पाने के लिए दृढ़संकल्पित होना, दोनों भिन्न मनोभाव है।
जो किसी संकल्प को पूरा करने का साधन है, वह संकल्पशक्ति कहलाती है। ऐसी बलवती इच्छा, जिसकी लौ कभी मंद न हो। संकल्पशक्ति व्यक्ति के चरित्र को दृढ़ करती है, और इसके द्वारा वह श्रेष्ठतम कर्म करने में समर्थ हो जाता है।
संकल्प का संबंध इच्छा से ही है। हमारी इच्छाओं के दो रुप होते हैं। इच्छा का एक रूप सामान्य और दुसरा विशेष होता है। यह विषेश इच्छा जब उत्कृष्ट और प्रबल हो जाती है तो वह संकल्प कहलाता है।
इच्छाशक्ति अपने शुद्ध स्वरुप में संकल्पशक्ति में रूपांतरित हो जाती है। शुद्ध स्वरुप में इच्छाशक्ति मन के उन्नतिशील इच्छाओं के संकल्प का साधन है। अपने शुद्ध स्वरुप में इच्छाशक्ति वह चक्र है जिसमें अनुभूति, इच्छा, गति अथवा प्रवृति सबका समावेश होता है।
इच्छाशक्ति का अर्थ है कि हम कुछ चाहते हैं और उसे पाने का प्रयास करते हैं। जब तक वह मिले नहीं, हमारा कदम रूकता नहीं है। पाना ही है वह चीज, जिसकी हमें इच्छा है और कुछ नहीं। ठहर जाने का अर्थ है कि वो मिलेगा नहीं।
इच्छाशक्ति का आशय इच्छाओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति के मनोबल से है। वह शक्ति जिसके होने से हम अपनी इच्छाओं को पूरा कर पाते हैं। यह किसी व्यक्ति के समस्त भावनाओं, इच्छाओं का योग है। हम जो कुछ भी करते हैं, उसे करने का विचार पहले मन में उभरता है। अर्थात् कर्म का प्रारंभिक स्वरूप मन ही होता है। ‘मैं चाहता हूं’ यह कहना हमारी इच्छा है। और ‘मैं करूंगा … करके रहूंगा!’ यह कहना हमारी इच्छाशक्ति है।
इच्छाशक्ति एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास, कार्य के प्रति लगन और निरंतर प्रयास जैसे गुणों का समावेश होता है। इच्छाशक्ति के बिना कोई भी कार्य संपन्न करना संभव नहीं हो पाता। इसके बिना अन्य सभी गुण निष्प्रभावी हो जाते हैं।
किसी व्यक्ति का जीवन कैसा होगा! उत्कृष्ट होगा अथवा निकृष्ट होगा, यह उसकी इच्छा पर ही निर्भर करता है। इच्छाशक्ति को मन में निहित सांसारिक विषयों से जोड़ा जा सकता है, या फिर लोक कल्याण की भावना के साथ भी। भौतिक सुखों को पाना जीवन का एक आयाम है। लेकिन केवल भौतिक सफलता के पीछे भागते व्यक्तियों की दौड़ कभी खत्म नहीं होती। वे जीवन के दुसरे आयाम को पाने से चूक जाते हैं। यह जो आयाम है, जीवन का उद्देश्य है। यह आयाम आध्यात्मिक समृद्धि का है।
संसार में भौतिक सफलता प्राप्त करने के नियम हैं। जिनकी रुचि भौतिकता में होती है, वे इन नियमों को समझने में लगे हैं। अपनी इच्छाशक्ति के द्वारा भौतिक सफलता को अर्जित भी कर लेते हैं। सामान्यतः सफलता का मापदंड भौतिक सुखों को पाना ही समझा जाता है। यही कारण है कि अधिकांश लोग इन्हीं कृत्यों में लगे रहते हैं।
आध्यात्मिक सफलता प्राप्त करने के भी नियम हैं। अध्यात्म का अर्थ है स्वयं की चेतना को जागृत करना। एक विवेकशील व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कार्य तो करता है। इसके लिए धन अर्जित करता है, परन्तु केवल इसी में उलझा नहीं रहता।
एक विवेकशील व्यक्ति भौतिक समृद्धि से अधिक आध्यात्मिक समृद्धि को महत्व देता है।
आध्यात्मिक भाव से प्रेरित शुद्ध और दृढ़ इच्छाशक्ति संकल्पशक्ति में परिवर्तित हो जाती है। संकल्पशक्ति का अर्थ है, ऐसे कर्म को करने का दृढ़ निश्चय जिसमें भौतिकता का समावेश न हो।
इच्छाशक्ति भोग की कामना से संचालित होती है, पर संकल्पशक्ति में भोग-विलास का कोई स्थान नहीं होता। जो कार्य में भोग-विलास की कामना के साथ किया जाता है, उससे सुख तो प्राप्त होता है। परन्तु यह अस्थायी होता है, और कभी ऐसा भी होता है कि अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता। भौतिक कामनाओं से प्रेरित कर्मों से अंततः नकारात्मक भाव ही उत्पन्न होते हैं।
अपनी इच्छाशक्ति पर विचार हर किसी को करना चाहिए। अगर आपमें इच्छाशक्ति की कमी हो, तो इसे धारण करने और विकसित करने का प्रयास करना जरूरी है। बिना इसके कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता, न भौतिक और न आध्यात्मिक। किसी भी आयाम तक पहुंचने के लिए इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है। अपने जीवन ( जीवन यात्रा का अर्थ ) में कौन किस आयाम में को पाने में लगा रहता है, यह उसके इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है।
हम अपने कार्य-व्यवहार में जितने बनावटी होते हैं, अपने अस्तित्व से उतने ही अलग हो जाते हैं। एक इच्छा, एक निष्ठा एवम् तन-मन की सम्पूर्ण शक्ति लगाकर अभीष्ट लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इसका एक अप्रतीम उदाहरण दशरथ मांझी का एक असंभव सा लगने वाला कार्य है। परोपकार की भावना से प्रेरित उनकी संकल्पशक्ति ने असंभव को संभव बना दिया।
बिहार प्रदेश के गया जिलांतर्गत एक गांव है गहलौर। घने जंगल और पहाड़ों से घिरा यह गांव गया शहर से बहुत दूर नहीं है। परन्तु गांव और शहर के मध्य एक पहाड़ के अवस्थित होने के कारण दुरी अधिक हो जाती थी। दरअसल उस पहाड़ के किनारे से घुमकर गया तक पहुंचने का मार्ग लगभग सत्तर किलोमीटर था। दशरथ मांझी उसी गांव के निवासी हुवे हैं।
कहा जाता है कि सन 1959 में उनकी पत्नी बिमार पड़ गयी। गांव में उपचार की कोई सुविधा नहीं थी। सुविधाओं के अभाव के कारण वे समय पर पत्नी को अस्पताल नहीं पहुंचा सके। एक तो लम्बी दूरी, ऊपर से दुर्गम पथरीला रास्ता। उन्होंने प्रयास तो किया, परन्तु गया शहर पहूचने से पहले ही उनकी पत्नी का देहांत हो गया।
इस घटना ने उनके जीवन को ही बदल डाला। और किसी को इस स्थिति से न गुजरना पड़े, यह सोचकर उन्होंने उस पहाड़ को अकेले ही तोड़ना शुरू कर दिया। पुरे मनोयोग से बाइस बरसों तक की गई निरंतर प्रयास अंत में सफल हुवा। अपने गांव और गया शहर के बीच की लगभग सत्तर किलोमीटर की दुरी को उन्होंने पंद्रह किलोमीटर के मार्ग में तब्दील कर दिया।
उन्होंने लगभग तीन सौ साठ फीट लम्बा, पच्चीस फीट गहरा और तीस फीट चौड़ा रास्ता गहलौर की पहाड़ियों के बीच से निकाल दिया। अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते उन्होंने इस असंभव से कार्य को संभव कर दिखाया।
स्वामी विवेकानंद का संकल्पशक्ति पर विचार है कि यह सबसे बलवती है, इच्छाशक्ति के सामने सभी को झुकना पड़ेगा। क्योंकि यह प्रकृति से आती है। शुद्ध और दृढ़ इच्छाशक्ति सर्व शक्तिमान होती है।